प्रेम चोपड़ा: हीरो बनने की चाहत में कैसे विलेन बन 'क्रांति' की

प्रेम चोपड़ा
इमेज कैप्शन, अभिनेता प्रेम चोपड़ा बीबीसी के शो 'कहानी ज़िंदगी की' में

खलनायक के तौर पर हिंदी सिनेमा जगत में पहचान बनाने वाले प्रेम चोपड़ा मुंबई हीरो बनने आए थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था.

प्रेम चोपड़ा ने यूं तो सैकड़ों फ़िल्मों में काम किया लेकिन 'उपकार,' 'शहीद,' 'दो रास्ते,' 'पूरब और पश्चिम' और 'बॉबी' जैसी फ़िल्मों ने उन्हें बड़ी पहचान दी.

फिल्मों में संघर्ष के दौरान प्रेम चोपड़ा ने चार साल तक 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के सर्कुलेशन विभाग में काम किया.

1960 से लेकर 70 के दशक में बॉलीवुड और हिंदी फ़िल्मों के चर्चित खलनायक रहे प्रेम चोपड़ा ने बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश 'कहानी ज़िंदगी की' में अपनी ज़िंदगी के पहलुओं पर हमारे सहयोगी इरफ़ान से बात की.

पंजाबी से हिंदी फ़िल्मों तक का सफ़र

प्रेम चोपड़ा

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इमेज कैप्शन, प्रेम चोपड़ा की पहली पंजाबी फ़िल्म का नाम 'चौधरी करनैल सिंह' था

लाहौर में जन्मे प्रेम चोपड़ा बताते हैं कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले ही उनका परिवार भारत आ गया था. उनका बचपन हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में बीता.

प्रेम चोपड़ा कहते हैं, "मेरे पिता अक्सर कहते थे कि तुम बहुत ही असुरक्षित प्रोफ़ेशन को तवज्जो दे रहे हो, मत दो. तुम आईएएस या डॉक्टर बनो. तुम बहुत अच्छे स्टूडेंट रहे हो."

वो कहते हैं "इंटर कॉलेज के दौरान स्टेज में काम करते हुए मुझे कुछ अवार्ड मिले. तो मैंने अपने पिता से कहा कि मैं वहां (मुंबई) जाकर कोशिश ज़रूर करूंगा. तब उन्होंने कहा कि ठीक है. ये तुम्हारी ज़िंदगी है."

प्रेम चोपड़ा के परिवार से उनके बड़े भाई ने भी फ़िल्मी जगत में एक प्रोड्यूसर के तौर पर किस्मत आज़माई थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

उनकी पहली फ़िल्म पंजाबी की थी, जिसका नाम 'चौधरी करनैल सिंह' था. इस फ़िल्म को बनने में क़रीब तीन साल का वक़्त लगा. यह फ़िल्म भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित थी.

प्रेम चोपड़ा बताते हैं कि इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.

उन दिनों प्रेम चोपड़ा फ़िल्मों में काम करने के लिए अक्सर ऑफ़िस से बहाने बनाकर छुट्टी लिया करते थे.

उन्होंने बताया कि नौकरी के दौरान भी उन्होंने कुछ फ़िल्मों में काम किया, जिनमें 'शहीद,' 'वो कौन थी,' 'मंजिल' और 'सगाई' जैसी फ़िल्में शामिल हैं.

प्रेम चोपड़ा और मनोज कुमार

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इमेज कैप्शन, अभिनेता प्रेम चोपड़ा और मनोज कुमार (फ़ाइल फ़ोटो)

प्रेम चोपड़ा अपनी सफलता का श्रेय मनोज कुमार को देते हैं.

उन्होंने कहा, "असली ब्रेक मुझे मनोज कुमार की फ़िल्म 'उपकार' से मिला. 'उपकार' में दो भाइयों की कहानी थी. मेरा किरदार उसमें निगेटिव शेड में था. फ़िल्म 'शहीद' में भी हम दोनों ने साथ में काम किया था. मैंने सुखदेव का किरदार निभाया और उन्होंने भगत सिंह का."

'उपकार' फ़िल्म की सफलता के बाद प्रेम चोपड़ा ने ख़ुद ही नौकरी छोड़ दी.

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कैसे एक किरदार ने प्रेम चोपड़ा की फ़िल्मी छवि तय कर दी

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इमेज कैप्शन, एक फ़िल्म के सीन के दौरान प्रेम चोपड़ा और राजेश खन्ना (फ़ाइल फ़ोटो)
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प्रेम चोपड़ा के अभिनय करियर में कई मोड़ आए, लेकिन कुछ मुलाक़ातें और फै़सले ऐसे थे जिन्होंने उनकी पूरी छवि को हमेशा के लिए गढ़ दिया.

उनके फ़िल्मी करियर में ऐसा ही एक पल तब आया जब उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान से हुई.

प्रेम चोपड़ा बताते हैं, "महबूब साहब ने मुझसे कहा कि तुम बैठे रहो, मैं तुम्हें ब्रेक दूंगा. तुम्हारे अंदर क़ाबिलियत है. उस वक़्त उनकी फ़िल्म 'मदर इंडिया' रिलीज़ हुई थी. उसके बाद उनकी 'सन ऑफ़ इंडिया' आई थी, जो ख़ास नहीं चली. 'सन ऑफ़ इंडिया' के बाद उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि मैं अपनी अगली फ़िल्म के लिए तैयारी कर रहा हूं."

इसके कुछ समय बाद जब प्रेम चोपड़ा की फ़िल्म 'वो कौन थी' रिलीज़ हुई और वह एक बड़ी हिट फ़िल्म साबित हुई.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में उन्होंने बताया कि उनकी इस फ़िल्म का प्रीमियर दिल्ली में हुआ था. इस प्रीमियर में महबूब ख़ान चीफ़ गेस्ट के तौर पर आए थे.

प्रेम चोपड़ा याद करते हैं, "उन्होंने उस समय मुझसे कहा कि मैंने तुझसे कहा था कि कोई उल्टा-सीधा काम नहीं करना. तुझे मैं हीरो का किरदार देने वाला था. अब तूने विलेन का रोल किया और फ़िल्म हिट हो गई है. तुमने बहुत अच्छा रोल किया है. अब तुम ज़िंदगी भर के लिए विलेन ही बन जाओगे."

'प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा' - जब एक डायलॉग बन गया पहचान

प्रेम चोपड़ा

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इमेज कैप्शन, प्रेम चोपड़ा के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उनका उर्दू से गहरा ताल्लुक रहा है

'प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा' यह महज़ एक डायलॉग नहीं था, इस डायलॉग ने उनके किरदार को एक नई पहचान दी.

प्रेम चोपड़ा बताते हैं कि "आइडिया राज कपूर का था."

वो कहते हैं "पुणे में फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी. राज कपूर ने मुझे सीन समझाया कि ये अख़बार में न्यूज़ आई है कि एक लड़की या लड़का घर से भाग गए हैं और तुम्हें लड़की का हाथ पकड़कर बोलना है 'प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा'."

वह आगे कहते है, "फ़िल्म का प्रीमियर दिल्ली में हुआ. प्रीमियर ख़त्म होते ही बाहर निकल रहे दर्शकों की ज़बान पर एक ही डायलॉग था, 'प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा'."

यह डायलॉग दरअसल जेम्स बॉन्ड की प्रसिद्ध शैली 'माय नेम इज बॉन्ड, जेम्स बॉन्ड' से प्रेरित था.

इसके बाद फ़िल्मों में प्रेम चोपड़ा के किरदारों के लिए वन-लाइनर डायलॉग्स लिखे जाने लगे.

जैसे फ़िल्म 'सौतन' में 'मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं' और फ़िल्म 'क्रांति' में 'शंभू का दिमाग दोधारी तलवार है.'

दिलीप कुमार, प्राण और देव आनंद

प्राण, देव आनंद और मनोज कुमार

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इमेज कैप्शन, साल 2010 में मुंबई में कार्यक्रम के दौरान उपस्थित देव आनंद (बाएं) , मनोज कुमार (बीच में ) और प्राण (दाएं) (फ़ाइल फ़ोटो)

प्रेम चोपड़ा केवल खलनायकी के लिए नहीं, बल्कि अपने अनुभवों और सहकलाकारों के प्रति सम्मान के लिए भी पहचाने जाते हैं.

प्रेम चोपड़ा ने बताते हैं कि दिलीप कुमार उनके कॉलेज के दिनों से ही रोल मॉडल थे.

वह कहते हैं, "जब बी.आर. चोपड़ा साहब ने मुझे फ़िल्म 'दास्तान' का ऑफ़र दिया और मुझे यूसुफ़ साहब के साथ काम करने का मौका मिला, तो यह मेरे लिए सपने के सच होने जैसा था. वह एक बेहतरीन कलाकार ही नहीं, एक बेहद उम्दा इंसान भी थे."

प्रेम चोपड़ा

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इमेज कैप्शन, अभिनेता प्रेम चोपड़ा और देव आनंद (फ़ाइल फोटो)

प्रेम चोपड़ा को देव आनंद की एनर्जी बहुत पसंद थी.

प्रेम चोपड़ा बताते हैं, "देव आनंद साहब को फ़िल्म के हिट और फ्लॉप होने से कोई ख़ासा फ़र्क नहीं पड़ता था. वह कहते थे, 'दर्शकों को मेरा नज़रिया समझ में नहीं आया. ये मेरी नहीं, उनकी दिक्कत है.' ये उनका जिंदगी को लेकर नज़रिया था."

अपने ज़माने के एक और विलेन प्राण के बारे में प्रेम चोपड़ा कहते हैं, "प्राण साहब की जबरदस्त निगेटिव किरदार की छवि थी, असल जिंदगी में वो बहुत ही सीधे आदमी थे. उनको भी लोग गलत समझते थे."

ख़ुद के निभाए विलेन किरदारों के असर के बारे में प्रेम चोपड़ा बताते हैं कि लोग उन्हें असल ज़िंदगी में भी खलनायक समझते थे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित