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भूटानी स्वाद का पैमाना - एमा दात्शी | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कहा जाता है कि भारतीय व्यंजन खूब तीखा और मसालेदार होता है लेकिन उन्हें भूटान का व्यंजन खाने को मिल जाए तो वे भारतीय व्यंजन का तीखापन भूल सकते हैं. वो शायद इसलिए भी क्योंकि हिमालय की तराई में बसे इस छोटे से देश में मिर्च का उपयोग सब्ज़ियों को मसालेदार बनाने के लिए नहीं होता. बल्कि इसलिए क्योंकि वहाँ तो मिर्च अपने आपमें ही एक सब्जी है. चलिए चलते हैं भूटान की राजधानी थिम्पू के सब्ज़ी बाज़ार में. आलू, प्याज़, टमाटर और बीन्स के साथ हर दुकान पर ढेर लगा है मिर्चों का. बड़ी-बड़ी लाल मिर्चों से भरे टोकरे, छोटी तीखी हरी मिर्चों के ढेर और पिसी हुई लाल मिर्च के पैकेट्स. यहाँ हर तरह की मिर्चें उलब्ध हैं. इसलिए कि भूटान में लोग मिर्च खाते हैं सब्ज़ी की तरह. भूटान का राष्ट्रीय व्यंजन कहलाता है- एमा दात्शी और ये है सिर्फ़ मिर्च और चीज़ की सब्ज़ी. दोरजी ओमा एमा दात्शी पर एक किताब लिख रहीं हैं. वे कहती हैं, "दरअसल भूटान में ठंड बहुत पड़ती है और मिर्च खाने से शरीर को गर्मी मिलती है. हालाँकि आज कल तो लोग घरों और दफ़्तरों में हीटर लगा कर बैठते हैं, मगर अब एमा दात्शी हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गई है." वे कहती हैं, "अगर आपको कोई भूटानी परिवार अपने घर खाने पर बुलाएगा, तो वो आपको एमा दात्शी ज़रूर खिलाएगा क्योंकि इसके बिना आपका भोजन अधूरा माना जाएगा." स्वाद का मामला चेंचो ने हमारे लिए एमा दात्सी बनाया. उन्होंने काट रखी हैं छोटी-छोटी हरी मिर्चे. दोरजी ओमा कहती हैं कि असली एमा दात्सी में सिर्फ़ मिर्च और चीज़ डाली जाती है मगर शायद मैं इतना तीखा झेल ना पाऊँ, इसलिए वे चेंचो को इस सब्ज़ी में टमाटर, प्याज़ व गोभी भी डालने की हिदायत देती हैं.
कैंटीन में बैठे लोग एमा दात्शी की तारीफों के पुल बाँध रहे थे. दोरजी ओम बताती हैं कि भूटान में जब बच्चे बहुत छोटे-छोटे होते हैं, तभी से उनके माँ-बाप उन्हें मिर्च खिलाना शुरु कर देते हैं. उनका कहना है कि यहाँ छोटे-छोटे बच्चों के खाने में भी मिर्च डाली जाती है और फिर धीरे-धीरे कर मिर्च की मात्रा बढ़ाई जाती है. जिससे बचपन से ही मिर्च खाने की आदत पड़ जाती है. लेकिन कभी-कभी एमा दात्शी के चाहने वालों को भी इसका तीखापन झिंझोड़ कर रख देता है. इनका कहना है कि एमा दात्शी चखने पर मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हुआ... और चेहरे का बदलता रंग देख दोरजी ओमा खिलखिला कर हँस पड़ती हैं. अब मुझे समझ में आया कि भूटानी लोगों को बाहर का खाना स्वादहीन क्यों लगता है. |
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