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गुरुवार, 21 दिसंबर, 2006 को 05:55 GMT तक के समाचार

'मैं काम करते-करते थक गया था'

कई वर्षों बाद फ़िल्म ‘भागमभाग’ से वापसी कर रहे गोविंदा मानते हैं कि उन्होंने दोबारा वापसी नहीं की है बल्कि वो अपने काम से थक गए थे और उन्हें कुछ आराम की सख़्त ज़रूरत थी.

फ़िल्मों में हंसाने से लेकर गोविंदा ने टेलीविज़न पर ‘छप्पर फाड़ के’ जैसे शो भी किए हैं. इंडस्ट्री में अपनी एक अलग स्टाइल के लिए जाने जाने वाले गोविंदा की ज़िंदगी में भी कई उतार चढ़ाव आए.

गोविंदा मानते हैं कि दुनिया के स्तर पर अपनी पहचान क़ायम करना कोई आसान काम नहीं है लेकिन इंडस्ट्री के कई कलाकारों ने ऐसा कर दिखाया है.

फ़िल्मों से राजनीति और साथ-साथ फ़िल्मों में वापसी जैसे कुछ सवालों पर वेदिका त्रिपाठी ने गोविंदा से बातचीत की.

एक लंबे समय बाद आप फ़िल्म ‘भागमभाग’ से वापसी कर रहे हैं, इस देरी की वजह?

मेरे ख़याल से मैं देर से वापसी नहीं कर रहा हूँ. फ़िल्मों के साथ ही मैंने टीवी शो भी किए. मैं काम करते-करते थक गया था और आराम करना चाहता था इसलिए एक डेढ़ साल तक अपने ऊपर ध्यान देने की सोची. मैंने यह नहीं सोचा था कि यह ब्रेक इतना लंबा हो जाएगा. इससे मुझे यह सीख मिली कि अगर ज़िदगी में कभी स्लो डाउन आ जाए तो भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए.

'भागमभाग' में अक्षय कुमार के साथ काम का आपका अनुभव कैसा रहा?

अक्षय बहुत ही गंभीर और काम के प्रति समर्पित कलाकार हैं. उनके साथ काम करके बहुत अच्छा लगा. वो बहुत अच्छी कॉमेडी भी करने लगे हैं. प्रियदर्शन, अक्षय, परेश वगैरह की एक टीम है और मैं उस टीम में शामिल हो गया हूँ.

फ़िलहाल आपकी तीन फ़िल्में 'भागमभाग', 'सलाम ए इश्क' और 'पार्टनर' कतार में हैं, इन फ़िल्मों से कितनी उम्मीदें हैं आपको?

तीनों फ़िल्में अच्छी बनी हैं और कहानियों के साथ ही बड़े बजट और बड़े कलाकारों की फ़िल्म है. शुरूआत से लेकर फ़िल्म मेकिंग और अंदर तक जो भी काम हुआ है, वह बहुत ही बेहतरीन ढ़ंग से हुआ हैं. मेहनत करना हमारा काम है और मुझे लगता है तीनों फ़िल्में लोगों को पसंद आएंगी. बाकी तो सब ऊपर वाले के हाथ में है.

आपने तक़रीबन 130 फ़िल्मों में काम किया है लेकिन आपको कोई अवार्ड नहीं मिल पाया है, ऐसा क्यों?

मुझे लगता है अवार्ड के लिए जो फ़िल्में बनती हैं वह अलग किस्म की होती हैं और मैंने उस तरह की फ़िल्मों को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी. जिन दिनों मेरी फ़िल्में हिट हो रही थी उस समय मेरा समय नहीं चल रहा था.

आपने कॉमेडी की कई फ़िल्में की हैं, क्या एक ही तरह की फ़िल्में करके ऊब नहीं होती है?

बिल्कुल नहीं. अपने काम से कोई कैसे ऊब सकता है. मेरे ख़याल से इंसान किसी भी चीज़ से ऊब नहीं सकता है जब तक कि उस काम के लिए उसकी चाहत और उसका मन हो. मैं अपने काम को पूरी लगन से करता हूँ तो ऊबने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.

आपकी अगली फ़िल्म ‘पार्टनर’ में आप अपने पसंदीदा निर्देशक डेविड धवन के साथ हैं. आप दोनों की जुगलबंदी के चर्चे काफी दूर तक हैं, इस फ़िल्म में आप क्या जादू बिखेरने वाले हैं?

'पार्टनर' एक पारिवारिक फ़िल्म है. सबसे बड़ी बात यह है कि ये मेरे पार्टनर की फ़िल्म है और इसका टाइटल भी पार्टनर ही है. यह फ़िल्म बहुत ही प्यार से बन रही है और सलमान खुद मेरा बहुत खयाल रख रहें हैं. वापसी के लिए इससे अच्छी फ़िल्म शायद और कोई नहीं हो सकती थी. यह फ़िल्म अगर चल गई तो डेविड की सारी फ़िल्मों से ज़्यादा व्यवसाय करेगी. इस फ़िल्म में सलमान जितने खूबसूरत लग रहे हैं उतना शायद वो अपनी पहली फ़िल्म में भी नहीं लगे.

आपको भोजपुरी फ़िल्मों का अम्बेसडर बनाया गया है, आपकी तरफ से क्या योगदान होगा?

बनारस मेरा ननिहाल है और मैं पूरी तरह से सहयोग देने की कोशिश करूँगा. मेरी माँ की भाषा भी भोजपुरी है. मेरे ख़याल से अभी बताकर मैं उसका सरप्राइज़ कम कर दूँगा.

फ़िल्म इंडस्ट्री में आप अपने आपको कहाँ देखते हैं?

मैं ऊपरवाले का शुक्रगुजार हूँ कि मेरी जितनी भी फ़िल्में हैं वो सारी गोविंदा टाइप की कहलाती हैं. लोग मेरा काम पसंद करते हैं और मेरी फ़िल्मों को पसंद करके जो तोहफा देते हैं उससे बड़ी जगह मेरे लिए क्या हो सकती है.

आप एक बेहतरीन डांसर हैं, हमारी इंडस्ट्री में ऋतिक जैसे डांसरों के बारे में आप क्या कहेंगे?

सब बहुत ही मेहनती और समझदार हैं. आजकल टेलीविज़न पर जो दुनिया के स्तर पर प्रतिस्पर्धा चल रही है उसके लिए बहुत मेहनत की ज़रूरत है और वो हमारे कलाकार कर रहे हैं. मेरे हिसाब से दुनिया के स्तर पर अपनी पहचान क़ायम करना कोई आसान काम नहीं है लेकिन इंडस्ट्री के कई कलाकारों ने ऐसा कर दिखाया है.

आप सांसद भी हैं. राजनीति और फ़िल्में, दोनों कैसे संभालते हैं?

मुश्किल तो है लेकिन मैं राजनीति और फ़िल्म दोनों में ही सीमित चलता हूँ इसलिए संभाल लेता हूँ.

संसद में आपकी हाजिरी बहुत कम होती है, ऐसा क्यों?

जिस समय मैं राजनीति में दाखिल हुआ था, मेरी अपनी कुछ समस्याएँ थीं. फिर भी मैंने अपनी जनता से कहा था कि मैं जो कर सकता हूँ, वो करूँगा. दूसरे लोग क्या बोलते हैं, मैं उसपर ध्यान नहीं देता हूँ. हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या पानी और परिवहन की है. दूसरे राजनीतिज्ञों जैसा बड़ा बोलकर कुछ न करने से उलट मैं अपना काम करने में विश्वास रखता हूँ. मेरा काम करने का अपना तरीका है और संसद में हाजिरी लगाने से बढ़कर भी कुछ काम करना है.

क्या आपको लगता हैं कि राजनीति में आकर आपने ग़लती की?

फैसला फैसला होता है और समय समय. समय के साथ ही आप बहुत सारी चीजें सीखते भी हैं. मुझे लगता है कि अगर मैं राजनीति में नहीं होता तो इतने सामान्य लोगों से मिलने का मौका भी नहीं मिलता. जब मैं कोई फैसला करता हूँ तो उसकी अच्छाइयों और बुराइयों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देता हूँ, बस उसपर काम करता चला जाता हूँ.