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'रचनात्मकता से शून्य बजट' | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
27 फरवरी, 2006 को पेश आर्थिक सर्वेक्षण संसाधनों का रोना रोते हुए यह बता रहा था कि आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए संसाधनों की ज़रुरत है. सड़क, एयरपोर्ट और बंदरगाहों की हालत दुरुस्त करने के लिए करीब 2,62,000 करोड़ रुपए की ज़रुरत पड़ेगी. आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि बिजली क्षेत्र की बदहाली की वजह से सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपये के नुक़सान की आशंका है. और 28 फऱवरी, 2006 को पेश बजट में कारों और कोल्ड ड्रिंक पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में कटौती की गई. इस देश को सस्ती सड़क चाहिए या सस्ती कोल्ड ड्रिंक. संसाधनों का रोना रोकर जो सड़कें बनाई जाएंगी, उनकी कीमत उन पर चलने वाले तमाम यात्रियों से वसूली जाएंगी, जो सारे के सारे बहुत आर्थिक तौर पर बहुत संपन्न नहीं होंगे. कोल्ड ड्रिंक और कार पर कर कम न किया गया होता, तो इससे जुटाई गई रकम का एक अंश सड़क निर्माण में लगाया जा सकता है. आयकर न बढ़ाने का दावा करने वाले वित्तमंत्री ने सेवा कर के मामले में दो अहम काम किए हैं, नंबर एक–उसकी दर दस प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दी है. दूसरा काम उन्होने यह किया है कि इसके दायरे में बढ़ोत्तरी की है. यहां यह ग़ौरतलब है कि सेवा कर इस समय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण करों में से एक है. ताजा आंकड़ों के हिसाब से भारत की अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान करीब 55 प्रतिशत है. कृषि और उद्योग सेवा क्षेत्र से बहुत पीछे छूट चुके हैं. सेवा कर यह खासा डरावना तथ्य है कि जिस कृषि का योगदान अर्थव्यवस्था में सिर्फ 18 प्रतिशत है, उस पर देश की करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या के भरण-पोषण का जिम्मा है. कुल मिलाकर सेवाक्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र के रुप में उभर रहा है. पर दुर्भाग्य का विषय यह है कि सेवा क्षेत्र पर लगने वाले करों पर अभी जनता में उतनी जागृति नहीं हो पाई है. इसलिए वित्तमंत्री बड़े मजे से आय कर को छोड़ कर इस आलोचना से बच जाते हैं कि उन्होने कर में बढ़ोत्तरी नहीं की और उधर वह सेवा क्षेत्र के जरिए पब्लिक की जेब से पैसा निकालने की तैयारी कर लेते हैं. ग़ौरतलब है कि सेवा कर सिर्फ मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग पर नहीं लगता, यह निम्न मध्यवर्ग और कई मामलों में गरीब वर्ग को भी अपने लपेटे में लेता है. उदाहरण के लिए, बच्चों को ट्यूशन और कोचिंग सेंटर में भेजना ऐसी मज़बूरी है, जिससे देश का निम्न मध्यम वर्ग भी रूबरू होता है. पर ट्यूशन और कोचिंग सेंटर पर भी 12 प्रतिशत कर ठोंका गया है. टेलीफोन सेवा भी इस तरह की सेवाओं में शामिल हैं. कमाल की बात यह है कि वामपंथ समर्थित इस सरकार ने तमाम सेवाओं के वर्ग-चरित्र में भेद नहीं किया. अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने वाले पर भी सेवा कर 12 प्रतिशत है और जनता फ्लैट में एक लैंडलाइन रखने वाले पर सेवाकर भी 12 प्रतिशत है. बेहतर होता कि वित्त मंत्री रचनात्मकता दिखाते, सब धान बाईस पंसेरी न करके सेवाओं के तीन वर्ग बनाते-उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग और फिर उन आठ, बारह, सोलह प्रतिशत के हिसाब से कर लगाते. पर ऐसा न करके उन्होने हर वर्ग के बंदे के लिए ज़रुरी सेवा पर 12 प्रतिशत कर ठोंक दिया है. इस बजट से सेवा क्षेत्र पर व्यापक बहस की शुरुआत होनी चाहिए. वाम मोर्चे को सेवाओं के वर्ग चरित्र पर बहस की शुरुआत करनी चाहिए. | इससे जुड़ी ख़बरें बजट 2006-2007: विकास पर नज़र, नए कर नहीं28 फ़रवरी, 2006 | कारोबार यह आम आदमी का बजट हैः मनमोहन28 फ़रवरी, 2006 | कारोबार ऊँची विकास दर मगर बेरोज़गारी बढ़ी27 फ़रवरी, 2006 | भारत और पड़ोस गाँव, किसान, रोज़गार और शिक्षा को प्राथमिकता28 फ़रवरी, 2005 | कारोबार बजट: इंडिया के लिए, भारत के लिए नहीं28 फ़रवरी, 2005 | कारोबार मुंबई शेयर बाज़ार की रिकॉर्ड ऊँचाई06 फ़रवरी, 2006 | कारोबार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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