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शुक्रवार, 09 दिसंबर, 2005 को 23:59 GMT तक के समाचार
 
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दक्षिण एशियाई फ़िल्मों का मेला
 

 
 
सैफ़ और प्रीटि
महोत्सव के लिए कई फ़िल्म स्टार भी जुटे हैं
अमरीका में जब फिल्मों का सीज़न शुरू होता है तो फ़िल्म समारोह की भी झड़ी सी लग जाती है.

न्यूयार्क में रहने वाले दक्षिण एशियाई मूल के लोग आजकल एक अनोखे फ़िल्म समारोह का आनंद ले रहे हैं.

यह समारोह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है और इसमें दक्षिण एशियाई मूल के कलाकारों और फिल्मकारों की फिल्में दिखाई जा रही हैं.

गुरूवार को मैनहैटन के क्लियरव्यू थियेटर में शुरू हुए इस फ़िल्म समारोह में दक्षिण एशियाई मूल के लोग ही नहीं बहुत से दूसरे देशों के लोग भी इन फ़िल्मों को देखने के लिए उमड़ रहे हैं.

कुल 350 फिल्मों में से छटनी करके 35 फिल्मों को ही इस छह दिन चलने वाले महोत्सव के लिए चुना गया है.

समारोह में वो फ़िल्में दिखाई जा रही हैं जिनके निर्देशक या प्रमुख अभिनेता दक्षिण एशियाई मूल के है, और इनमें से ज़्यादातर पहली बार अपने फ़न का प्रदर्शन कर रहे हैं. और यही नहीं इनमें से ज़्यादातर फ़िल्मों की कहानी भी दुनिया भर में फैले दक्षिण एशियाई मूल के लोगों पर ही आधारित है.

इस फ़िल्म समारोह में पूरी दुनिया में फैली दक्षिण एशियाई मूल की बिरादरी के जीवन के अलग अलग पहलुओं और विदेशों में रहते हुए जो मुश्किलें सामने आती हैं उनका चित्रण अधिकतर फिल्मों का मुख्य मुद्दा है.

दक्षिण एशियाई थीम

न्यूयार्क जैसे शहर में यह समारोह ख़ासा लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि यहाँ दक्षिण एशियाई मूल के लोगों की काफ़ी बड़ी आबादी रहती है. औऱ उन्हे अपने जीवन की झलक इन फिल्मों में देखने को मिल ही जाती है.

भारतीय फ़िल्मों के शौकीनों के लिए रविवार तक चलने वाले इस समारोह में ऐसी भी कई फ़िल्में दिखाई जा रही हैं जिनमें मुंबई की फ़िल्मी दुनिया के मशहूर सितारे अभिनय कर रहे हैं.

जिन अहम बॉलीवुड कलाकारों की फिल्में दर्शाई जा रही हैं उनमें शबाना आज़मी, अपर्णा सेन, सैफ़ अली खान, डिंपल कपाडिया और नसीरूद्दीन शाह की फिल्में शामिल हैं.

जो नामी-गिरामी सितारे इस फ़िल्म समारोह में अपना कमाल दिखा रहे हैं उनमें सबसे ऊपर हैं सैफ़ अली ख़ान. महोत्सव में दिखाई जा रही 'बीइंग साइरस' सैफ़ अली खान की पहली अंग्रेज़ी भाषा में बनी फिल्म है.

मुंबई के एक पारसी परिवार के बारे में बनाई गई इस फिल्म में सैफ के अलावा नसीरूद्दीन शाह और डिंपल कपाडिया भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

पहली फ़िल्म

'बीइंग साइरस' के निर्देशक हैं होमी अदिजानया. यह उनकी पहली फिल्म है. अदिजानया पेशे से एक स्कूबा डाइवर और तैराक हैं जो मुंबई और लक्षद्वीप में डाइविंग सिखाते हैं.

होमी अदिजानया अपनी पहली फ़िल्म लेकर आए हैं

उन्हें फ़िल्म बनाने की कैसे सूझ गई, इस सवाल पर अदिजानया बोले, “मेरे एक दोस्त ने एक लेख लिखा जिसे प्रकाशक ने छापने से मना कर दिया. मैंने उसे पढ़ा और तभी मुझे लगा कि मुझे अपनी फिल्म का मसाला मिल गया.”

अदिजानया कहते हैं, “मुझे लगा कि मै पहली बार फिल्म बना रहा हूं तो ऐसे किसी प्रोड्यूसर से पैसा तो मिलने से रहा, इसलिए सबसे पहले मैने मशहूर औऱ बड़े कलाकारों को शामिल करने का तय किया और जब मुनीश(प्रोड्यूसर) ने स्क्रिप्ट पढ़ी औऱ कलाकारों को देखा तो वह फौरन मान गए.”

होमी अदिजानया कहते हैं कि नसीरूद्दीन शाह और डिंपल कपाडिया जैसे बड़े कलाकारों के निर्देशन में कोई मुश्किल नहीं हुई.

होमी अदिजानया बोले, “शुरू में मेरे कुछ दोस्तों ने मुझसे कहा कि बड़े बड़े कलाकार तुम्हे कच्चा चबा जाएंगे लेकिन जब शूटिंग शुरू हुई तो इन कलाकारों के अनुभव से मुझे मदद ही मिली और कुल 32 दिनों में ही फिल्म बन कर तैयार हो गई.”

करीब दो करोड़ रूपए के छोटे से बजट में बनी इस फिल्म से होमी अदिजानया और प्रोड्यूसर मुनीश पुरी को काफी उम्मीदें हैं.

प्रोड्यूसर मुनीश पुरी कहते हैं, “ यह फिल्म सिनेप्लेकस में फिल्म देखने वालों में ज़्यादा चलेगी. एक तो अंग्रेज़ी भाषा में होने के कारण भारत के छोटे छोटे शहरों में तो इसको लोग नहीं समझ पाएंगे. विदेशों में और बड़े शहरों में इसको लोग पसंद करेंगे क्यूकि यह एक अलग किस्म की फिल्म है. और फिर बॉलीवुड के बड़े कलाकार अंग्रेज़ी फिल्म में काम कर रहे हैं तो यह भी एक उत्सुकता पैदा करेगी दर्शकों में.”

प्रमुख फ़िल्में

इस महोत्सव में शामिल अन्य भारतीय फिल्मों में अपर्णा सेन की '15 पार्क एवेन्यू' जिसमें कोनकोना सेन और शबाना आज़मी के अलावा राहुल बोस ने भी काम किया है, भारतीय मूल की आरती जैन की फिल्म 'नाईदर मिल्क नोर योगर्ट' जिसमें एक भारतीय मूल की अमरीकी महिला की मुश्किलों के बारे में चित्रण किया गया है जो 40 साल अमरीका में रहने के बाद भारत वापस अपना घर बनाना चाहती हैं.

भारत की लिगी पुल्लापुल्ली के निर्देशन में बनी एक फिल्म संचरम की कहानी दो महिलाओं के समलैंगिक रिशतों के बारे में बुनी गई है.

इसके अलावा भारतीय मूल के निर्देशकों की जो अनय फिल्में दिखाई जा रही हैं उनमें तुषार कपूर की 'क्या कूल हैं हम', के शालिमी की 'मंथन', मन्नान पंडित की 'भारत', सुधीर मिश्रा की 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी', रूचि नारायण की 'कल', कोमल तोलानी की 'सनसेट बॉलीबुड' (राहुल रॉय, पूजा भट्ट, भाग्यश्री और कुमार गौरव), और ओम पुरी अभिनीत 'द हैंगमैन' शामिल हैं.

भारत के अलावा पाकिस्तान के निर्देशक अदनान मलिक की पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की खस्ता हालत पर बनाई गई फिल्म 'भूली हुई हूं दासतां' की भी खासी चर्चा है. मलिक की फ़िल्म 'बिजली' भी दिखाई जा रही है.

बांग्लादेश के निर्देशक तौकीर अहमद की फिल्म 'जॉय जात्रा' 1971 में देश को मिली स्वतंत्रता पर आधारित है. नेपाल की फिल्में 'स्माल लाईट' औऱ 'लिविंग गाडेसेज़' भी चर्चा में हैं.

 
 
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