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इसराइली हमलों ने कैसे बेरूत में लोगों की ज़िंदगी बदल दी
- Author, नफ़ीसेह कोहनावर्द
- पदनाम, मध्य-पूर्व संवाददाता, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
ये लेबनान की राजधानी बेरूत का एक होटल है. यहां के चीफ़ वेटर मारवान मज़ाक में कहते हैं, "चलो, थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं ताकि जो लोग तस्वीरें ले रहे हैं, उन तस्वीरों में हम बेहतर दिखें."
मारवान और उनके एक सहयोगी आसमान की तरफ़ देखते हैं, जहां वे इसराइली सर्विलांस ड्रोन को उड़ते हुए देख रहे हैं.
बैकग्राउंड में चल रहा म्यूज़िक या चिड़ियों की चहचहाहट भी इस ड्रोन की आवाज़ को दबा नहीं पा रही.
ये आवाज़ ऐसी लगती है जैसे कोई हेयरड्रायर चल रहा हो या आसमान में कोई मोटरसाइकिल दौड़ रही हो.
मारवान का होटल उस इलाक़े में नहीं हैं, जहां हिज़्बुल्लाह का मज़बूत गढ़ है.
ये होटल अशरफ़ीह में है, एक संपन्न ईसाई इलाका, जिसे पिछले युद्धों में इसराइल ने निशाना नहीं बनाया. साथ ही ये वही जगह है, जहां मैं रहती हूं.
कुछ दिन पहले, अशरफ़ीह के ऊपर से दो इसराइली मिसाइलें उड़ती हुई नज़र आई थीं.
मैंने देखा कि कैसे मेरे पड़ोस में बच्चे और बड़े चीख़ रहे थे. लोग अपनी बालकनी की तरफ़ भागे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि आख़िर हुआ क्या है.
कुछ ही सेकेंड में एक ज़ोर के धमाके ने पेड़ों से घिरी हुई सड़कों को हिलाकर रख दिया.
मेरी बिल्डिंग में हर कोई 'दाहियाह' की ओर देखने लगे, बेरूत का वो इलाक़ा जो हिज़्बुल्लाह का मज़बूत गढ़ है. अशरफ़ीह से दाहियाह दिखाई देता है.
लेकिन कुछ ही देर में हमें अहसास हो गया कि ये हमला हम से बस पांच मिनट की दूरी वाले एक इलाक़े में हुआ है.
वो हमला जिसमें 22 लोगों की हुई मौत
स्थानीय मीडिया का कहना है कि हमले का टारगेट वाफ़िक़ सफ़ा थे, जो कि हिज़्बुल्लाह के हाई-रैंकिंग सुरक्षा अधिकारी हैं, वो हसन नसरल्लाह के 'ब्रदर-इन-लॉ' भी हैं. हाल ही में एक हमले में नसरल्लाह की मौत हो गई थी.
रिपोर्ट्स, के मुताबिक़, वाफ़िक़ सफ़ा इस हमले में बच गए हैं.
जिस बिल्डिंग को निशाना बनाया गया था, वो उन लोगों से भरी थी, जो हाल ही में बेरूत आए थे. इसराइली सेना की तरफ़ से कोई चेतावनी नहीं दी गई और इस हमले में 22 लोगों की मौत हो गई.
ये अब तक का सबसे घातक हमला था.
मेरे एक पड़ोसी हैरानी से कहते हैं, ''ओह! माए गॉड, अगर हम उस सड़क से गुज़र रहे होते, तो हमारा क्या होता. मैं उसी सड़क के रास्ते रोज़ काम पर जाता हूं.''
वो आगे कहते हैं, ''अगर उनके पास टारगेट है, तो इसकी क्या गारंटी कि वो हमारी बिल्डिंग को निशाना नहीं बनाएंगे?''
लेबनान में ये उथल-पुथल 17 और 18 सितंबर को शुरू हुई, जब कई पेजर में हुए ब्लास्ट के बाद 32 लोगों की मौत हो गई थी और 5 हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए थे, इसमें हिज़्बुल्लाह के लड़ाके और आम नागरिक दोनों ही शामिल थे.
कई लोगों ने अपनी आंख या हाथ या कोई और अंग गंवा दिया.
दक्षिणी लेबनान और बेरूत के दक्षिणी इलाकों में ये हमले और तेज़ हुए, जिसमें हसन नसरल्लाह समेत हिज़्बुल्लाह के कई हाई-रैंक कमांडर मारे गए.
30 सितंबर को इसराइल ने दक्षिणी लेबनान पर हमला किया था.
अधिकारियों का कहना है कि पिछले कुछ हफ़्तों में इसराइल की बमबारी से 1600 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है.
बेरूत में ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई है
इनमें से कई हमलों को मैंने अपनी बालकनी से देखा है.
मारवान मुझसे कहते हैं, तीन हफ़्तों में जैसे पूरी ज़िंदगी ही ''फास्ट फॉरवर्ड'' हो गई है. वो कहते हैं, ''हम अभी तक ये समझ नहीं पा रहे हैं कि आख़िर हुआ क्या है.''
पिछले 12 महीनों से यानी जब से हिज़्बुल्लाह और इसराइल के बीच ये तनाव शुरू हुआ है, तब से मैंने मरवान से कई दफ़ा बातचीत की है.
उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी यहीं बिताई है और दोनों पक्षों के बीच की लड़ाई को देखते हुए आए हैं. लेकिन वो हमेशा से एक आशावादी शख़्स रहे हैं, उन्हें कभी सोचा भी नहीं था कि इस बार की लड़ाई एक युद्ध में तब्दील हो जाएगी.
वो अब मुझसे कहते हैं, ''मैंने आपसे जो पहले कहा था, उसे मैं वापस लेता हूं. मैं ये मानना नहीं चाहता लेकिन ये एक युद्ध है.''
बेरूत का चेहरा पूरी तरह बदल गया है
सड़कें गाड़ियों से भरी हुई हैं, कुछ गाड़ियां तो इधर-उधर लगी हुई हैं.
दक्षिणी लेबनान में हो रहे इसराइली हमलों से बचने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग राजधानी के इलाकों में आ गए हैं, 'सुरक्षित' माने जा रहे इलाक़े के स्कूलों में लोग शरण ले रहे हैं.
कई लोग तो ऐसे हैं जो सड़कों पर ही सो रहे हैं.
एयरपोर्ट और दक्षिण की तरफ़ जाने वाले रास्तों पर हसन नसरल्लाह की तस्वीरों वाले बिलबोर्ड दिख रहे हैं. हिज़्बुल्लाह के समर्थक और विरोधी दोनों को ये नज़ारे अजीब लग रहे हैं.
दूसरे इलाक़ों में जहां पहले "लेबनान युद्ध नहीं चाहता" जैसे पोस्टर लगे थे, अब वहां "लेबनान के लिए प्रार्थना करें" लिखा हुआ दिख रहा है.
शहर का मार्टियर्स स्क्वायर, जो प्रदर्शनों की जगह और क्रिसमस के जश्न के लिए जाना जाता है, अब वो टेंट सिटी में तब्दील हो चुका है.
लोग यहां क्रिसमस ट्री के नीचे अपनी-अपनी जगह बनाकर रह रहे है .
साल 2019 में हुए युवाओं के विरोध प्रदर्शन के वक्त मार्टियर्स स्क्वायर में लगाए गए कट-आउट के चारों तरफ़ कंबल, गद्दे और अस्थायी तंबू बिछे दिख रहे हैं.
इसी तरह की तस्वीरें शहर के हर कोने में देखने को मिल रही हैं. ये अस्थायी घर स्क्वायर से लेकर समंदर तट तक दिख रहे हैं.
यहां रह रहे ज़्यादातर परिवार सीरियाई शरणार्थी हैं, जिन्हें एक बार फिर विस्थापन झेलना पड़ रहा है. इन लोगों को कई शेल्टर में जगह नहीं मिली है, क्योंकि वो शेल्टर सिर्फ़ लेबनान के लोगों के लिए ही हैं.
लेकिन कई लेबनानी परिवार भी बेघर हो चुके हैं.
''आगे क्या होगा''
यहां से क़रीब एक किलोमीटर दूर, 26 साल की नादिन कुछ घंटों के लिए अपना ध्यान बंटाने की कोशिश कर रही हैं.
वो जेम्मायज़े के एक मोहल्ले में स्थित एक बुकशॉप-बार में बैठी हैं. इसका नाम 'आलियास बुक्स' है और यहां मौजूद चंद कस्टमर्स में से एक हैं नादिन.
वो कहती हैं, ''अब मुझे सुरक्षित महसूस नहीं होता, हम पूरी रात धमाकों की आवाज़ें ही सुनते रहते हैं.''
''मैं खुद से बार-बार ये पूछती हूं: क्या होगा कि वो यहां बम गिरा दें? अगर उन्होंने हमारे सामने खड़ी कार को निशाना बनाया तो क्या होगा?''
बेरूत के लोग कई दिनों तक ये मानते रहे हैं कि मौजूदा तनाव सिर्फ़ दक्षिणी लेबनान के हिज़्बुल्लाह के प्रभाव वाले गांवों तक सीमित रहेगा.
शक्तिशाली शिया और सैन्य संगठन हिज़्बुल्लाह को चलाने वाले नसरल्लाह ने कहा था कि उनका इरादा देश को युद्ध में धकेलने का नहीं है. उन्होंने साफ़ किया था कि इसराइल के ख़िलाफ़ मोर्चा केवल ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों का समर्थन के लिए है.
लेकिन अब ये सब कुछ बदल गया है.
हालांकि, ये हमले बेरूत के दक्षिणी हिस्सों में होते हैं, जहां पर हिज़्बुल्लाह का दबदबा है लेकिन इसकी वजह से पूरे बेरूत में हड़कंप मचा रहता है, जिससे लोग रातों की नींद भी खो बैठे हैं.
रोज़गार-कारोबार पर पड़ा असर
काम-धंधे भी प्रभावित हैं. आलियास बुक्स, एक ऐसी जगह ज़िंदादिल जगह हुआ करती थी, जहां लोक बैंड आते थे, पॉडकास्ट होते था, वाइन-टेस्टिंग नाइट्स का आयोजन किया जाता था.
हमने 30 जुलाई को दाहियाह में हुए हमले के बाद यहां एक रिपोर्ट के सिलसिले में शूटिंग की थी, इस हमले में हिज़्बुल्लाह के सीनियर कमांडर फुआद शुकर की मौत हो गई थी.
उस दिन इसराइली जेट विमानों की आवाजाही के बीच आसमान में तेज़ धमाके सुने जा सकते थे.
लेकिन इसके बावजूद, उस रात यहां एक जैज़ बैंड पूरे समय तक परफॉर्म करता रहा और लोग बार में नाचते-गाते रहे.
लेकिन अब ये जगह ख़ाली है, कोई म्यूज़िक नहीं बज रहा है न कोई डांस करने वाला है यहां.
बार मैनेजर चार्ली हैबर कहते हैं, ''ये दुखद और परेशान करने वाला है. आप यहां अपना मूड बदलने के लिए आते हैं लेकिन आख़िर में यहां भी आप इस वक्त के हालात के बारे में बात करने लगते हैं. सब यही पूछ रहे हैं, अब आगे क्या होगा?''
नसरल्लाह की मौत के बाद ये जगह दो हफ़्तों के लिए बंद रही. अब उन्होंने इसे फिर से खोल दिया है लेकिन आधी रात की बजाय अब ये रात 8 बजे ही बंद हो जाता है.
चार्ली का कहना है कि हर दिन के साथ यहां के स्टाफ और कस्टमर पर मानसिक दबाव बढ़ता ही चला जा रहा है.
वो कहते हैं, ''यहां तक कि इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट लिखने में भी आधा दिन लग जाता है, क्योंकि इस माहौल में आप ऐसा नहीं दिखना चाहते हैं कि ''आओ यहां मज़े करो और इस हालत में भी हम आपको ड्रिंक्स पर छूट दे रहे हैं'.''
अब इस इलाके में देर तक खुली कोई भी जगह ढूंढना मुश्किल है.
यहां का एक मशहूर रेस्तरां 'लोरिस' इससे पहले कभी भी एक बजे के पहले बंद नहीं हुआ था. इसके मालिकों में से एक जो आउन कहते हैं कि अब तो शाम सात बजे के बाद ही शहर सूना पड़ जाता है.
तीन हफ़्ते पहले तक इस रेस्टोरेंट में बिना रिज़र्वेशन के एक टेबल मिलना मुश्किल था. लेकिन अब मुश्किल से दो या तीन टेबल ही रोज़ भरती है.
जो आउन कहते हैं, ''हम हर एक-एक दिन काट रहे हैं. हम अभी यहां बैठकर बातचीत कर रहे हैं लेकिन हो सकता है कि अगले पांच मिनट में हमें सब बंद करके जाना पड़े.''
लोरिस के ज़्यादातर कर्मचारी बेरूत के दक्षिणी इलाकों या देश के दक्षिणी गांवों से आते हैं. आउन कहते हैं, ''हर दिन इनमें से एक की ख़बर मिलती है, उनका घर बर्बाद हो गया.''
इनमें से एक कर्मचारी अली 15 दिनों से काम पर नहीं आ रहे हैं, वो अपने परिवार के रहने के लिए कोई जगह ढूंढ रहे हैं. उनका परिवार हफ़्तों से दक्षिणी हिस्से में एक पेड़ के नीचे सोता रहा.
जो आउन बताते हैं कि वो रेस्टोरेंट को खोले रखने की कोशिश कर रहे हैं ताकि यहां के कर्मचारी रोज़ी रोटी के लिए पैसे जुटा सकें लेकिन उन्हें नहीं पता कि वो कब तक ये कर पाएंगे. जेनेरेटर के लिए फ्यूल की क़ीमत बेहद ज़्यादा है.
मैं उनके चेहरे पर हताशा को साफ़-साफ़ देख सकती हूं.
वो कहते हैं, ''हम युद्ध के ख़िलाफ हैं. हमारे कर्मचारी जो दक्षिण से आते हैं वो शिया हैं लेकिन वो भी युद्ध के ख़िलाफ़ हैं. लेकिन हमारी राय तो कोई पूछ ही नहीं रहा है. हम कुछ नहीं कर सकते हैं. हमें बस ऐसे ही रहना है.''
समुदायों में आपसी तनाव
आलियास बुक्स में चार्ली और नादिन, समुदायों के बीच बढ़ते तनाव को लेकर परेशान हैं.
बेरूत के ये इलाक़े ज़्यादातर सुन्नी मुस्लिम और ईसाई बहुल हैं, लेकिन हाल ही में जो लोग आए हैं उनमें ज़्यादातर शिया हैं.
नादिन कहती हैं, ''मैं सबकी मदद करना चाहती हूं, मैं व्यक्तिगत तौर पर धर्म या पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं करती लेकिन यहां तक कि मेरे परिवार में भी इस पर पर मतभेद है. मेरे परिवार के कुछ लोग सिर्फ़ ईसाई समुदाय से आने वाले विस्थापितों की मदद करना चाहते हैं.''
अशहरफ़ीह और जेम्मायज़े के चौक-चौराहे और गलियों में लेबनानी फ़ोर्सेज़ के झंडे देखे जा सकते हैं. लेबनानी फ़ोर्सेज़ एक ईसाई पार्टी है, जो हिज़्बुल्लाह का कड़ा विरोध करती है.
इस पार्टी का तीन दशक पहले गृहयुद्ध के दौरान शिया मुस्लिमों और फ़लस्तीनी गुटों के साथ लंबा सशस्त्र संघर्ष का इतिहास रहा है.
नादिन को लगता है कि ये सब एक विस्थापित हो रहे शिया मुस्लिमों के लिए संदेश हैं कि ''यहां मत आओ.''
लोगों की आवाजाही के साथ ये भी डर है कि इसराइल अब हिज़्बुल्लाह लड़ाकों या उनके सहयोगियों की तलाश में आसपास की किसी भी बिल्डिंग को निशाना बना सकता है.
हालांकि, हिज़्बुल्लाह का कहना है कि उनके वरिष्ठ अधिकारी उन जगहों पर नहीं रहते हैं जहां विस्थापित लोग रह रहे हैं.
ये सब स्थानीय कारोबार के लिए अच्छा नहीं है.
जेम्मायज़े के कई कारोबार तो चार साल पहले ही बेरूत पोर्ट विस्फोट में बर्बाद हो चुके थे. इसमें 200 लोग मारे गए थे और 70 हज़ार से ज़्यादा इमारतें तबाह हो गई थीं.
आर्थिक संकट के बाद इस इलाक़े में कई नई जगहें फिर से खुल रही थीं लेकिन अब इनमें से कई फिर से बंद हो चुकी हैं.
रेस्टोरेंट और बार मालिकों के संघ की बोर्ड मेंबर और कारोबारी माया बेकहाज़ी नून का अनुमान है कि डाउनटाउन बेरूत के 85 फ़ीसद खाने-पीने की जगहें बंद हो गई हैं या सीमित समय के लिए खुल रही हैं.
वो कहती हैं, ''सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि हम अभी कोई आंकड़े तैयार नहीं कर सकते हैं. लेकिन मैं आपको ये बता सकती हूं कि 85 फ़ीसद खाने-पीने की जगहें बंद हैं या सीमित समय के लिए काम कर रहे हैं.''
''जब इतने सारे लोग बिना पर्याप्त खाना और ज़रूरी सामान के रह रहे हों तो खुशी के लिए इन जगहों को खोले रखना मुश्किल है.''
बेरूत में मुश्किल हालात के बावजूद भी आपको शहर के उत्तर में 15 मिनट की दूरी पर कुछ रेस्टोरेंट और बार खुले मिलते हैं. लेकिन माया कहती हैं कि ये सब अस्थायी है.
वो कहती हैं, ''ये हमले दूसरे इलाक़ों में भी हो सकते हैं. उत्तर में कुछ जगहों पर हमले हुए हैं. कोई गारंटी नहीं है कि वो सुरक्षित ही रहेंगे.''
वो कहती हैं कि ये सब कुछ ऐसा है कि जैसे किसी ने बटन दबा दिया हो और बेरूत में ज़िंदगी थम गई है.
''हम सब रुके हुए हैं. हमें पता है कि दक्षिण में युद्ध हो रहा है और इसका असर हम पर भी पड़ा है, लेकिन कई लोगों की तरह मैंने भी उम्मीद नहीं की थी कि ये युद्ध इतना क़रीब आ जाएगा.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित