ग़ज़ा के अल-रशीद स्ट्रीट पर हुई मौतें किस ओर इशारा कर रही हैं?

    • Author, फर्गल कीन
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, यरूशलम से

ग़ज़ा के अल-रशीद स्ट्रीट पर गुरुवार को राहत सामग्री का इंतज़ार कर रहे लोगों के साथ हुई घटना में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ग़ज़ा में खाद्य सामग्री के बढ़ते संकट से निपटने के दबाव में है.

वे सभी रास्तों पर और कई तरीक़ों से मरते हैं. कई अपने घरों के मलबों के नीचे दब गए, जिन्हें विस्फोटकों से उड़ा दिया गया था, कई को गोलियों से छलनी कर दिया गया और कई धातुओं के उड़ते हुए टुकड़ों से कट गए.

जैसे ही यह युद्ध अपने पांचवें महीने में प्रवेश कर रहा है, भूख से होने वाली मौतें ग़ज़ा को परेशान करने लगी हैं.

ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि अल-रशीद स्ट्रीट पर हुई त्रासदी क्या है और कैसे हुई.

क्या हैं अल-रशीद स्ट्रीट पर हुई घटना के कारण

हालांकि सटीक कारणों का पता लगाने के लिए इस घटना की स्वतंत्र जांच की ज़रूरत है, लेकिन ग़ज़ा की मौजूदा परिस्थितियों में यह संभव नहीं है, लेकिन यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि युद्ध क्षेत्र के बीच में लोग भोर के अंधेरे में अपनी जान जोखिम में डालकर क्यों जमा हुए थे.

शरणार्थी वहां इसलिए थे, क्योंकि वे अपने परिवार के भोजन के लिए परेशान थे. वे गोलियों से और कुचल कर मारे गए, हालांकि हमें अभी यह नहीं पता है कि किससे कितने लोग मरे, लेकिन वे जीना चाहते थे. यह एक क्रूर विडंबना है.

ग़ज़ा की 85 फीसदी आबादी अब विस्थापित हो चुकी है. युद्ध ने हर तरह की सामान्य आर्थिक गतिविधि और खाद्य आपूर्ति को तबाह कर दिया है. पानी और बिजली की आपूर्ति बाधित है. अस्पताल पर्याप्त दवा या बिजली के बिना चल रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए पिछले हफ्ते कहा था कि वह उत्तरी ग़ज़ा को सहायता पहुंचा पाने में असमर्थ है. इस त्रासदी को समझने की कोशिश करते समय ध्यान में रखने लायक ये बुनियादी तथ्य हैं.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने शुरू से ही कहा है कि सहायता सामाग्री का सुरक्षित वितरण सुनिश्चित कराना इसराइल की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है.

लेकिन, महीनों के युद्ध के बाद इस बात का कोई संकेत नहीं है, जिसे संयुक्त राष्ट्र एक सक्षम वातावरण कहता है, जिसमें बड़ी मात्रा में सहायता उन लोगों तक पहुंचाई जा सके जिन्हें उसकी दरकार है.

संयुक्त राष्ट्र के बयान ही दे रहे हैं संकट की गवाही

ऐसा नहीं है कि बढ़ते मानवीय संकट के सबूतों का अभाव रहा हो. पिछले कई महीनों में आए संयुक्त राष्ट्र के बयान ही इसके गवाह हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने 15 नवंबर को एक रिपोर्ट दी थी. इसमें कहा गया था, "हम पहले से ही पानी, सीवरेज और स्वच्छता सेवाओं, टेलीफोन, खाने की कमी और स्वास्थ्य सेवा में व्यापक गिरावट देख रहे हैं."

वहीं दो दिसंबर को मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय ने रिपोर्ट दी, "संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सोमवार को कहा कि सहायता पहुंचाने वाली टीमों के पास उत्तरी ग़ज़ा में बहुत सीमित आवाजाही और पहुंच थी, उसे भी अब पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.''

इसके 12 दिन बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकल्प प्रस्ताव नंबर 2720 को स्वीकार किया. इस प्रस्ताव में, "संघर्ष के पक्षों से पूरे क्षेत्र में फलस्तीनी नागरिकों को सीधे मानवीय सहायता की तत्काल, सुरक्षित और निर्बाध पहुंच की इजाज़त देने की अपील की गई थी.''

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने 26 जनवरी को इसराइल से कहा कि वह ज़रूरी बुनियादी सेवाओं और मानवीय सहायता के प्रावधान को सक्षम बनाने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाए.

संयुक्त राष्ट्र राहत और कल्याण एजेंसी (यूएनआरडब्लूए) के निदेशक फिलिप लाजारिनी 9 फरवरी तक इसराइल पर ग़ज़ा में 11 लाख फलस्तीनियों का भोजन रोकने का आरोप लगाते रहे थे.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ग़ज़ा में हर दिन 500 ट्रक सहायता सामग्री की ज़रूरत होती है, लेकिन प्रतिदिन का औसत 90 ट्रकों का रहा है.

हाल के दिनों में आसमान से पैराशूट के ज़रिए गिराई गई सहायता सामग्री का ज़मीनी स्तर पर स्वागत तो हो रहा है. लेकिन यह सहायता पहुंचाने के प्रयासों के विफल होने का भी प्रतीक है.

ग़ज़ा में क्यों नहीं पहुंच पा रही है मानवीय सहायता

इसराइल और मिस्र से ग़ज़ा की ओर जाने वाली सड़कें हैं, अगर ये सड़कें सुरक्षित होतीं तो उनसे अधिक मात्रा में सहायता सामग्री लेकर ट्रक यात्रा कर सकते हैं. लेकिन वहां जारी युद्ध और उससे पैदा हुए अराजक हालात का मतलब है कि कोई भी ट्रक चालक अपनी जान जोखिम में नहीं डालेगा.

लोग सहायता सामग्री लूट रहे हैं और आपराधिक गिरोह बेचने के लिए सहायता सामग्री लूट रहे हैं, इन स्थितियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने अनुमान लगाया है कि वहां मोगादिशू जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं. उन्होंने सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में 1990 के दशक की शुरुआत में फैली अराजकता का संदर्भ दिया था.

ग़ज़ा में हमास का पुलिस बल सहायता सामग्री ले जाने वाले ट्रकों के काफिले को ले जाने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसके सदस्यों को कथित तौर पर इस बात का डर है कि इसराइली उन्हें गोली मार देंगे.

जहां तक ​​हमास के नेताओं का सवाल है, वे युद्ध भड़काने के बाद गायब हैं. वे अब ग़ज़ा की सुरंगों और खंडहरों में जिंदा रहने के लिए जूझ रहे हैं.

इसराइल का कहना है कि वह सहायता सामग्री के वितरण की सुविधा दे रहा है, उदाहरण के लिए अल रशीद स्ट्रीट पर हुई घटना से पहले की रातों में वहां सहायता सामग्री पहुंचाई गई थी. इसराइल ने संयुक्त राष्ट्र पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उत्तरी सीमा के भीतर सहायता सामग्री का ढेर लगा हुआ है, लेकिन उसे बंटवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र आगे नहीं आया है.

इसराइल और संयुक्त राष्ट्र का अविश्वास

इसराइल का यूएनआरडब्लूए पर भी गहरा अविश्वास है. उसका कहना है कि इस सहायता एजेंसी में हमास की घुसपैठ है.

इसराइल के आरोपों के बाद यूएनआरडब्लूए ने अपने 12 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था. बर्खास्त कर्मचारियों पर इसराइल में 7 अक्टूबर को हुए हमास के हमलों में शामिल होने या इसराइली बंधकों को हिरासत में रखने में मदद पहुंचाने का आरोप था.

इसराइल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने कहा है कि आईडीएफ अब यूएनआरडब्लूए से कोई समझौता नहीं करेगा. उन्होंने कहा, "यूएनआरडब्ल्यूए ने अपनी वैधता खो दी है. अब वह संयुक्त राष्ट्र की संस्था के रूप में काम नहीं कर सकता है."

सात अक्तूबर को हमास के हथियारबंद लड़ाकों ने इसराइल में हमला कर 1200 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी और 250 लोगों को बंधक बना लिया था. इसके कुछ दिन बाद ही गैलेंट ने ग़ज़ा की पूर्ण नाकेबंदी का आदेश दिया था.

उन्होंने कहा था, "कोई बिजली नहीं होगी, कोई भोजन नहीं होगा, कोई ईंधन नहीं होगा, सब कुछ बंद है. हम इंसानी जानवरों से लड़ रहे हैं और हम उसी के मुताबिक़ काम कर रहे हैं."

अमेरिका के दबाव में यह स्थिति बदल गई. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 19 अक्टूबर को एक समझौते की घोषणा की. इसके बाद इसराइल और मिस्र ने ग़ज़ा में सहायता सामग्री ले जाने की इजाज़त दी.

ग़ज़ा में कुछ राहत सामग्री की पहुंच के बाद, अभी भी वहां से भूख की ख़बरें आ रही थीं.

पश्चिमी देशों की चिंता

ब्रितानी विदेश मंत्री डेविड कैमरन समेत पश्चिम के कई नेताओं ने बार-बार अपील की.

ब्रितानी विदेश मंत्री ने 9 जनवरी को कहा कि उन्हें चिंता है कि इसराइल ने ऐसी कार्रवाई की है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि इसराइल ग़ज़ा में पानी की सप्लाई बहाल करे.

इसके एक महीने बाद 12 फरवरी को उन्होंने ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स से कहा कि इसराइल को यह सुनिश्चित करना होगा कि ग़ज़ा में लोगों को खाना, पानी और आश्रय मिले. उन्होंने कहा था कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन होगा.

अल-रशीद स्ट्रीट पर हुई घटना की उन्होंने तत्काल जांच कराने की अपील की. उन्होंने कहा, "ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए."

लेकिन इस बात के सबूत हैं कि ग़ज़ा के बहुत से नागरिक हिंसक मौत और तेज़ी से फैल रही भुखमरी के डर के साए में जी रहे हैं.

समय आएगा जब दुनिया खुद से पूछेगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जिसमें धरती के सबसे शक्तिशाली देश शामिल हैं, उन्होंने ग़ज़ा में लाखों हताश लोगों के लिए जीवनरक्षक सहायता सुनिश्चित क्यों नहीं की.

यह तब हुआ है जब संयुक्त राष्ट्र के पास दुनिया भर में मानवीय अभियान चलाने का आठ दशक का अनुभव है. उसके पास अनुभव या संसाधनों की कोई कमी नहीं है.

अल-रशीद की सड़क पर 29 फरवरी की हुई दुखद घटना एक निर्णायक मोड़ लेगी, यह कहना अभी भी जल्दबाज़ी होगी. लेकिन, ऐसी भयानक परिस्थितियों में इतने अधिक लोगों की मौत ने युद्धविराम समझौते के लिए बढ़ते दबाव को और बढ़ा दिया है. एक ऐसा संघर्ष विराम जो भूखे लोगों तक खाना पहुंचाने की इजाज़त देगा.

ये आने वाले दिन ही बता पाएंगे कि क्या ये उम्मीदें पूरी हो पाएंगी.

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