भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर अभी कैसे हैं हालात: ग्राउंड रिपोर्ट

    • Author, सलमान रावी
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से

भारत और बांग्लादेश के बीच हाल के दिनों में लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है , जिसका प्रभाव दोनों देशों की सीमा से सटे इलाकों पर साफ देखा जा सकता है.

बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार के जाने और अंतरिम सरकार के आने के बाद से ही भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध तनाव के दौर से गुज़र रहे हैं.

पश्चिम बंगाल के भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित पेट्रापोल इसका बड़ा उदाहरण है. पिछले चार महीनों में इस इलाके की गतिविधियों में काफी बदलाव आया है.

पेट्रापोल और इसके आसपास का क़स्बा बोनगांव, बांग्लादेश के साथ व्यापार का एक बड़ा केंद्र है.

सीमा से पचास मीटर पहले ही समझ आ जाता है कि ये इलाका एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र है. यहाँ से बड़ी मात्रा में निर्यात और आयात होता है.

आवाजाही और व्यापार पर असर

सड़क के दोनों किनारों पर बसों की लंबी कतारें और ट्रकों के पड़ाव देखे जा सकते हैं. हर कुछ मीटर की दूरी पर गोदाम बने हुए हैं.

पेट्रापोल बॉर्डर पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के एक अधिकारी कहते हैं कि यहाँ सुबह 6 बजे से ट्रकों की आवाजाही और लोगों का सीमा पार आना-जाना शुरू हो जाता है. ये सिलसिला शाम 6 बजे तक चलता रहता है.

इसके बाद चेक पोस्ट की लाइटें बंद कर दी जाती हैं और बैरिकेड्स लगा दिए जाते हैं.

इस सीमा पर 'कस्टम्स' और 'सेंट्रल एक्साइज' के नए 'इंटीग्रेटेड टर्मिनल' का उद्घाटन अक्टूबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया था. अब टर्मिनल पूरी तरह से काम कर रहा है.

लेकिन अब बांग्लादेश में बिगड़ते हालात का असर इस चहल-पहल वाले इलाके पर साफ नज़र आ रहा है. यहाँ लोगों की आवाजाही तो हो रही है, लेकिन संख्या बेहद कम है. व्यापार भी नाममात्र का चल रहा है.

'कर्मचारियों को सैलरी देना भी हो गया है मुश्किल'

चेक पोस्ट के पास स्थित 'सीमान्त होटल' के मालिक स्वपन कुमार डे ने बीबीसी को बताया कि पहले इस इलाके में ज़िंदगी सुबह 5 बजे से शुरू हो जाती थी और साढ़े पाँच तक सभी दुकानें खुल जाती थीं.

कपड़ों की थोक दुकानों से लेकर खाने-पीने के सामान, सब्जियों और फलों के व्यापारी इस समय तक पूरी तरह सक्रिय हो जाते थे.

लेकिन अब हालात बिल्कुल अलग हैं. जब मेरी बात स्वपन कुमार डे से हो रही थी, तब दिन के 11 बज चुके थे और उनके होटल में सिर्फ मैं और बीबीसी के वीडियो जर्नलिस्ट रुबाइयात बिस्वास ही मौजूद थे.

स्वपन कहते हैं, "इस समय तो हमारे होटल में पैर रखने की जगह भी नहीं होती थी. बांग्लादेश से आने वाले लोग सीमा पार करते ही हमारे होटल में आते थे. कोलकाता से बांग्लादेश जाने वाले यात्री भी इसी समय तक पहुँचने लगते थे. मगर अब देखिए, होटल पूरा खाली है. काम करने वाले कर्मचारी तो हैं, लेकिन अब उन्हें तनख्वाह देना भी मुश्किल हो गया है. बहुत कम लोग आते हैं और तुरंत निकल जाते हैं."

इस इलाके के लॉज और होटल भी अब खाली पड़े हैं, जो कभी व्यापारियों से भरे रहते थे.

मोतीगंज के माँ संतोषी लॉज के मैनेजर ने भी यही हालात बताए.

हमारी मुलाकात वहाँ पी. मुखर्जी से हुई, जो कपड़ों के निर्यात का काम करते हैं. उनका माल बांग्लादेश जाता था, लेकिन अब निर्यात में भी भारी गिरावट आई है.

उनका कहना है कि हर कोई हालात सुधरने का इंतजार कर रहा है.

सीमा पार जिनके रिश्तेदार, वो हैं परेशान

पेट्रापोल भारत की तरफ़ वाली सीमा है, जबकि बेनापोल बांग्लादेश की तरफ़ वाली सीमा है.

ठीक उसी तरह जैसे वाघा और अटारी. पहले बड़ी संख्या में लोग बॉर्डर पार करके खरीदारी के लिए यहाँ आते थे.

सीमा के उस पार बांग्लादेश का जेसोर ज़िला है, जबकि इस तरफ़ भारत में बाटामोड़ और बोनगांव में बड़ी-बड़ी दुकानें हैं, जहाँ रोज़मर्रा की ज़रूरत का हर सामान मिलता है.

सबसे ज्यादा बिक्री शादी-ब्याह के सामान और कपड़ों की होती थी.

स्थानीय पत्रकार ज्योति बताते हैं कि बांग्लादेश से लोग सुबह सीमा पार करके यहाँ खरीदारी के लिए आते थे और शाम 6 बजे सीमा बंद होने तक वापस लौट जाते थे. लेकिन अब पिछले तीन-चार महीनों में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं.

थोक और खुदरा व्यापारियों के साथ-साथ व्यावसायिक वाहन चालकों की आजीविका पर भी गहरा असर पड़ा है. इन हालातों ने इस पूरे क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया है.

सब तब हो रहा है जब 'बांग्लादेश से व्यापार पूरी तरह बंद' करने के नारे जोर-शोर से गूँज रहे हैं.

इसके बावजूद पेट्रापोल के लोग, खासतौर पर वो हिंदू जिनके रिश्तेदार बांग्लादेश में रहते हैं, काफी चिंतित हैं.

बांग्लादेश में हालात बिगड़ने के बाद भारत सरकार अब केवल चिकित्सा के लिए आने वाले लोगों को ही वीज़ा दे रही है, लेकिन ऐसे मरीजों की संख्या भी लगातार कम हो रही है.

कुछ भारतीय नागरिक जो अपने रिश्तेदारों से मिलने बांग्लादेश गए थे, वो वापस लौट रहे हैं. हालांकि, इनमें हिंदुओं की संख्या ना के बराबर है.

पत्रकार ज्योति बताते हैं कि बांग्लादेश में बिगड़ती परिस्थितियाँ और हिंदुओं पर हो रहे हमलों के कारण अब भारत में रहने वाले हिंदू अपने रिश्तेदारों से मिलने वहाँ नहीं जा रहे हैं और उनके रिश्तेदार भी यहाँ आने से कतराने लगे हैं.

पेट्रापोल में रह रहे हिंदुओं की चिंता इस वजह से बढ़ गई है क्योंकि देश के बंटवारे के बाद उनके कई रिश्तेदार बांग्लादेश की सीमा से सटे इलाकों में ही रह गए.

स्थानीय लोग मानते हैं कि भारत को बांग्लादेश के मौजूदा हालात से निपटने के लिए कूटनीतिक तरीके से नहीं, बल्कि सख्त रवैया अपनाना चाहिए.

बापी, जिन्होंने अपना पूरा नाम नहीं बताया, कहते हैं कि भारत को इस परिस्थिति से निपटने के लिए किसी भी स्तर पर सख्ती दिखानी होगी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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