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ट्रंप के एक फ़ैसले से इन देशों पर मंडरा सकता है बड़ा ख़तरा
दुनिया के सबसे शक्तिशाली सैन्य संगठन नेटो के प्रमुख मार्क रटे के सामने अपने संगठन की सार्थकता बनाए रखने की बड़ी चुनौती है.
इसी सिलसिले में मार्क रटे ने मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाक़ात की.
उनका मक़सद अमेरिका को नेटो के केंद्र में बरकरार रखना था.
ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए रूस के साथ समझौते पर बल देने वाले बयान दिए हैं और यूक्रेन को अमेरिकी सैनिक सहायता बंद करने की धमकी भी दी है.
इसके चलते यूरोपीय देश अब यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि अमेरिकी सहायता के बिना वो ख़ुद इस समस्या से कैसे निपट सकते हैं?
इसलिए इस हफ़्ते हम दुनिया जहान में यही जानने की कोशिश करेंगे कि नेटो की कितनी ज़रूरत रह गई है?
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आर्टिकल 5: नेटो की आत्मा
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन या नेटो 32 सदस्य देशों का संगठन है और इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले की स्थिति में संगठन के सभी देश उसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.
इसकी स्थापना साल 1949 में सोवियत संघ से पैदा होने वाले ख़तरे से निपटने के लिए हुई थी. उस समय इसके सदस्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिम यूरोपीय देश थे.
यूरोप में शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद नेटो का विस्तार किया गया और कई पूर्व कम्युनिस्ट देशों को इसमें शामिल कर लिया गया.
जॉन डेनी यूएस आर्मी वार कॉलेज स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के रिसर्च प्रोफ़ेसर है और नेटो एंड आर्टिकल 5 नामक किताब के लेखक भी हैं.
उनका कहना है कि नेटो का आर्टिकल 5 यानी अनुच्छेद 5 संगठन का मूल और आत्मा है. इसके तहत नेटो के किसी सदस्य देश पर हुए हमले को सभी देशों पर हमला माना जाएगा.
"नेटो संधि के आर्टिकल 5 के तहत संगठन के सभी देश हमले की स्थिति में एक दूसरे की सहायता करने को बाध्य हैं. इसी वजह से आर्टिकल 5 को नेटो और यूरोपीय देशों की सुरक्षा का स्तंभ माना जाता है."
नेटो के सभी महत्वपूर्ण फ़ैसले इसकी परिषद नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल में लिए जाते हैं. इसका मुख्यालय ब्रसेल्स में है. सुरक्षा के विषय पर चर्चा के लिए सदस्य देशों की सप्ताह में कम से एक बार परिषद की बैठक होती है.
जॉन डेनी ने बताया कि हमला होने पर कोई भी सदस्य देश परिषद में वह मुद्दा उठा सकता है और अगर मामला अर्जेंट हुआ तो फ़ौरन परिषद का विशेष सत्र आयोजित किया जा सकता है. मगर कोई कार्रवाई हमले की कार्रवाई है या नहीं... यह कौन तय करता है?
जॉन डेनी कहते हैं कि सभी सदस्य देशों को इस बात पर सहमत होना पड़ेगा कि आर्टिकल 5 के तहत कार्रवाई आवश्यक है जिसके बाद ही वो कदम उठा सकते हैं.
इसमें सभी सदस्य देश आपसी समन्वय से काम करते हैं. "यह राजनीतिक फ़ैसले होते हैं. कभी कभी यह इस बात पर निर्भर करता है कि सहयोगी देश किसी कार्रवाई को कैसे परिभाषित करते हैंऔर क्या कार्रवाई करते हैं."
जॉन डेनी कहते हैं कि आर्टिकल 5 के तहत सदस्य देश क्या कार्रवाई करें, इस मुद्दे पर आर्टिकल 5 की भाषा में कुछ अस्पष्टता है और सदस्य देश इसका अपने हिसाब से अर्थ लगा सकते हैं.
लेकिन स्थापना के बाद से यही माना गया है कि नेटो के किसी एक देश पर हमला इसके सभी सदस्यों पर हमला माना जाएगा.
नेटो के लगभग 70 साल के इतिहास में आर्टिकल 5 के तहत सिर्फ़ एक बार कार्रवाई हुई है जो 9/11 को अमेरिका पर हुए हमले के बाद की गई थी. हालांकि 1999 में कोसोवो युद्ध के दौरान नेटो की सेना ने यूगोस्लाविया पर हमले किए थे.
रूस के 2022 में यूक्रेन पर किए गए हमले के बाद नेटो ने कहा था कि यूक्रेन की सुरक्षा ज़रूरी है. यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं है. रूस के 2014 में क्राइमिया पर कब्ज़ा किए जाने के बाद से यूक्रेन नेटो की सदस्यता की मांग कर रहा है.
जॉन डेनी ने कहा, "नेटो के नियमों के अनुसार नेटो की सदस्यता चाहने वाले भावी सदस्य देश के उसके पड़ोसी देश के साथ विवाद नहीं होने चाहिए.''
2014 से यूक्रेन और रूस के बीच लड़ाई चल रही है और जब तक यूक्रेन का रूस के साथ चल रहा भूमि संबंधी विवाद समाप्त नहीं हो जाता, तब तक यूक्रेन को नेटो में शामिल किया जाना बहुत मुश्किल है."
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कहते हैं कि पिछले दो दशकों में नेटो का रूस की सीमा के नज़दीक विस्तार हुआ जिस वजह से रूस ने नेटो पर हमला किया है. अमेरिका का कहना है कि यूक्रेन को नेटो में शामिल करने से रूस के साथ जंग छिड़ सकती है.
नेटो और अमेरिका
रेचैल एलेहूस लंदन स्थित थिंकटैंक दी रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टिट्यूट की महानिदेशक हैं. हमने उनसे नेटो में अमेरिका की भूमिका के बारे में बात की.
उन्होंने बताया कि नेटो की स्थापना के समय से ही अमेरिका की प्रमुख भूमिका रही है. कमांड सेंटर, सैनिक सहायता, सेना की तैनाती और नेतृत्व प्रदान करने में अमेरिका की नेटो में प्रमुख भूमिका रही है.
2024 में नेटो के कुल प्रतिरक्षा बजट का दो तिहाई हिस्सा अमेरिका का था. नेटो देशों में अमेरिका की सेना सबसे शक्तिशाली है और नौसेना विश्व की सबसे शक्तिशाली नौसेना मानी जाती है.
रेचैल एलेहूस कहती हैं कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में यह मुद्दा उठाया था कि अमेरिका की तुलना में नेटो के अन्य देशों का प्रतिरक्षा खर्च बहुत कम है और उन्हें इसे बढ़ाना चाहिए. यही मांग उनसे पहले दूसरे अमेरिकी रक्षा मंत्रियों ने भी कही थी.
राष्ट्रपति ट्रंप ने आर्टिकल 5 पर कुछ नहीं कहा है और न ही अमेरिका को नेटो से बाहर करने की बात की है लेकिन क्या ट्रंप यह मुद्दा इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि अमेरिकी जनता के ज़हन में यह बात हो कि जितना पैसा अमेरिका खर्च कर रहा है, उतना फ़ायदा उसे नहीं हो रहा है.
इस पर रेचैल एलेहूस ने जवाब दिया, "अमेरिका की मौजूदा अधिकांश आबादी दूसरे महायुद्ध या शीतयुद्ध से प्रभावित नहीं हुई है इसलिए नेटो की प्रति उसकी संवेदना उतनी गहरी नहीं है. हमें लोगों को समझाना चाहिए कि नेटो से हमें क्या फ़ायदा हो रहा है और यह संगठन उनके लिए सार्थक बना हुआ है क्योंकि चीन, रूस या ईरान ही नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से निपटने में भी इसकी ज़रूरत पड़ सकती है."
यहां चीन का संदर्भ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया है और दोनों देशों ने एक दूसरे के सामान के आयात पर कर बढ़ा दिए हैं.
मार्च की शुरूआत में चीन सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था कि अगर अमेरिका चीन के साथ व्यापारिक युद्ध या किसी अन्य प्रकार का युद्ध करना चाहता है तो चीन उसके लिए तैयार है.
रेचैल एलेहूस कहती हैं कि हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका बड़ी ताकत है और अपने हितों की रक्षा के लिए कदम उठाएगा. लेकिन दूसरे संघर्ष भी इस मुद्दे से जुड़े हुए हैं.
"अगर यूरोप में यूक्रेन की हार होती है और रूस उसकी ज़मीन हड़प जाता है तो इस पर चीन की भी नज़र रहेगी और वो उससे सबक लेकर उसी तर्ज़ पर ताइवान या साउथ चाइना सी क्षेत्र में अपनी कार्रवाईयों को अंजाम देगा."
नेटो और यूरोप
राष्ट्रपति ट्रंप की रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध-विराम करवाने की बड़ी कोशिश की एक वजह यह भी है कि वो अमेरिकी जनता का पैसा उस युद्ध पर खर्च नहीं करना चाहते. इसके साथ ही अगर नेटो के सदस्य देश अपना प्रतिरक्षा बजट नहीं बढ़ाते तो वो उनकी सहायता के लिए भी तैयार नहीं लगते.
टूमास हैंड्रिक्स इलवेश एस्टोनिया के पूर्व राष्ट्रपति हैं जो अब एस्टोनिया की टार्टू यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं.
एस्टोनिया 2004 में नेटो का सदस्य बना था. हमने टूमास हैंड्रिक्स इलवेश से राष्ट्रपति ट्रंप के नेटो के प्रति रुख पर बात की.
उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति ट्रंप के बयान को देखकर कहना मुश्किल है कि नेटो किस दिशा में जा रहा है. वो कह रहे हैं कि अमेरिका उन देशों का बचाव नहीं करेगा जो अपने हिस्से का योगदान नहीं दे रहे हैं. इसका क्या अर्थ है, पता नहीं. वो और देशों को ऐसे नीचा दिखा रहे हैं जैसे उन देशों ने कुछ किया ही ना हो."
"जबकि सच्चाई यह है कि आर्टिकल 5 केवल एक बार लागू हुआ था और वो भी अमेरिका की रक्षा के लिए ही लागू हुआ था. सभी देशों ने मिलकर अमेरिका का बचाव किया था. अब नेटो के अन्य देश असमंजस में हैं. जिस प्रकार के ख़तरे सामने हैं उन्हें देखते हुए वो नहीं जानते की अमेरिका नेटो की सहायता करता रहेगा या नहीं."
मार्च में अमेरिकी सरकार ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य आपूर्ति, ख़ुफ़िया जानकारी और स्टारलिंक संचार नेटवर्क की सुविधा बंद कर दी थी. मगर जब यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार हुआ तो यह तीनों सुविधाएं दोबारा बहाल कर दी गईं.
हालांकि इन घटनाओं से यूक्रेन युद्ध को लेकर यूरोपीय देशों में चिंता फैल गई है क्योंकि इस युद्ध में वह काफ़ी हद तक अमेरिकी सैन्य उपकरणों, हथियारों और टेक्नॉलॉजी पर निर्भर हैं.
दरअसल,पिछले कुछ सालों में यूरोप के नेटो सदस्यों ने हथियारों का आयात दोगुना कर दिया है जिसकी 64 प्रतिशत से अधिक सप्लाई अमेरिका करता है.
यह तो साफ़ है कि यूरोप के साथ अपने संबंधों को अमेरिका बदल रहा है. यूरोप इस बारे में क्या कर सकता है?
टूमास हैंड्रिक्स इलवेश कहते हैं, "सबसे पहले तो यूरोपीय देशों को अपना रक्षा बजट बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि अगर राष्ट्रपति ट्रंप की मनमर्जी पर निर्भर रहे तो उनकी स्वायत्तता खटाई में पड़ सकती है. इसलिए यूरोपीय देशों को अपने टेक्नॉलॉजी क्षेत्र को अधिक विकसित करना होगा. नज़दीकी भविष्य में तो यूरोप अमेरिका से हथियार ख़रीदता रहेगा लेकिन जल्द ही उसे अपने देशों में प्रतिरक्षा तकनीक में निवेश बढ़ाना होगा".
टूमास हैंड्रिक्स इलवेश कहते हैं कि नेटो देशों ने अपने बजट का दो प्रतिशत हिस्सा प्रतिरक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य रखा था और लगभग सभी देशों ने यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया है लेकिन अगला महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या यूरोप की हथियार बनाने वाली कंपनियां जल्द ही आवश्यकतानुसार मात्रा में हथियार बना पाएंगी?
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि नेटो में केवल तीन देशों के पास ही परमाणु हथियार हैं. वो हैं अमेरिका फ़्रांस और यूके. यूक्रेन को यूरोपीय देशों के समर्थन के जवाब में रूसी राष्ट्रपति पूतिन उन्हें अपने परमाणु हथियारों से धमकाने की कोशिश करते रहे हैं.
टूमास हैंड्रिक्स इलवेश ने कहा," अमेरिका के अलावा यूरोप के दो ही देशों के पास परमाणु क्षमता है. रूस लगातार लंदन, पेरिस और बर्लिन का नामोनिशान मिटाने की धमकी दे रहा है. इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और किसी ना किसी तरह यूरोप की परमाणु क्षमता को बढ़ाना चाहिए. इसके दो तरीके हो सकते हैं या तो रूस के नज़दीक परमाणु हथियार तैनात किए जाएं या अधिक यूरोपीय देश परमाणु क्षमता प्राप्त करें."
लेकिन सुरक्षा के मुद्दे पर यूरोपीय देशों को एकजुट करना आसान नहीं है. मिसाल के तौर पर हंगरी के नेता विक्टोर ओर्बान खुल कर रूसी राष्ट्रपति पुतिन की प्रशंसा कर चुके हैं.
टूमास हैंड्रिक्स इलवेश कहते हैं कि नेटो की परिषद में कई यूरोपीय देश कड़ा सुरक्षा प्रस्ताव पारित करना चाहते थे मगर हंगरी ने उसे वीटो कर दिया.
रूस और नेटो
निर्वासन में रह रही रूसी खोजी पत्रकार आयरीना बोरोगान सेंटर फ़ॉर यूरोपियन एनालिसिस में वरिष्ठ शोधकर्ता भी हैं.
उनका कहना है कि व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व की शुरूआत में ही रूस और नेटो के बीच तनाव बढ़ गया था. 2003 में रूस के पड़ोसी देश जॉर्जिया में सत्ता परिवर्तन हुआ था जिसका पश्चिमी देशों ने समर्थन किया था.
उन्होंने कहा कि पुतिन को डर था कि ऐसा ही रूस में भी हो सकता है और उनके हाथ से सत्ता छिन सकती है. पूर्व सोविएट संघ से टूट कर स्वतंत्र बने कई लोकतांत्रिक देश नेटो में शामिल हो सकते थे इसलिए पुतिन यूक्रेन और पूर्वी यूरोप के देशों को अपने प्रभाव में रखना चाहते हैं.
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद रूस के कई हथियार भंडार खस्ता हालत में आ गए थे लेकिन पुतिन के सत्ता में आने के बाद स्थिति बदलने लगी.
आयरीना बोरोगान कहती हैं कि पुतिन ने रूसी सैन्य क्षमता को बढ़ाने की शुरूआत की.
आयरीना बोरोगान के अनुसार पुतिन चाहते हैं कि ऐसे स्वतंत्र देश जो पहले सोविएत संघ का हिस्सा थे उन्हें रूसी प्रभाव में रखना चाहिए. जब तक यह नहीं होता वो संतुष्ट नहीं होंगे.
उन्होंने कहा, " मुझे लगता है कि यह उनका मकसद है जिसके लिए वो और प्रयास करेंगे. वो यूक्रेन को नियंत्रण में लेकर भी रुकने वाले नहीं हैं."
आयरीना बोरोगान कहती हैं कि इसी वजह से राष्ट्रपति ट्रंप और यूक्रेन के नेता ज़ेलेंस्की के बीच अमेरिका में बातचीत के दौरान टकराव से वो चिंतित हैं क्योंकि अब लगने लगा है कि अमेरिका की सहायता के बिना यूरोप यूक्रेन को पर्याप्त सैन्य समर्थन नहीं दे पाएगा.
उनका कहना है कि पुतिन सोचते हैं कि यूरोप के पास उतनी बड़ी सेना और उतने हथियार नहीं है कि वो यूक्रेन को बचा सकें.
वहीं यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच बढ़ते संघर्ष से स्थिति और नाज़ुक हो गई है. तो ऐसे में का विरोध करने वाले देशों के पास क्या विकल्प हैं?
आयरीना बोरोगान का मानना है कि तीन साल से चल रहे युद्ध के बावजूद पुतिन सत्ता में बने हुए हैं. रूस को अलग थलग करना और उसके ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाना काफ़ी नहीं है.
उन्होंने कहा, " पुतिन को रोकने के लिए कड़ा सैनिक जवाब देना होगा. रूस अब यूरोप के लिए ख़तरा बन चुका है."
पोलैंड ने अमेरिका से अपने परमाणु हथियार पोलैंड में तैनात करने की अपील की है. हालांकि यह फ़ैसला एक देश का है न कि नेटो संगठन का.
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या हमें नए नेटो की ज़रूरत है? डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की नेटो के प्रति प्रतिब्द्धता में बदलाव आया है.
उन्होंने अमेरिका को नेटो से बाहर करने का की सीधा संकेत तो नहीं दिया है मगर यह ज़रूर कहा है कि वो नेटो के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता को बदलना चाहते हैं.
इससे यूरोप की स्थिति नाज़ुक हो गई है क्योंकि वो अमेरिका की सैन्य क्षमता पर ही नहीं बल्कि उसकी हथियारों की टेक्नॉलॉजी पर भी निर्भर है.
अपेक्षा है कि नेटो के भीतर कई गुट संभावित रूसी ख़तरे के विषय में रणनीति बनाने के लिए अलग से बैठक करेंगे. इसके चलते नए नेटो की संभावना से जुड़ा सवाल साफ़ तौर पर सामने आ रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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