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गुरुवार, 14 अक्तूबर, 2004 को 13:34 GMT तक के समाचार

चरित्र अभिनेत्री निरूपा राय नहीं रहीं

"मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, पैसा है... तुम्हारे पास क्या है?"

"मेरे पास माँ है."

'दीवार' फ़िल्म में शशि कपूर और अमिताभ बच्चन के बीच बोले गए यह डायलॉग आपको याद होंगे.

लेकिन जिस 'माँ' का गर्व से ज़िक्र हो रहा था, वह अब इस दुनिया में नहीं हैं.

चरित्र अभिनेत्री निरूपा राय का बुधवार को दिल का दौरा पड़ जाने के बाद मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया.

वह 73 वर्ष की थीं. उनके परिवार में उनके पति और दो बेटे हैं.

वलसाड़ में 1931 में उनका जन्म हुआ. उनका असली नाम कोकिला किशोरचंद्र बलसारा था.

निरूपा राय ने 1946 में अपना फ़िल्मी जीवन गुजराती फ़िल्मों से शुरू किया. उनकी पहली फ़िल्म 'रणकदेवी' थी और फिर उन्होंने अपने पचास साल के कैरियर में लगभग पाँच सौ फ़िल्मों में काम किया.

उनकी दो फ़िल्में, गर्म कोट और दो बीघा ज़मीन काफ़ी चर्चित रहीं और दोनों के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले.

अपने शुरुआती दौर में उन्होंने ज़्यादातर पौराणिक फ़िल्मों में काम किया.

उन्होंने लगभग सभी देवियों की भूमिकाएँ कीं और उन्हें ख़ासतौर पर सीता और पार्वती की भूमिकाओं में बहुत सराहा गया.

निरूपा राय ने एक स्टंट फ़िल्म भी की. अभी कुछ अरसा पहले बीबीसी हिंदी से एक बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने 'सिंदबाद दी सेलर' में एक ऐसी युवती का रोल किया जो तलवार चलाती है और मारधाड़ करती है".

"लेकिन दर्शकों ने इस पर हंगामा कर दिया. उनका कहना था कि एक देवी यह सब कुछ कैसे कर सकती है".

"और फिर उनकी इच्छा का आदर करते हुए मैं ने ऐसी भूमिकाओं से तोबा कर ली".

मुनीम जी से उन्होंने माँ की भूमिकाएँ करना शुरू कीं.

इस फ़िल्म में वह अपने से बड़ी उम्र के देवानंद की माँ बनीं.

दर्शकों ने उन्हें 'दीवार', 'ख़ून पसीना', 'मर्द' और 'अमर, अकबर ऐँथनी' में अमिताभ बच्चन की माँ के रूप में देखा और उस समय वह लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गईं.

निरूपा राय का कहना था, "मेरा यह सफ़र बहुत शानदार रहा है. हाँ, एक इच्छा है कि मैं किसी फ़िल्म में किसी पागल महिला का रोल करूँ. उसके किरदार को जियूँ".

लेकिन सभी इच्छाएँ पूरी कहाँ हो पाती हैं.