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अफ़्रीकी तेल बाज़ार में भारत की रूचि | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पश्चिम अफ़्रीकी देशों में तेल खोजने और सप्लाई करने के अधिकारों के बदले में भारत ने इन देशों को एक अरब डॉलर देने की पेशकश की है. भारतीय तेल मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी तलमीज़ अहमद ने कहा कि भारत रेल, बंदरगाहों और कंप्यूटर नेटवर्क समेत हर ज़रूरी चीज़ में निवेश करेगा. भारत अपनी 70 फ़ीसदी ऊर्जा ज़रूरतें आयात के ज़रिए पूरी करता है और वो नाइजीरिया जैसे पश्चिम अफ़्रीकी देशों को ऐसे निर्यातकों के नज़रिए से देख रहा है जो लंबे समय तक ऊर्जा की आपूर्ति कर सकते हैं. वहीं बुनियादी ढाँचे के निर्माण से अफ़्रीकी देशों को भी इससे काफ़ी फ़ायदा पहुँचेगा. संभावित बाज़ार ओएनजीसी मित्तल एनर्जी ने हाल ही में नाइजीरिया में बुनियादी ढाँचे के लिए साठ लाख डॉलर का समझौता किया है. ये पहल पश्चिम अफ़्रीका में भारत की बढ़ती दिलचस्पी का एक उदाहरण है. ओएनजीसी एनर्जी, भारत की ओएनजीसी कंपनी और दुनिया की सबसे बड़ी इस्पताल कंपनी मित्तल के बीच साझा उपक्रम है. भारतीय तेल मंत्रालय के अधिकारी तलमीज़ अहमद ने कहा है कि ओनएजीसी का ये समझौता तो सिर्फ़ शुरूआत है. ओएनजीसी ने सूडान से भी समझौता किया था. इसके तहत ग्रेटर नाइल क्षेत्र में तेल खोजने के अधिकारों के बदले उसने 25 करोड़ 90 लाख डॉलर खर्च करके पाइपलाइन बनाई थी. ओएनजीसी के अध्यक्ष सुबीर राहा का कहना है, “सूडान का समझौता ये साबित करता है कि अगर कंपनी को मौक़ा मिले तो वो क्या करने की क्षमता रखती है.” नाइजीरिया के अलावा भारत बुरकिना फ़ासो, आइवरी कोस्ट, घाना, सेनेगल और इक्वेटोरियल गिनी जैसे पश्चिम अफ़्रीकी देशों पर भी नज़र रखे हुए है. | इससे जुड़ी ख़बरें गैस पाइपलाइन पर उत्साहजनक संकेत06 जून, 2005 | भारत और पड़ोस भारत और बर्मा के बीच अहम समझौता11 जनवरी, 2005 | भारत और पड़ोस भारत तेल भंडार बनाएगा07 जनवरी, 2004 | भारत और पड़ोस | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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