मंगलवार, 20 मई, 2008 को 13:03 GMT तक के समाचार
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने किसानों को ट्रैक्टर और दूसरे कृषि उपकरणों के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर रोक लगा दी है.
बैंक ने इसकी वजह बकाया ऋण की बढ़ती हुई रक़म बताई है.
स्टेट बैंक के इस निर्णय पर वित्तमंत्रालय का कहना है कि यह स्थिति का आकलन करने के लिए लिया गया अस्थाई निर्णय भी हो सकता है.
लेकिन राजनीतिक दलों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है और उन्होंने कहा है कि सरकार को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करके इस किसान विरोधी निर्णय को वापस लेना चाहिए.
निर्णय
स्टेट बैंक भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बैंक की योजना है कि जून के अंत तक वह अपने बकाया ऋण वसूल ले और उसके बाद अपने इस निर्णय के बारे में विचार करे.
शायद इसी वजह से बैंक ने अपने इस निर्णय के बारे में कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है.
आँकड़ों के अनुसार क़र्ज़दारों पर अब तक क़रीब 70 अरब रुपए का ऋण बाकी है.
बताया जाता है कि कृषि उपकरणों के लिए लिए जाने वाले ऋण में पिछले साल दस फ़ीसदी वृद्धि हुई थी और इस साल इसमें 17 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.
वार्षिक बजट में सरकार की गरीब किसानों के ऋण माफ़ कर देने की घोषणा के बाद से आमतौर पर किसानों ने अपने ऋण की किस्तें अदा करना बंद कर दिया है.
तीखी प्रतिक्रिया
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का किसान विरोधी चेहरा उजागर हो गया है.
भाजपा ने माँग की है कि इस निर्णय को तुरंत वापस लिया जाए.
पार्टी के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि इतना बड़ा निर्णय सरकार की सहमति के बिना लिया ही नहीं जा सकता.
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और अखिल भारतीय किसान सभा के प्रमुख अतुल अंजान कहते हैं कि स्टेट बैंक जैसे बैंक ने यदि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया और वित्तमंत्रालय की सहमति के बिना यह फ़ैसला कर लिया है तो क्या मान लिया जाए कि सरकार का वित्तीय नियंत्रण ख़त्म हो रहा है?
उन्होंने कहा, "जो सरकार किसानों की भलाई की इतनी बात करती है उसके राज में इससे बड़ा किसान विरोधी निर्णय क्या हो सकता है?"
उन्होंने कहा कि यदि इसे वापस नहीं लिया गया तो 14-15-16 जून को विदर्भ के अमरावती में सभी किसान संगठनों की बैठक बुलाकर इसके ख़िलाफ़ अभियान की रुपरेखा तय की जाएगी.
उधर भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने बीबीसी से कहा कि चीन अपने किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज़ दर पर ऋण देता है जबकि भारत में सात प्रतिशत ब्याज़ दर है, उस पर ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, "स्टेट बैंक का यह निर्णय अवैध और असंवैधानिक है और प्रधानमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप करके इसे वापस करवाना चाहिए."
इस पर सरकार का पक्ष रखते हुए वित्तमंत्रालय के संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी ने कहा कि उन्होंने स्टेट बैंक का ऐसा कोई सर्कुलर देखा नहीं है लेकिन वे मानते हैं कि बैंक अपनी ऋण की स्थिति का आकलन कर रहा होगा.
उनका कहना था कि बैंक ने सिर्फ़ जून के लिए यह रोक लगाने की बात कही है और जुलाई से तो किसानों को दिए जा रहे पैकेज के तहत ऋण में बढ़ोत्तरी होनी है.