बांग्लादेश ने अमित शाह की टिप्पणी पर जताई कड़ी आपत्ति, जानिए पूरा मामला

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के झारखंड में बांग्लादेशियों को लेकर दिए बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने सख़्त आपत्ति जताई है.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने 23 सितंबर की रात बयान जारी कर कहा, ''झारखंड में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश के नागरिकों को लेकर जो दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिया, उसका हम सख़्त विरोध करते हैं.''

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में भारत के उप-उच्चायुक्त को बुलाकर इस बारे में विरोध पत्र भी दिया.

शाह के बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने गहरी आपत्ति और ख़ासी नाराज़गी ज़ाहिर की है.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा- भारत सरकार अपने नेताओं को ऐसे 'आपत्तिजनक और अस्वीकार्य' बयान देने से बचने के लिए कहे.

अमित शाह ने कहा क्या था

इस साल के आख़िर में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं.

20 सितंबर को झारखंड में एक चुनावी रैली के दौरान अमित शाह ने कहा था, ''एक बार झारखंड सरकार बदल दीजिए. मैं आपको वादा करता हूं कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुनकर झारखंड के बाहर भेजने का काम भारतीय जनता पार्टी करेगी. ये हमारी सभ्यता को नष्ट कर रहे हैं. हमारी संपत्ति को हड़प रहे हैं.''

शाह ने कहा था, ''हमारी बेटियों के साथ अलग-अलग प्रकार से नक़ली शादी रचा रहे हैं. हमारे रोज़गार को भी वो लूटने का काम करते हैं. झारखंड के अंदर कोई घुसपैठिए की जगह नहीं, ये बीजेपी की सरकार ही कर सकती है.''

शाह ने दावा किया, ''हमारे झारखंड में जिस प्रकार से घुसपैठ हो रही है, अगर इसी प्रकार से जारी रही तो 25-30 साल में घुसपैठिए यहाँ बहुमत में आ जाएंगे.''

शाह के बयान पर बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा, ''ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की ओर से पड़ोसी देशों के नागरिकों पर की गई ऐसी टिप्पणियों से आपसी सम्मान और समझ की भावना कमज़ोर पड़ती है.''

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय की इस टिप्पणी को भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने अविवेकपूर्ण बताया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले तीन दिनों से अमेरिका में थे और बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस भी अमेरिका में ही हैं लेकिन दोनों के बीच कोई मुलाक़ात नहीं हुई.

हालांकि पीएम मोदी ने कई विश्व नेताओं से मुलाक़ात की लेकिन मोहम्मद यूनुस से नहीं हुई. इसे भी भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में आई तल्खी से जोड़ा जा रहा है. हालाँकि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहिद हुसैन से मुलाक़ात की है.

भारत में पाकिस्तान से उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने दावा है कि पीएम मोदी ने मोहम्मद यूनुस से मिलने से इनकार कर दिया और यह बांग्लादेश के लोगों का अपमान है.

शाह के बयान का वक़्त और बांग्लादेश

बांग्लादेश और भारत के संबंधों में बीते कुछ वक़्त में बदलाव देखने को मिले हैं. पाँच अगस्त को शेख़ हसीना को बांग्लादेश की सत्ता छोड़कर भारत आना पड़ा था.

इसके बाद बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी. ख़ालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी का असर भी तुलनात्मक तौर पर बढ़ना शुरू हुआ.

शेख़ हसीना की छवि भारत समर्थक की रही है. मगर बीएनपी का रुख़ भारत विरोधी माना जाता रहा है.

ऐसे में हाल ही में बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने बीएनपी नेताओं से मुलाक़ात की थी. शेख़ हसीना सरकार गिरने के बाद बीएनपी नेताओं से भारतीय राजनयिकों की ये पहली मुलाक़ात है.

बीएनपी नेता फख़रुल इस्लाम आलमगीर ने भारतीय अधिकारियों से मुलाक़ात के बाद कहा था, ''भारत बीएनपी के साथ संबंधों को लेकर सकारात्मक नज़रिया अपनाना चाहता है. भारत चाहता है कि भारतीय राजनीतिक दलों के साथ बीएनपी के रिश्ते मज़बूत हों. भारत ने कहा कि वो बांग्लादेश से रिश्ते मज़बूत करना चाहते हैं, ख़ासकर यहां हुए बड़े राजनीतिक फेरबदल के संदर्भ में.''

सितंबर महीने की शुरुआत में कई भारतीय अधिकारी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सदस्यों से मिल चुके हैं.

इन मुलाक़ातों के ज़रिए भारत ने ये संदेश देने की कोशिश की है कि वो चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले राजनीतिक दलों के साथ बातचीत के लिए इच्छुक है.

कुछ वक़्त पहले आलमगीर ने कहा था कि जनवरी 2024 चुनाव से पहले बीएनपी ने भारत से कई बार संपर्क करने की कोशिश की थी, मगर भारत ने कोई जवाब नहीं दिया था.

इन चुनावों का बीएनपी ने बहिष्कार किया था. मगर अब हालात बदल चुके हैं और भारत से रिश्तों को मज़बूत करने की संभावनाएं भी.

बीएनपी ने बीते दिनों अंतरिम सरकार से चुनाव करवाने के लिए कहा था. 25 अगस्त को मोहम्मद यूनुस ने देश में चुनाव करवाने की बात कही थी. मगर इस बारे में कोई तारीख़ नहीं बताई थी.

बांग्लादेश में जब चुनाव होंगे, तब बीएनपी की भूमिका अहम हो सकती है. इसी के मद्देनजर भारत ने बीएनपी से संपर्क बढ़ाने की शुरुआत की है.

मगर अमित शाह के बयान से संबंधों के सुधरने की रफ़्तार कुछ सुस्त पड़ सकती है.

ख़ासकर तब जब हाल ही में बांग्लादेश में आई बाढ़ के लिए कुछ संगठनों ने भारत के बांधों से छोड़े पानी को ज़िम्मेदार बताया गया था. भारत सरकार ने ऐसे दावों को ख़ारिज किया था.

बांग्लादेश पर शाह के बयान पहले भी रहे हैं सख़्त

ये पहला मौक़ा नहीं है, जब बांग्लादेश की ओर से अमित शाह के किसी बयान पर आपत्ति जताई गई हो.

2019 में भी सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून के तर्क में अमित शाह ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न की बात कही थी. इसे लेकर बांग्लादेश ने कड़ी आपत्ति जताई थी.

बांग्लादेश के तत्कालीन विदेश मंत्री डॉ एके अब्दुल मोमेन ने तब कहा था, ''वो जो हिंदुओं के उत्पीड़न की बात कह रहे हैं, वो ग़ैर-ज़रूरी और झूठ है. पूरी दुनिया में ऐसे देश कम ही हैं, जहां बांग्लादेश जैसा सांप्रदायिक सौहार्द है.''

भारत में एनआरसी और नए नागरिकता क़ानून का मुद्दा बीएनपी भी उठाती रही है.

बीएनपी नेता मिर्ज़ा फ़खरुल इस्लाम आलमगीर ने दिसंबर 2019 में कहा था, ''भारत के असम राज्य में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न यानी एनआरसी से बांग्लादेश की आज़ादी और संप्रभुता को ख़तरा है.''

इससे इतर दिसंबर 2019 में डॉ एके अब्दुल मोमेन ने कहा था, ''भारत के लोग बांग्लादेश इसलिए आ रहे हैं क्योंकि हमारी स्थति बहुत अच्छी है. हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति मज़बूत है. जो यहां आ रहे हैं उन्हें नौकरी मिल रही है. हाशिए के लोगों को यहां मुफ़्त में भोजन मिलता है.''

तब मोमेन से पूछा गया था- क्या भारतीय बांग्लादेश में घुस रहे हैं?

इस पर मोमेन ने कहा था, ''जो भारतीय बांग्लादेश में अवैध रूप से रह रहे हैं उन्हें वापस भेजा जाएगा. भारत की तुलना में हमारी अर्थव्यवस्था में ज़्यादा अच्छी है. भारतीयों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं इसीलिए वो बांग्लादेश आ रहे हैं. कुछ बिचौलिए भारत के ग़रीबों को समझाते हैं कि बांग्लादेश में भारत के ग़रीबों को मुफ़्त में भोजन मिलेगा.''

मोमेन ने कहा था, ''मैंने भारत से कहा है कि अगर कोई भी बांग्लादेशी अवैध रूप से वहां रह रहा है तो बताएं, हम उन्हें वापस बुलाएंगे.''

मार्च 2021 में जब पीएम मोदी बांग्लादेश के दौरे पर जाने वाले थे, तब भी वहां मुस्लिम और छात्र संगठनों के कुछ सदस्यों ने इस दौरे का विरोध किया था.

बीजेपी नेता अपने बयानों में बांग्लादेश से घुसपैठ होने की बातें करते रहे हैं.

कुछ हिंदूवादी संगठन कई मौक़ों पर मुसलमानों को बांग्लादेशी घुसपैठियां बताते हुए हमला करते भी दिखे हैं. ऐसी घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल रहे हैं.

बांग्लादेश और घुसपैठ

बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ एक पुराना मुद्दा रहा है.

1971 में बांग्लादेश बनने तक शरणार्थियों का भारत आना जारी रहा. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत से लेकर अमेरिका तक शरणार्थियों के मुद्दे पर तीखे सवालों का सामना करना पड़ा.

तब इंदिरा गांधी ने कहा था, ''पानी सिर के ऊपर से बह रहा है. हर धर्म के शरणार्थियों को लौटना होगा. इन शरणार्थियों को हम अपनी आबादी में नहीं मिलाएंगे.''

मौजूदा वक़्त में भी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को लेकर बीजेपी नेता लगातार दावे करते रहे हैं और बयान भी देते रहे हैं.

इसमें असम सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का नाम भी है.

22 सितंबर को ही सरमा ने सोशल मीडिया पर लिखा था, ''असम पुलिस से ने दो अलग जगहों पर दो बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा और बांग्लादेश भेज दिया गया.''

अगस्त महीने में झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आए प्रवासियों की पहचान करें. कोर्ट ने इस गंभीर चिंता का विषय बताया था.

2016 में केंद्र की मोदी सरकार ने संसद में बताया था- बांग्लादेश से अवैध रूप से आए प्रवासियों की संख्या क़रीब दो करोड़ है.

सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2004 में बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत आकर रह रहे लोगों की संख्या एक करोड़ 20 लाख थी.

भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, 2015 से 2019 के बीच क़रीब 15 हज़ार बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता दी गई.

2020 की शुरुआत में सरकार ने संसद में बताया था कि बांग्लादेश से घुसपैठ करने के सबसे ज़्यादा मामले पश्चिम बंगाल में बीते तीन सालों में देखने को मिले.

2017 में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर 1175 लोग पकड़े गए थे. 2018 में 1118 और साल 2019 में 1351 लोग पकड़े गए थे.

अगस्त महीने में नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत असम में 1988 से रह रहे एक बांग्लादेशी हिंदू को भारत की नागरिकता दी गई थी. वो उत्तर पूर्व में सीएए के तहत भारत की नागरिकता पाने वाले पहले शख़्स हैं.

सीएए के तहत मई महीने में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम के ज़रिए 14 लोगों को भारत की नागरिकता का सर्टिफिकेट दिया गया था.

मई 2014 में ख़बरों में बताया गया था कि 300 लोगों को सीएए के तहत भारत की नागरिकता दी गई है.

सीएए के तहत भारत के पड़ोसी देशों में रहने वाले हिंदू, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

सीएए के ख़िलाफ़ दिल्ली समेत भारत के कई हिस्सों में प्रदर्शन देखने को मिले थे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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