सोमवार, 01 मई, 2006 को 14:31 GMT तक के समाचार
उर्मिला शेखावत
बीबीसी संवाददाता, लंदन
'हवा-हवाई गर्ल' कविता कृष्णमूर्ति उस आवाज़ का नाम है, जो काली घटाओं में कौंधती बिजली की लकीर जैसी अपनी पहचान का अहसास बरबस करवा देती है.
पिछले दिनों जब वह बीबीसी के स्टूडियो में पहुंची, तो उनके चेहरे से ही पता लग रहा था कि लंदन की सर्दी का पहला वार वे झेल चुकी हैं, लेकिन शिकायत का नामोनिशान नहीं. अपने उसी सुरीले अंदाज़ में, बड़े उत्साह के साथ उन्होंने हमारे सवालों के जवाब दिये. प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
दक्षिण भारतीय पृष्टभूमि के साथ आपने विज्ञापनों से शुरुआत की औऱ उसके बाद फिल्मों में पार्श्व गायन में अपने लिये अहम मुकाम बनाया, कैसा रहा आपका ये सफर?
मैं दक्षिण भारत की ज़रूर हूं लेकिन मेरी परवरिश दिल्ली में हुई, जहां मैने हिंदुस्तानी संगीत के साथ रबींद्र भी संगीत सीखा. मुंबई में कॉलेज के दौरान मैं गाती थी, तो विज्ञापनों में मेरी आवाज़ ली जाने लगी औऱ फिर फिल्मों में पार्श्व गायन में आने लगी और शादी के बाद से कर्नाटक में हूँ इस तरह मेरा ये सफ़र सही मायने में हिंदुस्तानी रहा है.
हेमंत कुमार और मन्ना डे जैसे जाने माने महान कलाकारों के साथ स्टेज पर हुई शुरुआत के बाद सफलता की जिन ऊंचाइयों पर आज आप पहुंची हैं, उसके पीछे मेहनत ज़्यादा है या किस्मत?
मैं ये मानती हूँ कि प्रतिभा का होना ज़रूरी है लेकिन सर पर भगवान का हाथ होना सबसे ज़रूरी है. मैं जब स्कूल में पढ़ती थी तो भारतीय विदेश सेवा में जाना चाहती थी, क्योंकि इसी सेवा में देश-विदेश घूमने का ख़ूब मौक़ा मिलता है लेकिन मेरे जीवन की दिशा फिल्मों के पार्श्वगायन की तरफ मुड़ गई. शुरुआत में ही हेमंत दा के साथ और फिर मन्ना दा के साथ 18 साल दुनिया भर में घूमी औऱ संगीत कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, तब ऐसा लगा कि मेरी जिंदगी में संगीत का बहुत बड़ा मुकाम है. बाद में मुझे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ काम करने का मौका मिला. बहुत से और अच्छे लोग मिले. तो मुझे यही अहसास रहा कि हर मोड़ पर ईश्वर मेरे रास्ते प्रकाशित कर रहा है.
पार्श्वगायन के क्षेत्र में जब आपने क़दम रखा तो आपके सामने लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसै बड़े बड़े नाम थे. इस सदी की इन महान गायिकाओं के बराबर खड़े हो पाना आपके लिये चुनौती ज़्यादा थी या डर ज़्यादा लगा?
न डर लगा औऱ न चुनौती जैसी दिखी. मैं शुरू से ही काफी सहज लड़की थी. मुझे ऐसा लगता था जब मैं माइक के सामने गा रही होती हूं तो मेरे लिये वे पल बेहद खुशी के औऱ बेहद क़ीमती होते हैं , शोहरत की तरफ मेरा ज़्यादा ध्यान नहीं रहा. मैंने कभी य़े नहीं सोचा कि लता जी से या आशा जी से मुकाबला होगा, या टक्कर होगी. सच बताऊं तो ये सब बातें कभी मन में आई ही नहीं.
आपने हर तरह के गाने गाये, कुछ गाने तो खूबसूरत कविता औऱ ख़ूबसूरत संगीत की बेहतरीन मिसाल हैं, जैसे प्यार हुआ चुपके से, डोला रे डोला, तुम्हारी अदाओं पे मैं वारी वारी, वग़ैरह. दूसरी तरफ आपने मैं चीज़ बड़ी हूं मस्त मस्त, तो कैसा लगा आपको दो अलग अलग श्रेणी के गाने गाना?
मैने सबसे पहला शरारती गाना गाया था, मिस्टर इंडिया के लिये हवा-हवाई. जब वो गाना मार्केट में आया तो उसने मेरी पूरी शख़्सियत को बदल कर रख दिया मैं आदतन बहुत शर्मीली थी लेकिन हवा-हवाई के बाद मुझे उसी तरह के गाने मिलने लगे, जुम्मा चुम्मा वगैरह वगैरह, मुझे हैरानी होती थी कि इस तरह के गाने मेरे पल्ले कैसे पड़ गये जबकि मेरी छवि वैसी बिल्कुल नहीं है. शोहरत के नये क्षितिज दिखाये.
इन दिनों संगीत की दुनिया में रीमिक्स की धूम है. गानों में शब्द और भाव के साथ समझौता करना आसान है, बीट्स या झंकार के साथ नहीं, कैसा लगता है आपको ये चलन?
मैं ये कहूंगी कि हर चीज़ के दो पहलू होते है. रीमिक्स की अच्छी बात ये है कि पुराने लोकप्रिय गाने लिये जाते हैं यानि लोगों को समझ में आ रहा है कि ओल्ड इज़ गोल्ड. इस रीमिक्स में जिस तरह बेहतरीन संगीत को नया रूप दिया जाता है, नये प्रयोग किये जाते हैं वो भी लोगों को बहुत पसंद है, बुरी बात है रीमिक्स की वीडियोज़ को लेकर जिनमें इतना भौंडापन है, कि वो मेरे हिसाब से भारतीय संस्कारों के अनुरूप नहीं है, दूसरे, गाने को भी जब तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है मुझे बहुत बुरा लगता है.
डॉ एल. सु्ब्रमण्यम से आपकी शादी हुई और आपको जीवनसाथी के रूप में एक ऐसा कलाकार मिला, जो कि ख़ुद शास्त्रीय संगीतकार होने के साथ साथ पश्चिमी ऑर्केस्ट्रॉ कंपोज़ीशन औऱ फ्यूज़न के भी मास्टर हैं. क्या आपके भीतर के कलाकार को इससे कुछ मदद मिली या कुछ दिक़्क़तें पेश आईं?
दिक़्कतें तो बिल्कुल नहीं आईं बल्कि उन्होंने मेरा उत्साह ही बढ़ाया. मेरे संगीत का दायरा इतना बड़ा हो गया कि बौलिवुड के गानों से आगे बढ़कर आज मैं हर्बी हैनकॉक, स्टैनली क्लार्क, मोत्ज़ार्ट, बाख़ जाशा हाइफिड्स सभी को सुनती हूं. इन अंतरारष्ट्रीय संगीतकारों के प्रति मेरी आंखें खुलने वाली बात सिर्फ उनकी वजह से ही है.
इन दिनों आप ब्रिटन के कई शहरों में संगीत कार्यक्रम दे रही हैं, आपने लंदन सिंफनी ऑर्केस्ट्रा के साथ बौलिवुड के गाने गाए. फ्यूज़न का ये प्रयोग कैसा लगा आपको?
बहुत बढ़िया प्रयोग लगा. शुरू में मैं थोड़ी नर्वस ज़रूर थी लेकिन बाद में मुझे लगा कि ये प्रयोग तो अद्वितीय है.
क्या आपको लगता है कि भारत में फ्यूज़न का कोई भविष्य हो सकता है?
हो सकता है. क्योंकि मेरे हिसाब से भारत में अभी भी कुछ लोग शास्त्रीय संगीत से घबराते है, अगर हम अगली पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत की समझ देना चाहते हैं, तो फ्यूज़न माध्यम सबसे अच्छा है, जिसमें रागों के आधार पर संगीत बनाया जाता है, लेकिन वो संगीत युवापीढ़ी को ज़रूर पसंद आता है.