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अमेरिका ने ग़ज़ा में आसमान से गिराई राहत सामग्री, क्यों हो रहा विवाद और क्या होता है ‘एयरड्रॉप’
- Author, लुइस बरुचो
- पदनाम, बीबीसी वर्ल्ड सर्विल-बीबीसी अरबी
अमेरिका ने पहली बार ग़ज़ा में विमानों से सहायता सामग्री गिराई (एयरड्रॉप) है.
अमेरिका के तीन सैनिक विमानों ने पैराशूट से खाने के 30,000 से अधिक पैकेट गिराए. अमेरिका ने यह क़दम मानवाधिकार संगठनों की आलोचना के बाद उठाए हैं.
यह अभियान अमेरिका ने जॉर्डन की वायु सेना के साथ मिलकर संयुक्त रूप से चलाया. यह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की ग़ज़ा के लिए की गईं कई घोषणाओं में से पहला क़दम था. यह तब हुआ जब बीते गुरुवार को ग़ज़ा में राहत सामग्री के लिए उमड़ी भीड़ में करीब 112 लोगों की मौत हो गई थी.
इसराइली सेना का कहना है कि इस घटना में मारे गए अधिकांश फ़लस्तीनी भगदड़ के शिकार हुए. लेकिन ग़ज़ा में हमास की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अस्पतालों में लाए गए हताहतों को गोलियां लगी थीं. इसराइल का कहना है कि वह घटना की जांच कर रहा है.
अमेरिका ने विमान से राहत सामग्री तब गिराई जब उसके एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि ग़ज़ा में छह हफ्ते के युद्धविराम के लिए समझौते की रूपरेखा तैयार कर ली गई है.
कितनी सहायता सामग्री गिराई गई?
अमेरिका की सेंट्रल कमांड ने एक बयान में कहा, ''अमेरिका के सी-130 विमानों ने अमेरिकी और जॉर्डन की वायु सेना के साझा प्रयास में दक्षिण-पश्चिम ग़ज़ा समुद्र तट पर खाने के क़रीब 38,000 पैकेट गिराए.''
समाचार एजेंसी एपी ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा है कि भोजन के एक सीलबंद पैकेट में उतनी ही कैलोरी होती है, जितनी एक दिन के भोजन में होती है.
इससे पहले ब्रिटेन, फ्रांस, मिस्र और जॉर्डन समेत कई दूसरे देशों ने भी ग़ज़ा में हवाई जहाज़ से सहायता सामग्री एयरड्रॉप की थी. अमेरिका ने यह क़दम पहली बार उठाया है.
राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि अमेरिका एक समुद्री गलियारा खोलने और ज़मीन के रास्ते राहत सामग्री की सप्लाई का विस्तार करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करेगा.
ग़ज़ा में जो सहायता सामग्री भेजी जाती है, वो आमतौर पर इसराइल और मिस्र के नियंत्रण वाली क्रॉसिंगों के ज़रिए सड़क मार्ग से पहुंचाई जाती है. इनमें से अधिकांश क्रॉसिंगों को युद्ध के दौरान बंद कर दिया गया है. इसकी वजह से ग़ज़ा में बहुत सीमित मात्रा में सहायता सामग्री ट्रकों से पहुंचाई जा रही है.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ग़ज़ा की 23 लाख की आबादी में से करीब एक चौथाई लोग भुखमरी के शिकार हैं.
क्या इतनी सहायता सामग्री पर्याप्त है?
बीबीसी अरबी ने ग़ज़ा में ग़ज़ा लाइफलाइन के नाम से एक आपातकालीन रेडियो सेवा स्थापित की है. ग़ज़ा निवासी इस्माइल मोकबेल ने इस रेडियो सेवा को बताया कि विमान से गिराए गए पैकेटों में कुछ फलियां और महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी कुछ ज़रूरी चीज़ें थीं.
अबू यूसुफ उत्तरी ग़ज़ा में अल शिफा अस्पताल के पास मौजूद थे. उन्होंने रेडियो को बताया कि उन्हें एयरड्रॉप की गई सहायता सामग्री नहीं मिल पाई. उन्होंने कहा कि अचानक हमने आसमान में सहायता पैराशूट देखे, हम जहां पर थे, वे पैकेट उस स्थान से करीब 500 मीटर दूर जाकर गिरे. वहां बहुत से लोग थे, लेकिन सहायता सामग्री कम थी. इसलिए हमें कुछ नहीं मिल सका.
मोकबेल ने कहा कि नागरिकों की संख्या को देखते हुए सहायता सामग्री पर्याप्त नहीं थी, नागरिक सभी तरह की ज़रूरी चीज़ों की कमी का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ''हज़ारों लोगों ने अपने ऊपर सहायता सामग्री गिरते देखी, सैकड़ों या हज़ारों लोग ऐसे इलाके में इंतज़ार कर रहे होते हैं, केवल 10-20 लोगों को ही चीज़ें मिलती हैं, जबकि अन्य लोग बिना कुछ लिए ही वापस लौट जाते हैं. दुर्भाग्य से, हवाई मार्ग से गिराने का यह तरीका ग़ज़ा के उत्तरी ज़िले में सहायता सामग्री पहुंचाने का सबसे उचित तरीका नहीं है.''
वो कहते हैं, "ग़ज़ा को सहायता पहुंचाने के लिए सड़क और जल मार्ग की ज़रूरत है न कि ऐसे तरीक़े की जो सभी नागरिकों की ज़रूरतों को पूरा नहीं करता है.''
एयरड्रॉप एक महंगा तरीक़ा
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ज़मीन पर अलग-थलग पड़े सैनिकों तक सहायता पहुंचाने के लिए इस तरीक़े का इस्तेमाल किया गया था. संयुक्त राष्ट्र ने इसका इस्तेमाल पहली बार 1973 में किया था. इसके बाद से एयरड्रॉप मानवीय सहायता का एक उपयोगी तरीक़ा बन गया.
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) की 2021 में आई एक रिपोर्ट में एयरड्रॉप को अंतिम उपाय माना गया है, इसका इस्तेमाल तब होता है जब सभी अधिक प्रभावी विकल्प विफल हो जाते हैं. डब्लूएफपी ने अंतिम बार इसका इस्तेमाल दक्षिण सूडान में किया था.
नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के प्रमुख जान एगलैंड अभी हाल ही में ग़ज़ा की तीन दिन की यात्रा कर लौटे हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया, "एयरड्रॉप महंगा है, बेतरतीब है और आमतौर पर ग़लत लोगों को सहायता मिल जाती है."
डब्लूएफपी का कहना है कि विमान, ईंधन और कर्मचारियों से जुड़ी लागत की वजह से एयरड्रॉप ज़मीन के रास्ते पहुंचाई जाने वाली सहायता की तुलना में सात गुना अधिक महंगी है.
ट्रकों के एक काफिले से जितनी सहायता सामग्री पहुंचाई जा सकती है, उसकी तुलना में हर उड़ान से अपेक्षाकृत कम मात्रा में सहायता सामग्री ही पहुंचाई जा सकती है. इसके अलावा जहां सहायता सामग्री गिराई जानी होती है, वहां ज़मीनी समन्वय की भी ज़रूरत होती है.
रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति ने 2016 में आई एक रिपोर्ट में लोगों को अनुचित या असुरक्षित सामान का इस्तेमाल कर अपनी जान जोखिम में डालने से बचाने के लिए सहायता सामग्री के वितरण को नियंत्रित करने पर ज़ोर दिया है. यह रिपोर्ट 2016 में तब आई थी, जब सीरिया में गृह युद्ध चल रहा था और सहायता सामग्री को एयरड्रॉप किया जा रहा था.
डब्लूएफपी का कहना है कि एयरड्रॉप में सहायता सामग्री संघर्ष वाले इलाके में 300 से 5,600 मीटर तक की ऊंचाई से गिराई जा सकती है. ऐसे में यह सुनिश्चित करने के लिए की पार्सल ज़मीन पर गिरने के बाद भी सुरक्षित रहे, उसकी मज़बूत पैकिंग की ज़रूरत होती है.
डब्लूएफपी के मुताबिक ड्रॉप ज़ोन बड़े और खुले इलाके में होने चाहिए और फुटबॉल के एक मैदान से छोटे नहीं होने चाहिए. यही कारण है कि सहायता सामग्री अक्सर ग़ज़ा के तटीय इलाके को लक्ष्य कर गिराई जाती है. कुछ स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि कभी-कभी सहायता सामग्री समुद्र में गिर जाती है या हवा उसे इसराइल में बहा ले जाती है.
'ग़ज़ा में भोजन लाने की ज़रूरत'
ग़ज़ा निवासी समीर अबो सभा ने बीबीसी अरबी के ग़ज़ा लाइफलाइन रेडियो को बताया कि उनका मानना है कि अमेरिका को और अधिक प्रयास करना चाहिए और युद्धविराम के लिए इसराइल पर दबाव डालना चाहिए.
उन्होंने कहा, ''ग़ज़ा के एक नागरिक के रूप में, यह सामान उनके किसी काम का नहीं है, हम चाहते हैं कि अमेरिका इसराइल पर युद्धविराम के लिए दबाव डाले और इसराइल को हथियार और मिसाइलें देना बंद कर दे.''
कुछ मानवतावादी संगठनों ने भी इसी तरह की बात कही है.
ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल के स्कॉट पॉल ने पिछले हफ्ते बाइडन प्रशासन की पहल की आलोचना करते हुए कहा था कि एयरड्रॉप्स ज्यादातर वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों को राहत देने का काम करेंगे, जिनकी नीतियां ग़ज़ा में जारी अत्याचार और अकाल के खतरे में अपना योगदान दे रही हैं.
फ़लस्तीन में मानवीय संकट जैसे-जैसे गहराता जा रहा है, उसे देखते हुए कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि वहां खाद्य सामग्री किसी भी तरह से पहुंचाई जानी चाहिए.
शेफ और वर्ल्ड सेंट्रल किचन के संस्थापक जोस एंड्रेस ने अमेरिकी प्रसारक एबीसी से कहा, ''हमें किसी भी तरह से ग़ज़ा में भोजन लाने की ज़रूरत है. हमें इसे समुद्र के रास्ते लाना चाहिए...हमें ग़ज़ा के सामने नावें लगानी चाहिए.''
जोस एंड्रेस ग़ज़ा में खाना पहुंचा रहे हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी ने उन्हें इस साल के शुरू में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था.
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