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गरम है भोजपुरी फ़िल्मों का बाज़ार | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पिछले दिनों मुंबई के एक प्रतिष्ठित रेस्तरां में देर रात तक एक फ़िल्मी पार्टी चली उसमें जाने-पहचाने फ़िल्मी चेहरों से ज़्यादा ऐसे लोग थे जो आमतौर पर इस शहर की फिल्मी पार्टियों में नहीं दिखाई देते. लेकिन ये सारे लोग थे फिल्मों से ही जुड़े. असल में ये पार्टी एक भोजपुरी फिल्म की सफलता का जश्न थी. 'भोजपुरी वालों' ने अब तक तो कभी ऐसी पार्टियाँ नहीं की थी – कहना था एक चकित चर्चित मेहमान का. उनका चकित होना स्वभाविक था. भोजपुरी सिनेमा में ऐसी बहार पहले कभी नहीं देखी गयी. लेकिन आज मार्केट ‘हॉट’ है. कितना गर्म है ये बाज़ार इसका अंदाज़ा फिछले हफ़्ते फ़िल्म ट्रेड मैगज़ीन और बॉक्स ऑफ़िस के ताज़ा आंकड़े देने वाली वेबसाइट की ख़बरें बता रही थी. इन ख़बरों के मुताबिक अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन और रानी मुखर्जी की फिल्म ‘बंटी और बबली’ की टीम भोजपुरी फ़िल्म ‘पंडितजी बताइ ना बियाह कब होई’ को कभी नहीं भूल सकती. तुलना भोजपुरी फ़िल्मों के सुपरहिट हीरो रविकिशन की इस फ़िल्म ने ‘बंटी और बबली’ का पहले दिन ही बाजा बजा दिया. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘बंटी और बबली’ जिस दिन रिलीज़ हुई उस दिन ये भोजपुरी फ़िल्म तीन हफ़्ते चल चुकी थी. लेकिन उन इलाक़ों में उस दिन भी इसकी कमाई हुई 95 फ़ीसदी, जबकि बंटी और बबली के पहले चार शो केवल 55 प्रतिशत कमाई ही कर पाए. असल में भोजपुरी के बाज़ार को चंद साल पहले तब गंभीरता से लिया जाने लगा जब ये बाज़ार बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आगे बढ़कर मुंबई, दिल्ली, बंगाल ही नहीं छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब तक फैल गया है. भोजपुरी फ़िल्मों के प्रतिष्ठित निर्माता – निर्देशक मोहनजी प्रसाद मानते हैं कि ये बाज़ार पहले भी था लेकिन क़रीब तीन साल पहले उनके जैसे कुछ निर्माताओं ने कुछ ज़्यादा हिम्मत से काम लेते हुए फ़िल्म निर्माण पर कुछ ज्यादा पैसे ख़र्च किए और पेशेवर कलाकारों के साथ बेहतर कथानक का चुनाव किया. बेहतर तकनीक और पेशेवर तरीक़े से बनाई गईं इन फ़िल्मों ने भोजपुरी फ़िल्मों को एक बार फिर लोकप्रय बना दिया. इनमें मोहनजी प्रसाद के अलावा सुशील उपाध्याय, सुधाकर पांडेय और ताज़ा नाम गायक से निर्माता बने उदित नारायण है. स्तर बढ़ा बेहतर और पेशेवर निर्माता-निर्देशकों की नई फ़िल्मों में इसीलिए अब जूही चावला और नग़मा जैसी हीरोइनें काम कर रहीं हैं जो इन फ़िल्मों को पहले से बेहतर स्तर दे रहीं है.
इन फ़िल्मों के बजट बढ़ रहे हैं और स्कॉटलैंड, फिजी और नीदरलैंड जैसी जगहों पर शूटिंग की तैयारी हो रही है. उदित नारायण ने रविकिशन को नायक लेकर ‘कब होई गवना हमार’ फ़िल्म बनाई जो मॉरिशस में शूट की गयी. ये फ़िल्म यूपी और बिहार में सफलता के झंड़े गाड़ने के बाद इन दिनों मुंबई के आधा दर्जन सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है. उदित नारायण कहते हैं कि पहली फ़िल्म के ज़रिए वे भोजपुरी फ़िल्मों को अंतरराष्ट्रीय फलक पर ले जाना चाहते थे. इसीलिए फ़िल्म की कहानी भी डेढ़ सौ साल पहले के मॉरीशस पर केंद्रित थी और फ़िल्म शूट भी वहीं की गयी. बहुत जल्दी वो दूसरी भोजपुरी फ़िल्म भी शुरु करने जा रहे हैं. कारोबार सुशील उपाधायाय की ‘कन्यादान’ ने तो फ़िल्म पंडितों के मुताबिक़ क़रीब 3 करोड़ का कारोबार किया और अब भी कई जगह भीड़ खींच रही है. हालांकि इस फ़िल्म की लागत 50 लाख रुपये के आसपास थी. लोकगायक मनोज तिवारी की लोकप्रियता भी भोजपुरी फ़िल्मों की सफलता में बहुत काम आयी. उनकी ‘ससुरा बड़ा पैसे वाला’ और ‘दरोगाजी आई लव यू’ सरीखी फ़िल्मों ने काफ़ी अच्छा कारोबार किया है. ससुरा.. फ़िल्म ने तो जुबली मनायी और करीब 4.5 करोड़ का कारोबार किया. लगातार आधा दर्जन से ज़्यादा हिट भोजपुरी फ़िल्मों के नायक रवि किशन कहते हैं कि इन फ़िल्मों के ज़रिए पैसा और लोकप्रयता तो वे कमा ही रहे हैं उनका उद्देश्य इस भाषायी सिनेमा को बांग्ला या तमिल या तेलुगु भाषा के जैसा समृद्ध और सम्मानजनक बनाना है. अब ये फ़िल्में लोकप्रय हो रहीं हैं, बेहतर व्यवसाय कर रहीं तो उन पर निर्माता ख़र्च भी ज़्यादा कर रहे है. बाज़ार बन रहा है तो बेहतर सिनेमा की होड़ भी शुरू हो रही है. रवि कहते हैं कि इस तरह उनका उद्देश्य भी पूरा होता दिख रहा है. साल भर पहले तक मुख्यधारा या आमतौर पर हिंदी फ़िल्मे बनाने और उनमे काम करने वाले भोजपुरी फ़िल्म बनाने को दोयम दर्जे का काम मानते थे. पसंद लेकिन अब खबर है कि इन फ़िल्मों की सफलता के चलते सुभाष घई, बोनी कपूर और नितिन मनमोहन जैसे हिंदी फ़िल्मों के कई दिग्गज निर्माता-निर्देशक भोजपुरी फ़िल्में बनाने की योजनाओं पर काम करने लगे हैं.
सुभाष घई की कंपनी मुक्ता आर्ट्स का जनसंपर्क विभाग इस बारे में ज़्यादा कुछ अभी नहीं बताना चाहता पर इस तरह की योजनाओं से इनकार भी नही करता. बोनी कपूर तो भोजपुरी फ़िल्मों को बेहतर व्यवसाय की संभावनाएँ मानते हैं और नये बाज़ार से भरपूर लाभ उठाना चाहते हैं. लेकिन भोजपुरी फ़िल्मों को वितरण की समस्या से अब भी जूझना पड़ रहा है. बिहार के प्रमुख फ़िल्म वितरक और कई सिनेमाघरों के मालिक नवल किशोर बूबना नत्थू बाबू कहते हैं कि सही वितरण व्यवस्था ना होने से इन फ़िल्मों को बेचना अब भी बड़ा मुश्किल है. हालांकि जब ये फ़िल्में सिनेमाघर में पहुंचती हैं तो भीड़ टूटती ही है. बूबनाजी का मानना है कि भोजपुरी फ़िल्मों की नयी बयार ने बिहार में सिनेमाघरों को बचा लिया नहीं तो राज्य में धड़ाधड़ सिनेमाघर बंद हो रहे थे. लेकिन मोहनजी प्रसाद मानते हैं कि भोजपुरी फ़िल्म बनाने के लिए भोजपुरी क्षेत्र की संस्कृति, रहन सहन, रीति रिवाज़ और मानसिकता की समझ सबसे जरूरी हैं. अगर बॉलीवुड़ के बड़े निर्माताओं ने इसका ख़्याल नहीं रखा तो मार्केट फिर बिगड़ सकती है. |
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