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दाभोलकर हत्याकांड में अदालत ने दो दोषियों को सुनाई उम्रक़ैद की सज़ा, तीन अभियुक्त बरी
- Author, भाग्यश्री राउत
- पदनाम, बीबीसी मराठी के लिए
सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की 11 साल पहले हुई हत्या के मामले में पुणे की अदालत ने दो लोगों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है. वहीं, मामले में तीन लोगों को बरी कर दिया गया है.
पुणे में 11 साल पहले हुई एक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. तारीख थी- 20 अगस्त, 2013.
डॉ. नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे, जिनकी इसी दिन पुणे के महर्षि विट्ठल रामजी ब्रिज पर गोली मारकर हत्या कर दी गई.
अब इस घटना के क़रीब 11 साल बाद आज यानी 10 मई 2024 को कोर्ट ने अभियुक्त शरद कालस्कर और सचिन अंदुरे को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है.
अदालत ने वकील संजीव पुनालेकर, वीरेंद्र तावड़े और विक्रम भावे को मामले से बरी कर दिया है.
पुणे की अदालत में विशेष जज पीपी जाधव की अगुवाई में इस मामले की सुनवाई हुई.
जानिए, डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में अब तक क्या हुआ, सीबीआई की तरफ़ से और दूसरे पक्ष से क्या-क्या दलीलें रखी गई थीं.
जब मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने मारी थी गोली
20 अगस्त 2013 को डॉ. दाभोलकर सुबह की सैर के लिए निकले थे. जैसे ही वो बाल गंधर्व रंग मंदिर के पीछे वाले पुल पर पहुंचे तो दो मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने उन पर हमला बोल दिया, उनपर गोलियां बरसाई गईं. अभियुक्त पास में ही छिपे हुए थे और वो दाभोलकर को निशाना बनाने की तलाश में थे. घटनास्थल पर दाभोलकर की मौत हो गई और दोनों आरोपी मौके से फ़रार हो गए.
इस घटना की ख़बर फैलते ही पूरे महाराष्ट्र में प्रदर्शन होने लगे. दाभोलकर के हत्यारों की गिरफ़्तारी की मांग ज़ोर पकड़ने लगी. कार्रवाई को लेकर पूरे राज्य से सामाजिक कार्यकर्ता 'हम सब दाभोलकर' के नारे के तहत एकजुट हो गए. पुणे पुलिस ने मामले की जांच शुरू की.
पुणे पुलिस ने की पहली गिरफ़्तारी लेकिन...
डॉ. दाभोलकर हत्याकांड मामले में जनवरी 2014 में पुणे पुलिस ने पहली गिरफ़्तारी की. कथित बंदूक डीलर मनीष नागोरी और उसके सहायक विकास खंडेलवाल को हिरासत में लिया गया था.
हालांकि, दोनों गिरफ़्तारियों की वजह से विवाद भी खड़ा हो गया था. ठाणे पुलिस ने उन्हें 20 अगस्त 2013 को शाम 4 बजे पकड़ा था. लेकिन उन्हें हत्या के मामले में नहीं बल्कि वसूली के मामले में दाभोलकर की हत्या के महज कुछ घंटों के भीतर ही पकड़ा गया था.
अक्टूबर 2013 में नागोरी और खंडेलवाल को महाराष्ट्र एटीएस ने अपनी कस्टडी में लिया, ऐसा दावा किया गया कि 40 अवैध हथियार बरामद किए गए. एटीएस की तरफ़ से दावा किया गया कि बरामद किए गए एक बंदूक का मिलान दाभोलकर की हत्या की जगह से मिले कारतूस से हुआ है.
शुरुआत में पुणे यूनिवर्सिटी के एक सुरक्षाकर्मी की हत्या के मामले में गिरफ़्तारी की गई थी, बाद में दाभोलकर की हत्या का आरोप इन पर लगा.
हालांकि, 21 जनवरी 2014 को इस मामले में बड़ा मोड़ तब आया, जब अभियुक्तों ने एटीएस चीफ़ पर ही आरोप लगा दिया. अभियुक्तों का दावा था कि एटीएस चीफ़ राकेश मारिया ने दाभोलकर की हत्या की बात कबूल करने के लिए 25 लाख रुपये की पेशकश की थी.
हालांकि, बाद की सुनवाई में दोनों ने स्वीकार किया कि आरोप झूठे थे. पुणे पुलिस ने भी उन दोनों आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल नहीं किया और बाद में ये कहा गया कि उनका इस मामले कोई संबंध नहीं था. नतीजा ये हुआ कि कोर्ट ने दोनों आरोपियों को ज़मानत पर रिहा कर दिया.
पुणे पुलिस से सीबीआई के पास कैसे चल गई जांच?
पुणे पुलिस की जांच पर सवाल उठने लगे, जांच जब भटकती दिखी तो मामले को सीबीआई को ट्रांसफर करने की मांग उठी. जून 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने दाभोलकर केस को सीबीआई को सौंप दिया.
सीबीआई ने पहली गिरफ़्तारी 10 जून 2016 में की. सनातन संस्था से जुड़े डॉ वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ़्तार किया गया, जो कि एक मेडिकल प्रोफेशनल और ईएनटी स्पेशलिस्ट थे. इससे पहले साल 2015 में पानसरे हत्याकांड से जुड़े मामले में तावड़े को गिरफ़्तार किया गया था. सीबीआई ने दावा किया कि दाभोलकर की हत्या की योजना बनाने में तावड़े की भूमिका थी.
सीबीआई के मुताबिक़, हत्या के पीछे की वजह सनातन संस्था और महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के बीच टकराव था. इसके बाद हत्या की साजिश रचने के आरोप में तावड़े के ख़िलाफ़ 6 सितंबर 2016 को चार्जशीट दाखिल की गई थी.
इसी चार्जशीट में सीबीआई ने दावा किया कि सनातन संस्था के दो भगोड़े सदस्यों सारंग अकोलकर और विनय पवार ने दाभोलकर को गोली मारी थी. तावड़े की गिरफ़्तारी कोल्हापुर के एक हिंदू कार्यकर्ता संजय सदविलकर की गवाही के आधार पर की गई थी.
तावड़े और अकोलकर ने साल 2013 में सदविलकर से मुलाकात की थी. तावड़े ने सदविलकर से हथियार के लिए सहायता मांगी थी. अकोलकर ने देसी पिस्तौल और रिवॉल्वर का इंतजाम किया. सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक़, तावड़े ने अकोलकर और पवार को दाभोलकर को मारने का निर्देश दिया था.
धीमी गति से आगे बढ़ रही थी जांच
हत्या के दो साल के बावजूद जांच धीमी गति से आगे बढ़ रही थी. ऐसे में दाभोलकर के परिवार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसके बाद आगे की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में की गई.
पुणे पुलिस की आलोचना हो रही थी, इस वजह से डॉ. हामिद दाभोलकर और मुक्ता दाभोलकर ने साल 2015 में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने मांग की कि जांच की निगरानी हाईकोर्ट को करनी चाहिए.
हाईकोर्ट की निगरानी में ये जांच 8 साल तक चलती रही. जब सीबीआई ने पांचों आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल कर दिया तो हाईकोर्ट ने अप्रैल 2023 में इस याचिका का निपटारा कर दिया. हाईकोर्ट की निगरानी में जांच के पांच साल बाद सीबीआई ने दो आरोपियों को गिरफ़्तार किया था.
जब इन आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई तो सीबीआई की जांच ही विवादों में आ गई. सीबीआई ने शुरुआत में कहा था कि सारंग अकोलकर और विनय पवार ने दाभोलकर को गोली मारी थी. लेकिन अगस्त 2018 में शरद कालस्कर और सचिन अंदुरे नाम के दो आरोपियों को दाभोलकर पर गोली चलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. ये दावा सीबीआई के पुराने दावे से अलग था.
सवाल ये भी है कि आख़िर पुलिस कालस्कर और अंदुरे तक कैसे पहुंची.
चार्जशीट में क्या था?
कालस्कर और अंदुरे की गिरफ़्तारी का सुराग परशुराम वाघमारे से मिला. परशुराम को गौरी लंकेश की हत्या से जुड़े मामले में गिरफ़्तार किया गया था.
साल 2018 में महाराष्ट्र एटीएस ने महाराष्ट्र के नालासोपारा में वैभव राउत के घर पर छापा मारा था, यहीं से राऊद और कालस्कर को हथियारों के साथ गिरफ़्तार किया गया था. पूछताछ के दौरान, कालस्कर ने अपना अपराध कबूल किया और दाभोलकर केस से उसके संबंधों का पता चला.
आगे की जानकारी के हिसाब से औरंगाबाद से सचिन अंदुरे की गिरफ़्तारी हुई. तो कुछ ऐसे दाभोलकर हत्याकांड में तीसरी गिरफ़्तारी हुई.
कानून के हिसाब से गिरफ़्तारी के तीन महीने के भीतर चार्जशीट दाख़िल कर देनी चाहिए. हालांकि. मामले की जटिलता का हवाला देते हुए सीबीआई ने कुछ और वक्त मांगा. आख़िरकार, 13 फरवरी 2019 को दोनों आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई.
चार्जशीट में सीबीआई ने दावा किया कि दाभोलकर को कालस्कर और अंदुरे ने गोली मारी थी. ये भी बताया गया कि गौरी लंकेश मर्डर केस के मुख्य आरोपी अमोल काले ने अंदुरै को दाभोलकर पर हमले के लिए पिस्तौल और दो-पहिया गाड़ी मुहैया कराई थी.
हमले में इस्तेमाल किए गए हथियार का क्या हुआ?
अब आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार कहां हैं? सीबीआई ने हथियारों को ढूंढने के दौरान दो और लोगों को गिरफ़्तार किया था.
26 मई 2019 को सीबीआई ने सनातन धर्म से जुड़े एक वकील संजीव पुनालेकर और उसके सहयोगी विक्रम भावे को मुंबई से गिरफ़्तार किया. सीबीआई का आरोप था कि पुनालेकर ने शरद कालस्कर को दाभोलकर हत्या मामले में इस्तेमाल की गई पिस्तौल को ठिकाने लगाने की सलाह दी थी. इसके बाद कालस्कर ने चार पिस्तौल ठाणे में एक खाड़ी में फेंक दी. भावे ने शूटरों के लिए इलाक़े की रेकी की थी. पुनालेकर को सीबीआई हिरासत में पूछताछ के बाद 5 जुलाई 2019 को जमानत पर रिहा कर दिया गया.
सीबीआई ने विदेशी एजेंसियों की मदद से खाड़ी में फेंकी गई पिस्तौल को ढूंढने की कोशिश की. साढ़े सात करोड़ रुपये इसमें खर्च किए गए. आखिरकार, 5 मार्च 2020 को सीबीआई ने दावा किया कि पिस्तौल बरामद कर लिया गया है. उस पिस्तौल को फॉरेंसिक और बैलिस्टिक जांच के लिए भेजा गया. लेकिन अभी तक रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई.
लेकिन, जुलाई 2021 में हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी, जिसमें बैलिस्टिक एक्सपर्ट के हवाले से कहा गया कि बरामद की गई पिस्तौल वो पिस्तौल नहीं है जिससे दाभोलकर की हत्या की गई थी.
आरोप तय करने में 9 साल लग गए
पांचों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोपों को अंतिम रूप देने में नौ साल लग गए.
क़रीब 9 साल बाद 15 सितंबर 2021 को पुणे स्पेशल कोर्ट ने दाभोलकर हत्या मामले में सभी पांच अभियुक्तों पर आरोप तय कर दिए.
डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े, सचिन अंदुरे, शरद कालस्कर और विक्रम भावे पर हत्या, साजिश और शस्त्र अधिनियम से संबंधित धाराओं में यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए थे. इसके अलावा, संजीव पुनालेकर को सबूत नष्ट करने और गलत जानकारी देने के लिए आईपीसी की धारा 201 के तहत आरोप का सामना करना पड़ा.
हालांकि, पांचों अभियुक्तों ने कोर्ट में अपराध कबूल करने से इनकार कर दिया था. सभी पांच अभियुक्तों पर 2021 में मुकदमा शुरू हुआ. इस मुकदमे के दौरान कुल 20 गवाहों से पूछताछ की गई. अब क़रीब 11 साल बाद इस मामले में फैसला आना है.
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