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शनिवार, 24 जून, 2006 को 14:48 GMT तक के समाचार
 
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असग़र वजाहत लंदन में सम्मानित
 

 
 
असग़र वजाहत लंदन में सम्मानित
असग़र को उनके उपन्यास 'कैसी आगी लगाई' के लिए सम्मानित किया गया
किशोर मन ऐसी अवस्था होती है जब उसमें बहुत से सपने जागते हैं, बहुत से वैचारिक द्वंद होते हैं और तड़प होती है मनपसंद राह पाने की.

किसी छोटे क़स्बे के कॉलेज में शिक्षा पाने वाले युवाओं में ललक होती है वो रास्ता पाने की जो उन्हें रोज़गार देने में मदद कर सके लेकिन किसी बड़े शहर के नामी विश्वविद्यालय में इस ललक के साथ कुछ वैचारिक प्रतिबद्धताएँ भी जुड़ जाती हैं.

इस वैचारिक कशमकश में कोई अपनी राह पा लेता है और कोई अपने रास्ते पर पीछे की ओर लौट जाता है. उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो इस लौटने को अपनी हार मानने के लिए तैयार नहीं होते.

विचारों, सिद्धांतों और वास्तविकता की इसी कशमकश को डॉक्टर असग़र वजाहत ने अपने उपन्यास कैसी आगी लगाई में दिखाने की कोशिश की है.

इस उपन्यास को ब्रिटेन में हर साल दिए जाने वाले इंदु शर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार 'कथा यूके' संस्था देती है.

इंदु शर्मा पुरस्कार समारोह के आयोजक तेजेंदर शर्मा से हमने पूछा कि उन्होंने इस उपन्यास में क्या ख़ासियत पाई जो इस पुरस्कार के लिए चुना तो उनका कहना था कि असग़र वजाहत ने बिना लाग-लपेट के हकीक़त बयान करने की कोशिश की है.

तेजेंद्र शर्मा कहते हैं, "कैसी आगी लगाई उपन्यास में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि के बहाने से वामपंथ के बारे में सवाल उठाए गए हैं कि क्या यह विचारधारा सिर्फ़ आयातित है या फिर इसे अपने देशकाल के अनुरूप ढालकर इसके फायदे उठाए जा सकते हैं."

सवाल ये उठता है कि क्या वामपंथी विचारधारा बिल्कुल अप्रासंगिक हो चुकी है या आदमी के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करने और विचारों-सिद्धांतों के साथ जीवन जीने में यह कुछ मदद कर सकती है.

टेढ़े सवाल-जवाब
 यह उपन्यास बहुत व्यापक और किसी हद तक फैली हुई ज़िंदगी के बारे में है. यह ज़िंदगी छात्र जीवन से शुरू होकर छात्र राजनीति और संघर्ष के रास्ते होते हुए धीरे-धीरे एक 'प्रोफ़ेशनल' लाइफ़ में बदल जाती है. इस छात्र जीवन के बहाने 1964 से लेकर 1975 के दौरान भारतीय राजनीति में युवाओं और छात्रों की भूमिका को यह उपन्यास सामने लाता है.
 
असग़र वजाहत

हमने डॉक्टर असग़र वजाहत से यही जानना चाहा कि अलीगढ़ की पृष्ठभूमि पर लिखे गए गए उपन्यास में उन्होंने क्या क्या सवाल उठाए हैं तो उनका कहना था, "यह उपन्यास बहुत व्यापक और किसी हद तक फैली हुई ज़िंदगी के बारे में है. यह ज़िंदगी छात्र जीवन से शुरू होकर छात्र राजनीति और संघर्ष के रास्ते होते हुए धीरे-धीरे एक 'प्रोफ़ेशनल' लाइफ़ में बदल जाती है."

"इस छात्र जीवन के बहाने 1964 से लेकर 1975 के दौरान भारतीय राजनीति में युवाओं और छात्रों की भूमिका को यह उपन्यास सामने लाता है."

डॉक्टर असग़र वजाहत कहते हैं, "हमारे भारतीय समाज में जो समस्याएँ और जटिलताएँ हैं, पूरा बुद्धिजीवी वर्ग उनका हल निकालने की जद्दोजहद में लगा हुआ है. हमें उन सवालों के जवाब चाहिए और सवालों के जवाब कोई बंधे-टके नहीं हैं."

कशमकश

युवाओं और छात्रों में वैचारिक कशमकश और अपने उसूलों पर टिके रहकर कोई सही राह पाने की जद्दोजहद से उपजे सवालों के जवाब क्या यह उपन्यास दे पाता है, उपन्यास के मुख्य पात्र साजिद को क्या कोई राह मिल पाती है?

कथा यूके के तेजेंद्र शर्मा
तेजेंद्र शर्मा का ख़याल है कि असग़र वजाहत ने बिना लाग-लपेट के अपनी बात कही है.

पूछने पर डॉक्टर असग़र वजाहत कहते हैं, "इसका जवाब शायद इस उपन्यास बाक़ी दो हिस्सों में मिल सके. हालाँकि उनका यह भी कहना है कि अक्सर यह भी होता है कि आदमी राह चलता रहता है मगर मंज़िल मिलती है या नहीं, यह किसी को नहीं पता, लेकिन कोशिश तो जारी रहती है."

डॉक्टर असग़र वजाहत दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया (विश्वविद्यालय) में मास कन्यूनिकेशन रिसर्च सेंटर में प्रोफ़ेसर इंचार्ज हैं. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से डी लिट भी की.

असग़र वजाहत टेलीविज़न और फ़िल्मों के लिए भी लेखन करते रहे हैं और उनके कई कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक प्रकाशित हो चुके हैं.

असग़र वजाहत के नाटक 'जिस लहौर नी वेख्या' ने पिछले पंद्रह बरसों से कई देशों में धूम मचाई है. इस नाटक के अब तक देश-विदेश में एक हज़ार से अधिक प्रदर्शन हो चुके हैं.

पदमानंद साहित्य पुरस्कार

कथा यूके ने फ़िल्म स्क्रिप्ट लेखन, फ़िल्मी गीत लेखन और फ़िल्मों से जुड़ी अन्य विधाओं को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की हिमायत की है.

गोविंद शर्मा पुरस्कार लेते हुए
गोविंद शर्मा पटकथा लेखन में सक्रिय हैं

इसी विचारधारा के अंतर्गत वर्ष 2006 के लिए पदमानंद साहित्य सम्मान गोविंद शर्मा को उनकी पुस्तक 'हिंदी सिनेमा - पटकथा लेखन' के लिए दिया गया है.

गोविंद शर्मा ने लेखन की शुरुआत भारतीय सेना में रहते हुए एक नाटक से की और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

1990 के दशक में टेलीविज़न से जुड़े और बीपीएल -एक से बढ़ कर एक, माल है तो ताल है, गड़ बड़ जैसे धारावाहिक लिखे.

उन्होंने फ़िल्मों की पटकथाएँ भी लिखी हैं. यही किताब वह अंग्रेज़ी में भी लिख रहे हैं.

इससे पहले इंग्लैंण्ड के हिंदी लेखकों डॉक्टर सत्येंद्र श्रीवास्तव, दिव्या माथुर, नरेश भारतीय, भारतेंदु विमल, अचला शर्मा और ऊषा राजे सक्सेना को पदमानंद साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

 
 
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