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ट्रंप ने पीएम मोदी से मिलने की घोषणा की थी, लेकिन बिना मिले क्यों भारत लौटे प्रधानमंत्री
- Author, दिलनवाज़ पाशा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका से वापस लौट आए हैं. इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाक़ात की, क्वाड सम्मेलन में हिस्सा लिया, संयुक्त राष्ट्र में संबोधन किया, कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाक़ात की, लेकिन वो अमेरिका की घरेलू राजनीति से दूर ही रहे.
पीएम मोदी ने फिलाडेल्फिया और न्यूयॉर्क में भारतीय समुदाय से मुलाक़ात की. राष्ट्रपति जो बाइडन ने डेलावेयर स्थित अपने निवास पर मोदी का स्वागत किया. अमेरिका ने इस यात्रा के दौरान कई प्राचीन भारतीय कलाकृतियों को भारत लौटाया.
मोदी ने क्वाड नेताओं के सम्मेलन में भी हिस्सा लिया. संयुक्त राष्ट्र में पीएम मोदी ने 'वैश्विक शांति और विकास के लिए ग्लोबल संस्थाओं में सुधार' की ज़रूरत की बात की. पीएम मोदी फ़़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की से भी मिले.
पीएम मोदी की यात्रा से पहले रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे डोनाल्ड ट्रंप कहा था कि भारतीय पीएम उनसे मिलेंगे. ये मुलाक़ात नहीं हई.
ट्रंप ने कही थी मुलाक़ात की बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका पहुँचने से पहले ही एक बयान में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि मोदी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनसे मुलाक़ात करेंगे.
मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले जब विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफ़िंग में पत्रकारों ने विदेश सचिव विक्रम मिसरी से जब ट्रंप से मुलाक़ात पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने बस इतना कहा कि अभी तक कुछ तय नहीं है.
यानी उन्होंने न इस मुलाक़ात की कोई पुष्टि की और न ही इससे इनकार किया.
लेकिन इस यात्रा के दौरान ट्रंप और मोदी की मुलाक़ात नहीं हुई. ये कयास ज़रूर लगाए जा रहे थे कि ट्रंप न्यूयॉर्क सिटी या फिर लॉन्ग आइलैंड में मोदी के भारतीय समुदाय के साथ कार्यक्रम में पहुँच सकते हैं.
हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब साल 2019 में अमेरिका गए थे, तो ह्यूस्टन की हाऊडी मोदी रैली में उन्होंने ट्रंप को आमंत्रित किया था. इस कार्यक्रम में भारतीय समुदाय के लोगों की भारी भीड़ जुटी थी.
ट्रंप ने फ़रवरी 2020 में भारत का दौरा किया था और अहमदाबाद में एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ उनके स्वागत में जुटी थी.
ट्रंप और मोदी दोनों ही एक-दूसरे को अपना मित्र बताते रहे हैं. हालांकि अमेरिका यात्रा के दौरान, ट्रंप के सार्वजनिक बयान के बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्रंप से मुलाक़ात ना करने को विश्लेषक एक रणनीतिक क़दम के रूप में देख रहे हैं.
अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच अगर मोदी ट्रंप से मुलाक़ात करते और उनके चुनाव अभियान का समर्थन करते या इस मुलाक़ात को ट्रंप के समर्थन के रूप में देखा जाता, तो ये नासमझी होती.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार प्रोफ़ेसर स्वास्ति राव के मुताबिक़ अगर मोदी मिलते तो ट्रंप और कमला हैरिस दोनों से मिलते, किसी एक उम्मीदवार से मिलना कूटनीतिक रूप से सही नहीं होता.
क्यों नहीं हुई मुलाक़ात?
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रॉबिन्दर सचदेव भी मानते हैं कि भारत या कोई भी दुनिया का दूसरा देश किसी देश की घरेलू राजनीति में किसी एक का पक्ष का साथ नहीं दे सकता.
वे कहते हैं कि अगर मोदी को ट्रंप से मिलना भी था तो वो सिर्फ़ ट्रंप से नहीं मिलते, कमला हैरिस से भी मुलाक़ात करते और दोनों नेताओं से मुलाक़ात तय नहीं हो पाई होगी, शायद इसी वजह से ये मुलाक़ात नहीं हो सकी.
रॉबिन्दर सचदेव कहते हैं, "ऐसा हो सकता है कि भारतीय राजनयिकों ने ट्रंप और कमला हैरिस दोनों से मुलाक़ात तय कराने की कोशिश की हो, शायद इसलिए ही ट्रंप ने तो सार्वजनिक तौर पर कहा भी था कि वो मोदी से मिलेंगे, लेकिन ये मुलाक़ात नहीं हो सकी.''
मुक़्तदर ख़ान को लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप ने सिर्फ़ एक बार कह दिया था कि वो मोदी से मिलेंगे, हालांकि ये मुलाक़ात तय नहीं हुई थी.
जानकार मानते हैं कि ये कहना सही नहीं होगा कि मोदी ने ट्रंप को नज़रअंदाज़ किया या उनसे दूरी बनाई, ये कहना ज़्यादा सही है कि दोनों नेताओं की मुलाक़ात के लिए हालात और संदर्भ ठीक नहीं था.
अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. रिपब्लिकन पार्टी की तरफ़ से एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप मैदान में हैं, जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी से कमला हैरिस मैदान में हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव
अमेरिका में चुनावी अभियान चरम पर हैं. विश्लेषकों के मुताबिक़, इस समय मुक़ाबला बेहद कांटे का हैं. बाइडन के सामने आगे नज़र आ रहे ट्रंप और कमला हैरिस में कड़ी टक्कर दिख रही है.
मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, “अमेरिका में चुनाव बेहद फँसा हुआ है, बहुत कम अंतर से ये तय होगा कि इसमें कौन जीतेगा. ऐसी स्थिति में अगर मोदी ट्रंप से मिलते और किसी वजह से कमला हैरिस से उनकी मुलाक़ात नहीं हो पाती, तो ये मोदी के लिए अच्छी स्थिति नहीं होती.”
उन्होंने कहा, "मुझे ऐसा लगता है कि हो सकता है कमला हैरिस, नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात के लिए तैयार ना हुई हों. कमला हैरिस के मुलाक़ात से इनकार करने के बाद, मोदी की टीम ने ट्रंप से मुलाक़ात को भी रद्द करवा दिया होगा."
साल 2019 में अमेरिका यात्रा के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत करते हुए मोदी ने कहा था- ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’. हालांकि ट्रंप अगला राष्ट्रपति चुनाव हार गए थे.
भारत को अमेरिका में जो बाइडन के नेतृत्व में आई डेमोक्रेटिक सरकार के साथ संबंधों को पटरी पर लाने के लिए मशक़्क़त करनी पड़ी थी.
ऐसे में, विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकारों ने कहा होगा कि इस समय अमेरिकी चुनावों के बीच ट्रंप या किसी एक उम्मीदवार से मिलना ठीक नहीं होगा.
भारत की कूटनीति में बदलाव
भारत की कूटनीति पिछले कुछ सालों में थोड़ी बदलती दिखी है. अमेरिका में मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से भी मुलाक़ात की है. विश्लेषक भी इसे एक संकेत के रूप में देख रहे हैं.
रॉबिन्दर सचदेव का मानना है कि यूक्रेन संकट पर भारत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि इसका एक ही समाधान है- युद्ध रुकना चाहिए.
वहीं, प्रोफ़ेसर स्वास्ति राव कहती हैं, “भारत को भले ही रूस के पारंपरिक मित्र के रूप में देखा जाता है, लेकिन भारत अपने हित भी समझता है और यूक्रेन संकट के समाधान में अपने हित भी देखता है."
"यही वजह है कि मोदी ज़ेलेंस्की से मिलने में नहीं झिझक रहे हैं. वो स्पष्ट संकेत देना चाहते हैं कि भारत चाहता है कि युद्ध रुके."
जानकार कहते हैं कि भारत की अपनी ज़रूरतें भी हैं जो पश्चिमी देशों से पूरी होती हैं. भारत अपनी रक्षा और अन्य ज़रूरतों के लिए पश्चिम पर निर्भर है.
ऐसे में रूस-यूक्रेन संकट के समाधान में भारत ज़रूरत पड़ने पर अहम भूमिका तो निभाएगा, लेकिन किसी एक पक्ष के साथ खड़ा नहीं दिखेगा.
विश्लेषक ये भी मानते हैं कि मौजूदा समय में भारत के लिए अमेरिका के साथ बेहतर संबंध एक कूटनीतिक और रणनीतिक ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "भारत और अमेरिका के रिश्तों को मज़बूत करने के पीछे भूराजनैतिक माहौल के अलावा चीन का उदय भी है. चीन की नीति जब तक आक्रामक हैं, भारत के लिए ये बेहद अहम है कि वो अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को और मज़बूत करे."
मुक़्तदर ख़ान के मुताबिक चीन औद्योगिक क्षेत्र में भी आक्रामक है, वह अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है, अपनी कंपनियों को सब्सिडी दे रहा है, जब तक चीन आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देता दिख रहा है, अमेरिका के लिए भारत बहुत ज़रूरी है.
प्रोफ़ेसर राव को लगता है कि रूस अगर चीन की तरफ़ और झुकता है, तो भारत के लिए ये और भी अहम हो जाएगा कि वो अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को और बेहतर करे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित