शुक्रवार, 13 अक्तूबर, 2006 को 12:02 GMT तक के समाचार
सलीम रिज़वी
न्यूयॉर्क से
न्यूयॉर्क के इलाके में रहने वाले दक्षिण एशियाई मूल के लोग आजकल एक फ़िल्म समारोह का आनंद ले रहे हैं जिसमें दक्षिण एशियाई मूल के कलाकारों और फिल्मकारों की फिल्में दिखाई जा रही हैं.
इस फिल्म समारोह में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल सभी देशों की फिल्में शामिल हैं.
पाँच दिन चलने वाले इस फ़िल्म समारोह में 50 से ज़्यादा फ़ीचर फिल्में, शार्ट फ़िल्में, वृतचित्र शामिल हैं. फ़िल्में अंग्रेज़ी, बंगाली, हिंदी, नेपाली, तमिल और उर्दू में हैं लेकिन अंग्रेज़ी के सबटाइटल्स के साथ.
मैनहटन के कई थिएटरों में दिखाई जाने वाली इन नायाब फ़िल्मों को देखने के लिए दक्षिण एशियाई मूल के लोग ही नहीं बहुत से दूसरे देशों के लोग भी उमड़ रहे हैं.
गुजराती मूल के अमरीकी शीलेन अमीन इस समारोह के मुख्य आयोजक हैं.
वे कहते हैं, “मैंने देखा कि दक्षिण एशियाई मूल के अच्छे फ़िल्मकारों को अपनी फ़िल्में दिखाने और बाज़ार में उतारने का कोई ऐसा माध्यम नहीं था जहाँ उनको आसानी से सब कुछ एक ही जगह मिल जाए. इस समारोह के ज़रिए फ़िल्मकारों को अपना काम दिखाने का मौका मिल जाता है और फ़िल्मों के शौकीनों को एक ही जगह अपने इलाक़े की बेहतरीन और विविध प्रकार की फ़िल्मो का मज़ा भी मिल जाता है.”
वे कहते हैं कि इस तरह से सभी को फायदा हो जाता है और जो नए फ़िल्मकार हैं उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है.
इस फ़िल्म समारोह में वो फ़िल्में दिखाई जा रही हैं जिनके निर्देशक या प्रमुख अभिनेता दक्षिण एशियाई मूल के है और इनमें से बहुत से ऐसे हैं जो अपनी पहली फ़िल्म लेकर आए हैं. इनमें से ज़्यादातर फ़िल्मों की कहानी भी दुनिया भर में फैले दक्षिण एशियाई मूल के लोगों पर ही आधारित है.
चयन
फ़िल्मों के चुनाव के बारे में अमीन कहते हैं, “तीन-तीन लोगों की समिति हर देश की फ़िल्मों पर नज़र रखती है. जब फ़िल्में सम्मिलित की जाती हैं तो उनका गहन अध्ययन होता है. जिससे यह तय किया जाए कि उसको दर्शक पसंद करेंगे या नहीं, फ़िल्म में दक्षिण एशिया की संस्कृति को बुरे तरीके से तो नहीं दिखाया गया है, कहानी का कुछ सिर-पैर है कि नहीं, और समारोह में दिखाने के काबिल फ़िल्म है कि नहीं. इतनी जांच के बाद किसी फ़िल्म को शामिल किया जाता है. ”
जिन फ़िल्मों का लोगों को बेसब्री से इंतज़ार है उनमें तनुजा चंद्रा की फ़िल्म 'होप ऐंड अ लिटिल शुगर.' इस फिल्म में अनुपम खेर और महिमा चौधरी ने मुख्य भूमिका निभाई है.
इस फ़िल्म में न्यूयॉर्क में 11 सितंबर के हमलों के बाद उपजे तनावपूर्ण माहौल का ऐसा चित्रण किया गया है जिसमें धर्म और नस्ल के आधार पर घृणा और द्वेष करने वाले लोगों और उनके हालात को दिखाया गया है.
'क्वार्टर लाइफ़ क्राइसिस' नाम की फ़िल्म में लीज़ा रे ने काम किया है और वह भी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र है. इस फ़िल्म में न्यूयॉर्क में गैर शादीशुदा लड़के- लड़कियों की डेटिंग करने के तरीकों पर दिलचस्प कहानी बुनी गई है.
इसके निर्देशक किरण मर्चेंट कहते हैं, “मैंने यह फ़िल्म ऐसा मुद्दा लेकर बनाई है जिसका सामना पश्चिम में रहने वाला हर नौजवान अपनी ज़िंदगी में कम से कम एक बार तो ज़रूर करता है.”
इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार मौलिक पंचोली कहते हैं, “मुझे इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान बड़ा मज़ा आया. और लीज़ा रे तो बहुत कमाल की हैं और बहुत मज़ाकिया भी हैं. फ़िल्म का मुद्दा भी ऐसा है कि हम सभी को लगता है कि हाँ यह तो हमारे साथ भी हुआ था.”
अन्य फिल्में जिनकी चर्चा हो रही है उनमें भारत की रॉकिंग मीरा, वीडोज़ कॉलोनी और पाकिस्तान की बोतल गली, 7.6 भी शामिल हैं.
इस फ़िल्म समारोह में पूरी दुनिया में फैली दक्षिण एशियाई मूल की बिरादरी के जीवन के अलग-अलग पहलुओं और विदेशों में रहते हुए जो मुश्किलें सामने आती हैं उनका चित्रण अधिकतर फिल्मों का मुख्य मुद्दा है.