You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
ग़ज़ा पर हुए सम्मेलन में ट्रंप ने अर्दोआन को इतनी अहमियत क्यों दी?
- Author, रजनीश कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी ने सोमवार को शर्म अल-शेख़ में आयोजित ग़ज़ा शांति सम्मेलन की अध्यक्षता की.
इस समिट में राष्ट्रपति ट्रंप तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन को सबसे ज़्यादा तवज्जो देते दिखे.
ट्रंप ने अर्दोआन को न केवल अहमियत दी, बल्कि उनकी जमकर प्रशंसा भी की.
इस समिट में दुनिया भर के 20 से ज़्यादा नेता पहुँचे थे और ट्रंप ने सबके सामने कहा कि ग़ज़ा शांति समझौते में अर्दोआन की अहम भूमिका रही है.
इस समिट के उद्घाटन भाषण में ट्रंप ने अर्दोआन को सख़्त लेकिन शानदार नेता बताया.
ट्रंप ने कहा, ''मुझे नहीं पता यह क्या है. मुझे सख़्त लोग उदार और आसान लोगों की तुलना में ज़्यादा पसंद हैं. मुझे नहीं पता कि यह क्या पहेली है. शायद यह कोई व्यक्तित्व से जुड़ी समस्या है."
"लेकिन तुर्की के यह सज्जन, जिनके पास वास्तव में दुनिया की सबसे ताक़तवर सेनाओं में से एक सेना है, वह एक सख़्त इंसान हैं. लेकिन वह मेरे दोस्त रहे हैं और जब भी मुझे उनकी ज़रूरत पड़ी, वह हमेशा मेरे लिए मौजूद रहे हैं."
तुर्की में अमेरिका के राजदूत टॉम बराक ने 25 सितंबर को ट्रंप और अर्दोआन की मुलाक़ात से ठीक पहले कहा था, ''तुर्की से न ख़त्म होनी वाली असहमतियों से ट्रंप थक चुके थे. चाहे वो रूस के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की ख़रीद हो या फिर रूस के ख़िलाफ़ तुर्की का प्रतिबंध में शामिल ना होना हो."
टॉम बराक ने कहा, "ऐसे में ट्रंप ने फ़ैसला किया कि वह अर्दोआन को वो चीज़ देंगे जिसकी उन्हें सबसे ज़्यादा दरकार है. वो है- स्वीकार्यता.''
लेकिन ट्रंप का रुख़ कब किसके प्रति बदल जाए, यह कहना मुश्किल है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अर्दोआन को सीरिया में अमेरिका समर्थित कुर्द बलों पर सैन्य कार्रवाई के लिए धमकी दी थी.
ट्रंप ने अर्दोआन को लिखे पत्र में कहा था, ''सख़्त बनने की कोशिश मत करिए और मूर्खता मत कीजिए. मैं तुर्की की अर्थव्यवस्था को तबाह करने की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहता हूँ, जबकि मैं ऐसा कर सकता हूँ.''
नेतन्याहू को अर्दोआन ने रोका?
शर्म-अल-शेख़ समिट में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन वह इसमें शामिल नहीं हुए.
ब्रिटिश अख़बार द गार्डियन के डिप्लोमैटिक एडिटर पैट्रिक विंटूर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अर्दोआन ने नेतन्याहू को बुलाने पर आपत्ति जताई और आख़िरकार इसराइली प्रधानमंत्री को आने की योजना रद्द करनी पड़ी.
द गार्डियन ने लिखा है, ''तुर्की के राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया था कि अगर नेतन्याहू को बुलाया गया, तो शर्म अल-शेख़ में उनका विमान नहीं उतरेगा. यह टकराव तब शुरू हुआ, जब यह घोषणा की गई कि नेतन्याहू ने ट्रंप का देर से आया निमंत्रण स्वीकार कर लिया है. ट्रंप ने सोमवार सुबह फ़ोन कर मिस्र के राष्ट्रपति को नेतन्याहू की भागीदारी की सूचना दी थी.''
द गार्डियन ने लिखा है, ''यह स्पष्ट नहीं है कि अर्दोआन की आपत्ति की वजह से नेतन्याहू को दौरा रद्द करना पड़ा, लेकिन यह ज़रूर है कि अर्दोआन ने अपने विमान से ही अल सीसी को फ़ोन किया था.''
हालाँकि इसराइली प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ''प्रधानमंत्री नेतन्याहू को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मिस्र में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था."
"प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने राष्ट्रपति ट्रंप को इस निमंत्रण के लिए शुक्रिया कहा लेकिन छुट्टियों की शुरुआत के इतने क़रीब कार्यक्रम होने के कारण वह इसमें शामिल नहीं हो पाएँगे.''
अर्दोआन को इतनी अहमियत क्यों?
ऐसे में सवाल उठता है कि ट्रंप आख़िर अर्दोआन को इतनी तवज्जो क्यों दे रहे हैं?
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर मोहम्मद मुदस्सिर क़मर कहते हैं कि ग़ज़ा में शांति को लेकर जो शुरुआती समझौता हुआ है, उसमें क़तर, तुर्की और मिस्र की अहम भूमिका थी.
मोहम्मद मुदस्सिर क़मर कहते हैं, ''तुर्की और क़तर ने हमास पर दबाव बनाया था कि वो इस डील को मंज़ूर करे. ज़ाहिर है कि इसी वजह से ट्रंप को इसका श्रेय भी मिल रहा है. ऐसे में ट्रंप की ओर से अर्दोआन की तारीफ़ बहुत चौंकाती नहीं है."
"अर्दोआन ट्रंप को भरोसे में लेकर इस शांति समझौते के लिए काम कर रहे थे. ट्रंप के लिए ये प्रतिष्ठा का सवाल था कि किसी भी तरह से ग़ज़ा में युद्ध बंद हो.''
मोहम्मद मुदस्सिर क़मर कहते हैं, ''इस मामले में सऊदी अरब और यूएई की बहुत भूमिका नहीं थी. इसलिए उनके राष्ट्राध्यक्ष के बदले दूसरे प्रतिनिधि आए. मिस्र ने ईरान और हमास को भी बुलाया था. ऐसे में नेतन्याहू को भी न्योता भेजा गया था."
"मिस्र चाहता था कि यह पूरी तरह से न्यूट्रल रहे. नेतन्याहू के आने को लेकर अर्दोआन की आपत्ति तुर्की की घरेलू राजनीति के कारण भी थी. अर्दोआन नहीं चाहते थे कि वह उस मंच पर रहें, जिस पर नेतन्याहू हों.''
सबसे दिलचस्प है कि अर्दोआन ट्रंप की तारीफ़ पाने के लिए कहीं से भी झुकते नज़र नहीं आ रहे हैं. तुर्की नेटो का सदस्य है, तब भी रूस से तेल और गैस आयात कर रहा है.
उसके चीन और रूस से भी अच्छे संबंध हैं. इसके बावजूद ट्रंप ने तुर्की के ख़िलाफ़ भारी टैरिफ़ नहीं लगाया है.
अर्दोआन एक साथ कई चीज़ें बहुत सफलतापूर्वक मैनेज कर रहे हैं. अर्दोआन आख़िर ये सारी चीज़ें एक साथ कैसे साध ले रहे हैं?
सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि अर्दोआन को जियोपॉलिटिक्स की अच्छी समझ है.
अर्दोआन की समझ
तलमीज़ अहमद कहते हैं, ''राष्ट्रपति अर्दोआन ख़ुद को एक अहम स्टेट्समैन मानते हैं. उनकी भूमिका क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में भी दिखती है. अर्दोआन ऑटोमन साम्राज्य वाली ताक़त हासिल करने की आकांक्षा रखते हैं. तुर्की नेटो में ज़रूर है, लेकिन साथ-साथ रूस और चीन से भी गहरा रिश्ता है."
"तुर्की का इसराइल से भी राजनयिक संबंध है और इस्लामिक दुनिया का भी भरोसा हासिल है. अर्दोआन किसी एक रिश्ते में बंधकर नहीं रहना चाहते हैं. इस तरह वह अपने आप को बिग पावर ग्रुप में शामिल कर रहे हैं.''
वॉशिंगटन इंस्टिट्यूट में टर्किश रिसर्च प्रोग्राम के निदेशक सोनेर कगाप्तय ने अर्दोआन पर 'अ सुल्तान इन ऑटोमन' नाम से एक किताब लिखी है.
इस किताब में उन्होंने लिखा है, ''अर्दोआन ने सत्ता में रहने के दौरान ख़ुद को उम्मीद से ज़्यादा मज़बूत किया. इराक़, सीरिया और लीबिया में प्रभावी सैन्य अभियान को अंजाम दिया और तुर्की की राजनीतिक ताक़त का अहसास करवाया. जहाँ तुर्की राजनयिक ताक़त बनने में नाकाम रहा, वहाँ उसकी सैन्य ताक़त ने भरपाई कर दी.''
तलमीज़ अहमद कहते हैं, ''ट्रंप को पता है कि पश्चिम एशिया में तुर्की का काफ़ी प्रभाव है और इसका फ़ायदा उठाया जा सकता है. अर्दोआन बहुत ही स्वतंत्र विदेश नीति चलाते हैं. अर्दोआन को पता है कि उन्हें कैसे तुर्की का हित साधना है."
अर्दोआन तुर्की में 25 सालों से सत्ता में है. जहाँ भी उनको मौक़ा मिलता है, उसका फ़ायदा उठा लेते हैं.
अर्दोआन ने फ़ैसला किया पॉलिटिकल इस्लाम का समर्थन करना है, फिर उन्होंने इराक़ और सीरिया दोनों में कुर्दों के ख़िलाफ़ फौज भेजी."
तलमीज़ अहमद कहते हैं, "इसके बाद उन्होंने एक ख़ास रिश्ता त्रिपोली प्रशासन के साथ बनाया. जब उन्हें लगा कि पॉलिटिकल इस्लाम को थोड़ा रोकना है, तो सऊदी अरब, यूएई और मिस्र के साथ अपना रिश्ता बना लिया. अभी जब 'ऑपरेशन सिंदूर' हो रहा था तो पाकिस्तान के साथ अपना रिश्ता बना लिया. अब तक अर्दोआन इसमें कामयाब रहे हैं.''
पाकिस्तान का साथ क्यों?
पाकिस्तान को समर्थन देकर तुर्की क्या हासिल करता है?
तलमीज़ अहमद कहते हैं, ''पाकिस्तान का जो पॉलिटिकल लोकेशन मध्य एशिया, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और हिन्द महासागर में है, उसकी अहमियत अर्दोआन बख़ूबी समझते हैं."
"तुर्की की तरफ़ हमें नज़र रखनी चाहिए, क्योंकि जियोपॉलिटिकल समझ के साथ उनका एक लक्ष्य भी है. अर्दोआन मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में ऑटोमन साम्राज्य के प्रभाव वाले इलाक़ों में सांस्कृतिक जुड़ाव को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश कर रहे हैं.''
ऑटोमन साम्राज्य का विस्तार मिस्र, ग्रीस, बुल्गारिया, रोमानिया, मेसिडोनिया, हंगरी, फ़लस्तीन, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, अरब के ज़्यादातर हिस्सों और उत्तरी अफ़्रीका के ज़्यादातर तटीय इलाक़ों तक फैला था.
पहले विश्व युद्ध के साथ ही ऑटोमन साम्राज्य का अंत हुआ था और 'तुर्की' बना था.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन साल 2019 के बाद पहली बार द्विपक्षीय दौरे पर पिछले महीने 25 सितंबर को अमेरिका गए थे.
इससे पहले अर्दोआन ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2019 में व्हाइट हाउस गए थे.
जो बाइडन से अर्दोआन के संबंध तनाव भरे रहे थे. बाइडन अक्सर अर्दोआन पर निरंकुश शासन का आरोप लगाते थे. लेकिन ट्रंप अर्दोआन की तारीफ़ तब से कर रहे हैं, जब वह राष्ट्रपति नहीं बने थे.
साल 2012 में इस्तांबुल में ट्रंप टावर के उद्घाटन के मौक़े पर डोनाल्ड ट्रंप ने अर्दोआन की तारीफ़ करते हुए कहा था कि उनका दुनिया भर में बहुत आदर है.
ट्रंप ने कहा था, ''अर्दोआन बहुत अच्छे व्यक्ति हैं. तुर्की के लोगों का वह बहुत अच्छे से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.''
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ोर वेस्ट एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर रहे आफ़ताब कमाल पाशा मानते हैं कि अर्दोआन ने तुर्की को राजनयिक और रणनीतिक स्वायत्तता दिलाई.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ''साल 2003 के पहले तुर्की में सेना का दबदबा रहता था. अतातुर्क भी फ़ौज से ही आए थे. तुर्की की अर्थव्यवस्था में भी फ़ौज का ही ज़्यादा दखल था. तख़्तापलट भी तुर्की में होता रहता था. अर्दोआन ने इसे ख़त्म किया."
"अर्दोआन के आने के बाद से तुर्की में निजी कारोबारी उभरे. तुर्की की सरकार में सेना का दखल ख़त्म हुआ. इस लिहाज से देखें तो अर्दोआन ने तुर्की की राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. मुझे लगता है कि यह अर्दोआन की उपलब्धि है.''
तुर्की दुनिया भर में अपने ख़ास लोकेशन की वजह से काफ़ी अहम मुल्क है. इसी वजह से तुर्की नेटो का अहम सहयोगी माना जाता है.
तुर्की ब्लैक सी तक की पहुँच को कंट्रोल करता है. तुर्की को यूरोप, एशिया और मध्य-पूर्व में एक रणनीतिक ब्रिज की तरह माना जाता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित