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इसराइल-ग़ज़ा युद्ध: युद्धविराम में अपनी भूमिका पर क्यों पुनर्विचार कर रहा है क़तर
- Author, वायर डेवीज़ और डेविड ग्रिटेनस
- पदनाम, बीबीसी न्यूज़
क़तर के प्रधानमंत्री ने कहा है कि उनका देश इसराइल और हमास के बीच बातचीत में अपनी भूमिका की नए सिरे से समीक्षा कर रहा है.
इसराइल और हमास के बीच युद्ध विराम कराने और इसराइली बंधकों को रिहा कराने की कोशिशों में अमरीका और मिस्र के साथ साथ क़तर भी अब तक बेहद अहम भूमिका निभाता आ रहा था.
पर, शेख़ मुहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल-थानी ने कहा कि इन वार्ताओं से जो लोग सियासी फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने क़तर का शोषण और दुरुपयोग किया और पर्दे के पीछे से उसके हितों को चोट पहुंचाने की भी कोशिश की.
शेख़ अब्दुल रहमान अल-थानी ने ये भी कहा कि शांति के लिए चल रही मौजूदा बातचीत ‘बेहद नाज़ुक’ दौर में है.
ग़ज़ा में युद्ध विराम करने की कोशिशें बेहद मुश्किल भरी और ज़्यादातर मौक़ों पर नाकाम साबित हुई हैं.
पर हमास के साथ नज़दीकी संबंध होने के साथा साथ, क़तर का इस मामले से जुड़े सभी पक्षों से ताल्लुक़ रहा है. ऐसे में युद्ध विराम की किसी भी बातचीत की कामयाबी के लिए उसकी भूमिका बेहद अहम हो जाती है.
मध्यस्थों ने छह हफ़्ते के युद्ध विराम का प्रस्ताव रखा था. जिसके एवज़ में हमास भी 40 बंधकों को रिहा करने के लिए राज़ी हो गया था.
इनमें महिलाओं और बच्चों के अलावा बुज़ुर्ग या बीमार बंधक शामिल थे. हालांकि, पिछले हफ़्ते के आख़िर में हमास ने सार्वजनिक रूप से इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था.
अब क़तर खुलकर ऐसी बातचीत की कामयाबी पर सवालिया निशान लगा रहा है, और उसका कहना है कि वो मध्यस्थ के तौर पर अपनी भूमिका पर नए सिरे से विचार कर रहा है.
क़तर के शेख़ मुहम्मद ने कहा कि उसकी कोशिशों को वो राजनेता चोट पहुंचा रहे हैं, जो इन वार्ताओं से फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
'संकीर्ण राजनीतिक हितों को तरज़ीह'
क़तर की राजधानी दोहा में एक प्रेस कांफ्रेंस में शेख़ मुहम्मद ने कहा, ‘बदक़िस्मती से मेरे कहने का मतलब है कि इस मध्यस्थता का शोषण किया जा रहा है और संकीर्ण राजनीतिक हितों को तरज़ीह देते हुए मध्यस्थता के प्रयासों का दुरुपयोग किया जा रहा है.’
शेख़ ने आगे कहा कि, ‘इसका मतलब है कि क़तर की हुकूमत अपनी इस भूमिका का व्यापक मूल्यांकन करने का फ़ैसला किया है. अब हम मध्यस्थता के अपने रोल का मूल्यांकन करने के स्तर पर हैं और अब हम इस बात की भी पड़ताल कर रहे हैं कि इस बातचीत में शामिल पक्ष किस तरह का रवैया अपना रहे हैं.’
वैसे तो शेख़ मुहम्मद ने किसी ख़ास शख़्स की तरफ़ इशारा नहीं किया.
मगर, अमरीकी संसद के भीतर से कुछ लोगों ने आवाज़ उठाई है कि क़तर, रियायतें देने के लिए हमास पर पर्याप्त दबाव नहीं बना रहा है. जब हमास ने पिछले हफ़्ते के आख़िर में युद्ध विराम के ताज़ा प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था, तब अमरीका ने इस फ़लस्तीनी हथियारबंद संगठन पर इल्ज़ाम लगाया है कि, ‘वो युद्ध विराम की राह का रोड़ा बना हुआ है.’
इस बीच, इसराइल की सेना ने कहा है कि लेबनान से उसके उत्तरी इलाक़े में दाग़ी गई टैंक रोधी मिसाइलों और ड्रोन के हमले में उसके 14 सैनिक ज़ख़्मी हो गए हैं. इनमें से छह की हालत गंभीर है.
लेबनान के ईरान समर्थित हथियारबंद संगठन हिज़्बुल्लाह ने दावा किया था कि अरब अल-अरामशे इलाक़े में ये हमला उसने ही किया था. हिज़बुल्लाह ने कहा कि हाल ही में इसराइल के हमले में उसके कमांडर और लड़ाकों की मौत हो गई थी और इसी के जवाब में उसने इसराइल पर हमला किया था.
हमास की तरह इसराइल, अमरीका और ब्रिटेन ने हिज़्बुल्लाह को भी आतंकवादी संगठन घोषित करके उस पर प्रतिबंध लगा रखा है. ग़ज़ा में युद्ध के आग़ाज़ के दिन से ही हिज़्बुल्लाह लगभग हर रोज़ इसराइल के साथ लगने वाली सीमा पर झड़प करता रहा है.
इस संघर्ष की शुरुआत तब हुई थी, जब पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के हथियारबंद लड़ाकों ने दक्षिणी इसराइल पर अभूतपूर्व हमला किया था. हमास के इस हमले में लगभग 1200 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज़्यादातर आम नागरिक थे.
हमले के बाद हमास के लड़ाकों ने 253 लोगों को बंधक बना लिया था और उन्हें ग़ज़ा पट्टी ले गए थे.
इसके जवाब में हमास का ख़ात्मा करने और बंधकों को रिहा कराने के इरादे से इसराइल ने ग़ज़ा पर हमला किया था. ग़ज़ा में हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इसराइल के हमले में अब तक 33 हज़ार 800 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं. मारे गए लोगों में से ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे.
पिछले साल नवंबर में एक हफ़्ते तक चले युद्ध विराम के दौरान हमास ने 105 बंधक रिहा किए थे. इनमें से ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे. इसके बदले में इसराइल ने अपनी जेलों में बंद 240 फ़लस्तीनी क़ैदियों को रिहा किया था.
इसराइल के अधिकारियों का कहना है कि ग़ज़ा में अभी भी उसके 133 बंधक क़ैद हैं. इनमें वो चार लोग भी हैं, जिन्हें इस युद्ध की शुरुआत से पहले बंधक बनाया गया था. हालांकि, इन बंधकों में से 30 से ज़्यादा की मौत हो चुकी है.
शनिवार को हमास ने एक बयान जारी करके कहा था कि वो इसराइल के साथ बंधकों और क़ैदियों की अदला-बदली पर रज़ामंदी के लिए ‘गंभीरता और सच्चाई’ के साथ तैयार है. लेकिन, हमास ने बातचीत के दौरान दिए गए मौजूदा प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था.
हमास ने ये भी कहा था कि वो अब भी ग़ज़ा में स्थायी युद्ध विराम की मांग पर अड़ा हुआ है, जिसके तहत ग़ज़ा से इसराइल को अपने सारे सैनिक हटाने होंगे और बेघर हुए फ़लस्तीनियों को अपने घर वापस जाने की इजाज़त देनी होगी.
हमास के साथ युद्ध विराम की बातचीत की अगुवाई इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के निदेशक कर रहे हैं.
रविवार को उन्होंने कहा कि हमास के रवैये से ज़ाहिर है कि ग़ज़ा में हमास का नेता यह्यया सिनवार ‘बंधकों की रिहाई का मानवीय समझौता नहीं होने देना चाहते और वो ईरान के साथ इसराइल के तनाव का भरपूर फ़ायदा उठाने में जुटे हुए हैं. उनका मक़सद अलग अलग पक्षों को एकजुट करना और इस क्षेत्र में संघर्ष को बढ़ाना है.’
अमरीका के विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सोमवार को कहा था कि, ‘बुनियादी बात ये है कि हमास को ये प्रस्ताव स्वीकार करना ही होगा और उन्हें फ़लस्तीनियों के साथ साथ पूरी दुनिया को ये बताना होगा कि आख़िर वो बातचीत क्यों नहीं कर रहे हैं.’
अकाल की कगार पर उत्तरी ग़ज़ा
पिछले हफ़्ते इसराइल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अमरीकी मीडिया को बताया था कि हमास ने मध्यस्थों को ये जानकारी दी है कि उसके पास युद्ध विराम के ताज़ा प्रस्ताव के तहत ऐसे 40 ज़िंदा बंधक नहीं हैं, जिन्हें रिहा करने की शर्त उसके सामने रखी गई है.
यानी बच्चे, महिलाएं और 50 साल से ज़्यादा उम्र के ऐसे मर्द जिनमें सैनिक भी शामिल हैं, और ऐसे लोग जिनको गंभीर बीमारियां हैं.
इस बीच, हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सभी बंधकों का पता लगाने के लिए पहले युद्ध विराम शुरू करना होगा ताकि उसके पास ‘पर्याप्त समय और सुरक्षा’ हो.
क़तर के शेख़ मुहम्मद ने भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपील की है कि वो ‘अपनी ज़िम्मेदारी को निभाए और ये युद्ध रोके’. शेख़ ने चेतावनी दी थी कि ग़ज़ा में आम नागरिक ‘नाकेबंदी और भुखमरी के शिकार हैं’ और उनके लिए भेजी जा रही मदद को ‘सियासी ब्लैकमेल के हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से किए गए एक मूल्यांकन के मुताबिक़ पिछले महीने 11 लाख से अधिक लोग- यानी ग़ज़ा की आधी आबादी भयंकर भुखमरी के शिकार थे और उत्तरी ग़ज़ा का इलाक़ा अकाल के मुहाने पर खड़ा था.
संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल पर इल्ज़ाम लगाया था कि वो मदद पहुंचाने की राह में रोड़े खड़े कर रहा है. इसके अलावा युद्ध और व्यवस्था के बिगड़ने की वजह से भी ग़ज़ा तक राहत सामग्री नहीं पहुंच पा रही है.
इसराइल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू के कार्यालय ने बुधवार को कहा था कि वो ‘ग़ज़ा में अकाल की आशंका को लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दावों को ख़ारिज करते हैं’, और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘इसराइल मानवीय सहायता के दायरे से कहीं आगे और ऊपर जाकर’ कोशिशें कर रहा है.
इसराइल की सेना ने भी एलान किया था कि उसके अशदोद कंटेनर बंदरगान से होकर पहली बार खाद्य सामग्री ग़ज़ा में दाख़िल हुई है. संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के आठ ट्रक इसराइल के नियंत्रण वाली केरेम शलोम सीमा से होते हुए बुधवार को दक्षिणी ग़ज़ा में दाख़िल हुए थे.
पिछले हफ़्ते उत्तरी ग़ज़ा जाने के लिए भी एक सीमा चौकी को खोला गया था. क्योंकि, 1 अप्रैल को इसराइल के हवाई हमले में वर्ल्ड फूड किचेन के सात राहत कर्मचारियों की मौत के बाद अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसराइल से कहा था कि वो ग़ज़ा तक राहत सामग्री पहुंचाने का सुरक्षित रास्ता दे.
बाद में जो बाइडेन ने बुधवार को एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा था कि, ‘प्रधानमंत्री नेतन्याहू के साथ मेरी फोन पर बातचीत के 12 दिनों बाद खाने-पीने के सामान और दूसरी ज़रूरी चीज़ें लेकर 3000 ‘ट्रक ग़ज़ा में दाख़िल हुए हैं- ये पिछले हफ़्ते पहुंचाई गई मदद की तुलना में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है.’
नाकाफ़ी साबित हो रही है मदद
हालांकि, फ़लस्तीनियों शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए ने मंगलवार को एक रिपोर्ट में कहा था कि ‘ग़ज़ा में दाख़िल होने वाली इंसानी मदद में कोई ख़ास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है और न ही उत्तर से पहुंचने के रास्ते में ही कोई सुधार देखा गया है.’ यूएनआरडब्ल्यूए, ग़ज़ा में काम करने वाला सबसे बड़ा मानवीय संगठन है.
बाइडेन ने बिनयामिन नेतन्याहू से 4 अप्रैल को फोन पर बात की थी. उसके बाद यूएनआरडब्ल्यूए द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक़, पांच अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच इसराइल के नियंत्रण वाली केरेम शलोम की चौकी और मिस्र के क़ब्ज़े वाली रफाह चौकी से होकर हर रोज़ औसतन 185 ट्रक गज़ा में दाख़िल हो रहे थे.
यूएनआरडब्ल्यूए के आंकड़े के मुताबिक़, इससे पहले यानी 29 मार्च से 4 अप्रैल के हफ़्ते के दौरान ग़ज़ा में सहायता लेकर हर रोज़ औसतन 168 ट्रक दाख़िल हो रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ मानवीय अधिकारी ने मंगलवार को ये चेतावनी दी थी कि वो अभी भी ग़ज़ा में अकाल पड़ने से रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है. जबकि इसराइल के साथ मिलकर ग़ज़ा में सहायता पहुंचाने के मामले में तालमेल कुछ बेहतर हुआ है.
एंड्रिया डे डोमेनिको नाम की इस अधिकारी ने कहा था कि, ‘ग़ज़ा की चुनौती आटा पहुंचाने और कुछ रोटियां पकाने से कहीं ज़्यादा बड़ी है. ये बड़ा पेचीदा मसला है. अकाल रोकने के लिए पानी, साफ़ सफ़ाई और इलाज की सुविधाएं देना बुनियादी ज़रूरत है.’
ग़ज़ा को सहायता पहुंचाने में इसराइल की तरफ़ से उसके रक्षा मंत्रालय की संस्था कोगैट तालमेल कर रही है. उसका कहना है कि केरेम शलोम चौकी के पार फ़लस्तीनी इलाक़े में सहायता सामग्री से लदे 700 ट्रक अभी भी खड़े हैं और सामान लेने वाला कोई नहीं है. कोगैट ने कहा कि, ‘हमने अपनी क्षमताओं में काफ़ी इज़ाफ़ा किया है. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र तो बस बहाने बना रहा है.’
वहीं, बुधवार को इसराइल सेना ने बताया कि उसके सैनिकों और लड़ाकू विमानों ने मध्य ग़ज़ा में ‘आतंकी अड्डों को नष्ट करने के साथ साथ कई आतंकवादियों का सफ़ाया कर दिया.’
फ़लस्तीन के मीडिया ने ख़बर दी कि ग़ज़ा के बीचो-बीच स्थित नुसेरियत शरणार्थी शिविर पर भयंकर बमबारी के साथ साथ ज़बरदस्त लड़ाई चल रही है. ख़बरों के मुताबिक़, मंगलवार को अल नूरी परिवार के मकान पर हुई बमबारी में परिवार के 11 लोग मारे गए थे.
इसराइल की सेना ने ये भी कहा कि उसकी टुकड़ियों ने उत्तरी क़स्बे बेत हनोउन के ‘स्कूलों में छिपे आतंकवादियों को पकड़ने के लिए’ छापेमारी भी की थी. इसराइल सेना ने बताया था कि उसकी इस छापेमारी में हमास और इस्लामिक जिहाद के कई लड़ाके गिरफ़्तार किए गए. वहीं, जिन लोगों ने इस कार्रवाई का विरोध किया, वो छापमारी के दौरान मारे गए थे.
मंगलवार को जब बेत हनोउन के एक मकान पर इसराइली सेना ने हमला किया, तो ख़बरों के मुताबिक़ चार लोग मारे गए थे. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ इस हमले में मकान को भी काफ़ी नुक़सान पहुंचा था.
पड़ोस के जबालिया शरणार्थी शिविर में रहने वाले एक शख़्स से बीबीसी अरबी सेवा की ग़ज़ा लाइफलाइन रेडियो सर्विस को बताया कि, ‘हम इसराइल की हमलावर टुकड़ियों के तेज़ी से आगे बढ़ने से हैरान रह गए थे. इसराइली सैनिकों ने पूरे इलाक़े को घेर लिया और नौजवानों, महिलाओं और बच्चों को गिरफ़्तार कर लिया. इसराइल के सैनिकों ने हमें उस इलाक़े से बाहर निकाल दिया. बेत हनोउन में कई लोगों को मार डाला. फिर वो पनाहगाह बने स्कूलों में दाख़िल हुए और वहां रह रहे लोगों को भी गिरफ़्तार कर लिया.’
इस शख़्स ने कहा कि, ‘इस तरह हमारी ज़िंदगी अजाब बनी हुई है. हम जब भी, कहीं जाते हैं, तब टैंक हमारे ऊपर बम बरसाने लगते हैं.’
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