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ओथेलो या ओंकारा मानव भाव समान | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
किसी व्यक्ति के मन में उपजा संदेह बहुधा उसके पतन का कारण बनता है और फिर उसके पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता. मानव मन की इसी भावना को अभिव्यक्त करती है फ़िल्म ओंकारा. ये फ़िल्म शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक ओथेलो पर आधारित है लेकिन फ़िल्म के शुरूआती दृश्यो में ही आभास हो जाता है कि निर्देशक ने चरित्रो को भारतीय परिवेश में गढ़ने के लिए कड़ी मेहनत की है. फ़िल्म के संगीतकार विशाल भारद्वाज ने निर्देशन और पटकथा लेखन के साथ-साथ फ़िल्म के संवाद भी लिखे है और हर एक विधा में उन्होंने प्रशंसनीय काम किया है. फ़िल्म की कहानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक कस्बे से शुरू होती है जहाँ बाहुबलियो को क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित करते दिखाया गया है. अभी तक बाहुबलियो या माफ़िया गिरोहो पर आधारित फ़िल्मों में उनका आपराधिक जीवन प्रमुख होता था और निजी जीवन पर्दे के पीछे लेकिन ओंकारा में अपराधियों के निजी जीवन को प्रधानता दी गई है. फ़िल्म की कहानी ओंकारा उर्फ़ ओमी (अजय देवगन) पर केन्द्रित है जिन्होंने स्थानीय बाहुबली नेता का किरदार निभाया है. ओमी के दो साथी है लँगड़ा त्यागी (सैफ़ अली ख़ान) केशु फ़िरंगी (विवेक ओबेराय). ओमी शहर के एक वकील की बेटी डॉली (करीना कपूर) से प्यार करता है और उसकी शादी होने से पहले ज़बरदस्ती अपने गाँव ले आता है.लेकिन किसी कारणवश दोनो की शादी कुछ दिनो के लिए टल जाती है. इसी बीच ओमी के उत्तराधिकारी के रूप में सबकी अपेक्षाओ के विपरीत केशु फ़िरंगी को चुना जाता है और यहीं से लँगड़ा त्यागी के मन में द्वेष उत्पन्न होता है. इसका बदला लेने के लिए लँगड़ा त्यागी,ओमी के मन में केशु और डॉली के रिश्ते को लेकर शक़ की दीवार खड़ी करना शुरू करता है और यहीं से फ़िल्म की कहानी एक नया मोड़ लेती है.
फ़िल्म की जान सभी कलाकारो का सशक्त अभिनय और बेहतरीन संवाद अदायगी है.फ़िल्म में गालियो का भी भरपूर प्रयोग किया गया है लेकिन इनका भी ग्रामीण परिवेश के साथ सशक्त संबंध दर्शाया गया है. सैफ़ अली ख़ान अपने नए रूप में जमे है.फ़िल्म में उनका चरित्र कुटिल है और अपने हिस्से में आए संवादो से उन्होनें दर्शको की तालियां बटोरी है. अजय देवगन ने एक बाहुबली प्रेमी के रूप में प्रभावशाली अभिनय किया है. एक बाहुबली के स्वभाव की कठोरता और प्रेमी के मन की सरलता ,अपने चरित्र के दोनो पक्षो को उन्होनें बिना परेशानी के दर्शको के सामने रखा है. अपनी प्रेमिका के चरित्र को लेकर मन में चल रहे द्वंद को अपने अभिनय कौशल से वो बख़ूबी दर्शाते है. करीना कपूर फ़िल्म में बिना मेकअप के सुंदर लगी है.ओमी के मन में उठे संदेह को दूर ना कर पाने औऱ रिश्तो में खटास आने पर मन की छटपटाहट उनके चेहरे के भावो पर दिखाई देती है. कोंकणा सेन शर्मा फ़िल्म में लँगड़ा त्यागी की पत्नी बनी है.”एखे” औऱ “हँसी बहुत मँहगी हो रखी है इस दुनिया में ” जैसे संवादो के साथ उन्होनें सहजता से अपने किरदार को निभाया है. बिपाशा बासु के हिस्से में कम ही दृश्य आए है लेकिन उनका किरदार भी महत्वपूर्ण है. फ़िल्म का संगीत विशाल भारद्वाज ने दिया है और गीत गुलज़ार ने लिखे है. इससे पहले भी दोनो ने “माचिस” और “मक़बूल” में साथ काम किया है. सादे और आम बोलचाल के शब्दो के प्रयोग से ही रचे गए फ़िल्म के गाने लोकप्रिय हो रहे है. जिसकी बानगी है. "सबसे बड़े लड़ैया रे,” और “जिगर मा बड़ी आग है”.. विशाल भारद्वाज ने इससे पहले भी शेक्सपियर की प्रसिद्ध रचना मैक़बेथ पर आधारित एक फ़िल्म मक़बूल बनाकर अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया था. ओंकारा सशक्त फ़िल्मो की उसी कड़ी का अगला हिस्सा साबित हो रही है. नई पीढ़ी के ऊर्जावान, उत्साही और कल्पनाशील निर्देशको की पंक्ति में विशाल भारद्वाज को खड़ा करने की क्षमता निश्चित रूप से इस फ़िल्म में हैं. |
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