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ढाका में भारत के उच्चायुक्त का संतुलित जवाब लेकिन बांग्लादेश के तेवर गर्म
बांग्लादेश और भारत के संबंधों में जारी तनातनी के बीच मंगलवार का दिन भी काफ़ी गहमागहमी वाला रहा.
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को समन किया था. वर्मा के सामने बांग्लादेश ने अगरतला में अपने उप-उच्चायोग पर हुए हमले का विरोध जताया.
वर्मा जब बांग्लादेश के कार्यकारी विदेश सचिव रियाज़ हमिदुल्लाह से मिलकर बाहर आए तो ढाका के पत्रकारों ने घेर लिया और उनसे सवाल पूछने लगे.
भारतीय उच्चायुक्त ने सवालों के जवाब में कहा कि दोनों देशों के संबंध बहुआयामी हैं और किसी एक एजेंडे या मुद्दे रिश्ते कमज़ोर नहीं होंगे.
हालांकि अगरतला में बांग्लादेश के उप-उच्चायोग पर हमले को लेकर भारत खेद जता चुका है. इसके अलावा सुरक्षा में कोताही को लेकर त्रिपुरा पुलिस के सात लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. साथ ही तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया गया है.
मंगलवार को प्रणय वर्मा ने कहा, ''हम बांग्लादेश के साथ वाक़ई सकारात्मक, स्थिर और रचनात्मक संबंध स्थापित करना चाहते हैं. कई चीज़ें हैं, जो हम कर रहे हैं. हम कई मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर हैं. हम चाहते हैं कि एक दूसरे की निर्भरता पारस्परिक फ़ायदे का हो. हम इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि दोनों देशों के लोगों को आपसी सहयोग से फ़ायदा हो.''
भारतीय उच्चायुक्त का संतुलित रुख़
वर्मा ने कहा, ''पिछले कुछ महीनों में हमारे संबंधों में कई सकारात्मक प्रगति हुई है. चाहे वो कारोबार हो या पावर ट्रांसमिशन हो या ज़रूरी सामानों की आपूर्ति. हमने कई सकारात्मक चीज़ों को जारी रखा है. हम बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ सहयोग के लिए तैयार हैं. शांति, सुरक्षा और तरक़्क़ी हमारे साझे लक्ष्य हैं और इन्हें हासिल करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं.''
प्रणय वर्मा ने भले संतुलित प्रतिक्रिया दी लेकिन बांग्लादेश के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार नाहिद इस्लाम ने मंगलवार को भारत को निशाने पर लिया.
उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा कि भारत बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है.
नाहिद इस्लाम ने कहा कि बांग्लादेश और मुसलमान विरोधी नैरेटिव से आख़िरकार भारत के हितों को नुक़सान होगा. उन्होंने कहा, ''भारत का सत्ताधारी वर्ग विभाजनकारी और बांग्लादेश विरोधी राजनीति में उलझा हुआ है. बांग्लादेश का पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहा है. ये हमारे साझेदार रहे हैं.''
नाहिद इस्लाम ने कहा, ''बांग्लादेश में आंदोलन के दौरान कोलकाता और दिल्ली के छात्र शेख़ हसीना के अत्याचार के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे. ये छात्र लोकतंत्र से प्यार करते हैं और हमारे दोस्त हैं. हालांकि भारत का सत्ताधारी वर्ग और हिन्दुत्व वाले इस तरह के संबंध नहीं चाहते हैं. भारत बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ कथित अत्याचार के नैरेटिव से शेख़ हसीना की प्रासंगिकता साबित करने में लगा है. ऐसा करके भारत बांग्लादेश के लोकतांत्रिक और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर रहा है.''
बांग्लादेश की सरकार क्या कह रही है?
नाहिद इस्लाम ने कहा, ''हम शुरुआत से ही इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि भारत सरकार बांग्लादेश को अवामी लीग के चश्मे से ना देखे. भारत हमारे साथ बराबरी, निष्पक्षता और पारस्परिक सम्मान की बुनियाद पर रिश्ते को मज़बूत करे.''
''बांग्लादेश सभी अल्पसंख्यकों, जिनमें हिन्दू भी शामिल हैं, को नागरिकता के सारे अधिकार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. शेख़ हसीना की सरकार में अल्पसंख्यकों के साथ सबसे ज़्यादा नाइंसाफ़ी हुई थी लेकिन भारत बिना शर्त हसीना का समर्थन करता रहा. भारत अपने ही अल्पसंख्यकों का सुरक्षा देने में नाकाम रहा है.''
एक तरफ़ बांग्लादेश ने भारतीय उच्चायुक्त को समन किया तो दूसरी ओर ढाका में पाकिस्तान के उच्चायुक्त सैयद अहमद मरूफ़ अपनी पत्नी के साथ बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष बेगम ख़ालिदा ज़िया से मिलने मंगलवार रात 8:30 बजे उनके आवास गुलशन पहुँचे.
इस मुलाक़ात के दौरान बीएनपी स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य प्रोफ़ेसर ज़ाहिद हुसैन और पार्टी सचिव शमा ओबैद भी मौजूद थे.
इस मुलाक़ात को लेकर ढाका स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के आधिकारिक एक्स अकाउंट ने तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा है, ''उच्चायुक्त सैयद अहमद मरूफ़ अपनी पत्नी के साथ बीएनपी अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया के आवास पर मिलने गए. ख़ालिदा ज़िया से सेहत में सुधार की जानकारी ली और उन्हें शुभकामनाएं दीं. बीएनपी अध्यक्ष से हमने द्विपक्षीय संबंधों और साझे हितों को लेकर भी चर्चा की.''
बीएनपी मीडिया सेल के सदस्य शैरुल कबीर ख़ान ने बांग्लादेश के अंग्रेज़ी अख़बार ढाका ट्रिब्यून से कहा कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त रात में 8:30 बजे आए थे और क़रीब 10 बजे तक रहे.
इस बैठक में मौजूद बीएनपी स्टैंडिग कमिटी के सदस्य ज़ाहिद हुसैन ने पत्रकारों से कहा, ''पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने बीएनपी चेयरपर्सन से कई मुद्दों पर बात की. उन्होंने बांग्लादेश के निर्माण में ज़िया-उर रहमान की भूमिका को भी रेखांकित किया. पाकिस्तान चाहता है कि बांग्लादेश से संबंध नई ऊंचाई पर पहुँचे.''
भारत को लेकर बांग्लादेश का विपक्ष आक्रामक
ज़िया-उर रहमान ख़ालिदा ज़िया के पति थे और बांग्लादेश के राष्ट्रपति के साथ सैन्य अधिकारी भी रहे थे.
ख़ालिदा ज़िया के हाथ में जब भी बांग्लादेश की कमान रही है तब पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रहे हैं.
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित मानते हैं कि शेख़ हसीना का बांग्लादेश की सत्ता से बेदख़ल होना पाकिस्तान के लिए सुनहरा अवसर है. शेख़ हसीना के जाने के बाद पिछले तीन महीनों में पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंधों में गर्मजोशी भी देखने को मिली है.
दूसरी तरफ़ बीएनपी के नेता लगातार भारत को निशाने पर ले रहे हैं. मंगलवार को बीएनपी के महासचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने ढाका के नयापलटन बीएनपी कार्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान भारत की ख़ूब आलोचना की.
रुहुल कबीर रिज़वी ने कहा, ''बांग्लादेश को मुक्ति यहाँ के लाखों लोगों की शहादत के बाद मिली है. हम भारत के ग़ुलाम बनने के लिए आज़ाद नहीं हुए हैं. हम भारत के उग्र हिन्दुओं से कहना चाहते हैं कि आपकी दोस्ती शेख़ हसीना से है. इस दोस्ती को बचाने के लिए बांग्लादेश के लोगों से खुलेआम दुश्मनी अच्छे पड़ोसी का व्यवहार नहीं हो सकता है. हज़ारों लोगों की जान लेने के बाद हसीना आपके यहाँ की शरणार्थी हैं.''
रिज़वी ने कहा, ''भारत के आम लोगों से बांग्लादेश के लोगों की कोई दुश्मनी नहीं है. लेकिन बीजेपी के अतिवादी बांग्लादेश से जंग चाहते हैं. ऐसे में बांग्लादेश का हर नागरिक अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए खड़ा है.
ख़ालिदा ज़िया के बेटे तारिक़ रहमान ने भारतीय मीडिया की आलोचना करते हुए एक बयान जारी किया है.
मंगलवार को तारिक़ रहमान ने कहा, ''तानाशाह शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद भारत के मीडिया में बांग्लादेश को लेकर झूठी बातें फैलाई जा रही हैं. इसी का नतीजा है कि ग़लत सूचनाओं की बाढ़ आ गई है और बांग्लादेश विरोधी भावना बढ़ रही है.''
''अगरतला में बांग्लादेश के उप-उच्चायोग पर हमला बताता है कि ग़लत सूचनाओं का नतीजा क्या हो सकता है. इससे पड़ोसियों के बीच विभाजन बढ़ेगा. हमें यह सोचना होगा कि 20 करोड़ आबादी वाले बांग्लादेश में अस्थिरता किसी के भी हक़ में नहीं होगा.''
भारत के कई विश्लेषक मानते हैं कि जुलाई में बांग्लादेश में जो कुछ भी हुआ और शेख़ हसीना को सत्ता छोड़ भारत आना पड़ा, वो क्रांति नहीं थी.
भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अंतरराष्ट्रीय संपादक स्टेनली जॉनी ने लिखा है, ''बांग्लादेश में जो कथित क्रांति हुई है, उसका कई कारणों से मैं प्रशंसक नहीं हूँ. विरोध-प्रदर्शन के दौरान हसीना को किसी विपदा की तरह देखा गया. लेकिन हसीना की विरासत मिलुजुली रही है.''
''बांग्लादेश सैन्य शासन और सड़कों पर होने वाली हिंसा से जिस हालत में था, उससे हसीना ने निकाला और लाखों लोगों को ग़रीबी से बाहर किया. हाँ, ये सही बात है कि वह निरंकुश हो गई थीं लेकिन बांग्लादेश का विपक्ष और बदतर है. 1971 के जनसंहार में जमात की मिलीभगत थी और बीएनपी का शासन तो ख़ूनी रहा है. ऐसे में इस क्रांति को लेकर मेरे मन में शंका है क्योंकि इसका समर्थन इन ताक़तों का था.''
स्टेनली जॉनी ने लिखा है, ''अगर शेख़ हसीना की आलोचना इस बात के लिए होती है कि विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया था, इसलिए उनकी जीत वैध नहीं थी तो उनकी जगह जो अभी सत्ता में हैं, उसकी भी वैधता नहीं है. मोहम्मद युनूस का कोई सियासी आधार नहीं है.''
''उन्होंने पहले भी राजनीति में आने की कोशिश की थी और बुरी तरह से नाकाम रहे थे. हसीना को सत्ता से बाहर होने के लिए मजबूर किया गया और तभी मोहम्मद युनूस विदेश से ढाका आए. एक सैन्य शासन को पश्चिम ने तत्काल मान्यता दे दी. यह कोई लोकतांत्रिक क्रांति नहीं थी.''
जॉनी कहते हैं, ''मोहम्मद युनूस के सत्ता में आते ही अवामी लीग के समर्थकों पर हिंसक हमले शुरू हो गए. अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाने लगा. इनमें हिन्दू, ईसाई और अहमदिया शामिल हैं. हसीना के ख़िलाफ़ व्यवस्थित तरीक़े से अभियान शुरू हुआ.''
''उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया. अवामी लीग के स्टूडेंट विंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जमात को खुली छूट मिल गई. पहले बात हुई कि अगले तीन महीने में ही बांग्लादेश में चुनाव होगा. लेकिन अब चार महीने हो चुके हैं. चुनाव तो आप भूल ही जाइए. बांग्लादेश स्थिरता से अभी बहुत दूर है. हिंसा को लेकर युनूस बेख़बर हैं. पड़ोसी के मुश्किल दिन अभी ख़त्म नहीं हुए हैं.''
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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