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संस्कृति प्रेम ने दिलाया ब्रितानी सम्मान | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारतीय संस्कृति और सभ्यता को दुनिया भर में पहुँचाने में लगे रामपुर के नवाब ख़ानदान से संबंध रखने वाले काज़िम अली ख़ाँ उर्फ़ नवेद मियाँ को ब्रिटेन के 'ऑर्डर आफ़ ग्रीफ़िन' से सम्मानित किया गया है. दुनिया भर में मशहूर क़रीब ढाई शताब्दी से दिया जाने वाला ब्रिटेन का 'ऑर्डर ऑफ़ ग्रीफ़िन' सम्मान पाने वाले नवाब काज़िम अली ख़ाँ पहले भारतीय हैं. नवेद मियाँ को यह सम्मान भारतीय संस्कृति और कला को दुनिया के विभिन्न देशों में प्रचार-प्रसार के लिए इसी साल 26 फ़रवरी को लंदन में ईस्ट इंडिया क्लब में आयोजित एक विशेष समारोह में प्रदान किया गया. ख़ुद नवेद मियाँ बताते हैं कि कला, साहित्य, संस्कृति और शिक्षा में विशेष योगदान के लिए चार वर्ष में एक बार दिया जाने वाला यह सम्मान अभी तक दुनिया के क़रीब चार सौ लोगों को दिया जा चुका है. नवेद मियाँ के मुताबिक ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ के पति प्रिंस फ़िलिप ड्यूक ऑफ़ एडेनबरा ने 26 फ़रवरी, 2005 को लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में उन्हें सम्मानित किया. नवेद मियाँ ने बताया कि यह पुरस्कार पाने वालों में रूस के मोरोस्लाफ़ कुल्टीशेफ़, लियोनेद रेपेन और जर्मनी के जनरल राइनहॉड गुंज़ेल शामिल थे.
सम्मान समारोह में इटली की राजकुमारी ईजाबेला क्लेमेंट, स्पेन के राजकुमार हेसूस मार्के लैम्बर्ट, दक्षिण अफ्रीका के हीरा निर्यातक सरदार अली सहित यूरोपीय रजवाड़ों के अनेक प्रतिनिधि भी शामिल थे. सदियों से नवेद मियाँ को मिले सम्मान-पत्र में लिखा गया है कि इस सम्मान की शुरुआत 27 जनवरी 1750 में हुई थी और इसे पाने वालों में सर विंस्टन चर्चिल भी शामिल रहे हैं. नवेद मियाँ को यह सम्मान ख़ासतौर से रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में मौजूद धरोहर का विदेशों में प्रचार-प्रसार करने कि लिए दिया गया है. नवेद मियाँ बताते हैं कि अब तक वे दुनिया के सोलह से अधिक शहरों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धरोहर की प्रदर्शनियाँ लगा चुके हैं.
इनमें ताशकंद, अंकारा, बुरसा, इस्तांबुल, अशकाबाद, कोपेनहेगन, ब्रसेल्स, लंदन, बर्लिन, मेड्रिड, सिंगापुर, कुआलालंपुर जैसे शहर शामिल हैं. नवेद मियाँ का कहना है, "रज़ा लाइब्रेरी में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी, तुर्की और पश्तो भाषाओं की सोलह हज़ार से भी ज़्यादा पांडुलिपियाँ मौजूद हैं." "इनमें से क़रीब डेढ़ सौ पांडुलिपियाँ चित्रों से सुसज्जित और अलंकृत हैं. ये पांडुलिपियाँ इतिहास, दर्शनशास्त्र, धर्म, कला, विज्ञान, साहित्य और स्थापत्य कला जैसे विषयों पर हैं." काज़िम अली ख़ाँ उर्फ़ नवेद मियाँ बताते हैं कि वह कोलंबिया विश्वविद्यालय और चंडीगढ़ के कॉलिज ऑफ़ अर्किटेक्चर से वास्तुकला में उपाधि धारक हैं और इस सम्मान को अपने कठिन परिश्रम और भारतीय संस्कृति के प्रति अपने प्रेम का ईनाम मानते हैं. वह कहते हैं, "भारतीय संस्कृति और सभ्यता में बेजोड़ व अनूठा संगम है और मेरी इच्छा है कि यह संस्कृति दुनिया के सभी देशों तक पहुँचे और इसके लिए लगातार प्रयासरत रहेंगे." |
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