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शेख़ हसीना सरकार के गिरने के बाद बांग्लादेश में क्या बड़े बदलाव हुए?
- Author, तारेकुज्जमां शिमुल
- पदनाम, बीबीसी न्यूज़ बांग्ला, ढाका
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना एक महीने पहले हिंसक आंदोलनों की वजह से अपने पद से इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ भारत आ गई थीं.
पाँच अगस्त की उस घटना के तीन दिनों बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफ़ेसर डॉ. मोहम्मद यूनुस ने देश में अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर शपथ ली थी.
नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद बीते एक महीने के दौरान प्रशासन के शीर्ष पदों पर बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए हैं और यह अब भी जारी है.
इसके साथ ही देश की आर्थिक समेत कई क्षेत्रों में सुधार की पहल की गई है.
देश में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जगह प्रशासकों की नियुक्ति की गई है. बैंकिंग के क्षेत्र में सुधार के लिए एक अलग आयोग बनाने का भी फ़ैसला किया गया है.
इसके साथ ही अवैध तरीक़े और धोखाधड़ी से लिए गए क़र्ज़ और ग़ैरकानूनी तरीक़े से बाहर भेजे गए धन को देश में वापस लाने के लिए भी क़दम उठाए जा रहे हैं.
बांग्लादेश की पुलिस भी हमलों के डर से उबर कर दोबारा काम पर लौट आई है. नई सरकार ने ड्रेस और लोगो में बदलाव के ज़रिए पुलिस बल को दोस्ताना बनाने की बात कही है.
इस बीच, शेख़ हसीना के साथ ही अवामी लीग के सांसदों और मंत्रियों के ख़िलाफ़ हत्या समेत अलग-अलग आरोपों में मामले दर्ज करने का सिलसिला जारी है.
अब तक कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया जा चुका है.
इसके उलट सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रोफेसर यूनुस और बीएनपी की अध्यक्ष ख़ालिदा जिया के ख़िलाफ़ कई मामलों में सज़ा रद्द कर दी गई है.
देश में बीएनपी और जमात के अलावा विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा किया गया है.
साथ ही चरमपंथी गतिविधियों और दूसरे गंभीर मामलों में सज़ायाफ़्ता मुजरिमों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है, जिसकी आलोचना भी हो रही है.
बीते एक महीने के दौरान क्या हुआ है?
बीते पांच अगस्त को आवामी लीग सरकार के गिरने के बाद देश के विभिन्न इलाक़ों के पुलिस थानों में हमले की घटनाएँ हुई थी.
बांग्लादेश पुलिस एसोसिएशन का कहना है कि उस दौरान देश के 639 में से कम से कम 450 थानों पर हमले किए गए थे.
हमलों के दौरान थानों में तोड़फोड़, आगज़नी, हथियार, संपत्ति लूटने और पुलिस वालों की हत्या की घटनाएँ भी हुई थीं.
अधिकारियों का कहना है कि हसीना सरकार के पतन से पहले और बाद में हुई हिंसा के दौरान देश भर में कम से कम 44 पुलिसवालों की मौत हो गई.
उसके बाद कामकाज की जगह पर सुरक्षा, पुलिस वालों की हत्या के मामले में न्याय और मुआवज़े समेत विभिन्न मांगों के समर्थन में पुलिस के जवानों ने हड़ताल शुरू कर दी थी.
इसकी वजह से चोरी-डकैती की घटनाएँ बढ़ जाने के साथ ही देश में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति ख़राब हो गई थी.
एक दौर में तो स्थानीय लोगों और स्वयंसेवकों ने रात भर मोहल्ले में पहरेदारी शुरू कर दी थी.
बांग्लादेश में बिगड़े हालात में प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सत्ता संभालने के बाद अंतरिम सरकार ने क़ानून व्यवस्था संभालने की कोशिश शुरू की.
गृह मंत्रालय के तत्कालीन सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल (रिटाय़र्ड) एम सखावत ने कई दौर की बैठकों के बाद पुलिस वालो की मांगें स्वीकार करने का भरोसा दिया.
काम पर वापस लौटी पुलिस
उन्होंने इसके साथ ही समय सीमा तय करते हुए कहा कि अगर 15 अगस्त के भीतर वे लोग काम पर नहीं लौटे, तो मान लिया जाएगा कि वो नौकरी करने के इच्छुक नहीं हैं.
उसके बाद 11 अगस्त को हड़ताल वापस लेकर पुलिस वाले थाने में लौट आए.
हालाँकि पुलिस बल की ओर से कहा गया है कि तमाम नुक़सान की भरपाई के बाद परिस्थिति और कामकाज पूरी तरह स्वाभाविक होने में अभी कुछ और समय लगेगा.
दूसरी ओर, सरकार ने पुलिस वालों का मनोबल बढ़ाने के साथ ही उसे 'दोस्ताना' बनाने के लिए उनकी ड्रेस और 'लोगो' में बदलाव का फ़ैसला किया है.
हालांकि कई लोगों ने इस बात पर संदेह जताया है कि ड्रेस और लोगो बदलने से पुलिस के कामकाज में कितना बदलाव आएगा. साथ ही इस मद में होने वाले भारी ख़र्च पर भी सवाल उठ रहे हैं.
लेकिन इसके बावजूद नए पुलिस प्रमुख (आईजीपी) मोहम्मद मोइनुल इस्लाम मानते हैं कि हाल की घटनाओं की पृष्ठभूमि में ड्रेस में बदलाव ज़रूरी है.
इस्लाम बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, "हाल के आंदोलन में पुलिस वालों के इस ड्रेस में रहने के दौरान कई घटनाएँ हुई हैं. ड्रेस से एक मानसिकता पनपती है. इसी वजह से इसमें बदलाव ज़रूरी है. हम कोशिश करेंगे कि पुलिस नाइंसाफ़ी न करे और समाज का भरोसा हासिल कर सके."
न्यायपालिका में बड़े बदलाव
आवामी लीग सरकार के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश की न्यायपालिका में भी बड़े पैमाने पर बदलाव होते देखा गया है.
आंदोलन कर रहे छात्रों की की मांग पर बीते 10 अगस्त को देश के मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन ने इस्तीफ़ा दे दिया था.
उनकी नियुक्ति हसीना सरकार के कार्यकाल में हुई थी. उनके साथ अपीलीय प्रभाग के अन्य न्यायाधीशों ने भी इस्तीफ़ा दे दिया था.
उसके बाद अपीलीय प्रभाग के न्यायाधीश सैयद रिफ़त अहमद ने नए न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली थी. इसी तरह अपीलीय प्रभाग में भी चार नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई.
दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहम्मद असदुज्जमां को नया अटॉर्नी जनरल बनाया गया. असदुज्जमां बीएनपी के केंद्रीय मानवाधिकार मामलों के सचिव थे.
इसलिए यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या उनको पार्टी के हितों को ध्यान में रखते हुए ही नियुक्त किया गया है?
अंतरिम सरकार ने पहले की नियुक्तियों को रद्द कर हाल में पूरे देश में अटॉर्नी जनरल और सहायक अटॉर्नी जनरल के पदों पर 227 वकीलों की नियुक्ति की है.
इनमें से सुप्रीम कोर्ट के 66 वकीलों को डिप्टी अटॉर्नी जनरल और 161 को सहायक अटॉर्नी जनरल बनाया गया है.
डॉ. यूनुस और ख़ालिदा ज़िया की सज़ाएं रद्द
शेख़ हसीना सरकार के पतन के साथ ही न्यायपालिका में बदलाव आने की वजह से कई मामलों में फ़ैसले पलट गए हैं.
प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस औऱ ग्रामीण बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक नूरजहां बेगम को आवामी लीग के शासनकाल में श्रम क़ानून के उल्लंघन के आरोप में छह महीने की सज़ा सुनाई गई थी.
लेकिन अंतरिम सरकार के सलाहकार के तौर पर शपथ लेने के अगले दिन ही उन दोनों की सज़ा रद्द कर आरोपमुक्त कर दिया गया.
इसी तरह भ्रष्टाचार निरोधक आयोग की ओर से पैसों के गबन के मामले से भी उनको बरी कर दिया गया है.
हालांकि प्रोफ़ेसर यूनुस शुरू से ही दावा करते रहे थे कि उनको परेशान के लिए ही झूठे मामले में फंसाया गया है.
दूसरी ओर, शेख़ हसीना के शासन में बीएनपी की अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया को ज़िया चैरिटेबल ट्रस्ट में भ्रष्टाचार के एक मामले में सात साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी.
लेकिन सरकार के पतन के अगले दिन ही राष्ट्रपति ने उनकी सज़ा माफ़ करते हुए उनकी रिहाई का निर्देश दिया था. बीएनपी प्रमुख को मानहानि के पाँच मामलों में भी बरी कर दिया गया है.
बीएनपी का आरोप था कि यह मामले फ़र्जी और राजनीतिक मक़सद से प्रेरित थे. इसके अलावा आरक्षण आंदोलन के दौरान गिरफ़्तार छात्रों को भी रिहा कर दिया गया है.
बीते डेढ़ दशक के दौरान विभिन्न मामलों में गिरफ़्तार और जेल में सज़ा काट रहे बीएनपी, जमात और उनके समान विचारधारा वाले कई दलों के शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी रिहा कर दिया गया है.
इनमें साल 2007 में गिरफ़्तार गयासुद्दीन अल मामुन भी शामिल हैं.
चरमपंथ के आरोप में प्रतिबंधित संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के प्रमुख मुफ़्ती जसीमुद्दीन रहमानी और हत्या के मामले में गिरफ़्तार शेख़ असलम को भी ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है.
बांग्लादेश में इस फ़ैसले की आलोचना भी हो रही है.
शेख़ हसीना समेत कई लोगों के ख़िलाफ़ मामले
अब बांग्लादेश में कई ऐसे ‘ताक़तवर’ लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, जिन पर हत्या, भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन समेत कई आरोप थे.
लेकिन हसीना सरकार के शासनकाल में उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.
पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ अब तक 100 से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं. उनमें से ज़्यादातर मामले हत्या के आरोप से संबंधित हैं.
इसी तरह सजीब वाजेद, सायमा वाजेद औऱ शेख रिहाना समेत आवामी लीग प्रमुख के परिजनों और नज़दीकी रिश्तेदारों के अलावा पूर्व सांसदों, मंत्रियों और आवामी लीग के तमाम शीर्ष नेताओं के ख़िलाफ़ भी मामले दर्ज किए गए हैं.
शेख़ हसीना समेत उनकी सरकार के मंत्रियों और सांसदों के राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिए गए हैं.
कई लोगों को किसी ठोस सबूत के बिना ही विभिन्न मामलों में अभियुक्त बनाने के आरोप भी लगे हैं. इससे यह संदेह भी पैदा हुआ है कि उनको सज़ा हो पाएगी या नहीं.
सक्रिय हुआ जमात
आवामी लीग सरकार ने सत्ता हाथों से निकलने के चार दिन पहले आतंकवाद विरोधी क़ानून की धारा 18 के तहत 'जमात ए इस्लामी बांग्लादेश' और उसके छात्र संगठन 'इस्लामी छात्र शिविर' पर पाबंदी लगा दी थी.
लेकिन अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद तीसरे सप्ताह में ही वह फ़ैसला बदल गया.
पहले की अधिसूचना रद्द कर दी गई है. इसके कारण संगठन के नेता और कार्यकर्ता दोबारा सक्रिय हो गए हैं.
15 अगस्त की छुट्टी रद्द
वर्ष 2009 में आवामी लीग के सत्ता में आने के बाद बीते डेढ़ दशक से बांग्लादेश के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान के निधन के दिन 15 अगस्त को पूरे देश में शोक दिवस के तौर पर मनाया जाता रहा है.
देश में उस दिन सरकारी छुट्टी का दिन घोषित था.
लेकिन सत्ता बदलने के एक सप्ताह के भीतर ही अंतरिम सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद वह छुट्टी रद्द करने का फ़ैसला किया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित