|
मलिका पुखराज नहीं रहीं | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अभी तो मैं जवान हूँ....यह ग़ज़ल जब भी कहीं बजती है तो सुनने वाले के ज़हन में इसके रचयिता हफ़ीज़ जालंधरी का नाम नहीं आता-आता है तो इसकी गायिका मलिका पुखराज का. गीत-संगीत को एक नई विधा, नया अंदाज़ देने वाली गायिका मलिका पुखराज अब नहीं रहीं. लंबी बीमारी से जूझने के बाद नब्बे साल की उम्र में उन्होंने बुधवार को लाहौर में अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर लीं. चालीस के दशक में मलिका पुखराज शोहरत की बुलंदियों पर थीं. जम्मू में जन्म लेने के बाद वहीं उन्होंने संगीत की तालीम ली और फिर तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह के दरबार में उन्हें जगह मिल गई. कुछ समय बाद वह दिल्ली आ गईं और उन्होंने रेडियो के ज़रिए अपनी पहचान क़ायम कर ली. आज़ादी के बाद जब पाकिस्तान बना तो वह लाहौर चली गईं और फिर आजीवन वहीं रहीं. पाकिस्तान में उन्होंने टीवी सीरियल निर्माता शब्बीर हुसैन शाह से शादी करली. बेटी भी गायिका उनकी बेटी ताहिरा सैयद भी एक जानी-मानी गायिका हैं और मलिका पुखराज और ताहिरा की कई युगलबंदियों के रिकॉर्ड बने हैं. मलिका पुखराज की गायिकी में डोगरी और पहाड़ी संगीत की झलक साफ़ दिखाई देती थी. उन्होंने कई ग़ज़लों को ठुमरी का अंदाज़ दे कर एक नई ही विधा क़ायम की. उनके लाखों-करोड़ों प्रशंसकों के लिए उनका निधन एक भारी आघात है. |
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||