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डिजिटल तकनीक से रोज़ी ख़तरे में

भारत का फ़िल्म जगत यानी बॉलीवुड दुनिया का सब से व्यस्त फिल्म उद्योग है जहाँ पर्दे पर हैरतअंगेज़ दृश्यों को दिखाने के स्टंट कलाकार अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते है.

ये वही लोग है जो इमारतों, कारों को आग या धमाकों से उडाते हैं, बरसात कराते हैं, तूफ़ान ला देते हैं, कोहरा, धुआँ, आग हो या फिर विस्फोट, हर क़िस्म के स्टंट करते हैं और इसमें वे कभी-कभी तो अपनी जान पर ही खेल जाते हैं.

मगर अपनी जान को ख़तरे में डालकर अपना हुनर दिखाने में माहिर स्टंट कलाकार आज बहुत ख़स्ता हालत में हैं.

क़रीब 500 स्टंट कलाकार हैं जो आज डिजिटल तकनीक की वजह से अपनी रोज़ी-रोटी के लिए ख़तरा देखते हैं.

बॉलीवुड की फ़िल्मे तकनीकी रूप से जैसे-जैसे उन्नत हो रही हैं, स्पेशल इफेक्ट यानी फ़िल्मों में हैरतअंगेज़ दृश्यों को दिखाने वाले बहुत से स्टूडियो पूरी मुम्बई भर में खुल गए हैं.

इन स्टूडियो ने स्टंट का बहुत सारा काम आधुनिक तकनीक से करना शुरू कर दिया है जिससे स्टंट कलाकारों का काफ़ी सारा कारोबार छीन लिया है.

कंप्यूटर से तैयार किए जाने वाले इस तरह के स्पेशल इफ़ेक्ट बॉलीवुड की मारध़ाड वाली फिल्मों का मुख्य आकर्षण बन गए हैं.

घटती आय

अरुण पाटिल स्पेशल इफ़ेक्ट कलाकारों की ट्रेड यूनियन 'द मूवी एंड डमी इफ़ेक्ट एसोशियन' के अध्यक्ष हैं.

उन्होंने अमरीका के शहर लॉस एंजेल्स में दो साल तक रहकर इस कला के गुर सीखे हैं.

स्टंट कलाकार
बहुत ख़तरा होता है इसमें

उन्होंने 1980 में बनी बॉलीवुड की पहली स्पेशल इफ़ेक्ट से भरी फिल्म 'द बर्निंग ट्रेन' में काम किया था जिसमें एक चलती ट्रेन को जलते हुए दिखाया गया था.

लेकिन अब ज़माना बहुत बदल चुका है. आज तो पाटिल के लिए अपने लोगों को खुश रखना मुश्किल हो रहा है क्योंकि काम कम हो रहा है और आमदनी घटती जा रही है.

पाटिल कहते हैं कि कंप्यूटर निर्मित दृश्यों का ही भविष्य है, हमारा काम तो कम हो रहा है, थोड़ी तसल्ली ज़रूर है कि यह अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है.

पाटिल बताते हैं कि एक स्टंट कलाकार औसतन एक अच्छे काम के महीने में स्पेशल इफ़ेक्ट देकर 5000 रूपये तक कमा लेता है.

आजकल बॉलीवुड में कंप्यूटर निर्मित ग्राफिक्स का बोलबाला है और कुछ निर्माता अच्छी तरह जानते है की उन्हें इनसे क्या चाहिए.

इन में सब से कामयाब स्पेशल इफेक्ट शॉप है मुंम्बई की राजतरु कंपनी.

दस साल पुरानी इस कंपनी में 70 ग्राफ़िक डिज़ाइनर और संपादक बेहद व्यस्त रहते हैं.

फिल्म निर्माता राजतरु में अपनी फिल्म को डिजीटल तकनीक की सहायता से और बेहतर बनाने या कुछ स्पेशल इफ़ेक्ट कराने आते हैं.

स्पेशल इफ़ेक्ट कराने वाली एक अन्य कंपनी के मालिक राजीव अग्रवाल का कहना है, हाथ से किए जाने वाले और तकनीक पर आधारित फिल्म स्टंट अब ख़त्म हो रहे है क्योंकि अब कंप्यूटर पर यह सब बड़ी आसानी से हो जाता है.

शाहरूख ख़ान की एक नई फ़िल्म में एक घर डिज़ीटल तकनीक के ज़रिए ही जलाया गया है. ऐसा काम कुछ समय पहले तक अपनी जान को ख़तरे में डालकर हुनर दिखाने वाले स्टंट कलाकार करते थे.

ख़तरा ही ख़तरा

स्टंट कलाकार कोई नियमित प्रशिक्षण हासिल नहीं करते और काम करके ही हुनर सीखते हैं.

स्टंट कलाकार
पहचान नहीं मिलती है

बड़े धमाकों के दृश्य दिखाने वाले कलाकार आमतौर पर कोई सुरक्षित जगह नहीं होने की वजह से अपने घरों पर ही अभ्यास करते हैं और कई बार ऐसे हालात में दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं.

पिछले साल अगस्त में ऐसे ही एक स्टंट कलाकार दिलनवाज़ ख़ान की मुंबई में उस समय मौत हो गई जब वे अपने घर पर विस्फोटक सामग्री तैयार कर रहे थे.

उनके साथ-साथ उनके परिवार के चार अन्य सदस्य भी इस दुर्घटना में मारे गए थे.

52 वर्ष के ग़ुलाम ग़ौस ख़ान 1979 से फ़िल्म उद्योग में स्टंट कलाकार के बतौर काम करते रहे हैं.

अब वे कहते हैं कि उनके धंधा कभी इतना मंदा नहीं रहा जितना आज के दौर में हो चुका है.

"अब तो बहुत कम काम मिलता है, आज तो पूरा बॉलीवुड ही इतना बदल चुका है कि कोई हमारी मदद के लिए आगे आने के लिए तैयार नहीं है."

स्टंट कलाकार यह भी शिकायत करते हैं कि बहुत से स्टंट मास्टरों ने अपनी-अपनी कंपनियाँ खोल ली हैं जिससे छोटे कलाकारों के लिए काम की कमी हो गई है.

इनका कहना है कि फ़िल्म बनाने में हालाँकि उनका काम ख़तरनाक होता है लेकिन उन्हें न तो सही पहचान मिलती है और न ही पूरा मेहनताना.