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महाराष्ट्र में क्या लाडली बहन योजना 'गेमचेंजर' साबित हुई?
- Author, प्रियंका जगताप
- पदनाम, संवाददाता, बीबीसी मराठी
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले ‘महायुति’ गठबंधन ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है.
राज्य की 230 विधानसभा सीटें जीतते हुए 'महायुति' ने कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) गुट के महाविकास अघाड़ी गठबंधन को महज 50 सीटों पर रोक दिया है.
कुल 288 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 132, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 और अजीत पवार की एनसीपी ने 41 सीटें जीती हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि इस ‘अप्रत्याशित जीत’ के पीछे सबसे बड़ी वजह महाराष्ट्र में ‘मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन’ योजना रही है.
महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने इस साल जून महीने में यह योजना शुरू की थी.
इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं.
राज्य में करीब दो करोड़ लाभार्थी महिलाएं हैं. विश्लेषकों के मुताबिक इस वर्ग ने ‘महायुति’ सरकार को सत्ता में लाने का काम किया है.
मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में प्रयोग
महायुति सरकार ने अपने बजट में मुख्यमंत्री लाडली बहन योजना की घोषणा की थी.
योजना की घोषणा के बाद महायुति सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि यह विधानसभा चुनावों में बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी.
क्योंकि इससे पहले बीजेपी ने साल 2023 में मध्य प्रदेश में 'लाडली बहन योजना' की शुरुआत की थी.
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तब महिला वोटरों को गोलबंद करने के लिए एक करोड़ से ज्यादा महिलाओं के खाते खोले थे.
मध्य प्रदेश सरकार ने 23 से लेकर 60 साल तक की उम्र वाली महिलाओं के खाते में प्रति माह 1000 रुपये की रकम ट्रांसफर करना शुरू किया था. हालांकि अब ये राशि राज्य सरकार ने बढ़ा दी है.
मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने इसे महाराष्ट्र में भी लागू किया.
क्या कहते हैं विश्लेषक
वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी का मानना है कि 'मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन' योजना ने आम लोगों के बीच सरकार के खिलाफ गुस्से को कम करने का काम किया है.
वे कहते हैं, "लोकसभा चुनाव के बाद महंगाई को लेकर किसानों के साथ-साथ आम लोगों में बहुत गुस्सा था, लेकिन जब मां या बहन के खाते में पैसा आता है, तो वह सीधा घर में दिखाई देता है. ऐसे में गुस्सा अपने आप कम हो जाता है."
सुधीर कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में जीत के बाद एनसीपी के अजित पवार भी लाडली बहन योजना को गेम चेंजर बता चुके हैं.
इस योजना के असर पर बात करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिमा परदेशी कहती हैं कि इसका निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है.
वे कहती हैं, "इस चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है, इसलिए हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि इसके पीछे लाडली बहन योजना का असर हो सकता है."
परदेशी कहती हैं, "अगर इस योजना की सिर्फ एक किस्त ही मिली होती तो ऐसा नहीं कहा जा सकता था, लेकिन चुनाव से पहले महिलाओं के खाते में तीन किस्त जमा की गईं, जिसका परिणाम यह हुआ कि मतदान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी."
वे कहती हैं, "ऐसा लगता है कि इस योजना से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की महिलाएं प्रभावित हुई हैं. शहर के मध्यम वर्ग और गरीब तबके की महिलाओं को भी पैसा मिला है, क्योंकि महायुति सरकार ने अब तक इस योजना के लिए कोई खास मानदंड निर्धारित नहीं किए हैं.”
"इस योजना का असर यह हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं यह भी भूल गईं कि उन्हें उनकी सोयाबीन की फसल की कीमत नहीं मिली थी."
महिला वोटरों की संख्या में बढ़ोतरी
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक महाराष्ट्र में पहली बार महिला मतदाता इतनी बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए निकलीं.
चुनाव प्रचार के दौरान महायुति सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि अगर वे सत्ता में दोबारा से चुनकर आते हैं तो लाडली बहन योजना की राशि को बढ़ाया जाएगा.
अजित पवार की एनसीपी ने भी बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ मिलकर इस योजना का खूब प्रचार किया.
इसका असर यह हुआ है कि कई महिलाओं को पहली बार पैसा मिला और लाखों की संख्या में महिलाओं ने पहली बार बैंक खाते खोले.
प्रतिमा परदेशी कहती हैं कि इस योजना से खासकर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के हाथ में पैसा आया जिससे उनमें सशक्तिकरण की भावना पैदा हुई और मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई.
जानकारों का कहना है कि दिवाली से एक दिन पहले महिलाओं के खाते में पैसा डाला गया जिससे इस योजना का काफी चर्चा हुई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित