You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
1971 की जंग में लोंगेवाला की लड़ाई में जब भारतीय वायुसेना ने निभाई थी बड़ी भूमिका
- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी हिंदी
कहा जाता है कि एयर फ़ोर्स की बदौलत आप लड़ाई जीतें या न भी जीतें लेकिन उसकी ग़ैर-मौजूदगी में आपकी हार निश्चित है.
1971 की लड़ाई में पाकिस्तान ने एक महत्वाकांक्षी पहल करते हुए जैसलमेर सेक्टर में अपने क़रीब 2000 सैनिकों को टैंकों के साथ घुसा दिया. उनका मक़सद था अचानक हमला करके रामगढ़ और जैसलमेर पर क़ब्ज़ा करना.
दिसंबर की शुरुआत से ही गब्बर के पास के गाँवों में ये अफ़वाह फैली हुई थी कि पाकिस्तानी दावा कर रहे हैं कि वो 4 दिसंबर को जैसलमेर में नाश्ता करेंगे.
3 दिसंबर को भारत के कई हवाई ठिकानों पर हमला करके पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन चंगेज़ ख़ाँ' की शुरुआत कर दी थी. 5 दिसंबर, 1971 को भारतीय सैन्य इतिहास की एक महत्वपूर्ण तारीख़ माना जाता है.
4-5 दिसंबर की दरमियानी रात एक चांदनी रात थी. लोंगेवाला के आसपास हल्की हवा चल रही थी. लोंगेवाला की चौकी पर 23 पंजाब की अल्फ़ा कंपनी को तैनात किया गया था.
ये जगह जैसलमेर से 120, रामगढ़ से 55 और अंतरराष्ट्रीय सीमा से 20 किलोमीटर दूर थी.
लोंगेवाला-रामगढ़ रोड पर एक समतल ज़मीन पर एक हेलीपैड बनवाया गया था जिसकी चौकी से दूरी 700 मीटर थी.
भारतीय सैनिकों के पास दो मीडियम मशीन गन, 81 एमएम के दो मोर्टार, हमला करने वाले टैंकों से बचाव के लिए कंधे से चलाए जाने वाले चार रॉकेट लॉन्चर्स और एक रिकॉयलेस गन थी.
उनके पास कुछ बारूदी सुरंगें थीं जिन्हें तब तक बिछाया नहीं गया था.
गश्ती दल ने टैंकों के चलने की आवाज़ सुनी
चौकी के इंचार्ज मेजर कुलदीप सिंह चाँदपुरी ने कैप्टन धरमवीर भान के नेतृत्व में कुछ सैनिकों को आगे गश्त लगाने के लिए भेजा था.
बाद में धरमवीर भान ने एयर मार्शल भरत कुमार को दिए इंटरव्यू में बताया था, "रात की शांति अचानक टैंकों के इंजन से पैदा हुई हल्की आवाज़ और उनके धीरे-धीरे आगे बढ़ने की गड़गड़ाहाट से भंग हो गई. शुरू में हमें अंदाज़ा नहीं लगा कि ये आवाज़ कहाँ से आ रही है."
"हमारी पूरी प्लाटून ध्यान लगाकर उस आवाज़ को सुन रही थी. जब आवाज़ बढ़ती चली गई तो मैंने कंपनी कमांडर मेजर कुलदीप चाँदपुरी से वायरलेस से संपर्क किया. उन्होंने मुझसे कहा, हो सकता है कोई वाहन बालू में फंस गया हो. परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. उनके शब्द थे, 'जा सो जा'."
पाकिस्तानी टैंकों की धीमी गति
12 बजे के बाद पाकिस्तानी टैंक धरमवीर की आँखों के सामने आ गए. वो टैंक बहुत धीमे-धीमे बढ़ रहे थे और उनकी लाइट बुझी हुई थी. ये टैंक इसलिए भी धीमे-धीमे बढ़ रहे थे क्योंकि वो पक्की सड़क पर न चलकर रेत में आगे बढ़ रहे थे. शुरू में जब धरमवीर ने अपने कंपनी कमांडर को इस बारे में आगाह करना चाहा तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया.
सुबह 4 बजे उनका बटालियन मुख्यालय से संपर्क हो पाया जिन्हें उन्होंने सूचित किया कि पाकिस्तानी टैंक भारतीय क्षेत्र में घुस आए हैं और लोंगेवाला की तरफ़ बढ़ रहे हैं.
मेजर चाँदपुरी ने बटालियन मुख्यालय को फोन कर और कुमुक और हथियारों की माँग की.
साढ़े बारह बजे के आसपास पाकिस्तानी टैंकों ने गोले चलाने शुरू कर दिए थे. वो उस जगह आकर रुक गए जहाँ कंटीले तार लगे हुए थे. उन्होंने समझा कि वहाँ बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं.
डॉक्टर यूपी थपलियाल अपनी किताब 'द 1971 वॉर एन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री' में लिखते हैं, "इसका फ़ायदा उठाकर भारतीय सैनिकों ने अपनी स्थिति थोड़ी मज़बूत कर ली. जैसे ही सूरज की पहली किरण फूटी पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय चौकी पर हमला बोल दिया."
वायु सेना की मदद लेने का फ़ैसला
जब मेजर जनरल आरएफ़ खंबाता को इसकी ख़बर लगी तो वो अचानक हुए इस हमले से आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने तुरंत अंदाज़ा हो गया कि ये गंभीर स्थिति है और उससे निपटने के लिए उनके पास बहुत साधन नहीं हैं.
उनकी आशा की किरण वायुसेना थी. करीब 2 बजे रात को उन्होंने जैसलमेर हवाई ठिकाने के विंग कमांडर एमएस बावा से वायरलेस रेडियो से संपर्क किया.
एयर मार्शल भरत कुमार अपनी किताब 'द एपिक बैटिल ऑफ़ लोंगेवाला' में लिखते हैं, "जैसलमेर हवाई ठिकाने पर मौजूद हंटर विमान रात में उड़ान नहीं भर सकते थे इसलिए सुबह तक इंतज़ार किया गया."
"बेस कमांडर ने मेजर जनरल खंबाता से बात की और उन्हें आश्वस्त किया कि सुबह की पहली किरण पर हंटर विमान उड़ान भरेंगे और पाकिस्तानी टैंकों को ढूँढकर ख़तरे को बेअसर करने की कोशिश करेंगे. सुबह 4 बजे बावा ने स्क्वाड्रन लीडर आरएन बाली को ब्रीफ़ किया."
रिकॉयलेस गन से टैंकों पर फ़ायर
इस बीच 5 बजकर 15 मिनट पर मेजर चाँदपुरी ने ब्रिगेडियर रामदौस से संपर्क किया.
रामदौस ने बाद में हालात का वर्णन करते हुए कहा, "जब पाकिस्तान का लीड टैंक लोंगेवाला पोस्ट के दक्षिण पश्चिम में गोटारू सड़क पर सिर्फ़ एक किलोमीटर दूर रह गया तो चाँदपुरी ने अपनी रिकॉयलेस गन से उस पर फ़ायर किया. लेकिन निशाना सही नहीं लगा. बदले में पाकिस्तानी टैंक ने चौकी के ढाँचे को मलबे में बदल दिया. सिर्फ़ उसके बगल में खड़ा मंदिर बचा रह गया. फिर उसने ऊँटों के लिए रखे गए चारे में आग लगा दी."
इससे पहले पाकिस्तानी टैंकों को सीमा से 16 किलोमीटर की दूरी तय करने में 6 घंटे लग गए थे.
पाकिस्तान की 18 केवेलरी के रेजिमेंटल कमांडर ब्रिगेडियर ज़ेड ए ख़ान ने अपनी किताब 'द वे इट व़ॉज़, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी' में लिखा, "मैं जीप पर सबसे आगे चल रहा था और लोंगेवाला पोस्ट के दक्षिण में रिज तक पहुंच गया था. करीब साढ़े सात बजे मुझे लोंगेवाला की तरफ़ से विस्फोटों की आवाज़ सुनाई दी और धुएं ने पूरे आसमान को घेर लिया."
हंटर विमानों ने हमला बोला
जैसे ही पाकिस्तानी टैंक लोंगेवाला की चौकी पर अगला हमला बोलने की तैयारी कर रहे थे जैसलमेर से उड़े भारतीय हंटर विमान उनके ऊपर आ गए.
उस समय पाकिस्तान का लीड टैंक चौकी से मात्र 1000 गज़ की दूरी पर था. हंटरों को देखते ही पाकिस्तानी टैंक गोलाई में घूमने और धुआँ निकालने लगे. हंटर फ़ाइटर विमान चला रहे थे स्क्वाड्रन लीडर डीके दास और फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट रमेश गोसाईं.
बाद में डीके दास ने एक इंटरव्यू में बताया, "जब हम लोंगेवाला के पास पहुंचे तो मैंने नीचे जो दृश्य देखा उसे मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगा. ज़मीन पर दुश्मन के टैंक काली माचिस के डिब्बे की तरह लग रहे थे. उनमें से कुछ खड़े हुए थे तो कुछ चल रहे थे. मैं देख सकता था कि हमारे ऊपर ट्रेसर फ़ायर किए जा रहे थे."
दास ने बताया कि उन्होंने विमानभेदी तोपों की रेंज से बचने के लिए पहले ऊँचाई बढ़ाई और फिर अचानक गोता लगाकर और दिशा बदलकर हमला करने का फ़ैसला किया.
दास याद करते हैं, "जैसे ही मेरे रॉकेट्स ने टैंक को हिट किया अचानक सारे टैंकों ने आगे बढ़ना बंद कर दिया. इसके बाद बारी रमेश की थी. मेरी तरह वो भी नीचे आया और उसने भी एक टैंक बर्बाद किया."
हंटर विमानों के लगातार हमले
इसके बाद दास और रमेश ने दो बार और टैंकों पर हमले किए. अपने ऊपर होते हमलों से बचने के लिए पाकिस्तानी टैंकों ने चक्करदार तरीके से चलना शुरू कर दिया. इससे धूल उठनी शुरू हो गई और भारतीय पायलटों के लिए टैकों का निशाना लेना मुश्किल हो गया.
रॉकेट ख़त्म होने के बाद स्क्वाड्रन लीडर दास ने 30 एमएम एडम गन का एक बर्स्ट एक टैंक पर लगाया जिससे उसमें आग लग गई. इसके बाद सूर्यास्त होने तक थोड़ी-थोड़ी देर पर भारतीय विमानों का पाकिस्तानी टैंकों पर हमला जारी रहा.
दोपहर होते-होते भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के 17 टैंक और 23 अन्य वाहन बर्बाद कर डाले थे.
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ज़ेड ए ख़ान ने लिखा, "सुबह सात बजे से पूरे दिन भर भारतीय वायु सेना के चार हंटर विमान बिना किसी प्रतिरोध के हमारे ऊपर आकर बम बरसाते रहे. जैसे ही रात हुई हवाई हमले बंद हो गए. उस समय पाकिस्तान के पास दो विकल्प थे. नंबर एक वो अपनी सीमाओं में वापस लौट जाएं या फिर से संगठित होकर अपने मूल उद्देश्य रामगढ़ और जैसलमेर पर कब्ज़ा करने की दोबारा कोशिश करें."
ओवरहीटिंग और एयर कवर न होने का नतीजा
ऐसा लगता है कि उन्होंने रामगढ़ और जैसलमेर पर कब्ज़ा करने का विचार तो त्याग दिया. उसी रात 22 केवेलरी के पाकिस्तानी सैनिक मसितवारी भीत और गब्बर के इलाके में वापस लौट गए लेकिन लोंगेवाला पर कब्ज़ा करने का विकल्प अभी भी उनके पास था.
ब्रिगेडियर जहांज़ेब अरब के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी ब्रिगेड ने अगली सुबह लोंगेवाला पर हमला करने की फिर योजना बनाई. 28 बलूच से भी कहा गया कि वो लोंगेवाला-जैसलमेर रोड पर बढ़कर घोटारू पर कब्ज़ा कर लें.
शाम होते-होते लोंगेवाला की लड़ाई ख़त्म हो चुकी थी. इस लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों की हार का कारण था उनके शर्मन और टी-59 चीनी टैंकों का रेगिस्तान में बहुत धीमी गति से आगे बढ़ना.
ओवरहीटिंग की वजह से कई पाकिस्तानी टैंकों के इंजन फ़ेल हो गए और उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों को वहीं छोड़ना पड़ा. खुले रेगिस्तान में उनके टैंकों को कोई कवर नहीं मिला.
दूसरे सबसे बड़ी बात इतने बड़े अभियान के लिए पाकिस्तान के पास कोई एयर कवर नहीं था इसलिए जब भारतीय विमानों ने उन पर हमला किया तो वो 'सिटिंग डक' की तरह धराशायी होते चले गए.
इस लड़ाई में कुल मिलाकर पाकिस्तान के 45 में से 36 टैंक बर्बाद हो गए. दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी एक देश ने एक लड़ाई में इतने टैंक कभी नहीं खोए थे.
ब्रिगेडियर ज़ेड ए ख़ान ने लिखा, "हमारे पाँच टैंक कमांडर जैम हुई मशीनगन को अपने पैरों से खोलने के प्रयास में मारे गए. इसके बाद मशीन गनों को डीज़ल से धोकर ठीक किया जाने लगा. इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल की गईं 12.7 एमएम की विमानभेदी तोपें आधुनिक युद्धक विमानों का सामना करने लायक नहीं बची थीं."
इस लड़ाई के परिणाम का असर ये रहा कि भारत ने अपनी पूरी सैनिक ताकत पूर्वी सेक्टर में लगा दी.
इस लड़ाई को सिर्फ़ इसलिए नहीं याद रखा जाएगा कि इसमें पाकिस्तान के बहुत से टैंक बर्बाद हुए बल्कि इसलिए भी याद रखा जाएगा कि इस लड़ाई से पाकिस्तानी सेना के मनोबल को भी बहुत नुक़सान पहुंचा.
लड़ाई में वीरता दिखाने के लिए भारतीय कंपनी कमांडर कुलदीप सिंह चाँदपुरी को वीरता का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान महावीर चक्र दिया गया जबकि पाकिस्तान के डिवीजनल कमांडर मेजर जनरल बीएम मुस्तफ़ा को जाँच के बाद उनके पद से हटा दिया गया.
बॉर्डर फ़िल्म में वायुसेना की भूमिका का सही चित्रण नहीं
इस लड़ाई की जीत में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी भारतीय वायुसेना ने.
हालांकि जब 1997 में इस लड़ाई पर आधारित फ़िल्म 'बॉर्डर' आई तो इसमें दिखाया गया कि ये लड़ाई मुख्यत: आर्मी ने जीती थी और वायु सेना की इस जीत में मात्र सहायक भूमिका थी.
एयर मार्शल भरत कुमार लिखते हैं, "बॉर्डर फ़िल्म में लोंगेवाला की लड़ाई को जिस तरह भी दिखाया गया हो लेकिन वास्तविकता ये है कि भारतीय वायुसेना के इतिहास में लोंगेवाला की लड़ाई को हमेशा एक मील का पत्थर माना जाएगा जिसमें वायु सेना के मात्र चार हंटर विमानों ने 45 टैंकों के साथ आए करीब 2000 पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था."
लड़ाई के छह साल बाद वहाँ पर एक विजय स्तम्भ बनाया गया जिसका उद्घाटन लड़ाई के दौरान रक्षा मंत्री रहे जगजीवन राम ने किया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित