मणिपुर हिंसाः कुकी-मैतेई टकराव के बीच अब नगा जनजाति के लोग सड़कों पर

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- Author, दिलीप कुमार शर्मा
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए, गुवाहाटी से
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में पिछले तीन महीने से चल रही जातीय हिंसा के बीच अब नगा जनजाति के लोग भी सड़क पर उतर गए हैं.
बहु-जनजातीय आबादी वाले इस राज्य के तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति ज़िले में नगा जनजाति का दबदबा है. नगा लोगों की थोड़ी आबादी राजधानी इंफाल से लेकर बाकी के पहाड़ी ज़िलों में भी बसी है.
बीते बुधवार को नगा जनजाति के हज़ारों लोगों ने अपनी दो प्रमुख मांगों को लेकर प्रदर्शन आयोजित किया.
तीन मई से कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा ने प्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया है.
दोनों समुदाय के बीच विभाजन इस कदर है कि पहाड़ों पर कुकी और इंफाल घाटी में मैतेई एक दूसरे इलाके में आ जा नहीं सकते.
हिंसा के बाद कुकी इलाकों में अलग प्रशासन की मांग तेज़ हो गई है.
ऐसे में मणिपुर के नगाओं का साफ कहना है कि भारत सरकार को किसी भी जनजाति के लिए अलग से कोई व्यवस्था करते वक्त उनके हितों और ज़मीन का ध्यान रखना होगा.
दरअसल मणिपुर सरकार के मंत्री-विधायकों से लेकर प्रशासन में निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी तक जातीय आधार पर बंट चुके हैं.
मणिपुर में बीजेपी का शासन है लेकिन हिंसा के कारण कुकी आबादी वाले पहाड़ी ज़िलों पर सरकार की पकड़ ढीली हो गई है.
हिंसा भड़के 100 से भी ज़्यादा दिन हो चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह अब तक कुकी इलाकों का दौरा नहीं कर पाए हैं.
कुकी जनजाति द्वारा अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग ने नगा जनजाति को भी अपनी मांग रखने के लिए मौका दे दिया है.
नगा लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि अगर केंद्र सरकार ने कुकी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था के नाम पर किसी तरह का कोई कदम उठाया तो अंतिम चरण में चल रही नगा शांति वार्ता को नुकसान हो सकता है.
लिहाज़ा "नगा बहुल क्षेत्रों" में बुधवार को रैलियां निकाली गईं जो एक तरह से भारत सरकार को संदेश देने की कोशिश बताई जा रही है.

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नगा जनजाति की क्या है मांग?
मणिपुर में बसे नगा जनजातियों की शीर्ष संस्था यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के बैनर तले निकाली गई रैलियों में दो प्रमुख मांगों को उठाया गया.
यूएनसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजा है जिसमें 3 अगस्त 2015 को भारत सरकार और अलगाववादी संगठन एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) के इसाक-मुइवा गुट के साथ हुए फ्रेमवर्क समझौते का मुद्दा उठाया गया है.
ज्ञापन में कहा गया है कि फ्रेमवर्क समझौते के बाद चली लंबी शांति वार्ता का शीघ्र निष्कर्ष निकाला जाए. और यह सुनिश्चित किया जाए कि "किसी अन्य समुदाय" की मांगों को संबोधित करने के प्रयास में कोई नगा हित या भूमि प्रभावित नहीं होगी.
यूएनसी के अध्यक्ष एनजी. लोरहो ने एक बयान में कहा कि, "मणिपुर में हमारी 20 नगा जनजातियां हैं. लिहाजा किसी अन्य समुदाय की मांगों को संबोधित करने का प्रयास करते समय नगा भूमि के विघटन या किसी भी ऐसे कार्य को नगा लोग स्वीकार नहीं करेंगे जो नगा जनजाति के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा."

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नगा विधायकों की अमित शाह से मुलाकात
इस साल जून में गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के बाद मणिपुर के नगा विधायकों ने पहली बार कुकी लोगों के अलग प्रशासन की मांग के मुद्दे पर अपना पक्ष रखा था.
नगा विधायकों का कहना है कि मणिपुर के पहाड़ी ज़िलों के लिए कोई भी अलग प्रशासनिक व्यवस्था नगा शांति प्रक्रिया पर आधारित होनी चाहिए.
मैतेई और कुकी जनजाति के बीच जारी हिंसा में नगा अब तक तटस्थ रहे हैं. लेकिन बात जब जनजाति और गैर-जनजाति के बीच लड़ाई की आती है तो नगा लोग कुकी के साथ खड़े दिखते हैं.
नगा विधायक एल. दिखो ने बीबीसी से कहा, "मणिपुर में कुछ ऐसे पहाड़ी इलाके हैं जहां नगा और कुकी दोनों की मिश्रित आबादी बसी है. वहीं चंदेल और टेंग्नौपाल जिले पूरी तरह नगा बहुल हैं. जबकि चुराचांदपुर जिले में 90 फीसद चीन कुकी लोग बसे है."
"ऐसे और भी कई जटिल इलाके हैं जहां जनजाति के आधार पर सीमांकन संभव नहीं है. अगर सरकार चुराचांदपुर के लिए अलग प्रशासन की बात सोचती है तो शायद कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."
"लेकिन अगर नगा बहुल इलाकों को इसमें शामिल किया जाता है तो यहां एक नया टकराव सामने आ सकता है."
विधायक दिखो कहते हैं, "हमने अमित शाह से कहा कि नई व्यवस्था के नाम पर किसी नगा क्षेत्र को नहीं छुआ जाना चाहिए क्योंकि इससे और अधिक समस्याएं पैदा होंगी."
नगा विधायक ने कहा कि नगा शांति वार्ता को 26 साल हो गए हैं और सरकार को अब इसका समाधान निकालना चाहिए.
अगर भारत सरकार नगा शांति वार्ता का निपटारा करती है तो निश्चित रूप से राज्य की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है.

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नगा शांति वार्ता में कहां पेंच फंसा है?
इस समय नगा शांति प्रक्रिया कठिन दौर से गुज़र रही है. अलगाववादी समूह एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र के बीच 'ग्रेटर नगालिम' की मांग के साथ ही एक अलग ध्वज और नगाओं के लिए एक संविधान जैसी मांगों को लेकर मतभेद है.
ग्रेटर नगालिम का अर्थ है पूर्वोत्तर के जिन इलाकों में नगा आबादी बसी है उन सभी क्षेत्रों का एकीकरण.
यही वजह है कि मणिपुर में बसे नगा जनजाति के लोग शांति वार्ता का शीघ्र निष्कर्ष निकालने की मांग कर रहे हैं.
लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र ने इस विचार को खारिज कर दिया है क्योंकि इससे नगालैंड के पड़ोसी राज्यों - मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश की क्षेत्रीय अखंडता भंग हो जाएगी.
इसके अलावा 80 साल के एनएससीएन (आई-एम) प्रमुख थुइंगलेंग मुइवा मणिपुर के उखरूल ज़िले से हैं.
वे तांगखुल नगा जनजाति से हैं. मणिपुर के जिन इलाकों में नगा बसे हैं उनकों 'ग्रेटर नगालिम' का हिस्सा बताया जाता रहा है.
अगर ऐसी स्थिति में भारत सरकार कुकी लोगों को अलग प्रशासन के नाम पर कुछ देती है तो उससे नगा शांति वार्ता को कैसे नुकसान पहुंचेगा?
इस सवाल पर एनएससीएन (आई-एम) के सूचना मंत्रालय के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा, "उन्हें (कुकी) अलग प्रशासन की मांग करने दीजिए लेकिन किसी भी परिस्थिति में हमारे साथ हुआ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट प्रभावित नहीं होना चाहिए."
"चुराचांदपुर ज़िले को छोड़कर, ऐसा कोई जिला नहीं है जहां कुकी के पास अन्य के मुकाबले ज्यादा पैतृक भूमि है. बाकि जगहों में भूमि मूल रूप से नगाओं की है."
अलगाववादी नेता ने आगे कहा, "हम भारत सरकार को यह साफ कह देना चाहते हैं कि मणिपुर में कुकी और मैतेई के बीच जारी जातीय हिंसा को नियंत्रण करने के नाम पर किसी भी परिस्थिति में सरकार को नगा क्षेत्रों को छूने की अनुमति नहीं दी जाएगी."

स्वायत्त क्षेत्र और एकीकरण की मांग
मणिपुर में बुधवार को निकाली गई रैलियों में "नगा ध्वज, संविधान और एकीकरण नगा लोगों के अविभाज्य अधिकार है", "फ्रेमवर्क समझौते को लागू करें", "भारत सरकार को विभाजनकारी राजनीति बंद करनी चाहिए" आदि नारे लिखे तख्तियां लोग लिए हुए थे.
नगालैंड में 1950 के दशक से सशस्त्र संघर्ष चल रहा है.
इस आंदोलन की मांग है कि नगा लोगों को अपना स्वायत्त क्षेत्र दिया जाए.
इसमें नगालैंड के अलावा उनके पड़ोसी राज्यों असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ म्यांमार के नगा-आबादी वाले सभी इलाक़े भी शामिल हों.
नगाओं के लिए एक अलग होमलैंड की मांग कर रहे एनएससीएन (आई-एम) की मानें तो नगा समुदाय के क्षेत्रों को ब्रिटिश द्वारा "मनमाने ढंग से और अंधाधुंध" अलग रखा गया था और फिर जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे, तो नगा लोगों की जानकारी और सहमति के बिना बर्मा (अब म्यांमार) और भारत के बीच इसे विभाजित किया गया.

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अतीत में नगा-कुकी संघर्ष
मणिपुर में नगा-कुकी के बीच पुराने विवाद और अलग प्रशासन की मांग से नए टकराव की आशंका पर मेघालय स्थित नार्थ ईस्ट हिल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेवियर पी. माओ कहते हैं, "अगर कुकी लोग अपने इलाके में अलग प्रशासन की मांग करते हैं तो इससे नगाओं को कोई समस्या नहीं होगी. लेकिन कुकी लैंड के नाम पर उनके मैप और किताबों में कई सारे नगा क्षेत्रों को शामिल कर रखा है जो आगे चलकर नए टकराव का कारण बन सकता है."
वो कहते हैं, "मणिपुर विधानसभा की 60 सीटों में 10 पर नगा हैं और बाकि की 10 सीट कुकी जो जनजातियों के पास है. बाकि 40 सीटों पर मैतेई हैं. प्रदेश के सभी आठ विश्वविद्यालय और महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थान जैसे क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान सब इंफाल घाटी में हैं. पहाड़ी इलाकों में कोई महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थान नहीं है. ये सारी चीजें नगा, कुकी और मैतेई के बीच मतभेद का कारण बनती जा रही थीं."
मणिपुर में नगा जनजातियों और कुकी के खूनी संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है जिसकी कड़वाहट अब भी सामने आ जाती है.
13 सितंबर, 1993 को कथित तौर पर एनएससीएन (आई-एम) से जुड़े नगा चरमपंथियों ने मणिपुर के तमेंगलोंग और तत्कालीन सेनापति जिले के विभिन्न स्थानों में एक ही दिन में लगभग 115 कुकी नागरिकों की हत्या कर दी थी.
कुकी लोग इन हत्याओं को जाउपी नरसंहार के रूप में संदर्भित करते हैं.
नगाओं और कुकियों के बीच शत्रुता औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, लेकिन 1990 के दशक का संघर्ष मुख्य रूप से भूमि को लेकर था.
मणिपुर की पहाड़ियों में कुकी अपनी "मातृभूमि" होने का जो दावा करते हैं, एनएससीएन (आई-एम) उसके बड़े हिस्से को ग्रेटर नगालिम का हिस्सा बताता है.
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