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शुक्रवार, 13 अप्रैल, 2007 को 12:15 GMT तक के समाचार
 
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आँगन के पारः नारी शक्ति के कई अलग-अलग पहलू
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ट्रस्ट और बीबीसी हिंदी की साझा प्रस्तुति है आँगन के पार. एक ऐसा कार्यक्रम जिसमें ग्रामीण महिलाओं के सरोकारों पर चर्चा होती है.

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आँगन के पार: आख़िरी कड़ी

आँगन के पार की ये आख़िरी कड़ी है. पिछले अक्तूबर से अभी तक का सफ़र आप सब के साथ आँगन के पार की टीम ने मज़े मे काटा.

ताज़ा कड़ी मे मिलिए उनसे जो इस कार्यक्रम के ज़रूरी हिस्सा थे लेकिन उनकी आवाज़ आपने कार्यक्रम मे सुनी नहीं होगी.

साथ ही 12 सामुदायिक महिला रिपोर्टरों के जीवन में इस कार्यक्रम के दौरान के कुछ यादगार अनुभव भी

अगर आप आँगन के पार के इस सफ़र पर कुछ कहना चाहें तो हमे लिखें इस पते पर.

बीबीसी हिंदी सेवा
पोस्ट बैग नं.- 3035
नई दिल्ली-1

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आँगन के पार: 26 वीं कड़ी

आँगन के पार की ताज़ा कड़ी में किसी समस्या या मसले पर बात नहीं होगी.

इस कड़ी में होगा सफ़र अनुभवों का. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण के साथ आँगन के पार की 12 सामुदायिक रिपोर्टरों की ख़ास बातचीत.

तो चलिए निकलते है सफ़र पर...रूपा झा के साथ.

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आँगन के पार: 25 वीं कड़ी

पूरी दुनिया में भारत उन देशों में से है जहाँ प्रसव के दौरान या उसके 42 दिन बाद सबसे ज़्यादा औरतों की मौत होती है.

सरकारी आँकड़ो के अनुसार हर एक लाख जन्म मे चार सौ सात मौत. कौन है इसका ज़िम्मेदार.

चर्चा मे भाग ले रही हैं भारत की महिला और बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी. कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 24 वीं कड़ी

आंगन के पार की 24वीं कड़ी में हमने बात की है उस अंधविश्वास की जिसकी आड़ मे औरतों और ख़ासतौर पर कमज़ोर तबके की औरतों को निशाना बनाया जाता है.

भारत में कहीं-कहीं अब भी काला जादू और डायन जैसी प्रथाएँ प्रचलित हैं
भारत में कहीं-कहीं अब भी काला जादू और डायन जैसी प्रथाएँ प्रचलित हैं

कभी डायन तो कभी जादू टोना करने वाली और न जाने कितने नामों से उसे दाग़ कर समाज उनका बहिष्कार करता है. ये बाते शायद नई न लगती हो. ये समस्या पुरानी कई रूढियों की तरह अभी भी औरतों के दमन का कारण बन रही है.

आखिर क्यों... और क्या है क़ानूनी मदद के प्रावधान?

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आँगन के पार: 23 वीं कड़ी

कुछ आँकड़ों पर विश्वास करना मुश्किल लगता है. पूरी दुनिया में सबसे अधिक जिस संक्रमण से लोगो की जान जाती है उसका इलाज पूरी तरह संभव है.

फिर भी ये क्यों है कि ना केवल दुनिया बल्कि भारत के लिए इतनी बड़ी चुनौती.

चूक कहाँ और क्यों हो रही है. आँगन के पार की कड़ी मे चर्चा टीबी यानी तपेदिक पर. कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 22 वीं कड़ी

आँगन के पार की ताज़ा कड़ी मे बीते अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बहाने ये जानने की कोशिश है कि ग्रामीण महिलाएँ इसके बारे में जानती हैं?

क्या ग्रामीण महिलाओं में इस दिन को लेकर कोई जानकारी है. इस कड़ी में इसके महत्व पर चर्चा होगी.

उस अभियान की जिसने इन औरतों को ये विश्वास दिलाया कि अगर वे हाथ मिलाए तो अपनी आर्थिक सामाजिक सूरत बदल सकती है. प्रस्तुत कर रही है रूपा झा.

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आँगन के पार: 21 वीं कड़ी

भारत एचआईवी एड्स की चुनौती से जूझ रहा है और इस लड़ाई का अहम पड़ाव इसकी जाँच और दवाइयाँ है.

जाँच और दवाइयाँ सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त उपल्बध होनी चाहिए. जाँच और सलाह केंद्र में किस तरह की सुविधाएँ मौजूद हैं और क्यों ज़रूरी है कि आप अपनी जाँच कराए.

इस कड़ी मे हम इसी बात की चर्चा कर रहे हैं. चर्चा में भाग ले रहे हैं दिल्ली एड्स सोसाइटी के डॉक्टर जेपी कपूर और एक एचआईवी पॉज़िटिव दंपत्ति. प्रस्तुत कर रही है रूपा झा.

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आँगन के पार: 20 वीं कड़ी

सपनों को पूरा करने की चाहत, बेहतर ज़िंदगी जीने का अदम्य उत्साह, हज़ारों लोगों को उनके गाँव क़स्बों और छोटे शहरों से बड़े-शहरों में खींचता है.

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी का लगभग 27 प्रतिशत काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर भागती है.

क्या है चुनौतियाँ ऐसे लोगों के सामने और क्यों है एचआईवी का ख़तरा उनके लिए बड़ा ख़तरा?

आँगन के पार की ताज़ा कड़ी में सुनिए इसी विषय के अलग-अलग आयामों पर परिचर्चा.

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आँगन के पार: 19वीं कड़ी

आँगन के पार की आज की कड़ी में जानेंगे कैसे बच सकती है लगभग 17 लाख मासूम बच्चों की जान महज टीको की मदद से.

दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल होने के बावजूद भारत में क्यों नहीं है ये सफल कार्यक्रम.

क्या केवल सरकारी ढ़ाँचे की ख़स्ता हाल है ज़िम्मेदार या फिर लोगों के बीच टीकों को लेकर फैली ग़लतफ़हमियाँ हैं ज़िम्मेदार. सुनिए इस कड़ी में प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 18वीं कड़ी

1995 मे सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा था कि रेडियो तरंगो पर आम लोगो का हक़ है.

लेकिन कितना हक अभी तक है आम लोगों का, समुदायो का इन तरंगो पर. आँगन के पार की इस कड़ी में चर्चा सामुदायिक रेडियो की.

वर्ष 2002 में सरकार ने शैक्षणिक संस्थानो को अपना रेडियो चलाने का लाइसेंस दिया और पिछले नवंबर मे कैबिनेट ने एक नए बिल को अपनी सहमति दी जिसके तहत अब पंजीकृत ग़ैरसरकारी संगठन भी रेडियो स्टेशन चलाने का लाइसेंस ले सकते हैं.

आख़िर क्या बदलेगी तस्वीर और क्यों ज़रूरी है सामुदायिक रेडियो की मुहिम. कहाँ पर इसकी अगुवाई हो चुकी है. इन्हीं सवालो के साथ इस कड़ी को प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 17वीं कड़ी

आँगन के पार की ये कड़ी गणतंत्र दिवस विशेष है.

इसमें मुलाक़ात उन महिलाओं से जिनके लिए ज़िदगी का मूल मंत्र है लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं हमें तो अपनी यात्रा से बने अनिर्मित पंथ प्यारे हैं.

आँगन के पार की संवाददाताओं के अलावा इसमें शामिल हैं दिल्ली की पहली महिला ऑटोचालक सुनीता चौधरी और पैराशूट जंपिंग में विश्व रिकार्ड बनाने वाली पहली भारतीय महिला शीतल महाजन

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आँगन के पार: 16वीं कड़ी

आँगन के पार की इस कड़ी मे चर्चा बच्चो के कुपोषण की. सरकारी आँकड़ो के हिसाब से भारत मे तीन साल तक के बच्चो की आधी आबादी कुपोषित है.

आज से तीन दशक पहले शुरू हुई समेकित बाल विकास योजना भी क्या इस स्थिति से निपटने मे सफल नहीं रही.

आंगन के पार कार्यक्रम

क्या वजह है कि भारत इस मामले में अफ्रीकी देशो से भी पिछड गया.

इन्हीं सवालों के साथ कार्यक्रम में भाग लिया है महिला और बाल विकास मंत्रालय मे संयुक्त सचिव चमन कुमार, यूनिसेफ़ की शीला वीर और लंबे समय से इस क्षेत्र मे काम कर रहे प्रमोद कुमार. कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 15वीं कड़ी

आँगन के पार की इस कड़ी में चर्चा मानव तस्करी ख़ासकर लड़कियों की तस्करी और उससे बढ़ते एचआईवी/एड्स के ख़तरे की.

मानव तस्करी से लाई गईं लड़कियाँ देह व्यापार में झोंक दी जाती हैं

आँकड़ों के हिसाब से इस तस्करी मे 60 से ज़्यादा प्रतिशत वैसी लड़कियाँ हैं जो 12 से 16 साल की है.

इनमे से ज़्यादातर तस्करी देहव्यापार के लिए की गई है. और दूसरा आँकड़ा ये है कि ऐसी लड़कियों में से 85 प्रतिशत एचआईवी पॉज़िटिव हैं.

कभी नौकरी, कभी शादी, कभी कुछ और बहाने से इन लड़कियों को एक ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ता है जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की थी.

इस पर चर्चा के लिए शामिल हैं मानव तस्करी के ख़िलाफ़ भारत मे संयुक्त राष्ट्र की मुहिम की अगुवाई कर रहे डॉ. पीएम नायर. कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 14वीं कड़ी

आँगन के पार की ताज़ा कड़ी मे चर्चा भारत मे घटते लिंग अनुपात की. हर हज़ार पुरूषों मे केवल नौ सौ तैतीस औरतें.

कार्यक्रम में एक दंपत्ति ने भी हिस्सा लिया

आख़िर इसका कारण सामाजिक है या फिर नई तकनीक ने लिंग परीक्षण कर कन्या भ्रूण का गर्भपात करवाना एक मुनाफ़े का व्यापार बना दिया है. क़ानून क्या कहता है?

चर्चा मे भाग ले रहे हैं जाने-माने स्त्री रोग विशेषज्ञ और दशकों से इस विषय पर आवाज़ उठाते डॉ. पुनीत बेदी और एक दंपत्ति जिन्होंने लिंग परीक्षण करने के बाद गर्भपात तो करवा लिया लेकिन अब एक दूसरी कहानी कहना चाहते है.

इन सभी सवालो के साथ ताज़ा कड़ी प्रस्तुत कर रही है रूपा झा.

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आँगन के पार: 13वीं कड़ी

आँगन के पार की ये कड़ी इस साल की आखिरी कड़ी है. और इसीलिए ख़ास और अलग.

इसमे तीन वैसे मेहमान है जिनके लिए साल 2006 सफलता के नए मुकाम लेकर आया. इन तीन ख़ास मेहमान में ख़ास क्या है. क्या ये असली हैं या नकली- आप ख़ुद समझिए.

कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 12वीं कड़ी

अचला शर्मा ने बात की उत्तर प्रदेश की कुछ महिलाओं से

आँगन के पार की ताज़ा कड़ी में कुछ अलग और कुछ विशेष. हर बार हम किसी एक मसले पर बातचीत करते है.

लेकिन इस बार हमने सोचा क्यों ना आपसे आपकी ज़िंदगी के बारे में कुछ बातें की जाए जैसे पुराने दोस्त मिलकर करते है.

और सुनिए कि इस बहाने हमने किन सिरो को छू लिया....

उत्तरप्रदेश के एक गाँव में ये बातचीत कर रही हैं बीबीसी हिंदी सेवा की प्रमुख अचला शर्मा. कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा.

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आँगन के पार: 11वीं कड़ी

आँगन के पार के इस कार्यक्रम में चर्चा महिलाओं की प्रजनन संबंधी समस्याओं की और उसमें गर्भ निरोधक साधनों की भूमिका की.

आख़िर गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल की ज़िम्मेदारी अमूमन महिलाओं की क्यों मानी जाती है.

चर्चा में भाग ले रहे हैं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यानी यूएनएफ़पीए के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. दिनेश अग्रवाल, जानीं-मानीं स्त्री रोग विशेषज्ञ मंजू पुरी और उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से आई एक दाई झम्मन देवी.

कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं अनुराधा प्रीतम.

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आँगन के पार: दसवीं कड़ी

आँगन के पार की दसवीं कड़ी मे चर्चा क़ानून और महिलाओ की. जानेंगे कि क्या महिलाओ के अधिकारों की रक्षा के लिए बने ये क़ानून उन्हें सशक्त बनाते हैं.

दहेज विरोधी क़ानून बने दशकों बीत गए फिर भी आज तक ये एक समस्या है. आख़िर कौन सी कड़ी कमज़ोर रह गई है.

चर्चा में भाग ले रही है वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कवंलजीत देओल, जानीं-मानीं वकील कीर्ति सिंह और दहेज विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज करने वाली चंद पहले लोगों में से एक सत्य रानी चड्ढा.

प्रस्तुत कर रही हैं अनुराधा प्रीतम.

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आँगन के पार: नौवीं कड़ी

आंगन के पार कार्यक्रम की नौवीं कड़ी में चर्चा विश्व एडस दिवस पर इस समस्या की. भारत मे बावन लाख लोग एचआईवी/एड्स के साथ जी रहे है.

आंगन के पार की इस कड़ी में चर्चा एड्स पर

ये संख्या बढती जा रही है.सरकार ने अपने लिए ये लक्ष्य रखा है कि 2007 तक वो इस बढती संख्या पर पूरी तरह काबू पा लेगी.

लेकिन आज भी जो लोग इस बिमारी के साथ जी रहे है उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है समाज मे बेझिझक अपनी स्थिती के बारे में बात करने की.

आज भी उन्हे भेद भाव का शिकार होना पड़ रहा है. विश्व एडस दिवस के लिए तैयार दो विशेष कार्यक्रमो की दूसरी और अंतिम कड़ी आपके सामने प्रस्तुत है.

चर्चा मे भाग ले रहे एक एचआईवी पॉजिटिव दंपति और राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल संस्थान की महानिदेशक सुजाता राव

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आँगन के पार: आठवीं कड़ी

आंगन के पार की आठवीं कड़ी में चर्चा विश्व एडस दिवस के बहाने इस भंयकर समस्या की.

कार्यक्रम में चर्चा हुई एचआईवी एड्स की

आंगन के पार की यह कड़ी ख़ास है क्योंकि पहली दिसंबर यानी विश्व एड्स दिवस के लिए हमने दो विशेष कार्यक्रम तैयार किए है और ये कड़ी उन कार्यक्रमो का पहला अंक है.

इसमे चर्चा हो रही है किस तरह यौनकर्मी और किन्नर समुदायों के लिए एच आई वी एड्स एक बड़ी चुनौती है.

चर्चा मे हिस्सा ले रही है यौनकर्मी ज़रीना बेगम, किन्नर समुदाय का प्रतिनिधित्तव कर रही है लक्ष्मी जो अपने समुदाय के अधिकारो के लिए लंबे समय से काम कर रही है.

इस क्षेत्र मे सरकार के कई प्रमुख नीति निर्धारित करने वाली एजेंसियो के साथ काम कर रहे जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता ड़ा सरजित जना ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. प्रस्तुत कर रही है रूपा झा

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आँगन के पार: सातवीं कड़ी

भारतीय गाँव
क्या रोज़गार के अवसर दिला पाएगा यह क़ानून?

आंगन के पार की सातवीं कड़ी में चर्चा ग्रामीण इलाकों मे रोजगार के नए अवसर पैदा करने का दावा करते राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी क़ानून की.

इस क़ानून को इस साल फ़रवरी में 200 जिलों में लागू किया गया.

इस क़ानून को सरकार ने ऐतिहासिक बताया है.

पर क्या इस क़ानून ने गाँवों देहातों मे लोगों को रोजगार दिया?

महिलाओ के लिए इस क़ानून में क्या विशेष प्रावधान है और लोगो को इसके बारे मे कितनी जानकारी है?

चर्चा में भाग ले रहे हैं केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता शंकर सिंह और शामिल है ग्रामीण लोगों की राय भी.

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आँगन के पार: छठी कड़ी

आँगन के पार
जया जेटली और अन्य लोगों ने हिस्सा लिया बहस में

कला यूँ तो हमारी जिदगी के हर लम्हे मे शामिल है. लेकिन क्या ये केवल मनोरंजन का साधन है या फिर ये समुदायों को और खासकर औरतों को सशक्त भी करती है.

इन सवालो पर एक दिलचस्प बातचीत हो रही है आंगन के पार की इस कड़ी में.

चर्चा मे भाग लिया है राजनीतिज्ञ और बरसो से हस्तकला कारीगरो के लिए काम कर रही संस्था दस्तकारी हाट समिति की अध्यक्षा जया जेटली, जानी मानी लोक संगीत गायिका पदमश्री शारदा सिन्हा और रंगमंच से जुड़े नाट्य निर्देशक परेवज अख्तर ने.

प्रस्तुत कर रही हैं रूपा झा...

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आँगन के पार: पाँचवीं कड़ी

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महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

आँगन के पार की पाँचवीं कड़ी में चर्चा घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ बने क़ानून की. महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाएँ बदलते समय के साथ कम नहीं हो रही है.

भारत सरकार के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ घरेलू हिंसा का शिकार हैं.

लेकिन पिछले 25 अक्तूबर 2006 से घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ बने क़ानून को लागू कर दिया गया है लेकिन क्या इससे तस्वीर बदलेगी. क्या गाँव-देहातों में रहने वाली महिलाएँ इस क़ानून की मदद लेने की हिम्मत जुटा पाएँगी.

इतने सारे क़ानून जो पहले से ही मौजूद हैं उसकी फ़ेहरिस्त मे जुड़ा एक और क़ानून क्या उम्मीद लेकर आया है. इस चर्चा मे भाग लिया है राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा गिरिजा व्यास और सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन ने.

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आँगन के पार: चौथी कड़ी

गुड़िया
कार्यक्रम में गया ज़िले की 14 वर्षीय गुड़िया ने हिस्सा लिया

आँगन के पार की चौथी कड़ी मे चर्चा महिला शिक्षा पर. यूँ तो भारतीय संविधान के अनुसार 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान है लेकिन क्या इस प्रावधान से शिक्षा की स्थिति कुछ बेहतर हुई है?

आँकड़ों की बात करें तो भारत में केवल 40 प्रतिशत महिलाएँ साक्षर हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि महिला शिक्षा की पायदान में सबसे निचले स्तर पर हैं.

इसी विषय पर चर्चा हो रही है इस कड़ी में और ये पड़ताल की कोशिश है कि इतनी मुश्किलों के बावजूद कौन हैं जो अपनी हिम्मत पर आगे बढ रही है.

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आँगन के पार: तीसरी कड़ी

केंद्रीय मंत्री रेणुका चौधरी भी कार्यक्रम में शामिल हुईं

भारत सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक़ पूरे भारत में पचास से ज़्यादा प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से कम में हो जाती है.

बिहार-झारखंड में ये 71 प्रतिशत है. 21वीं सदी का एक कड़वा सच ये है कि आज भी बाल विवाह जारी है.

तीसरी कड़ी में हम चर्चा कर रहे हैं कम उम्र में लडकियों की शादी और उससे उनके मानसिक और शारीरिक प्रभाव की.

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आँगन के पार: दूसरी कड़ी

मणिशंकर अय्यर
केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

भारतीय संविधान में स्थानीय प्रशासन मे एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है. कितनी भागीदारी हो रही है महिलाओ की पंचायती राज में.

सरकारी आँकड़ो के अनुसार लगभग नौ लाख महिलाएँ आज पंचायती राज की अलग-अलग पायदान पर खड़ी होकर अपनी भागीदारी निभा रही हैं.

इसी सवाल पर आँगन के पार की दूसरी कड़ी में दो वैसी महिलाओं को आंमत्रित किया गया जो बिहार की सीतामढ़ी और मधुबनी ज़िले से हैं.

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आँगन के पार: पहली कड़ी

रूपा झा और शांति
कार्यक्रम की प्रस्तुति कर रही हैं रूपा झा

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ट्रस्ट और बीबीसी हिंदी की साझा प्रस्तुति है आँगन के पार.

एक कार्यक्रम जिसमें ख़ास तौर पर ग्रामीण महिलाओं के सरोकारों, उनके स्वास्थ्य, उनके सशक्तिकरण और एचआईवी-एड्स पर चर्चा होती है.

इस कार्यक्रम को गढ़ने की ज़िम्मेदारी उठाई है बारह वैसी महिलाओ ने जो पेशेवर पत्रकार तो नहीं हैं लेकिन आपके आसपास जो ज़िंदगी बसर होती है उसके ताने-बाने को वे बखूबी समझती हैं.

कार्यक्रम के संपादन और प्रस्तुतिकरण रूपा झा कर रही हैं. हर शुक्रवार को बीबीसी हिंदी और आकाशवाणी के 22 चैनलो पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम की पहली कड़ी मे चर्चा हो रही है एचआईवी-एड्स की.

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महिलाएँआँगन के पार: भाग-5
आँगन के पार की पाँचवीं कड़ी में चर्चा हुई घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ बने क़ानून पर.
 
 
गुड़ियाआँगन के पार: भाग-4
आँगन के पार की चौथी कड़ी में चर्चा हो रही है महिला शिक्षा पर.
 
 
 रेणुका चौधरी के साथ रूपा झाआँगन के पार
आँगन के पार की दूसरी-तीसरी कड़ी में स्वशासन और बाल विवाह पर चर्चा.
 
 
रूपा झा और शांतिआंगन के पार
महिलाओं के सरोकारों पर बीबीसी ट्रस्ट और बीबीसी हिंदी की साझा पेशकश.
 
 
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