बांग्लादेश जिसके लिए जाना जाता है, वही संकट में फँसा

    • Author, निखिल इनामदार
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, ढाका

बांग्लादेश दुनिया के ‘फास्ट फैशन’ व्यवसाय का धड़कता हुआ दिल है.

बांग्लादेश के कारखानों से निर्यात किए गए आधुनिक फ़ैशन के हेनेस एंड मॉरिट्ज़, जीएपी और ज़ारा जैसे ब्रैंड के कपड़े दुनिया के कई देशों में लोगों की अलमारियों में मिल जाते हैं.

बीते तीन दशकों में इस बिज़नेस ने बांग्लादेश को दुनिया के सबसे ग़रीब देशों की क़तार से निकालकर एक निम्न-मध्यम आय वाला देश बना दिया है.

लेकिन मौजूदा समय में बांग्लादेश के सालाना 55 अरब डॉलर के वस्त्र उद्योग के सामने एक अनिश्चित भविष्य है.

देश में हफ़्तों चले विरोध-प्रदर्शनों के बाद अगस्त महीने में शेख़ हसीना को सत्ता और बांग्लादेश दोनों को छोड़ना पड़ा था. उन प्रदर्शनों में सैकड़ों लोगों की मौत भी हुई थी.

इन्हीं प्रदर्शनों के दौरान कम से कम चार कपड़ा फ़ैक्ट्री में आग लगा दी गई थी.

डिज़्नी और अमेरिका के सुपरमार्केट चेन वॉल्मार्ट जैसे तीन बड़े ब्रैंड पहले से ही अगले सीज़न के कपड़ों के लिए किसी अन्य जगह की तलाश कर रहे हैं.

देश में कपड़ा कारोबारियों के सामने समस्या अब भी बनी हुई है. कामगारों के विरोध की वजह से गुरुवार से ढाका की 60 मिलों में काम बंद होने की आशंका मंडरा रही है.

मिलों में काम करने वाले बेहतर वेतन के अलावा कई अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं.

बांग्लादेश में कपड़ा बनाने और निर्यात करने वालों के संगठन के एक निदेशक मोहिउद्दीन रूबेल कहते हैं, “देश में हाल की घटना से ब्रैंड्स के भरोसे पर असर पड़ेगा.”

वियतनाम जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों की तरफ़ इशारा करते हुए रूबेल कहते हैं, “हो सकता है वो इस बात पर भी विचार करें कि क्या अपने सारे संसाधन एक जगह पर लगा देने चाहिए?”

कामगारों को कम वेतन

बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक हंगामे की वजह से इस साल निर्यात में 10 से 20 फ़ीसदी की गिरावट आ सकती है.

यह कोई छोटी गिरावट नहीं है जबकि बांग्लादेश को निर्यात से होने वाली कमाई का 80 फ़ीसदी हिस्सा फ़ास्ट फ़ैशन एक्सपोर्ट से आता है.

यहां तक कि बांग्लादेश में हुई हालिया घटना से कई महीने पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था और इसके कपड़ा उद्योग की स्थिति अच्छी नहीं थी.

इसमें बाल मज़दूरी के कथित मामलों, जानलेवा हादसे और कोविड-19 के कारण पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों ने अहम भूमिका निभाई थी.

बैंकिंग व्यवस्था पर संकट

बढ़ती क़ीमतों ने देश में कपड़े के निर्माण को और महंगा बना दिया था. लेकिन मांग में कमी का मतलब था कि आप क़ीमत बढ़ाकर माल नहीं बेच सकते थे.

यह बांग्लादेश के लिए ख़ास तौर से बुरा वक़्त था, जो निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर करता है.

जैसे-जैसे इस बिज़नेस में निर्यात से लाभ कम होता गया, देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आती गई.

इसके अलावा इस व्यवसाय में अन्य समस्याएं भी थीं.

बांग्लादेश में बुनियादी ढांचे के दिखावे वाली परियोजनाओं पर ज़रूरत से ज़्यादा ख़र्च ने सरकार के ख़ज़ाने को ख़ाली कर दिया था.

देश में बड़े पैमाने पर भाई-भतीजावाद ने यहाँ के बैंकों को भी नुक़सान पहुँचाया क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की अवामी लीग पार्टी से जुड़े बड़े व्यवसायी ऋण चुकाने में असफल रहे.

देश के केंद्रीय बैंक के नए गवर्नर डॉ. अहसान मंसूर ने हाल ही में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "यह किसी तरह की अनदेखी नहीं थी बल्कि वित्तीय प्रणाली की योजनाबद्ध लूट थी."

डॉ. मंसूर के मुताबिक़ इसे ठीक करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है.

लेकिन उन्होंने चेतावनी दी है कि इसमें कई साल लगेंगे. देश को और अधिक वित्तीय सहायता की ज़रूरत होगी. इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरफ़ से एक और वित्तीय सहायता भी शामिल है.

डॉ. मंसूर के मुताबिक़ , "हम मुश्किल हालात में हैं और हम अपने विदेशी दायित्वों को पूरा करने का अनुपालन करना चाहते हैं. लेकिन अभी हमें कुछ अतिरिक्त मदद की ज़रूरत है."

प्रदर्शनों में फ़ैक्ट्री मज़दूर भी शामिल

महाबुरबुर रहमान के परिवार ने दो दशक पहले देश में कपड़ा बनाने वाली कंपनी 'सोनिया ग्रुप' की स्थापना की थी.

वो बताते हैं कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट ही आत्मविश्वास को कम करने के लिए काफ़ी है.

रहमान के मुताबिक़, "चिंता इस बात की है कि अगर हमारे पास पर्याप्त डॉलर नहीं होंगे, तो हम भारत और चीन से आयात होने वाले धागे का भुगतान कैसे करेंगे. वहीं यात्रा बीमा नहीं मिलने से कई लोग अब नए ऑर्डर देने के लिए बांग्लादेश नहीं आ पा रहे हैं."

लेकिन बांग्लादेश के सामने दूसरी समस्या भी है.

शेख़ हसीना को सत्ता से हटाने के लिए देश में जो विरोध प्रदर्शन हुए, वो उन छात्रों ने किए थे जो अच्छे वेतन वाली नौकरी और अवसरों की कमी से निराश थे.

हालाँकि देश में कपड़ा कारखानों ने लाखों नौकरियां पैदा की हैं, लेकिन वे अच्छा वेतन नहीं देते हैं.

बीबीसी से बात करने वाले कुछ फैक्ट्री कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें देश में लागू न्यूनतम वेतन से क़रीब आधे वेतन पर गुज़ारा करना पड़ता है. उन्हें अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कर्ज़ भी लेना पड़ता है.

उनमें से कई लोग बेहतर वेतन और काम के हालात की मांग को लेकर हाल के महीनों में छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए थे.

इनके यूनियन नेता मारिया का कहना है, "हम दोगुनी वेतन वृद्धि से कम पर समझौता नहीं करेंगे. मज़दूरी तय करने में जीवन-यापन की बढ़ती लागत पर विचार होना ही चाहिए."

वस्त्र उद्योग पर निर्भरता

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी छात्र नौकरियों में और अधिक बदलाव की मांग कर रहे हैं.

अबू ताहिर, मोहम्मद ज़मान, मोहम्मद ज़ैदुल और सरदार अरमान सभी बांग्लादेश के प्रदर्शन में शामिल थे.

ये लोग पिछले दो से पांच सालों से बेरोज़गार हैं. इन्होंने बीबीसी को बताया कि वे निजी क्षेत्र में काम करने के इच्छुक हैं लेकिन उन्हें नहीं लगता कि उनमें उपलब्ध नौकरियों की योग्यता है.

मोहम्मद ज़मान कहते हैं, "मेरे माता-पिता शायद ही यह समझ पाते हैं कि नौकरियों में कितनी प्रतियोगिता है. मेरा बेरोज़गार होना परिवार पर एक बड़ा दबाव है. मैं इससे ख़ुद को छोटा महसूस करता हूँ."

मोहम्मद ज़ैदुल कहते हैं, "हमें केवल डिग्री मिलती है, हमें सही हुनर नहीं मिलता है."

देश की अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफ़ेसर यूनुस का हवाला देते हुए वो कहते हैं, "नए सलाहकार ख़ुद एक उद्यमी हैं, इसलिए हम सभी को उम्मीद है कि वे इस बारे में कुछ करेंगे."

प्रोफ़ेसर यूनुस को ‘माइक्रो लोन’ में उनके काम के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका है.

‘सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग’ थिंक टैंक की डॉक्टर फ़हमीदा ख़ातून बताती हैं कि शिक्षित युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए देश की अर्थव्यवस्था में विविधता लाना ज़रूरी होगा.

उनका तर्क है कि यह अर्थव्यवस्था के लिए कोई बुरी बात नहीं होगी.

वो कहती हैं, "कोई भी देश केवल एक सेक्टर के भरोसे लंबे समय तक नहीं चल सकता है. यह आपको कुछ हद तक आगे ले जाएगा, ज़्यादा नहीं. यहाँ अर्थव्यवस्था में विविधता लाने की कोशिश हुई है, लेकिन वह अभी तक केवल किताबों में ही है."

राजधानी ढाका में एक टेक पार्क ख़ाली पड़ा है. इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. इसका उद्घाटन साल 2015 में हुआ था.

टेक पार्क बनाने का मक़सद ऊंची सैलरी वाली नौकरियाँ पैदा करना और कपड़े के उत्पादन पर बांग्लादेश की निर्भरता को कम करना था.

अब यह पार्क बेकार पड़ा है जो पिछली सरकार की आर्थिक विफलताओं की याद दिलाता है.

बुनियादी ढांचे का विकास

देश के सॉफ्टवेयर व्यवसायी रसेल टी अहमद कहते हैं, "यह उद्योग की ज़रूरतों और उसके बदले सरकार के उपलब्ध कराए गए संसाधन के बीच के अंतर का एक आदर्श उदाहरण है."

"किसी ने हमसे नहीं पूछा कि हमें इन पार्कों की ज़रूरत है या नहीं. बांग्लादेश बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है. लेकिन हमने मानव संसाधन में कितना निवेश किया है? यही वह कच्चा माल है, जिसकी इस उद्योग को ज़रूरत है."

डॉ. ख़ातून का कहना है कि नई सरकार को विदेशी और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही जैसी रुकावटों को दूर करना होगा.

बांग्लादेश में प्रोफ़ेसर यूनुस ने देश की अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार लाने और संस्थाओं को दुरुस्त करने की कसम खाई है, जिन्हें, डॉ. ख़ातून के मुताबिक़ पिछले कुछ साल में "व्यवस्थित रूप से नष्ट" कर दिया गया है.

प्रोफ़ेसर यूनुस के सामने एक मुश्किल काम देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर करना, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है.

इस मामले में सरकारी नीतियों को निहित स्वार्थों के हाथों नियंत्रित होने से रोकना भी बड़ी चुनौती है.

यह सब इसलिए किया जाना ज़रूरी है क्योंकि बांग्लादेश कई अन्य समस्याओं का सामना कर रहा है.

इनमें बांग्लादेश में बनी चीज़ों की वैश्विक मांग में कमी, अपने बड़े पड़ोसी और व्यापारिक साझेदार भारत के साथ बिगड़ते संबंध भी शामिल है, जो शेख़ हसीना को शरण दे रहा है.

इसके अलावा जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ के ख़तरे वाले इस देश में तेज़ चक्रवात का आना शामिल है.

ये चुनौतियां उतनी ही बड़ी हैं जितनी बड़ी लोगों की उम्मीदें हैं, जो उन्होंने प्रोफ़ेसर यूनुस के कंधों पर लाद रखी हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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