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नकदी के संकट ने भारत को जकड़ा
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विश्व स्तर पर पैसों की कमी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं होने के भारतीय राजनेताओं और वित्त अधिकारियों के दावे अब खोखले
लगने लगे हैं.
सच्चाई यह है कि भारत अब नकदी की समस्या से जूझ रहा है लेकिन स्थिति अभी इतनी बुरी नहीं है जितनी कि दुनिया के दूसरे देशों की है. हालांकि पश्चिम में आई मंदी का असर भारत तक पहुँच गया है. भारत में शेयर बाज़ार इस वैश्विक ऋण समस्या का सबसे बड़ा शिकार बना है, जिसने इस समस्या की शुरूआत के बाद से अपने मूल्य के आधे से भी अधिक का नुकसान झेला है. इसकी वजह यह है कि वैश्विक समस्या के कारण अपनी स्थिति को संभालने की कोशिश में लगे विदेशी फंड मैनेजरों ने भारतीय शेयर बाज़ार में लगे अपने अरबों डॉलर यहाँ से निकाल लिए हैं. धन हानि वैश्विक मंदी और भारत के तीस करोड़ मध्यवर्गीय नागरिकों पर इसके असर की ख़ासी चिंता जताई जा रही है. पिछले कुछ सालों में मिल रहे लाभ को देखते हुए बहुत से भारतीय पेशेवरों ने अपनी बचत को स्टॉक बाज़ारों और म्युचुअल फंडों में लगा दिया है. इनमें से एक निवेशक 34 वर्षीय सोनिया भाटिया भी हैं जो एक सॉफ़्टवेयर डेवलपर हैं. वह कहती हैं, "यह कैसे हो सकता है? कुछ महीने पहले ही तो मैंने बहुत बड़ी राशि डाली थी. सभी कह रहे थे कि यह निम्न स्तर है और अब तो बाज़ार ऊपर ही जाएगा और अब तक मैंने अपना आधा पैसा गंवा दिया है." संपत्ति पर भी गाज केवल भारतीय शेयर बाज़ार ही अकेला ऐसा नहीं है जहाँ लोग वैश्विक ऋण समस्या का दंश झेल रहे हैं.
पिछले कुछ महीनों में शेयर बाज़ार की बेहतरीन ऊंचाईयों के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही थी. इसकी वजह से पिछले कुछ सालों में भारत के कुछ बड़े शहरों में फ़्लैट और घरों की कीमतें 40 फ़ीसद बढ़ गई थीं. लेकिन अब उस पैसे का बड़ा हिस्सा और इस क्षेत्र की माँग दोनों ही हवा हो गए हैं और ज़्यादातर बिल्डर खाली बैठे हैं. अपने सौदों में अच्छा पैसा कमाने वाले रियल एस्टेट एजेंट हर्ष मुकरी कहते हैं कि वे बेहद परेशान हैं. वे कहते हैं, "आजकल घर ख़रीदने वाले लोगों को ढूँढना बेहद मुश्किल है. और कोई बैंक ऋण देने को तैयार नहीं है." उन्होंने कहा, "मेरा व्यवसाय पूरी तरह ख़त्म हो गया है. यहाँ तक कि विदेशी कंपनियों के लिए किराये पर घर देने जो हमारे लिए काफ़ी पैसा देने का माध्यम थे, भी नहीं आ रहे हैं. अब उतने लोग हमारे पास नहीं आ रहे हैं जितने कि कुछ समय पहले आया करते थे." विदेशी धन बना ईँधन दूसरे व्यापार भी बैंकों के इस रवैये से प्रभावित हैं क्योंकि भारत के सभी वित्तीय संस्थान इस वक्त अपनी नकदी को दबाकर बैठ गए हैं. एक संपादकीय में सेंट्रम केपिटल के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर आर वालाकृष्णन कहते हैं, "पहला प्रभाव ऋण देने का डर रहा. भारत ऋण की कमी से भी ज़्यादा बड़ी मात्रा में नकदी की कमी की समस्या से जूझ रहा है." उनके अनुसार, "पिछले कुछ सालों से भारत विदेशी धन के बलबूते फलफूल रहा था. घरेलू पैसा विकास के लिए आधार नहीं बना सकता." भारत के वित्तीय अधिकारी बैंकों को ज़्यादा नकदी उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए कुछ ही दिनों पहले आठ अरब डॉलर की नकदी बाज़ार में डाली गई है. लेकिन इससे भी भारतीय निवेशकों और ग्राहकों का विश्वास बहाल नहीं हुआ है. मुंबई के व्यस्त आभूषण बाज़ार ज़ावेरी बाज़ार में स्वर्ण और हीरे के कारोबारी रमेश भेरूमल कहते हैं, "इस साल के रेट को देखते हुए लोग इस बार आभूषण नहीं ख़रीद रहे हैं और बिक्री करीब 30 फ़ीसदी कम हो गई है. यही हाल कार, इलेक्ट्रानिक्स, वाशिंग मशीन इत्यादि जैसे दूसरे सामान का भी है." |
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