अमिताभ नहीं, ऋषि कपूर का फैन हूं: रणबीर कपूर

रणबीर
    • Author, नेहा भटनागर
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

'बेशर्म' फ़िल्म के प्रमोशन के पहले जो भी इंटरव्यू हुए, उसमें रणबीर कपूर काफी बेझिझक, बेबाक नज़र आए.

'बेशर्म' फ़िल्म के लिए उन्होंने ये बेबाक शैली अपनाई, या उनके व्यक्तित्व में ही कुछ ऐसे बदलाव आए हैं?

<link type="page"><caption> रणबीर कपूर</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2013/09/130917_ranbir_besharam_sk.shtml" platform="highweb"/></link> ने मुझे बताया कि वे हमेशा से ऐसे खुले रहे हैं और अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं, फ़िल्म की शर्तों पर नहीं.

ऐसा नहीं है कि जब 'बर्फी' फ़िल्म आ रही थी, तो वे बोलते नहीं थे. उन्होंने इसके अलावा भी और कई दिलचस्प बातें बताईं.

पिता फेवरेट हैं

रणबीर, बेशर्म

पिता ऋषि कपूर के साथ <link type="page"><caption> अभिनय</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2013/08/130816_nargis_fakri_pkp.shtml" platform="highweb"/></link> करते वक्त बहुत सहज महसूस होता है. लेकिन 'बेशर्म' में काम करते वक्त पूरी फ़िल्म में उनके साथ मुझे शर्म आती रही, झिझक होती रही.

मगर अपने पिता के साथ स्क्रीन सीन शेयर करना मेरा सबसे अद्भुत अनुभव रहा है. वे एक बेहतरीन अभिनेता हैं, मेरे फेवरेट ऐक्टर हैं, बचपन से.

मम्मी, पापा जब एक्टिंग कर रहे थे तो उन्होंने कभी निजी रिश्तों को बीच में आने नहीं दिया.

हम तीनों निर्देशक अभिनव कश्यप की फ़िल्म के विज़न में बह गए. बहुत मज़ा आया इस फ़िल्म को करने में.

अमिताभ दूसरे 'सबसे बेस्ट'

'बेशर्म' फ़िल्म में कहानी कुछ यूं है कि मैं अमिताभ बच्चन से काफी प्रेरित हूं. फ़िल्म में वे मेरे सबसे फेवरेट ऐक्टर हैं. मगर वास्तविक जीवन में अगर तुलना करनी हो तो, मेरे सबसे पसंदीदा ऐक्टर मेरे पिता हैं.

रणबीर

ऋषि कपूर इंडिया के ही नहीं, दुनिया के सबसे बेस्ट ऐक्टर हैं. हां, मगर इस फ़िल्म में मैं अमिताभ बच्चन का बहुत बड़ा फैन हूं. उनकी तस्वीरें हैं कमरे में. मेरी हेयरस्टाइल, कपड़े पहनने का, चलने का ढंग सब अमिताभ बच्चन से प्रेरित है.

अब चूंकि ऋषि कपूर इस फ़िल्म में हैं, तो मैं उनका फैन तो बन नहीं सकता था. इसलिए मैंने 'सेकेंड बेस्ट' चुना और वो अमिताभ बच्चन थे.

'सितारे बुझ जाते हैं'

मेरे पिता ऋषि कपूर जिस तरह के अलग-अलग किरदार निभा रहे हैं उससे फिर से साबित हो गया है कि 'एक्टर लास्ट्स एंड स्टार्स फेड अवे' यानी अभिनेता चिरजीवी होते हैं, और सितारे बुझ जाते हैं.

मेरे पिता आज भी फ़िल्मों के लिए बेहद उत्साहित हैं. बल्कि मुझसे 10 गुना ज़्यादा.

मैं उनकी किसी फ़िल्म को दोबारा कर पाना बहुत मुश्किल मानता हूं. मैं उनकी ऐक्टिंग का 10 फीसदी भी नहीं कर पाऊंगा.

मुझे उनकी कर्ज़, चांदनी, प्रेम रोग और ज़माने को दिखाना है, सबसे ज़्यादा पसंद है.

आर्ट फ़िल्म, मसाला फ़िल्म

एक मसाला फ़िल्म आई थी तीन साल पहले, 'थ्री इडियट्स'. वो कोई इंटरनेशनल आर्ट फ़िल्म नहीं थी. लेकिन वो चीन, जापान, जर्मनी तक पहुंची.

इसने वर्ल्ड वाइड जितनी कलेक्शन दिखाई, उतनी किसी आर्ट फ़िल्म ने नहीं दिखाई होगी.

एक फ़िल्म को हम मसाला या, आर्ट फ़िल्म के अलग-अलग खांचों में बांट नहीं सकते.

'लंचबॉक्स' फ़िल्म भी बहुत नाम कमा रही है विश्व स्तर पर.

इसीलिए मैं मानता हूं कि हर फ़िल्म की अपनी जगह होती है. मैं किसी फ़िल्म को अलग-अलग करके नहीं देखता. कि ये आर्ट फ़िल्म है, और ये कमर्शियल फ़िल्म है.

<bold>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां <link type="page"><caption> क्लिक करें</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/03/130311_bbc_hindi_android_app_pn.shtml" platform="highweb"/></link>. आप हमें <link type="page"><caption> फ़ेसबुक</caption><url href="https://www.facebook.com/bbchindi" platform="highweb"/></link> और <link type="page"><caption> ट्विटर</caption><url href="https://twitter.com/BBCHindi" platform="highweb"/></link> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</bold>