फिल्म रिव्यू : लंच बॉक्स

- Author, कोमल नाहटा
- पदनाम, वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक
स्टार रेटिंग : ****
बिजनेस रेटिंग: ***
यूटीवी मोशन पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शन्स, डर मोशन पिक्चर्स, सिख्य ऐंटरटेनमेंट और एनएफडीसी की पेशकश 'लंचबॉक्स' कहानी है दो अजनबियों की.
किस तरह एक युवा महिला और रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ा एक व्यक्ति 'लंच बॉक्स' के जरिए एक दूसरे को जान पाते हैं और प्यार कर बैठते हैं.
सरल कहानी

इला (निमरत कौर) एक हाउस वाइफ है और उसकी एक छोटी बेटी है. उसके पति (नकुल वैद्य) के विवाहेतर संबंध हैं. उसका पति हमेशा अपने सेलफोन से चिपका रहता है. अपने पति के लिए बेहतरीन खाना बना ऑफिस भेजकर वह उसका प्यार पाने की कोशिश करती है.
साजन फर्नांडीज़ (इरफान ख़ान) सरकारी ऑफिस में काम करते हैं. उनकी पत्नी का निधन हो चुका है और वो अपने ऑफिस में टिफिन सर्विस से खाना मंगवाते हैं.
वैसे मुम्बई में डिब्बेवालों से गलती होने की संभावना नहीं होती है लेकिन फिल्म में एक दिन डिब्बेवाली की ग़लती से, मिसेज इला के पति का डिब्बा जो कि इला ने खुद बनाया था साजन के पास पहुँच जाता है और साजन का डिब्बा इला के पति को.
पहली बार टिफिन बदलने के बाद डिब्बेवाले को अपनी इस गलती का कभी पता ही नहीं चलता, और दोनों के टिफिन रोज बदलते रहते हैं.
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पहले दिन टिफिन बदलने के बाद इला अगले दिन डिब्बे में हाथ से लिखा हुआ एक नोट रखती है. साजन उस पत्र का जवाब देता है, और इस तरह दो अजनबियों के बीच बिना मिले बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है. वे हर मसले पर बात करते हैं यहाँ तक कि इला फर्नांडीज को अपने पति के विवाहेतर संबंधों के बारे में भी बता देती है.

फिर, एक दिन इला और फर्नांडीज मिलने का फैसला करते हैं. क्या इला ओर साजन मिल पाते हैं?
रितेश बत्रा की कहानी बहुत साधारण होने के बावजूद अच्छी लगती है. बत्रा की पटकथा कुछ कड़वे, प्यारे, कुछ अजीब और मीठे पलों से भरी हुई है.
हास्य को इसमें इतनी खूबसूरती से विकसित किया गया है कि कई जगह दर्शक मुस्कुराने की जगह ठहाके लगाने पर मजबूर हो जाते हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि सरल, धीमी गति और आम पटकथा होने के बाद भी फिल्म खास वर्ग के दर्शकों को एंटरटेन करती है.
अभिनय
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फर्नांडीज और इला की कहानी के साथ ही फिल्म में एक और कहानी चलती है .फर्नांडीज और शेख (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की.
शेख ऑफिस में नया है और ऑफिस में फर्नाडीज की जगह लेने वाला है. शेख और फर्नांडीज के बीच फिल्माए दृश्य हास्य उत्पन्न करते हैं और दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए शानदार हैं.
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फिल्म एक खास वर्ग के दर्शकों को अपील करती है, लेकिन धीमी गति और क्लाइमेक्स का न होना फिल्म के दो कमजोर बिंदु हैं.
वासन बाला, निमरत कौर और रितेश बत्रा के लिखे संवाद असाधारण हैं.

फिल्म में सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है.
पत्र लिखने के प्रारम्भिक दृश्य से लेकर रोज़मर्रा की छोटी-छोटी ज़रूरतों को इरफान ने जिस बेहतरी से निभाया है वह पुरस्कार योग्य है.
शेख के किरदार में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी शानदार रहे हैं.
निमरत कौर ने बिना ग्लैमर वाले इस रोल में कमाल की एक्टिंग की है.
नकुल वैद्य, डेंजिल स्मिथ (श्रॉफ के रूप में) और बच्चे की भूमिका में पुनीत नागर (याशवी के रूप में) बढ़िया रहे हैं.
इला की मां की भूमिका में लिलेट दुबे ठीक लगी हैं. भारती अचरेकर की आवाज का अभिनय शानदार रहा है.
निर्देशन

लेखक-निर्देशक रितेश बत्रा की ये पहली फिल्म है और जिस सादगी से वो भावनाओं का बयान कर गए हैं वो तारीफ़ के क़ाबिल है.
ये कहानी सुनने में तो बेहद सरल लगती है, लेकिन फिल्म देखने के दौरान पता चलता है कि बिना कहे वो कितना कुछ कह गए हैं.
भारती अचरेकर की आवाज का प्रयोग उन्होंने जिस तरह किया है वह बेहतरीन है. उन्होंने एक मनोरंजक और प्यारी फिल्म बनाई है.
माइकल साइमंड ने कैमरे का बेहतरीन उपयोग किया है.
कुल मिलाकर 'लंच बॉक्स' एक बेहतरीन फिल्म है. सभी वर्ग के दर्शकों को यह फिल्म पसंद आएगी और बड़े शहरों में मल्टीप्लेक्स में भी कमाई करेगी.
फिल्म को कई जगह धीमी शुरुआत मिल सकती है लेकिन बड़े शहरों में बाद में इसके बॉक्स ऑफिस पर हिट रहने की उम्मीद है. इसके कई पुरस्कार जीतने की भी संभावना है.
'लंच बॅाक्स' प्रतिष्ठित कान फ़िल्म महोत्सव समेत पूरी दुनिया में वाहवाही बटोर चुकी है.
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