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ईसाई देख रहे हैं 'दा विंची कोड' | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विवादित और चर्चित हॉलीवुड फ़िल्म 'दा विंची कोड' केरल में धड़ल्ले से चल रही है और वह भी मलयालम भाषा में. भारत के क़रीब आधा दर्जन राज्यों में इस फ़िल्म के प्रदर्शन पर पाबंदी लगी है. पाबंदी लगाने वाले राज्यों की सरकारें कहती हैं कि इस फ़िल्म से ईसाइयों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती है. इनमें से ज़्यादातर राज्यों में ईसाइयों की जनसंख्या का प्रतिशत दहाई तक भी नहीं पहुँचता है जबकि केरल में ईसाइयों की तादाद लगभग 30 प्रतिशत है और इस आबादी को इस फ़िल्म से कोई आपत्ति नहीं है. इसे फ़िल्म के निर्माता और भारत में इसके वितरक पहले ही भाँप चुके थे और इसीलिए चेन्नई की अनुरोशनी फ़िल्म्स ने इसे मलयालम में डब करके केरल में रिलीज़ किया. अनुरोशनी फ़िल्म्स के साथ हाथ मिलाने वाले केरल के प्रमुख प्रकाशन डीसी बुक्स के मालिक रवि कहते हैं, "मैं ख़ुद भी ईसाई हूँ और मुझे नहीं लगता कि यहाँ इस फ़िल्म या उपन्यास पर कोई विवाद है." डीसी बुक्स ने 'दा विंची कोड' उपन्यास भी मलयालम में अनुवाद करके बाज़ार में उतारा है और प्रकाशक की मानें तो केवल दो हफ़्ते में ही उपन्यास की 15 हज़ार से ज़्यादा प्रतियाँ बिक चुकी हैं. सवाल सवाल यह उठता है कि जिस मुद्दे को लेकर वैटिकन से वारंगल तक बवाल मचा, वह केरल के ईसाइयों को क्यों नहीं उकसा रहा है. इस सवाल के जवाब में कोट्टयम स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ क्रिश्चियन स्टडीज़ के निदेशक और धार्मिक विषयों पर लिखने वाले जोसेफ़ पुलिकुनेल कहते हैं, "केरल का ईसाई मानता है कि डैन ब्राउन या किसी लेखक के कुछ भी लिख देने भर से ही ईसा के चरित्र, सम्मान, स्थान और ईश्वरीय स्वरूप पर कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है. अगर कोई मानता है कि एक उपन्यास या फ़िल्म से ईसा के चरित्र पर धब्बा लग गया तो ऐसा मानने वालों का ईसा पर विश्वास बहुत कमज़ोर है." प्रकाशक रवि कहते हैं कि फ़िल्म में ईसा से ज़्यादा रोमन कैथोलिक चर्च का चित्रण विवाद का विषय हो सकता था. केरल के प्रमुख अख़बार मलयाला मनोरमा के तिरुअनंतपुरम स्थित संपादक मारकोस अब्राहम कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि किसी को भी ऐतराज़ नहीं हो, थोड़े बहुत विरोध के स्वर उठे हैं पर उनके साथ कोई बड़ा समर्थन नहीं दिखता." उन्होंने बताया, "हालाँकि केरल का ईसाई धर्म में पूरी आस्था रखता है पर वह सांप्रदायिक कहलाने से बचना चाहता है." इस वजह से भी केरल में इस फ़िल्म के विरोध के स्वर मुखर नहीं हो पा रहे हैं. वोट की ओट नहीं केरल में ईसाइयों के प्रतिनिधि यह भी मानते हैं कि ईसाइयों के अल्पसंख्यक होने का राजनीतिक इस्तेमाल भी इस फ़िल्म पर पाबंदी की एक और वजह है.
जोसेफ़ बताते हैं, "भारत के कई राज्यों में ईसाई वोटबैंक बन गए हैं पर केरल में ऐसा नहीं है. यहाँ लोग किसी भी पार्टी या नेता के साथ नहीं रहते. इसके अलावा केरल में लोग धार्मिक नेतृत्व यानी चर्च और बिशप के पीछे आँखें मूंद कर नहीं चलते." पत्रकार रोमी मैथ्यू कहते हैं, "पश्चिमी देशों में लोग इस फ़िल्म को देख रहे हैं, इस उपन्यास को पढ़ रहे हैं क्योंकि वे ईसा को इंसान के रूप में भी देखना चाहते हैं. इससे ईसा में उनका विश्वास और मज़बूत ही होगा. केरल में भी ऐसा ही है क्योंकि यहाँ का ईसाई धर्मांध नहीं, पढ़ा-लिखा और प्रगतिशील है." इन तमाम वजहों से केरल में 'दा विंची कोड' की धूम है. फिलहाल यह फ़िल्म राज्य के अलग-अलग शहरों के 10 सिनेमाघरों में चल रही है. इस शुक्रवार कई और सिनेमाघरों में भी यह फ़िल्म पहुँच जाएगी क्योंकि केरल में लोग इसे धर्म से जोड़कर नहीं, एक फ़िल्म के तौर पर देख रहे हैं. | इससे जुड़ी ख़बरें पाकिस्तान में दा विंची कोड पर रोक04 जून, 2006 | मनोरंजन दा विंची कोड पर तमिलनाड़ु में भी रोक01 जून, 2006 | मनोरंजन विरोध के बीच 'फ़ना' और 'विंची कोड' रिलीज़26 मई, 2006 | मनोरंजन पंजाब में 'दा विंची कोड' पर रोक25 मई, 2006 | मनोरंजन 'केवल वयस्को के लिए' दा विंची कोड 18 मई, 2006 | मनोरंजन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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