भारत के प्रख्यात सितारवादक उस्ताद विलायत ख़ाँ का निधन हो गया है.
शनिवार रात को मुंबई के जसलोक अस्पताल में उन्होंने आख़िरी साँसें लीं.
उन्हें फेफ़ड़े का कैंसर था जिसके इलाज के लिए वे जसलोक अस्पताल में भर्ती थे.
उस्ताद विलायत ख़ान के बेटे उस्ताद हिदायत ख़ान ने बीबीसी को बताया कि विलायत ख़ाँ का अंतिम संस्कार कोलकाता में होगा.
विलायत ख़ान को उनके पिता, प्रख्यात सितार वादक उस्ताद इनायत हुसैन ख़ाँ, की क़ब्र के समीप ही दफ़नाया जाएगा.
उस्ताद विलायत ख़ाँ 76 वर्ष के थे.
उन्होंने पाँच दशक से भी अधिक समय तक सितार की दुनिया में अपने संगीत का जादू बिखेरा.
पुश्तैनी सितारवादक
उस्ताद विलायत ख़ाँ की पिछली कई पुश्तें सितार से जुड़ी रहीं और उनके पिता इनायत हुसैन ख़ाँ से पहले उस्ताद इमदाद हुसैन ख़ाँ भी जाने-माने सितारवादक रहे थे.
उस्ताद विलायत ख़ाँ के दोनों बेटे, सुजात हुसैन ख़ाँ और हिदायत ख़ाँ भी सितारवादक हैं.
उनके भाई इमरात हुसैन ख़ाँ और भतीजे रईस ख़ाँ भी सितार बजाते हैं.
विलायत खाँ का जन्म 1928 में गौरीपुर में हुआ था जो अब बांग्लादेश में पड़ता है.
पिता की जल्दी मौत के बाद उन्होंने अपने नाना और मामा से सितार बजाना सीखा.
आठ वर्ष की उम्र में पहली बार उनके सितारवादन की रिकॉर्डिंग हुई.
विदेशों में सम्मान
वे संभवतः भारत के पहले संगीतकार थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के बाद इंग्लैंड जाकर संगीत पेश किया था.
विलायत ख़ाँ एक साल में आठ महीने विदेश में बिताया करते थे और न्यूजर्सी उनका दूसरा घर बन चुका था.
विलायत ख़ाँ ने सितार वादन की अपनी अलग शैली, गायकी शैली, विकसित की थी जिसमें श्रोताओं पर गायन का अहसास होता था.
उनकी कला के सम्मान में राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद ने उन्हें आफ़ताब-ए-सितार का सम्मान दिया था और ये सम्मान पानेवाले वे एकमात्र सितारवादक थे.
लेकिन उस्ताद विलायत खाँ ने 1964 में पद्मश्री और 1968 में पद्मविभूषण सम्मान ये कहते हुए ठुकरा दिए थे कि भारत सरकार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान का समुचित सम्मान नहीं किया.
उनके परिवार में उनकी दो पत्नियाँ, दो बेटे और दो बेटियाँ भी हैं.