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चीन के ये तीन 'नए प्रोडक्ट' क्या दुनिया को ट्रेड वॉर में झोंक रहे हैं?
- Author, बीबीसी मॉनिटरिंग सेवा
- पदनाम, .
चीन ने अपने नए एनर्जी प्रोडक्ट्स को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ के आरोपों पर काफी सख़्ती से विरोध दर्ज कराया है.
अमेरिका की ट्रेजरी सेक्रेटरी जैनेट येलेन ने अप्रैल की शुरुआत में अपनी चीन यात्रा के दौरान सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया था.
चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत में उन्होंने वैश्विक बाज़ारों में 'सस्ते चीनी उत्पादों की भरमार' को लेकर चिंता जताई.
मई में जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग फ्रांस की यात्रा पर थे तो यूरोपीयन कमीशन की प्रेसीडेंट उर्सूला वॉन डेर लेयेन ने भी उनके सामने ये बात उठाई.
उर्सूला वॉन डेर लेयेन का कहना था कि चीन की सरकार के समर्थन से पैदा हुई इस बढ़ी हुई उत्पादन क्षमता के कारण चीन और यूरोपीय संघ के संबंधों के सामने चुनौती पैदा हो गई है.
उर्सूला वॉन डेर लेयेन ने ये मुद्दा पेरिस में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मौजूदगी में हुई त्रिपक्षीय बैठक के दौरान उठाया था.
अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेता जिन चीज़ों को लेकर अधिक सशंकित हैं, वो हैं- इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी), लीथियम-इयन बैटरी और सोलर प्रोडक्ट्स.
चीनी मीडिया इन तीनों प्रोडक्ट को लेकर बेहद उत्साहित दिख रहा है और इन्हें 'न्यू थ्री' (चीनी भाषा में शिन सान यांग) कहा जा रहा है.
क्या चीन इन तीन नए एनर्जी प्रोडक्ट्स का ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन कर रहा है? और अगर ऐसा वाकई में है तो क्या ये सरकारी सब्सिडी और औद्योगिक नीतियों का नतीज़ा है जैसा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ दावा करते हैं? क्या इन तीन नए प्रोडक्ट्स कोई नया ग्लोबल ट्रेड वार छिड़ने जा रहा है?
ये 'न्यू थ्री' क्या है?
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने साल 2023 की फ़रवरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सबसे पहली बार इस 'न्यू थ्री' का जिक्र किया था.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक अधिकारी ने चीन की तारीफ़ करते हुए कहा था कि विदेश व्यापार के लिहाज से पिछला वर्ष बेहद मुश्किल होने के बावजूद 5.5 ट्रिलियन डॉलर का कुल आयात और निर्यात किया गया.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ हफ़्ते पहले ही चीन ने अचानक से अपनी ज़ीरो कोविड पॉलिसी को ख़त्म करने का एलान किया था. इस ज़ीरो कोविड पॉलिसी की वजह से चीन की सामान्य आर्थिक गतिविधियां लगभग दो सालों के लिए ठप हो गई थीं.
चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने इस 'न्यू थ्री' (इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, फ़ोटोवॉल्टेक्स और लीथियम बैट्री) की तारीफ़ करते हुए चीन की ऊंचे दर्जे और की टेक्नोलॉजी और उम्दा उत्पादों के रूप में इस 'न्यू थ्री' को विकास के नए सेक्टर्स बताया. मंत्रालय के मुताबिक़ ये 'न्यू थ्री' चीन को पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने में भी दिशा देगा.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन तीनों नए उत्पादों के निर्यात में विस्फोटक वृद्धि देखी गई है. बैटरी से चलने वाली गाड़ियों का निर्यात 131.8 फ़ीसदी बढ़ा है तो फ़ोटोवोल्टैक्स 67.8 फ़ीसदी और लीथियम बैट्री के निर्यात में 86.7 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग नवंबर, 2023 में सैन फ्रांसिस्को की यात्रा पर थे, जहां उन्होंने पहली बार इस 'न्यू थ्री' का जिक्र किया. इस 'एपेक सीईओ समिट' शी जिनपिंग के साथ-साथ कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक और कारोबारी शख़्सियतें मौजूद थीं. शी जिनपिंग ने इस सम्मेलन में चीन के इस 'न्यू थ्री' को ग्रीन मार्केट बड़े अवसर पैदा करने वाला बताया.
इलेक्ट्रिक व्हीकल्स
इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चीन के लिए 'धन के नए स्रोत' के रूप में देखा जा रहा है. 21वीं सदी के पहले दो दशकों में रियल इस्टेट सेक्टर को कुछ इसी नज़रिये से देखा जाता था.
ईवी इंडस्ट्री के विकास की संकल्पना सबसे पहले साल 2009 की सरकारी नीति में अपनाई गई थी. साल 2012 में इस सेक्टर को रणनीतिक रूप से उभरते हुए सेक्टर के रूप में चिह्नित किया गया.
बाद के सालों में इस सेक्टर को रिसर्च और डेवेलपमेंट के लिए फंडिंग, सब्सिडी, टैक्स सहायता, प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के विकास के रूप में सरकारी मदद मिलती रही.
साल 2012 में एक सरकारी दस्तावेज़ में ये कहा गया कि आने वाले दस साल ग्लोबल ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में बदलाव के लिहाज से रणनीतिक रूप से अहम हैं.
इसी दस्तावेज़ में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में चीन को एक ताक़तवर देश बनाने के लिए नई ऊर्जा से चलने वाली गाड़ियों के विकास के लिए अपील की गई.
सरकार की दस सालों की विकास योजना का ये नतीजा निकला कि चीन में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा.
साल 2023 में ऐतिहासिक तौर पर चीन पहली बार ग्लोबल ऑटोमोबाइल एक्सपोर्ट मार्केट में जापान से आगे निकल गया. चीन के कुल निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा इलेक्ट्रिक गाड़ियों का है.
एक साल पहले की तुलना में 2023 में ये 77.6 फ़ीसदी बढ़कर 4.91 मिलियन व्हीकल्स तक पहुंच गया.
लेकिन सरकारी मदद की वजह से इस इंडस्ट्री में भीड़ भी काफी बढ़ गई. इससे कारोबारी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी.
साल 2018 में चीन में लगभग 500 कंपनियां इस सेक्टर में काम कर रही थीं लेकिन अगले पांच साल में लगभग 40 कंपनियां ही मैदान में बची रह गईं. इसकी वजह थी गला काट प्रतिस्पर्धा.
इस कॉम्पिटिशन की वजह से चीन को प्राइस वार से रूबरू होना पड़ा. चीनी समाचार एजेंसी शिनहुआ ने मार्च में अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि ऐसा घरेलू बाज़ार में मांग की कमी और ज़रूरत से अधिक आपूर्ति के कारण हुआ. इन्हीं दो फैक्टर्स की वजह से चीनी कंपनियों ने दूसरे देशों की ओर देखना शुरू किया. चीन के बाहर के पारंपरिक कार बाज़ारों में इस नए घटनाक्रम को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली.
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने आगाह करते हुए लिखा कि ये 'कार बनाने वाली अमेरिकी कंपनियों के लिए बर्बादी की चेतावनी' है.
लीथियम बैटरी
इलेक्ट्रिक गाड़ियों के ज़रूरत से अधिक उत्पादन का सीधा संबंध लीथियम बैटरी से है. अगर एक चीज़ ज़रूरत से ज़्यादा तैयार हो रही है तो ऐसा दूसरी चीज़ के साथ भी हुआ.
लीथियम बैटरी इलेक्ट्रिक गाड़ियों का एक महत्वपूर्ण कॉम्पोनेंट (पुर्जा) होता है.
साल 2017 से साल 2023 के बीच चीन में लीथियम बैटरी का उत्पादन 111 से 940 गीगावॉट हावर्स (जीडब्ल्यूएच) लगभग नौ गुना बढ़ गया.
बैटरी के उत्पादन में काम आने वाली एक प्रमुख चीज़ लीथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) की उत्पादन क्षमता साल 2020 में 362,000 टन से दो साल में बढ़कर 1.65 मिलियन टन हो गई.
घरेलू लीथियम उत्पादन का दोगुना होना दुनिया के बाज़ारों में चीनी कच्चे माल की मांग का बढ़ना, ये दोनों घटनाएं एक ही वक़्त में हुई.
चीनी संसद के अधिकारी चेन श्वेहुआ देश की एक कोबाल्ट खनन कंपनी के प्रमुख भी हैं. उन्होंने मार्च में ये चेतावनी दी थी कि देश ज़रूरत से अधिक लीथियम बैटरी का उत्पादन कर रहा है.
उन्होंने कहा था कि वर्ष 2025 तक चीन की एलएफपी प्रोडक्शन क्षमता 5.75 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी जबकि दुनिया की कुल मांग महज 2.67 मिलियन टन ही है.
चीनी समाचार एजेंसी शिनहुआ के मुताबिक़, लीथियम बैटरी की बढ़ी हुई सप्लाई के कारण साल 2023 में बैटरी सेल की क़ीमत में 50 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई. इससे ईवी बाज़ार में प्राइस वार जैसी स्थिति पैदा हो गई.
फ़ोटोवॉल्टेक्स
फ़ोटोवॉल्टेक्स को आम भाषा में सोलर पैनल कह सकते हैं. सेमीकंडक्टिंग मैटेरियल के माध्यम से, फ़ोटोवॉल्टेक्स के इस्तेमाल से सूर्य की रोशनी से बिजली पैदा की जाती है.
फ़ोटोवॉल्टेक्स यानी सोलर पैनलों पर चीन और पश्चिमी देशों में टकराव कोई नई बात नहीं है.
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने चीन के सोलर पैनल्स पर 2012-2013 के दौरान भी एंटी-डंपिंग टैरिफ़ लगाए थे.
विदेशों में लग रहे टैरिफ़ से निपटने के लिए चीन ने घरेलू बाज़ार का रुख़ किया और सब्सिडी के सहारे बढ़िया सप्लाई चेन का निर्माण किया.
साल 2021 तक आते-आते दुनिया के बाज़ार में चीन का हिस्सा काफ़ी बढ़ गया था.
विश्व बाज़ार में पोलिसिलिकोन, वेफ़र्स, सोलर सेल्स और फ़ोटोवॉल्टेक्स के क्षेत्र में चीन का हिस्सा 70 फ़ीसदी हो गया.
लेकिन इन सबके निर्माण की लागत भारत से 10 फ़ीसदी, अमेरिका से 20 फ़ीसदी और यूरोप से 35 फ़ीसदी कम थी.
फ़ोटोवॉल्टेक्स इंडस्ट्री के जानकार जिन शिन के मुताबिक़, इस व्यवसाय में कुछ सामान के निर्माण में तो चीन का हिस्सा 90-95% तक है.
जिन ने ये भी बताया कि चीन में फ़ोटवॉल्टेक्स बनाने की क्षमता 1,000 गिगा वाट्स तक पहुँचने जा रही है. इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया में ये क्षमता अब भी 400-500 गिगा वाट्स तक ही पहुँच पाई है.
ज़रूरत से अधिक कैपेसिटी की क्या है वजह?
चीन का मीडिया इस बात से इनकार करता रहा है कि वहां ज़रूरत से अधिक फ़ोटोवॉल्टेक्स तकनीक का उत्पादन हो रहा है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपल्स डेली ने 3 से 5 मई के बीच इस विषय पर तीन लेख लिखे. इन लेखों में लोगों से इस सारे विवाद को वस्तुनिष्ठ तरीके से देखने की गुजारिश की.
सात मई को पेरिस के दौर पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वॉन डेर लेयेन ने चिंताएं ज़ाहिर की थीं.
इस बारे में शी ने कहा है कि चीन की नई ऊर्जा इंडस्ट्री खुली प्रतिस्पर्धा और एडवांस प्रोडक्शन कैपेसिटी पर आधारित है जिससे वैश्विक आपूर्ति बढ़ी है और दुनिया में मुद्रास्फीति का दबाव घटा है. साथ ही इससे जलवायु परिवर्तन के निपटने में भी योगदान दिया है.
चीन के खंडन के बावजूद उसके ये तीनों उत्पाद लगभग एक जैसा रास्ता अपनाते दिख रहे हैं. ये देश की सामरिक महत्व की इंडस्ट्री बन रहे हैं जिन्हें सरकार सब्सिडी देकर सस्ता रख रही है.
इसमें चीन के केंद्रीकृत योजना वाले आर्थिक सिस्टम और देश की ताकतवर मैनुफ़ेक्चरिंग सेक्टर से भरपूर मदद मिल रही है.
शी का महत्वकांक्षा पुराने तीन यानी कपड़े, घरेलू उत्पाद और फ़र्नीचर से आगे निकलकर हाई-टैक नए तीन उद्योगों को ओर जाने की है. यही लक्ष्य मेड इन चाइना 2025 नामक एक बड़ी रणनीति को दिया गया है.
कोविड के बाद धीमी आर्थिक ग्रोथ के कारण घरेलू मांग भी कमज़ोर ही रही है. मार्च में चीन का कंज़्यूमर प्राइस इंडेक्स 0.1 फ़ीसदी से बढ़ा. विदेशों को निर्यात के आंकड़े से चीन को जीडीपी को 5 फ़ीसदी की ग्रोथ तक पहुँचाया.
चीन के रियल इस्टेट में संकट ने हालात को और ख़राब बनाया है. एक वक्त में इसी सेक्टर की कुल जीडीपी में हिस्सेदारी 25 फीसदी रहती थी. रियल इस्टेट में मंदी ने स्टील के दामों को घटाया है और उसका निर्यात बढ़ा है.
क्या ग्लोबल ट्रेड वॉर होकर रहेगा?
अमेरिका के क़दम उठाने से पहले ही मेक्सिको ने चीन से आने वाली स्टील पर टैरिफ़ लगा दिए थे. चीनी स्टील के बारे में ऐसे ही क़दम चिली ने भी उठाए थे.
इसके अलावा ब्राज़ील, विएतनाम, भारत, ब्रिटेन, फ़िलिपींस और तुर्की ने भी चीनी स्टील के निर्यात पर जांच शुरू की है.
अमेरिकी में चुनावों से पहले दोनों ही उम्मीदवार चीन के साथ व्यापारिक मतभेदों पर सख़्त बयान दे रहे हैं.
मार्च में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि मेक्सिको में बन रही चीनी कारों पर 100 फ़ीसदी टैक्स लगाएंगे. बाइडन भी इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनल और सेमी कंडक्टर पर टैरिफ़ लगाने की बात कर चुके हैं.
यूरोप में भी चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों, मेडिकल के साज़ो-सामान, विंड टर्बाइन और सोलर पैनलों पर जांच शुरू कर दी है.
उभरती आर्थिक शक्ति भारत चीन के लिए भविष्य एक चुनौती पेश कर सकती है. भारत ने भी चीनी सोलर पैनल पर 2022 में टैरिफ़ लगाए थे और 2023 में 40 चीनी फ़र्मों की जांच शुरू की थी.
दुनिया में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बढ़ने के कारण ग्लोबल ट्रेड में तरकार भी बढ़ने का अंदेशा है.
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