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गांधी-नायडू के पत्र व्यवहार पर नाटक | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इन दो महान हस्तियों के बीच हुए पत्र-व्यवहार को संवाद के रूप में सुनना और देखना एक अलग ही अनुभव था. थोड़ी देर के लिए ऐसा लगा जैसे मशहूर वुडस्टॉक स्कूल के पार्कर हॉल में इतिहास सजीव हो उठा हो और समय जैसे ठहर गया हो. 'द महात्मा ऐंड दि पोएटेस' नामक इस नाटक में गांधी का किरदार निभाया है प्रख्यात अभिनेता और रंगकर्मी टॉम ऑल्टर ने और सरोजिनी नायडू की भूमिका में हैं मशहूर नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई. शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि गांधीजी से सरोजिनी नायडू की पहली मुलाकात इंग्लैंड में हुई थी. ये 1914 की बात है. सरोजिनी नायडू उस समय इंग्लैंड में थीं. जब उन्होंने सुना कि गांधीजी इंग्लैंड में हैं, तब वो उनसे मिलने गईं. उन्होंने देखा कि गांधीजी जमीन पर कंबल बिछाकर बैठे हुए हैं और उनके सामने टमाटर और मूंगफली का भोजन परोसा हुआ है. सरोजिनी नायडू गांधी की प्रशंसा सुन चुकी थीं, पर उन्हें कभी देखा नहीं था. जैसा कि वो खुद वर्णन करती हैं, ''कम कपड़ों में गंजे सिर और अजीब हुलिये वाला व्यक्ति और वो भी जमीन पर बैठकर भोजन करता हुआ.'' ये देख वो चौंक पड़ीं, फिर हंसते हुए उनके मुंह से बेसाख्ता निकला, ''यह भी कोई भोजन है. जैसे आप हैं, वैसा ही आपका आहार भी है.'' नाटकीय जरूर लेकिन ये एक ऐतिहासिक मुलाक़ात थी जिसने सरोजिनी नायडू का जीवन बदल कर रख दिया. थोड़े समय में ही वो गांधी के त्याग, तपस्या और देशप्रेम के प्रभाव में आकर उनकी भक्त बन गईं. गांधी बने गुरु वो उन्हें अपना गुरू मानने लगीं. बाद में कांग्रेस के कार्यकलापों और आजादी के आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
गांधी के साथ अपनी मित्रता के बारे में सरोजिनी लिखती हैं, ''ये परस्पर विश्वास से भरी ऐसी दोस्ती है जो स्वतंत्रता संग्राम के उन 38 सालों में गांधीजी की मृत्यु तक एक पल के लिए भी नहीं टूटी.'' मृणालिनी साराभाई इन्हें पत्र कम ऐतिहासिक दस्तावेज ज्यादा मानती हैं. वो कहती हैं,''सरोजिनी का पूरा जीवन एक कविता की तरह है. उन्होंने कवयित्री का जीवन शुरू किया लेकिन हालात देखते हुए आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़ीं.'' मृणालिनी साराभाई का मानना है, ''गांधीजी ने अगर आज़ादी के आंदोलन को नैतिकता दी तो सरोजिनी नायडू ने इस संग्राम को एक कलात्मक गरिमा दी.'' शुरूआत की एक चिठ्ठी में गांधी सरोजिनी को सलाह देते हैं,''आप विलायत के दृश्यों और पशु-पक्षियों का वर्णन न करके भारतीय दृश्यों और पशु-पक्षियों को अपनी कविता का विषय बनाएं.सारे देश का भ्रमण करके अपनी कविता के द्वारा देशप्रेम और एकता का संदेश जगाएं.'' गांधीजी ने उनके भाषणों से प्रभावित होकर उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी. लेकिन वो अपने पत्रों में उन्हें कभी-कभी ‘डियर बुलबुल’,’डियर मीराबाई’ तो यहां तक कि कभी मजाक में ‘अम्माजान’ और ‘मदर’ भी लिखते थे. हास्य और विनोद के उसी अंदाज में सरोजिनी भी उन्हें कभी ‘जुलाहा’, ‘लिटिल मैन’ तो कभी ‘मिकी माउस’ संबोधित करती हैं.तो कहीं बिल्कुल कातर और बेबस होकर ‘शांति का दूत’ पुकारते हुए उनसे अपील करती है. 1946 मे जब गांधीजी दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर रहे होते हैं, तो वो लिखती हैं, ''हे शांति के मसीहा, घृणा की इस ज्वाला से भारत को किसी भी तरह बचा लो.'' टॉम ऑल्टर कहते हैं, "इन पत्रों में ईमानदारी और सच्चाई की पराकाष्ठा है और हास्य का अद्भुत संयोजन है. इसके माध्यम से हमें ये भी जानने का मौक़ा मिलता है कि भारत के भविष्य को लेकर इन दोनों की कल्पना क्या थी.'' वुडस्टॉक स्कूल में यह इस नाटक की पहली प्रस्तुति थी. शायद इसलिए कि टॉम ऑल्टर खुद वुडस्टॉक स्कूल के पढ़े हुए हैं. जल्दी ही इसके शो दिल्ली,मुंबई और बंगलौर में भी होंगे. |
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