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यूक्रेन के ख़िलाफ़ जंग में जान गंवाने वाले भारतीयों को रूस दे रहा है मुआवज़ा और नागरिकता
- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
यूक्रेन के ख़िलाफ़ चल रही जंग में धोखे का शिकार हुए और मारे गए भारतीय लोगों के परिजनों के लिए रूस ने मुआवज़ा देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
ऐसे ही दो परिवारों ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में इस जानकारी की पुष्टि की है.
यहां तक कि इनमें से एक परिवार ने रूस की नागरिकता स्वीकार करने पर अपनी सहमति भी दी है.
गुजरात के अश्विन भाई मांगुकिया ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि "उन्होंने मेरे खाते में 45 लाख रुपये पहले ही जमा करा दिए हैं. 1.3 करोड़ रुपये के मुआवज़े की शेष रकम अभी और दी जाएगी. मुमकिन है कि इस महीने की 15 या 20 तारीख़ को ये रकम मिल जाए."
अश्विन भाई मांगुकिया के बेटे हेमिल की 21 फ़रवरी को हुए मिसाइल हमले में मौत हो गई थी. वे 23 साल के थे. वे एक एजेंट के धोखे का शिकार हो गए थे. एजेंट ने उनसे रूसी फौज में हेल्पर की नौकरी दिलाने का वादा किया था.
लेकिन हेमिल को कई अन्य भारतीयों की तरह फ्रंट पर भेज दिया गया. एजेंटों ने इन लोगों से रूस में अच्छी सैलरी वाली नौकरी दिलाने का वादा किया था लेकिन उन्हें धोखे से यूक्रेन के ख़िलाफ़ चल रही रूस की जंग में लड़ने के लिए झोंक दिया गया था.
एजेंटों की धोखाधड़ी
साधारण परिवारों से आने वाले कम से कम 50 भारतीयों ने अच्छी नौकरी की उम्मीद में एजेंटों को बड़ी रकम अदा की थी.
एजेंटों ने रूसी फौज में 'हेल्पर' की जॉब के वादे पर इन लोगों से लगभग तीन लाख रुपये की रकम वसूल की थी.
रूस जाने वाले इन सभी भारतीय नौजवानों की उम्र 22 साल से 31 साल के बीच थी.
उनके मां-बाप या भाई-बहन छोटा-मोटा काम करते थे, कुछ ऑटोरिक्शा चलाते थे या फिर ठेले पर चाय बेचते थे.
पीड़ितों और उनके परिजनों का कहना है कि जब ये लोग रूस पहुंचे तो उन्होंने घर भेजे गए अपने वीडियो संदेशों में ये आरोप लगाया कि उन्हें ट्रेनिंग के नाम पर युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया गया है.
हेमिल की कहानी हैदराबाद (तेलंगाना), कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, पंजाब या कोलकाता से रूस गए नौजवानों की कहानी से अलग नहीं है.
हेमिल और हैदराबाद के मोहम्मद अफ़सान की मौत के बाद इनमें से कई प्रभावित परिवारों ने केंद्र सरकार के समक्ष अपनी याचिका रखी कि उनके बच्चों को भारत वापस लाया जाए. हेमिल और अफ़सान के शव भारत वापस लाए गए लेकिन रूस में अभी भी दो भारतीय लापता हैं.
अच्छे पैसे वाली नौकरी की चाह में रूस जाने वाले भारतीयों में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें उनका वेतन नहीं मिला.
हालांकि हेमिल को सैलरी मिली थी और रूस में दो महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी पहली सैलरी के रूप में 2.2 लाख रुपये घर भेजे थे.
अश्विन भाई मांगुकिया सूरत के कपड़ा बाज़ार में मज़दूरी करते हैं.
उन्होंने बताया, "मैं जो भी कमाता हूं वो सब गुजर-बसर करने में ख़त्म हो जाता है. मेरा दूसरा बेटा साइबर सिक्योरिटी पढ़ रहा है. मैं वहां नागरिकता स्वीकार कर लूंगा."
ये पूछे जाने पर कि वे रूस की नागरिकता क्यों लेना चाहते हैं, अश्विन भाई मांगुकिया कहते हैं, "हमारे देश में समस्या ये है कि हम बहुत ज़्यादा नहीं कमा पाते हैं. भ्रष्टाचारी देश है हमारा."
रूस जाकर 'फंस जाने' वालों बदकिस्मत लोगों में अहमदाबाद के शेख़ मोहम्मद ताहिर की कहानी अपवाद है. युद्ध के मोर्चे पर भेजे जाने वाले पहले वे मॉस्को से भागने में कामयाब रहे थे.
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पीएम मोदी पर टिकीं उम्मीदें
हैदराबाद के रहने वाले मोहम्मद अफ़सान के भाई मोहम्मद इमरान ने बीबीसी हिंदी को बताया कि अफ़सान के परिवार को भी मुआवज़ा और रूस की नागरिकता देने की पेशकश की गई है.
उन्होंने बताया, "हमें कागज़ी कार्रवाई के लिए वहां जाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा है कि अफ़सान की पत्नी और दो बच्चों को नागरिकता दी जाएगी. अफ़सान का दो साल का एक बेटा है और साल भर की एक बेटी है."
मॉस्को यात्रा के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इन भारतीय नौजवानों का मुद्दा उठाए जाने के बाद से पीड़ित परिवारों की उम्मीद अचानक से बढ़ गई है.
रूस के लिए लड़ रहे कर्नाटक के कलबुर्गी के समीर अहमद के परिजनों ने बीबीसी हिंदी से कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा से 'बड़ी उम्मीदें' हैं.
समीर अहमद के रिश्तेदार मोहम्मद मुस्तफ़ा कहते हैं, "वो दो या तीन दिनों पर हमसे एक बार बात कर लेता है. हमें बड़ी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री उन सभी लोगों को भारत लाने के लिए कुछ करेंगे. 15 दिसंबर को जब से वो गया है, हम उम्मीद में जी रहे हैं."
इस बीच, नई दिल्ली स्थित रूसी दूतावास ने कहा है कि उनकी सेना में काम कर रहे ज़्यादातर भारतीयों के पास वैध दस्तावेज़ नहीं हैं.
रूस के चार्ज डी अफ़ेयर्स रोमन बाबुशिन के अनुसार, रूस जानबूझकर अपनी फौज के लिए भारतीय लोगों की भर्ती नहीं करता है और इस संघर्ष में उनकी कोई भूमिका नहीं है. उनकी मौजूदगी के पीछे व्यावसायिक हित हैं. रूस भारत सरकार के साथ खड़ा है और इस समस्या के जल्द समाधान की उम्मीद है.
भारत-रूस के वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद रूस की ओर से ये बयान आया है.
इस रिक्रूमेंट रैकेट के सिलसिले में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने चार लोगों को गिरफ़्तार भी किया है.