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विजयादशमी पर मोहन भागवत के भाषण की तीन बातें और उनके राजनीतिक मायने
- Author, प्रवीण सिंधु
- पदनाम, बीबीसी मराठी संवाददाता
दशहरे (विजयादशमी) के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत का दिया भाषण इस समय राजनीतिक गलियारों में चर्चा में है.
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता की तुलना भारत से की है. इसके साथ ही उन्होंने अन्य मुद्दों पर भी टिप्पणी की.
इस भाषण में मोहन भागवत ने 'बांग्लादेश में हिंसा जैसी स्थिति भारत में पैदा करने की कोशिश', 'बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार' और 'आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर पर अत्याचार' के मुद्दे पर टिप्पणी की.
मोहन भागवत के बयानों के मायने जानने के लिए बीबीसी मराठी ने राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.
'भारत में बांग्लादेश जैसे हालात पैदा करने की कोशिश'
मोहन भागवत ने अपने भाषण में बांग्लादेश में डेढ़ महीने पहले पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि भारत में बांग्लादेश जैसे हालात पैदा करने की कोशिश हो रही है.
मोहन भागवत ने कहा कि 'डीप स्टेट', 'वोकिज्म', 'कल्चरल मार्क्सिस्ट' शब्द इस समय चर्चा में हैं और ये सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित दुश्मन हैं.
उन्होंने कहा कि “सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और जहां जहां जो कुछ भी भद्र, मंगल माना जाता है, उसका समूल उच्छेद (पूरी तरह से ख़त्म करना) इस समूह की कार्यप्रणाली का अंग है.”
मोहन भागवत ने आगे कहा, ''समाज में अन्याय की भावना पैदा होती है. असंतोष को हवा देकर उस तत्व को समाज के अन्य तत्वों से अलग और व्यवस्था के प्रति आक्रामक बना दिया जाता है.”
उन्होंने कहा, “व्यवस्था, कानून, शासन, प्रशासन आदि के प्रति अविश्वास और घृणा को बढ़ावा देकर अराजकता और भय का माहौल बनाया जाता है. इससे उस देश पर हावी होना आसान हो जाता है."
“तथाकथित 'अरब स्प्रिंग' से लेकर पड़ोसी बांग्लादेश में हाल की घटनाओं तक, एक ही पैटर्न देखा गया. हम पूरे भारत में इसी तरह के नापाक प्रयास देख रहे हैं."
बीबीसी मराठी ने वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र साठे से पूछा कि आख़िर मोहन भागवत के बयान के क्या मायने हैं?
राजेंद्र साठे ने कहा, ''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मार्क्सवादियों की आलोचना हमेशा 'सांस्कृतिक मार्क्सवाद' पर आधारित होती है. चूंकि भारत की संस्कृति 'हिंदू संस्कृति' है, इसलिए संघ ने हमेशा आरोप लगाया है कि भारत की संस्कृति 'हिंदू संस्कृति' है उसे 'सांस्कृतिक मार्क्सवाद' के माध्यम से नष्ट करने की कोशिश की जा रही है."
वो कहते हैं, “भागवत के ऐसे बयान को 'डॉग व्हिसल' कहा जाता है, जो संघ के अनुयायियों के लिए हमले का संकेत है.”
वरिष्ठ पत्रकार विवेक देशपांडे ने मोहन भागवत के 'बाहरी ताक़तों' वाले बयान की व्याख्या करते हुए एनजीओ के ख़िलाफ़ मोदी सरकार की कार्रवाई का ज़िक्र किया.
विवेक देशपांडे ने कहा, ''विदेशी ताक़तें भारत में लोगों की भावनाओं को भड़का रही हैं, इस बयान का संबंध भारत में कई गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के ख़िलाफ़ मोदी सरकार द्वारा की गई हालिया कार्रवाई से है.”
वो कहते हैं, “सेंटर फॉर रिसर्च पॉलिसी जैसे कई एनजीओ के ख़िलाफ़ यह कार्रवाई की गई. क्योंकि संघ और मोदी सरकार का दावा है कि इन संगठनों को बाहरी लोग फंडिंग करते हैं और इनसे भारत विरोधी गतिविधियां करते हैं. मोहन भागवत यही सुझाव दे रहे हैं.”
देशपांडे कहते हैं, “संघ का दावा है कि दुनिया भर के कई अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत में विभिन्न संगठनों को वित्तीय सहायता देते हैं, यह सहायता भारत में विकास में बाधा डालने के लिए है."
उन्होंने कहा, “इससे पता चलता है कि भारत में कई गैर सरकारी संगठनों पर मोदी सरकार की कार्रवाई संघ के व्यापक एजेंडे का हिस्सा है. संघ के कारण ही यह कार्रवाई की गई है.''
भागवत के भाषण में अरब स्प्रिंग और बांग्लादेश के आंदोलन के ज़िक्र को लेकर देशपांडे कहते हैं, "मोहन भागवत ने अरब स्प्रिंग और बांग्लादेश की घटनाओं का ज़िक्र किया. हालाँकि, इन दोनों घटनाओं का दुनिया भर में स्वागत किया गया है. अरब स्प्रिंग अधिनायकवाद और धार्मिक अतिवाद के विरोध के रूप में हुआ.”
वो कहते हैं, “अरब स्प्रिंग का उद्देश्य काफी हद तक लोकतांत्रिक था. इसी तरह बांग्लादेश में हुआ विद्रोह भी लोकतांत्रिक था.”
विवेक देशपांडे कहते हैं, "यह सच नहीं है कि यह चरमपंथियों और अमेरिका की साज़िश थी. यह केवल एक साज़िश सिद्धांत (कॉन्सपिरेसी थ्योरी) है. संघ की पूरी विचारधारा साज़िश सिद्धांत पर निर्भर करती है.”
“इसलिए वे हर चीज़ को एक ही नज़रिए से देखते हैं कि हिंदू धर्म को मुसलमानों, ईसाइयों और मार्क्सवादियों से ख़तरा है, जो उनकी सोच का मूल है."
देशपांडे ने कहा, “ये बात खुद गोलवलकर ने अपनी किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' में लिखी है. यह भी उस सिद्धांत का हिस्सा है.”
'बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले'
मोहन भागवत ने अपने भाषण के दौरान बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक के मुद्दे पर भी टिप्पणी की.
उन्होंने कहा, ''बांग्लादेश में हाल ही में हिंसक तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ. हिंदू समुदाय पर क्रूर अत्याचारों की परंपरा एक बार फिर देखने को मिली. इस बार उन अत्याचारों के विरोध में हिंदू समुदाय कुछ हद तक घर से बाहर निकला.”
“लेकिन जब तक यह दमनकारी जिहादी प्रकृति है, तब तक वहां के हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर ख़तरे की तलवार लटकती रहेगी.''
भागवत ने यह भी कहा, ''अब बांग्लादेश में पाकिस्तान को साथ लेने की चर्चा हो रही है. कौन से देश ऐसी चर्चा करके भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं, यह बताने की ज़रूरत नहीं है. इसका समाधान सरकार का विषय है.''
भागवत के इस बयान पर राजेंद्र साठे ने कहा, ''बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस और बांग्लादेश के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं ने एक स्टैंड लिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की रक्षा करेंगे. साथ ही, उन्होंने अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों का दौरा किया.''
वो कहते हैं, “संघ का असली दर्द यह है कि बांग्लादेश की राजनीति और समाज धर्मनिरपेक्ष है. अगर बांग्लादेश की व्यवस्था इस्लामी होती तो वे इसकी आलोचना कर सकते थे. अगर बांग्लादेश के हिंदू भारत आते तो संघ बता पाता कि वहां के हिंदू किस तरह संकट में हैं. हकीकत में ऐसा नहीं हुआ.”
साठे आगे कहते हैं, ''एक ही समय में कई विरोधाभासी रुख़ अपनाना संघ और बीजेपी की विशेषता है. इसीलिए वे कहते हैं कि बांग्लादेश की सरकार को वहां के अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना चाहिए, अल्पसंख्यकों के मंदिरों की रक्षा करनी चाहिए. भारत को इस बारे में बात करनी चाहिए.”
वो कहते हैं, “बांग्लादेश के दृष्टिकोण से भारत एक बाहरी शक्ति है. हिंदू होने के नाते हस्तक्षेप की मांग करना उनके लिए ग़लती होगी. जब भारत में गोहत्या के मुद्दे पर मदरसों पर हमले किए जाते हैं, मुसलमानों को मारा जाता है, बांग्लादेश या मुस्लिम देश चिंता व्यक्त करते हैं, तो क्या संघ काम करेगा?”
दशहरा के मौके पर दिए गए इस भाषण में मोहन भागवत ने हालांकि बांग्लादेश के राजनीतिक हालात पर ज़्यादा ज़ोर दिया है, लेकिन उन्होंने भारत के मुद्दों पर भी टिप्पणी की है. इन्हीं में से एक है पश्चिम बंगाल की घटना.
'पश्चिम बंगाल में महिला डॉक्टरों पर अत्याचार'
मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल के आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप-मर्डर मामले पर टिप्पणी की.
उन्होंने कहा कि कोलकाता के आरजी कर अस्पताल की घटना उन घटनाओं में से एक है जो पूरे समाज को कलंकित करती है.
मोहन भागवत ने कहा, "इतने गंभीर अपराध के बाद भी कुछ लोगों ने अपराधियों को बचाने के घृणित प्रयास किए. इससे पता चलता है कि अपराध, राजनीति और बुराई का संयोजन हमें कैसे भ्रष्ट कर रहा है."
भागवत के बयान पर विवेक देशपांडे ने प्रताड़ना की अन्य घटनाओं का ज़िक्र किया. साथ ही, अन्य मामलों पर भागवत की चुप्पी का मुद्दा भी उठाया और समग्र रुख़ पर सवाल उठाया.
विवेक देशपांडे कहते हैं, ''मोहन भागवत आरजी कर अस्पताल की घटना के बारे में बात करते हैं, लेकिन जब उत्तर प्रदेश में हाथरस में अत्याचार हुआ, तो उन्होंने इसके बारे में एक भी शब्द नहीं कहा. इसके विपरीत उन्होंने अपने भाषण में कहा कि सिर्फ इसलिए कि इतने बड़े देश में ऐसी घटनाएं होती हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि देश में बहुत खराब माहौल है.”
वो कहते हैं, "मोहन भागवत ने देश में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के मामले में एक भी शब्द नहीं बोला है. पश्चिम बंगाल के आरजी कर में हुई घटना स्पष्ट रूप से आपराधिक प्रकृति की है. उस मूल घटना में कोई राजनीति नहीं है, घटना के बाद राजनीति आ गई."
“हालांकि, महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी एक राजनेता हैं. बृजभूषण सिंह बीजेपी के संघवादी नेता हैं. वो यह नहीं कह सकते कि उनका संघ या बीजेपी से कोई संबंध नहीं है.''
देशपांडे ने भागवत से सवाल करते हुए कहा कि, "मोहन भागवत आरजी कर अस्पताल की घटना का ज़िक्र करते हैं और बृजभूषण का ज़िक्र नहीं करते, जिन्होंने देश का गौरव महिला पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार किया. यह किस तरह की भारतीय संस्कृति है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित