मोदी और बीजेपी के लिए नीतीश कुमार कैसे बन गए 'किंग मेकर'

    • Author, चंदन कुमार जजवाड़े
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, पटना

लोकसभा चुनाव में बिहार के नतीजों पर भी सबकी नज़रें थी. ऐसा लग रहा था कि यहाँ 'इंडिया' गठबंधन एनडीए को कड़ी टक्कर देगा.

हालाँकि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और उसके सहयोगी दलों ने पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया.

फिर भी एनडीए 40 सीटों में से 30 सीटें जीतने में सफल रहा.

बिहार के नतीजों में एक और बड़ी बात रही नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) का प्रदर्शन. जनता दल (यू) ने 12 सीटें जीती हैं.

हालाँकि बीजेपी ने भी 12 सीटें जीतीं, लेकिन बीजेपी ने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जबकि जनता दल (यू) ने 16 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था.

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल महज़ 4 सीट जीत पाई है, जबकि उसने सबसे ज़्यादा 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

आरजेडी ने अपने खाते की तीन सीटें मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को भी दी थी, लेकिन वीआईपी भी किसी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई है.

आरजेडी इन चुनावों को रोज़गार और महंगाई के मुद्दे पर लड़ रही थी. उसने कई सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों की जीत के अंतर कम ज़रूर किया है.

आरजेडी के पास बिहार में एक भी लोकसभा सीट नहीं थी, इस लिहाज से यह चुनाव उसके लिए फ़ायदे वाला रहा है. राज्य में एनडीए के सबसे बड़े घटक दल यानी बीजेपी को सीटों के लिहाज से सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है.

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साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पास राज्य में 17 लोकसभा सीटें थीं, इस बार भी उसने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उकसे हिस्से में महज़ 12 सीटें आई हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, "लालू बीमार हैं और बिहार में तेजस्वी यादव अकेले पड़ गए. राहुल और प्रियंका ने भी बिहार में प्रचार नहीं किया फिर भी बीजेपी के कमज़ोर चुनावी प्रदर्शन के पीछे मोदी हैं. मोदी की लोकप्रियता गिरी है, लोगों में उनको लेकर ग़ुस्सा है. किशनगंज में जेडीयू उम्मीदवार का दूसरे स्थान पर होना बताता है कि नीतीश को मुसलमानों का भी वोट मिला है, जबकि मोदी ख़ुद बनारस में राहुल या प्रियंका से नहीं बल्कि अजय राय से महज़ डेढ़ लाख वोटों से जीत पाए. पिछली बार वो क़रीब पाँच लाख से ज़्यादा वोटों से जीते थे."

इन चुनावों में बड़ा नुक़सान राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा को हुआ है.

बीजेपी के बाग़ी उम्मीदवार और भोजपुरी कलाकार पवन सिंह ने काराकाट सीट पर उपेंद्र कुशवाहा के चुनावी समीकरण को पूरी तरह बिगाड़ दिया और कुशवाहा काराकाट सीट से चुनाव हार गए हैं. इस सीट पर सीपीआई (एमएल) के राजा राम सिंह ने जीत दर्ज की है.

नीतीश को लेकर उठते रहे सवाल

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पास राज्य में 17 लोकसभा सीटें थीं, इस बार भी उसने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उकसे हिस्से में महज़ 12 सीटें आई हैं.

पिछले लोकसभा चुनावों में बिहार में जेडीयू भी 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, इस बार उसे एनडीए में साझेदारी में 16 सीटें ही मिली थीं.

बिहार में साल 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को राज्य की 243 सीटों वाली विधानसभा में महज़ 43 सीटें मिली थीं.

जेडीयू को उन चुनावों में महज़ 15.39% वोट मिले थे.

इस नतीजे के बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर और उनकी पार्टी पर सवाल उठने लगे थे.

नीतीश कुमार ने साल 2022 में बीजेपी का साथ भी छोड़ दिया था और महागठबंधन में आ गए थे.

फिर उन्होंने विपक्षी एकता की पहल की और विपक्ष का ‘इंडिया’ गठबंधन भी बना. लेकिन इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार वापस एनडीए में आ गए.

लेकिन नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बावजूद उनकी पार्टी के भविष्य पर लगातार सवाल उठते रहे.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने तो आने वाले समय में जनता दल (यू) के ख़ात्मे की बात कह दी थी. नीतीश को सियासी तौर पर कमज़ोर भी बताया गया.

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी नीतीश कुमार से स्वास्थ्य को लेकर चर्चा चलती रही. अपने भाषणों में कई बार उन्होंने तथ्यात्मक ग़लतियाँ की, जिसके कारण उनका काफ़ी मज़ाक भी बना.

नीतीश ने बेगूसराय में चुनावी मंच पर नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में कहा था कि जनता वोट देकर मोदी को 4000 लोकसभा सीटें देगी. इसके अलावा एक बार उन्होंने यह भी कह दिया था नरेंद्र मोदी तीसरी बार ‘मुख्यमंत्री’ बनेंगे.

नीतीश कुमार के सियासी भविष्य पर उस समय भी काफ़ी सवाल उठे, जब वो पटना में नरेंद्र मोदी के साथ रोड-शो कर रहे थे.

इस दौरान नीतीश के हाथ में बीजेपी का चुनाव चिन्ह देखकर कई लोग हैरान थे.

इस रोड शो में नीतीश कुमार काफ़ी कमज़ोर और थके हुए भी नज़र आ रहे थे. उनकी सेहत को लेकर भी कहा जा रहा था कि नीतीश अब अपनी सियासी पारी के अंतिम दौर में हैं.

नीतीश कुमार ने महागठबंधन की पिछली सरकार के दौरान इसका इशारा भी किया था और तेजस्वी यादव को महागठबंधन का अगला चेहरा बताया था.

लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने नीतीश कुमार की पार्टी और उनके ख़ुद के सियासी करियर में जान फूँक दिया है.

उनकी पार्टी का वोट शेयर भी क़रीब 19 फ़ीसदी हो गया है और अब वो ‘किंग मेकर’ तक की भूमिका में आ गए हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, "किशनगंज में जेडीयू को मुसलमानों का भी वोट मिला है. नीतीश कुमार किसी मामले में कट्टर नहीं हैं और इसलिए बिहार में न तो जाति के आधार पर और न धर्म के आधार पर वोटों का विभाजन हुआ, जिसका फ़यदा नीतीश को मिला. जबकि बीजेपी को हुए नुक़सान से पता चलता है कि मोदी की लोकप्रियता गिरी है, लोगों में उनको लेकर ग़ुस्सा है."

‘नीतीश के ख़ामोश वोटरों का बदला’

लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार में क़रीब 30 लोकसभा सीटों पर लोग आमतौर पर तेजस्वी यादव के उठाए मुद्दे यानी महंगाई और रोज़गार की बात कर रहे थे, या वो केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार की बात कर रहे थे.

चुनाव आगे बढ़ने के साथ ही बिहार में संविधान और आरक्षण जैसे मुद्दों की भी चर्चा होने लगी, लेकिन इस मामले में नीतीश कुमार को लेकर चर्चा कम देखने को मिली. हालाँकि महिलाओं ने कई जगहों पर नीतीश का ज़िक्र किया.

माना जाता है कि बिहार में शराबबंदी, 'जीविका योजना' के तहत महिलाओं को मिलने वाली आर्थिक मदद और 'साइकिल योजना' जैसी सरकारी स्कीम का असर महिला वोटरों पर बरक़रार है और इसका फ़ायदा नीतीश कुमार को हुआ है.

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, “शराबबंदी से ख़ुश महिलाएँ और जीविका दीदियों के अलावा नौकरी में महिलाओं को 35 फ़ीसदी आरक्षण की वजह से महिलाएँ नीतीश के साथ हैं. लालू ने भले ही नीतीश के कुशवाहा वोटरों को तोड़ दिया, लेकिन ईबीसी वोटरों का बड़ा हिस्सा अब भी नीतीश के साथ है, जिसे हम समझ नहीं पाए और सबने मिलकर बीजेपी से साल 2020 का बदला भी लिया है.”

साल 2022 में एनडीए का साथ छोड़ते हुए नीतीश की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी पर ‘चिराग मॉडल’ की राजनीति का आरोप लगाया था.

एलजेपी नेता चिराग पासवान ने एनडीए में रहते हुए भी साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में जेडीयू के उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार उतारे थे और इससे जेडीयू को बड़ा नुक़सान हुआ था.

बिहारः जीत के जश्न से दूर

बिहार में आरजेडी और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी को भी छोटी सफलता मिली है. इस मामले में एलजेपी और जेडीयू भले बेहतर स्थिति में पहुँचे हैं, लेकिन एनडीए के सबसे बड़े घटक दल यानी बीजेपी को झटका लगा है. इसलिए राज्य में किसी भी दल में बड़ा जश्न देखने को नहीं मिला है.

बीजेपी को सीपीआई (एमएल) ने एक बड़ा झटका आरा सीट पर दिया है. यहाँ से सीपीआई (एमएल) के सुदामा प्रसाद ने मोदी सरकार में मंत्री रहे आरके सिंह को हरा दिया है.

मोदी की पहली सरकार में मंत्री रहे और लगातार दो बार से पाटलिपुत्र सीट से सांसद रहे बीजेपी के रामकृपाल सिंह भी इस बार मीसा भारती से चुनाव हार गए हैं.

बीजेपी ने बक्सर सीट से सांसद रहे अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा था, जो चुनाव हार गए.

मिथिलेश तिवारी को उतारना बीजेपी की बड़ी ग़लती (मिस्टेक) कहा जा रहा था.

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर मानते हैं कि बिहार ने एनडीए को झटका दिया है, हालाँकि यह पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तरह बड़ा झटका नहीं है लेकिन किसी भी उम्मीदवार को खड़ा कर और मोदी के नाम से जीत जाएंगे, इसे लोगों ने बीजेपी की इस समझ नकार दिया है.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “बीजेपी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता नीतीश की एनडीए में वापसी नहीं चाहते थे. इसलिए उसके और आरएसएस के कार्यकर्ता चुनावों में निष्क्रिय बने रहे. कार्यकर्ताओं को लगा कि जब मोदी के नाम से ही जीतना है तो उनकी क्या ज़रूरत है.”

हालाँकि बिहार में इन लोकसभा चुनावों में सबसे ज़्यादा प्रचार करने वाले तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी को भी कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. आरजेडी को महज़ 4 सीटों पर जीत मिली है. जबकि कांग्रेस को 3 और सीपीआई (एमएल) को दो सीटों पर जीत मिली है.

नीतीश पर नज़र

इसके अलावा अंतिम समय में इंडिया गठबंधन का हिस्सा बने और तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाली मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को भी एक भी सीट पर जीत नहीं मिली है.

इन चुनावों में काराकाट सीट से राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा की हार के साथ ही अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के पास न तो कोई सांसद है, न विधायक है और न ही विधान परिषद सदस्य.

वोटों की गिनती के बीच ही आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने पत्रकारों से बातचीत में दावा किया कि केंद्र की सत्ता की चाबी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के पास है और वो ऐसे नेता हैं जो मोदी के कामकाज़ के तरीके को पसंद नहीं कर सकते.

एक तरफ नीतीश कुमार को अन्य दलों को लेकर विपक्ष अपनी रणनीति बना रहा है, वहीं पटना में जनता दल यूनाइटेड के कार्यकर्ता और नीतीश कुमार के समर्थक एक बार फिर से उन्हें देश के प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करते दिखे.

सुरूर अहमद सुरूर अहमद के मुताबिक़, “नीतीश अब बिहार में सबसे ज़्यादा तोल मोल करने की स्थिति में आ गए हैं. नीतीश हीरो बन गए हैं. बीजेपी को अब नीतीश और चंद्रबाबू नायडू की ज़रूरत पड़ गई है.”

मौजूदा लोकसभा चुनाव परिणामों में अगर राज्य में आरजेडी की स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है तो नीतीश कुमार भी अपनी ताक़त दिखाने में सफल रहे हैं.

चुनाव परिणाम के पूरी तरह स्पष्ट होने के बाद ज़ाहिर है देश की सियासी नज़रें अब दिल्ली पर हैं और नीतीश कुमार पर सियासी दलों की नज़र है.

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