रूस-यूक्रेन युद्ध: एमएच17 विमान 'दुर्घटना' के एक दशक बाद चार अनसुलझे सवाल

    • Author, ओल्गा इवशिना
    • पदनाम, बीबीसी न्यूज़ रशियन

साल 2014 के जून महीने की 17 तारीख़. मलेशिया एयरलाइंस के एक यात्री विमान को रूसी मिसाइल से मार गिराया गया था.

इस विमान में सवार सभी 300 लोग मारे गए थे. इस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना से जुड़े चार सवाल ऐसे हैं जो आजतक अनसुलझे हैं.

पूर्वी यूक्रेन में दोनबास क्षेत्र के पर जब इस विमान से मिसाइल टकराई तो उस समय उड़ान एमएच17 एमस्टर्डम से कुआलालम्पुर जा रही थी.

उस समय यूक्रेनी सेना और रूस नियंत्रित चरमपंथी गुटों के बीच घमासान चल रहा था.

मलेशिया एयरलाइंस की उस फ़्लाइट में 283 यात्रियों में 80 बच्चे थे और 15 क्रू सदस्य थे. ये सभी मारे गए.

डच प्रशासन ने विमान दुर्घटना की आपराधिक जांच शुरू की और बीते सालों में दर्जनों गवाहों का इंटरव्यू किया और सैकड़ों सबूतों की जांच पड़ताल की.

इस क्रैश की ज़िम्मेदारी लेने से रूस ने इनकार किया था लेकिन जांचकर्ताओं को इसमें रूस का कनेक्शन मिला. इस भयावह दुर्घटना से जुड़े कुछ प्रमुख सवालों पर नज़र डालते हैं.

किसे सज़ा मिली?

साल 2022 में हेग की अदालत ने इस दुर्घटना में तीन लोगों को दोषी पाया.

ये तीनों पूर्व रूसी सिक्योरिटी सर्विस (एफ़एसबी) अधिकारी थे, जो पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित अलगाववादी इलाक़े के स्वघोषित दोनेत्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर) सरकार का हिस्सा थे.

इगोर गिरकिन डीपीआर के पूर्व 'रक्षा मंत्री' थे, सेर्गेई डुबिंस्की इसके सैन्य इंटेलिजेंस प्रमख थे और लियोनिड क्रावशेंको डुबिंस्की के लिए काम करते थे.

इस मामले में चौथा व्यक्ति भी अभियुक्त था लेकिन कोर्ट ने बाद में कहा कि उसके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं मिले.

तीनों को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई, हालांकि इनमें से कोई भी कोर्ट रूम में मौजूद नहीं था.

इस दुर्घटना के मामले में अंतरराष्ट्रीय जांच को लेकर मॉस्को ने कोई सहयोग नहीं किया, हालांकि गिरकिन और डुबिंस्की रूसी नागरिक थे.

इगोर गिरकिन को रूस में जेल की सलाखों के अंदर डाला गया लेकिन बिल्कुल अलग अरोपों में.

पूर्व एफ़एसबी अफ़सर ने यूक्रेन हमले के दौरान रूसी सैन्य नेतृत्व पर अक्षमता के आरोप लगाए थे और जनवरी 2024 में उन पर चरमपंथी होने का आरोप लगे और उन्हें चार साल के लिए जेल में डाल दिया गया.

फ़रवरी, 2022 में जब हमला शुरू हुआ, उसके तुरंत बाद रूसी सेना की आलोचना को एक दंडात्मक अपराध बना दिया गया.

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किसने मिसाइल दागी?

डच जांचकर्ताओं ने वीडियो और फ़ोटो के सबूतों का आध्ययन किया और सैकड़ों इंटरसेप्टेड फ़ोन कॉल्स को खंगाला. इन सबूतों ने उन्हें ये साबित करने में मदद की कि विमान को बक एंटी एयरक्राफ़्ट लॉन्चर से दागी गई मिसाइल से मार गिराया गया था. डीपीआर अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित इलाक़े से ये मिसाइल दागी गई.

बक लॉंचर रूस की ओर से दिया गया था.

उसी समय कोर्ट ने कहा था कि तीनों दोषियों में से किसी ने भी मिसाइल दागने के लिए बटन नहीं दबाया था.

बेलिंगकैट इन्वेस्टिगेटिव वेबसाइट ने ये साबित किया कि जो बक लॉंचर सवालों के घेरे में है, वो रूस के 53 एयर डिफ़ेंस ब्रिगेड की तीसरी बटालियन से संबंधित है.

इससे क़रीब 30 संभावित अभियुक्तों का पता चला.

ऐसा माना गया कि इनमें से तीन या चार लोगों ने 17 जुलाई, 2014 को बक का इस्तेमाल किया.

डच अधिकारियों ने रूसी प्रशासन से इस ब्रिगेड के कमांडर कर्नल सेर्गेई मचकाएव से पूछताछ की अपील की थी.

जांच में मदद की अपील ठुकराने की शिकायतों के बाद भी मॉस्को ने कोई जवाब नहीं दिया.

इंटरसेप्टेड कॉल्स में एक अन्य व्यक्ति का पता चला, जिनकी पहचान रूसी एफ़एसबी कर्नल जनरल एंद्रे बुरलाका के नाम से हुई.

कॉल्स से मिले सबूत संकेत देते हैं कि बुरलाका ने बक सिस्टम को रूस से पूर्वी यूक्रेन ले जाने में मदद की थी.

बीबीसी ने ये साबित किया कि पूर्वी यूक्रेन में 2014 से 2015 के बीच जब सक्रिय सशस्त्र संघर्ष जारी था, उस दौरान जनरल बुरलाका को रूस के सर्वोच्च सम्मान "हीरो ऑफ़ रशिया" से सम्मानित किया गया था.

पुतिन की क्या भूमिका थी

तीन अपराधियों को सज़ा दिए जाने के महीनों बाद फ़रवरी, 2023 में जांचकर्ताओं ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का पूर्वी यूक्रेन के संघर्ष और विमान गिराने में सीधा हाथ था.

सबूत के तौर पर उन्होंने दो इंटरसेप्टेड फ़ोन कॉल्स पेश किए, दोनों में इस बात का ज़िक्र है कि बक एयर डिफ़ेंस मिसाइल लॉंचर को यूक्रेन ले जाने का फ़ैसला बहुत शीर्ष स्तर के शख़्सियत द्वारा लिया गया था, अधिक संभावना है कि इसका आशय राष्ट्रपति पुतिन से था.

डच ज्वाइंट इन्वेस्टिगेशन टीम (जेआईटी) ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, "इस बात के मज़बूत संकेत हैं कि बक से जुड़े फ़ैसले में पुतिन का सीधा हाथ था, लेकिन ये संकेत ठोस सबूत के मानदंडों तक नहीं पहुंचते."

उन्होंने ये भी कहा कि रूसी राष्ट्र के मुखिया के तौर पर राष्ट्रपति पुतिन का क़द डच क़ानून के तहत उन्हें एक किस्म का कवच प्रदान करता है और जबतक वो राष्ट्रपति रहते हैं राष्ट्रीय अदालत में उनपर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता.

पुतिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने टिप्पणी की कि उस समय रूस को जांच में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं दी गई थी और इससे 'इसके मक़सद में कोई योगदान नहीं हुआ.'

पीड़ितों के मुआवज़े के लिए अब आगे क्या

साल 2020 में डच सरकार ने मानवाधिकारों के मामले देखने वाली यूरोपीय अदालत से अपील की थी कि एमएच17 उड़ान के 298 यात्रियों और क्रू सदस्यों की मौत का ज़िम्मेदार रूस को माना जाए, साथ ही घटना की जांच से इनकार करने के लिए भी यह मुकदमा अभी तक चल रहा है.

डच सरकार की दलील है कि रूस ने इस भयानक दुर्घटना में मुख्य भूमिका निभाई थी और विमान गिरने के बारे में क्रेमलिन का जारी दुष्प्रचार अभियान पीड़ितों के संबंधियों के नागरिक अधिकारिकारों का पूर्ण उल्लंघन है.

मॉस्को ने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है और एमएच17 के मुक़दमे को अपने प्रोपेगैंडा में सक्रिय रूप से इस्तेमाल किया है. वो दावा करता है कि विमान को यू्क्रेनी सेना ने मार गिराया था या ये कि विमान के गिरने से पहले ही यात्रियों की मौत हो गई थी.

अगर रूस यह मुकदमा हारता है तो ये संभव है कि कोर्ट पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहरा सकता है. व्यवहार में, ऐसे फ़ैसले सांकेतिक ही होते हैं.

यूक्रेन पर हमले के कुछ ही समय बाद, रूसी राष्ट्रपति ने इससे संबंधित अदालती फैसले को न मानने के लिए एक क़ानून पास किया, जो 15 मार्च 2022 से लागू हो गया था.

साथ ही एमएच17 क्रैश के पीड़ितों को मुआवज़ा मिलने की उम्मीद नहीं है. ये संभव है कि भविष्य में किसी समय रूस में कोई अलग सरकार मुआवज़े से संबंधित बाचतीत के लिए कोई राजनीतिक फैसला ले सके.

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