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किरण देसाई को बुकर पुरस्कार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारतीय मूल की लेखिका किरण देसाई को उनके उपन्यास 'द इनहैरिटेंस ऑफ़ लॉस' के लिए बुकर पुरस्कार दिया गया है. वो यह पुरस्कार जीतनेवाली सबसे युवा महिला है. पैंतीस वर्षीय किरण देसाई का उपन्यास कैम्ब्रिज में पढ़े हुए एक अवकाशप्राप्त न्यायाधीश के जीवन पर आधारित है और यह न्यूयॉर्क और पूर्वोत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है. किरण जानी-मानी लेखिका अनीता देसाई की बेटी हैं. उनकी माँ तीन बार बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित की गईं लेकिन एक भी बार यह पुरस्कार नहीं जीत पाईं. उनका यह दूसरा उपन्यास है और उन्होंने इसे अपनी माँ को ही समर्पित किया है. पुरस्कार जीतने के बाद किरण देसाई ने कहा, '' मेरे ऊपर मेरी माँ का एक कर्ज़ था. इस किताब में मेरे अलावा उन्हें भी महसूस किया जा सकता है.'' उनका कहना था,'' मैंने यह उपन्यास उनके सानिध्य और मार्गदर्शन में लिखा है.'' 'शानदार उपन्यास' निर्णायक समिति के अध्यक्ष हर्मियन ली का कहना था,'' यह शानदार उपन्यास है और काफ़ी लंबी चर्चा के बाद चुना गया है.''
उनका कहना था कि इसके चयन में कोई समझौता नहीं किया गया और उनकी माँ को उनपर गर्व होगा. हर्मियन ली का कहना था कि जिन लोगों ने अनीता देसाई को पढ़ा है, उन्हें यह बात स्पष्ट होगी कि किरण ने अपनी माँ से काफ़ी सीखा है. यह पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है और इसके तहत उन्हें 50 हजार पाउंड यानी तक़रीबन 40 लाख रूपए की राशि मिलेगी. किरण देसाई के अलावा इस पुरस्कार के लिए सारा वॉटर्स, केट ग्रेनविले, एमजे हेलैंड, हिशम मातर और एडवर्ड अयुबन भी नामांकित किए गए थे. किरण देसाई ने भारत, ब्रिटेन और अमरीका में शिक्षा प्राप्त की है और उन्हें यह उपन्यास लिखने में आठ साल लगे. ग़ौरतलब है कि भारत की लेखिका अरूंधती रॉय के उपन्यास "द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स" को 1997 में बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अरुंधति रॉय ने 36 वर्ष की उम्र में यह पुरस्कार जीता था और अब तक वह यह सम्मान पानेवाली सबसे कम उम्र की महिला थीं. | इससे जुड़ी ख़बरें सलमान रुश्दी बुकर की दौड़ से बाहर09 सितंबर, 2005 | पत्रिका कादरे को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार03 जून, 2005 | पत्रिका समलैंगिकों की कहानी को बुकर पुरस्कार20 अक्तूबर, 2004 | पत्रिका 'किताबें कुछ कहना चाहती हैं'29 जनवरी, 2006 | पत्रिका मूढ़ी बेचकर साहित्य साधना24 जून, 2005 | पत्रिका मारकेज़ के उपन्यास की जाली प्रतियाँ20 अक्तूबर, 2004 | पत्रिका सराहा जा रहा है सरहद पार का साहित्य25 अगस्त, 2004 | पत्रिका | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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