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मंगलवार, 22 जनवरी, 2008 को 03:44 GMT तक के समाचार
 
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सेंसेक्स की गिरावट के मायने
 

 
 
शेयर ब्रोकर
बाज़ार में भारी गिरावट की वजह से निवेशकों में मायूसी है
सेंसेक्स फिर चर्चा में है, इस बार गिरावट की वजह से.

दो दिन की गिरावट में सेंसेक्स 16 हज़ार के नीचे आ गया है.

सेंसेक्स सूचकांक में शामिल तीसों के तीसों शेयर गिरकर बंद हुए. ऐसा अभूतपूर्व और ऐतिहासिक इसलिए है कि ऐसा पहली बार हुआ है.

पर इस बने इतिहास की जड़ें वर्तमान स्थितियों में हैं.

इस गिरावट ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि सेंसेक्स की गति सिर्फ़ ऊपर की तरफ नहीं होती, नीचे की तरफ का रास्ता भी शेयर बाज़ार में मौजूद रहता है.

किसी भी बाज़ार में गिरावट की सीधी सी सिर्फ़ एक वजह होती है कि खऱीदार कम हो गए हैं और बेचने वाले ज्यादा हो गए हैं. 21 और 22 जनवरी को भी ठीक यही हुआ है.

भारतीय शेयर बाज़ारों में अब महत्वपूर्ण खऱीदार विदेशी संस्थागत निवेशक हैं.

सेंसेक्स की 30 महत्वपूर्ण कंपनियों में तो विदेशी संस्थागत निवेशकों का महत्वपूर्ण भूमिका है.

ये विदेशी संस्थागत निवेशक अपनी वजह से परेशान हैं, अमरीकी मंदी इन्हें परेशान कर रही है.

अमरीका में करीब 145 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज के बावजूद वहाँ की स्थितियां सुधरने के संकेत नहीं दे रही हैं.

यह कई अमरीकी संस्थागत निवेशकों के लिए बहुत चिंता की बात है.

पिछले छह दिनों में भारतीय बाज़ारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब पाँच हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा की बिकवाली की है.

अमरीकी मंदी

अमरीका में मंदी कितनी गहरी होनी है, इसके बारे में किसी को भी नहीं पता.

उनको भी नहीं पता, जो इसके पता होने का दावा करते हैं. अमरीका की स्थिति से ठोस असर कितना पड़ेगा, यह तो अभी सिर्फ़ अनुमान का विषय है.

पर अमरीकी मंदी का हौआ अभी बाज़ार में ठोस परिणाम डाल रहा है.

 इस गिरावट ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि सेंसेक्स की गति सिर्फ़ ऊपर की तरफ नहीं होती, नीचे की तरफ का रास्ता भी शेयर बाज़ार में मौजूद रहता है
 

पर गिरावट की यह सिर्फ एक वजह है. गिरावट की दूसरी बड़ी वजह यह है कि जिन्हें अब भारत में निवेशक कहा जाता है, उनमें से कई शार्ट टर्म सट्टेबाज हो गए हैं.

और सट्टेबाज भी ऐसे, जो एक ही दिन में अरबपति होने की तैयारी में हैं.

बाज़ार ने हाल में जो उछाल ली है, उसके कारण शेयर बाज़ार में यह भ्रम व्यापक तौर पर घर कर गया है कि शेयर बाज़ार से पैसा बनाना बहुत आसान है.

पर ऐसा कभी भी नहीं होता, ये शार्ट टर्म निवेशक उधार लेकर कारोबार करते हैं. इसलिए जब बाज़ार डूबता है, तो बाज़ार से बाहर निकलने की जल्दी भी सबसे पहले इन्हें ही होती है.

इसलिए ये हड़बड़ी में बिकवाली करते हैं और बाज़ार डूबता है.

वैसे डूबे हुए बाज़ार को भी देखें, तो डूबा हुआ सेंसेक्स भी अब के एक साल पहले के स्तर से करीब पच्चीस प्रतिशत ऊपर है.

और सेंसेक्स का सबसे महत्वपूर्ण शेयर रिलायंस भी इस गिरावट के स्तर पर भी एक साल पहले के स्तर से करीब 82 प्रतिशत ऊपर है.

यानी जो एक साल का भी टाइम लेकर बाज़ार में आया है, उसके लिए बहुत ज्यादा चिंता करने की बात नहीं है.

गिरावट के सबक

पर चिंता उनकी है, जो उधार की रकम बिना जानकारी के, बिना ज्ञान के, शेयर बाज़ार में लगा रहे हैं. उनके लिए यह गिरावट एक तरह से सबक का काम करती है.

पर इस सबक का असर उन कंपनियों पर पड़ेगा, जो आने वाले दिनों में पब्लिक इश्यू के जरिए बाज़ार से पैसा उगाहने की सोच रही हैं.

उनके लिए वह हरियाली गायब हो जाएगी, जो तमाम निवेशक अब तक बाज़ार में देखते रहे हैं.

 अमरीका में मंदी कितनी गहरी होनी है, इसके बारे में किसी को भी नहीं पता. उनको भी नहीं पता, जो इसके पता होने का दावा करते हैं. अमरीका की स्थिति से ठोस असर कितना पड़ेगा, यह तो अभी सिर्फ़ अनुमान का विषय है
 

यह समय सिर्फ़ उन निवेशकों के लिए बढ़िया है, जो हिम्मत और विश्लेषण के साथ बाज़ार में काम करते हैं.

इस वक्त उनके लिए कई बेहतरीन शेयर बंपर डिस्काउंट पर उपलब्ध हैं.

इस तरह से देखें, तो यह गिरावट कई निवेशकों के लिए एक मौके़ के तौर पर आई है, जिसका इस्तेमाल भविष्य के मुनाफों की नींव बनाने के लिए किया जा सकता है.

मोटे तौर पर यह माना जा सकता है कि 16 हज़ार के आसपास बाज़ार में व्यापक तौर पर खऱीदारी उपलब्ध हो सकती है.

अनेक म्यूचुअल फंड जिन्होंने निवेशकों से करोड़ों इकट्ठे किए हैं, ऐसे ही अवसर की तलाश में हैं, जिसमें वह सस्ते, बहुत सस्ते भाव पर शेयर खऱीद सकें.

 
 
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