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वक़्फ़, वक़्फ़ बिल और इससे जुड़े हर सवाल का जवाब जानिए
केंद्र सरकार ने आज लोकसभा में वक़्फ़ (संशोधन) बिल, 2024 पेश किया.
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि लोकसभा की बिज़नेस एडवाइज़री कमेटी (बीएसी) की बैठक में चर्चा के लिए आठ घंटे का समय तय किया गया है, जिसे बढ़ाया भी जा सकता है.
इससे पहले बिल को पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन भारी विरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय कमेटी को भेज दिया गया, जिसमें अलग-अलग दलों के तकरीबन 31 सांसद थे.
दरअसल, केंद्र सरकार दशकों पुराने वक़्फ़ क़ानून को बदलना चाहती है, दलील है कि ये नया बिल वक़्फ़ की संपत्तियों के बेहतर इस्तेमाल के लिए है.
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वहीं विरोध करने वालों का कहना है कि सरकार बिल में बदलाव के बहाने वक़्फ़ की संपत्तियों पर कब्ज़ा करना चाहती है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानिए वक़्फ़, वक़्फ़ बोर्ड, वक़्फ़ की संपत्तियों और इस नए बिल पर चल रही चर्चाओं के बारे में हर बड़ी बात.
वक़्फ़ (संशोधन) बिल पर अब तक क्या-क्या हुआ?
वक़्फ़ (संशोधन) बिल , 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश करते हुए इसकी ख़ूबियां गिनाई थीं.
किरेन रिजिजू ने संसद में कहा था, "इस बिल के आने से किसी की भी धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप नहीं होगा. यह बिल किसी का अधिकार लेने की बात नहीं करता है बल्कि इसे उन लोगों को अधिकार देने के लिए लाया जा रहा है, जिन्हें वक़्फ़ संबंधी अपने मामलों में अधिकार नहीं मिल पाता.''
दरअसल, वक़्फ़ संशोधन पर नया बिल, 1995 के वक़्फ़ एक्ट को संशोधित करने के लिए लाया गया है. इस बिल का नाम है यूनाइटेड वक़्फ़ मैनेजमेंट एम्पॉवरमेंट, एफ़िशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट-1995 यानी उम्मीद.
तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में एक बयान में कहा था, "ये संविधान के ख़िलाफ़ है और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है."
पिछले साल अगस्त में जब ये बिल पेश हुआ था उस वक्त संसद में खूब हंगामा हुआ था और इसे संयुक्त संसदीय कमेटी को भेज दिया गया, इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल थे.
13 फरवरी को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसे 19 फ़रवरी को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी.
हालांकि, समिति में शामिल विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि उनके सुझाए बदलावों को ख़ारिज़ कर दिया गया.
वक़्फ़ क्या हैं? कितनी संपत्ति है?
वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता है अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है.
ये संपत्ति भलाई के मक़सद से समाज के लिए हो जाती है और अल्लाह के सिवा कोई उसका मालिक नहीं होता और ना हो सकता है.
वक़्फ़ वेलफ़ेयर फ़ोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं, "वक़्फ़ एक अरबी शब्द है जिसके मायने होते हैं ठहरना. जब कोई संपत्ति अल्लाह के नाम से वक़्फ़ कर दी जाती है तो वो हमेशा-हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर हो जाती है. फिर उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है."
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 1998 में दिए अपने एक फ़ैसले में कहा था कि 'एक बार जो संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है वो हमेशा वक़्फ़ ही रहती है.'
वक़्फ़ संपत्ति की ख़रीद फ़रोख़्त नहीं की जा सकती है और ना ही इन्हें किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की तरफ़ से जारी आंकड़ों के मुताबिक़, वक़्फ़ बोर्ड के पास अभी पूरे भारत में लगभग 8.7 लाख संपत्तियां हैं, जो करीब 9.4 लाख एकड़ ज़मीन में फैली हुई हैं. इनकी कुल कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये बताई जाती है.
दुनिया में भारत के पास सबसे ज़्यादा वक़्फ़ संपत्तियां हैं. भारत में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज़्यादा ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड के पास ही है.
वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन कैसे होता है?
भारत सरकार ने वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन और रखरखाव के लिए वक़्फ़ बोर्ड और सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल की व्यवस्था तय की है.
फिलहाल, इस बिल से पहले वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए 1995 का वक़्फ़ एक्ट और 2013 का वक़्फ़ संशोधन क़ानून भी है.
वक़्फ़ की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय स्तर पर एक स्वायत्त निकाय है जिसे सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल कहते हैं. इसके अलावा राज्य स्तर पर वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए वक़्फ़ बोर्ड हैं.
भारत में कुल 32 वक़्फ़ बोर्ड हैं.
वक़्फ़ बोर्ड में चयनित सदस्य होते हैं. सदस्य एक चेयरमैन का चुनाव करते हैं. जबकि सरकार एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करती है.
वक़्फ़ संपत्ति के प्रबंधन के लिए मुतवल्ली नियुक्त होते हैं. संपत्ति का सीधा नियंत्रण मुतवल्ली के हाथ में होता है और ये संपत्ति से होने वाली कुल आय का एक तय प्रतिशत वक़्फ़ बोर्ड को देते हैं.
नए बिल में किन प्रावधानों पर है विवाद?
पिछले करीब दो सालों में देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में वक़्फ़ से जुड़ी करीब 120 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसके बाद इस क़ानून में संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं.
अदालत में दी गई अर्ज़ियों में वक़्फ़ क़ानून की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जैन, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों समेत दूसरे धर्मों में ऐसे क़ानून लागू नहीं होते.
नए बिल के प्रावधान के अनुसार, वही व्यक्ति दान कर सकता है जिसने लगातार पांच साल तक मुसलमान धर्म का पालन किया हो यानी मुस्लिम हो और दान की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक़ रखता हो.
वक़्फ़ एक्ट में दो तरह की वक़्फ़ संपत्ति का ज़िक्र है. पहला वक़्फ़ अल्लाह के नाम पर होता है यानी, 'ऐसी मिल्कियत (संपत्ति) जिसे अल्लाह को समर्पित कर दिया गया है और जिसका कोई वारिसाना हक़ बाक़ी न बचा हो.'
दूसरा वक़्फ़- 'वक़्फ़ अलल औलाद है यानी ऐसी वक़्फ़ संपत्ति जिसकी देख-रेख वारिस करेंगे.'
इस दूसरे प्रकार के वक़्फ़ में नए बिल में प्रावधान किया गया है कि उसमें महिलाओं के विरासत का अधिकार ख़त्म नहीं होना चाहिए.
ऐसी दान की हुई संपत्ति एक बार सरकार के खाते में आ गई तो ज़िले का कलेक्टर उसे विधवा महिलाओं या बिना मां-बाप के बच्चों के कल्याण में इस्तेमाल कर सकेगा.
डीएम को अधिकार
ऐसी संपत्ति या ज़मीन पर अगर पहले से ही सरकार काबिज़ हो और उस पर वक़्फ़ बोर्ड ने भी वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा कर रखा हो तो नए बिल के अनुसार वक़्फ़ का दावा तब डीएम के विवेक पर निर्भर करेगा.
नए बिल के अनुसार, कलेक्टर सरकार के कब्ज़े में मौजूद वक़्फ़ के दावे वाली ऐसी ज़मीन के बारे में अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज सकते हैं.
कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद अगर उस संपत्ति को सरकारी संपत्ति मान लिया गया तो राजस्व रिकॉर्ड में वह हमेशा के लिए सरकारी संपत्ति के रूप में दर्ज हो जाएगी.
प्रस्तावित बिल में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे का अधिकार ख़त्म कर दिया गया है. बिल के प्रावधान के अनुसार, अब वक़्फ़ बोर्ड सर्वे करके यह नहीं बता सकेगा कि कोई संपत्ति वक़्फ़ की है या नहीं.
मौजूदा एक्ट में वक़्फ़ बोर्ड के सर्वे कमिश्नर के पास वक़्फ़ के दावे वाली संपत्तियों के सर्वे का अधिकार है लेकिन प्रस्तावित बिल में संशोधन के बाद सर्वे कमिश्नर से यह अधिकार लेकर उसे ज़िले के कलेक्टर को दे दिया जाएगा.
प्रस्तावित बिल के अन्य प्रावधान जिन पर आपत्तियां हैं, उनमें एक वक़्फ़ काउंसिल के स्वरूप का भी है.
सेन्ट्रल वक़्फ़ काउंसिल के सभी सदस्यों का मुसलमान होना अनिवार्य है लेकिन प्रस्तावित विधेयक में दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों का प्रावधान भी जोड़ दिया गया है.
इसके साथ ही सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के मुस्लिम सदस्यों में भी दो महिला सदस्यों का होना अनिवार्य कर दिया गया है.
विधेयक के अन्य प्रस्तावों में शिया और सुन्नी के अलावा बोहरा और आगाख़ानी के लिए अलग से बोर्ड बनाने की बात कही गई है.
मौजूदा एक्ट के मुताबिक़, शिया वक़्फ़ बोर्ड तभी बनाया जा सकता है, जब वक़्फ़ की कुल संपत्ति में 15 फ़ीसदी संपत्ति एवं आमदनी की हिस्सेदारी शिया समुदाय के पास हो.
बहरहाल अभी देश भर में जितने भी वक़्फ़ बोर्ड हैं, उनमें सिर्फ़ उत्तर प्रदेश और बिहार में ही शिया वक़्फ़ बोर्ड हैं.
नए बिल के प्रावधानों पर विशेषज्ञों की क्या राय है?
प्रस्तावित संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश होने का बाद से ही लोगों में इस बात का डर है कि सरकार उनकी ज़मीन को अपने कब्ज़े में लेना चाहती है.
लेकिन सरकार का दावा है कि इस बिल के आने से वक़्फ़ संबंधित विवादों के निपटारे में आसानी होगी.
तो, क्या इस बिल से सरकार मुसलमानों के मामलों में अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है?
इस पर 'शिकवा-ए-हिंद: द पॉलिटिकल फ़्यूचर ऑफ़ इंडियन मुस्लिम' के लेखक मुजीबुर्रहमान का मानना है कि वक़्फ़ में सुधार की ज़रूरत है.
मुजीबुर्रहमान का कहना है, "अगर मुस्लिम संपत्ति प्रबंधन में गै़र-मुसलमान रह सकते हैं तो गै़र-मुसलमानों के संपत्ति प्रबंधन में भी मुसलमानों को रहने की इजाज़त होनी चाहिए."
"क्योंकि हिन्दुस्तान एक सेक्युलर देश है और यहां पर सबकी ज़िम्मेदारी है कि वो सभी चीज़ों की देखभाल करें."
मुजीबुर्रहमान का मानना है कि अगर वक़्फ़ पर सरकार का नियंत्रण रहेगा तो फिर वो चीज़ कभी मुसलमानों के लिए इस्तेमाल नहीं होगी. बल्कि सरकार अपना नुमाइंदा नियुक्त करके उन पर कब्ज़ा करेगी और अपने हिसाब से लोगों को ज़मीन देगी.
वो कहते हैं, "वक़्फ़ को राजनीति से बाहर निकालना होगा, मुसलमानों को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरह एक कमेटी बनानी होगी."
"वक़्फ़ के सीईओ को सरकार को नहीं चुनना चाहिए, बल्कि वक़्फ़ के खर्च पर इसके लिए चुनाव हो. ऐसा करने से ये राजनीति से बाहर होगा और मुसलमानों का इस पर नियंत्रण रहेगा."
मुजीबुर्रहमान कहते हैं, "ये मामला पैसों का है, चाहे कोई भी सरकार हो हर कोई चाहती है उस चीज़ पर उनका कब्ज़ा हो. डीएम सरकार का एक नुमाइंदा होता है. अगर उसको उस संपत्ति में एक फ़ीसदी भी विवाद नज़र आएगा तो फिर वो संपत्ति सरकार की हो जाएगी."
वहीं मौलाना आज़ाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफ़र सरेशवाला कहते हैं कि वक़्फ़ के पास इतनी संपत्ति है कि इसका इस्तेमाल सही से किया गया होता तो सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं इस देश का हिंदू भी ग़रीब नहीं रहता.
वो कहते हैं, "हज़ार करोड़ की संपत्ति संभालने के लिए ऐसे लोग बैठे हैं जिन्होंने कभी दस लाख की संपत्ति कभी न ख़रीदी है और न कभी बेची है."
"हमें ज़रूरत है कि वहां ऐसे लोगों को बैठाया जाए जो बेहतर तरीक़े से इन संपत्तियों की देख रेख कर सकें."
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